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Showing posts from March, 2021

दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् परमेश्वर में कैसी आस्था होनी चाहिए?

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अनुराग सागर पृष्ठ 3 से 5 तक का सारांश :- पृष्ठ 3 से :- धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्रश्न किया :- प्रश्न :- प्रभु! दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् परमेश्वर में कैसी आस्था होनी चाहिए? उत्तर :- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि जैसे मृग (हिरण) शब्द पर आसक्त होता है, वैसे साधक परमात्मा के प्रति लग्न लगावै।  हिरण (मृग) पकड़ने वाला एक यंत्र से विशेष शब्द करता है जो हिरण को अत्यंत पसंद होता है। जब वह शब्द बजाया जाता है तो हिरण उस ओर चल पड़ता है और शिकारी जो शब्द कर रहा होता है, उसके सामने बैठकर मुख जमीन पर रखकर समर्पित हो जाता है। अपने जीवन को दॉव पर लगा देता है। इसी प्रकार उपदेशी को परमात्मा के प्रति समर्पित होना चाहिए। अपना जीवन न्यौछावर कर देना चाहिए।  दूसरा उदाहरण :- पतंग (पंख वाला कीड़ा) को प्रकाश बहुत प्रिय है। अपनी प्रिय वस्तु को प्राप्त करने के लिए वह दीपक, मोमबत्ती, बिजली की गर्म लाईट के ऊपर आसक्त होकर उसे प्राप्त करने के उद्देश्य से उसके ऊपर गिर जाता है और मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। इसी प्रकार भक्त को परमात्मा प्राप्ति के लिए मर-मिटना चाहिए। समाज की परंपरागत साधना क

कंवारी गाय के दूध से परमेश्वर कबीर जी की परवरिश होती हैं।

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कंवारी गाय के दूध से परमेश्वर कबीर जी की परवरिश होती हैं।  कथा प्रसंग है कि कंवारी गाय के दूध से परमेश्वर कबीर जी की परवरिश हुई थी, यह सत्य है तथा सत्य प्रकरण क्या है? शेष कथा बताता हूँ।  जैसा कि ’’स्वसम वेद बोध’’ के पृष्ठ 132 से 134 तक के प्रकरण में वाणी लिखी है, जिनमें दर्शाया गया है कि इस जन्म में नीरू-नीमा जन्म से जुलाहे थे। इससे पहले जन्म में पंडित थे। वास्तविकता यह है कि उस जन्म में भी पंडित थे जिस जन्म में परमेश्वर काशी में लहर तारा तालाब में कमल के फूल पर मिले थे और उससे पूर्व जन्म में भी ब्राह्मण थे।  उस जन्म में जिसमें परमेश्वर जी लहर तारा तालाब पर मिले थे, उसमें वे ब्राह्मण कुल में जन्में थे। बाद में जबरन मुसलमान बनाए गए थे। यदि जन्मजात मुसलमान होते तो भगवान शंकर किसलिए प्रकट होते? स्वसम वेद बोध पृष्ठ 134 पर लिखा है कि पंडित बालक कबीर का नाम रखने आए। यदि जन्मजात मुसलमान जुलाहा नीरू होता तो ब्राह्मण किसलिए नामांकन करने आते?  वास्तविकता यह है कि गौरी शंकर ब्राह्मण को मुसलमान बनाकर नीरू नाम रखा था। काजी और   मुल्लाा दोनो नामांकन करने आए थे। वास्तविकता अब पढ़ें निम्न

कबीर जी का काशी में प्रकट होना

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कबीर जी का काशी में प्रकट होना  द्वापर युग में तुम बालमिक जाती। भक्ति शिव की करि दिन राती।। तुमरा एक बालक प्यारा। वह था परम शिष्य हमारा।। सुपच भक्त मम प्राण प्यारा। उससे था एक वचन हमारा।। ता करण हम चल आए। जल पर प्रकट हम नारायण कहाऐ।।  लै चलो तुम घर अपने। कोई अकाज होये नहीं सपने।। बाचा बन्ध जा कारण यहाँ आए। काल कष्ट तुम्हरा मिट जाए।। इतना सुनि कर जुलहा घबराया। कोई जिन्द या ओपरा पराया।। मोकूँ कोई शाप न लग जाए। ले बालक को घर कूँ आए।। साखीः- सुत काशी को लै चले। लोग देखन तहँ आय।। अन्न पानी भक्षै नहीं जुलहा शोक जनाय।। परमेश्वर कबीर जी को लेकर नीरू जुलाहा अपनी पत्नी के साथ घर पर आया। वह डर गया कि इस बच्चे में कोई जिन्द या भूत-प्रेत बोल रहा है। कहीं मेरे को हानि न कर दे, इस डर से बच्चे को घर ले आया। काशी नगर के नर-नारी झुंड (समूह रूप में) लड़के को देखने आए और अपनी-अपनी धारणा के अनुसार महिमा करने लगे। संत गरीबदास जी (छुड़ानी वाले) ने भी अपनी वाणी में परमात्मा कबीर जी द्वारा प्राप्त दिव्य दृष्टि से पूर्व वाली घटना देखकर कहा है :- संत गरीबदास जी की अमृतवाणी :- काशी पुरी कस्द किया, उतर

हनुमान जी की पत्नी के साथ दुर्लभ फोटो

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हनुमान जी की पत्नी के साथ दुर्लभ फोटो कहा जाता है कि हनुमान जी के उनकी पत्नी के साथ दर्शन करने के बाद घर में चल रहे पति पत्नी के बीच के सारे तनाव खत्म हो जाते हैं। आंध्रप्रदेश के खम्मम जिले में बना हनुमान जी का यह मंदिर काफी मायनों में खास है। यहां हनुमान जी अपने ब्रह्मचारी रूप में नहीं बल्कि गृहस्थ रूप में अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान है। हनुमान जी के सभी भक्त यही मानते आए हैं की वे बाल ब्रह्मचारी थे और वाल्मीकि, कम्भ, सहित किसी भी रामायण और रामचरित मानस में बालाजी के इसी रूप का वर्णन मिलता है। लेकिन पराशर संहिता में हनुमान जी के विवाह का उल्लेख है। इसका सबूत है आंध्र प्रदेश के खम्मम ज़िले में बना एक खास मंदिर जो प्रमाण है हनुमान जी की शादी का। यह मंदिर याद दिलाता है रामदूत के उस चरित्र का जब उन्हें विवाह के बंधन में बंधना पड़ा था। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि भगवान हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी नहीं थे। पवनपुत्र का विवाह भी हुआ था और वो बाल ब्रह्मचारी भी थे। कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण ही बजरंगबली को सुवर्चला के साथ विवाह बंधन में बंधना पड़ा। दरअसल हनुमान जी ने भगवान स

ज्ञान सागर

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‘’ज्ञान सागर  इस अध्याय में कुल 106 पृष्ठ हैं। हमने मोती निकालने हैं, सागर भरा रहेगा। हमारे लिए मोती प्राप्त करना अनिवार्य तथा पर्याप्त है। प्रथम तो यह सिद्ध करना चाहूँगा कि ’’अथाह सागर से मोती निकालना मेरे स्तर का कार्य नहीं था। मैं (रामपाल दास) केवल दसवीं तक पढ़ा हूँ। उसके पश्चात् तीन वर्ष का सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया और हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग में 17/02/1977 को जूनियर इंजीनियर के पद पर नौकरी लगा। 17/02/1988 को परम पूज्य गुरूदेव स्वामी रामदेवानन्द जी से दीक्षा प्राप्त हुई। फिर मार्च 1994 को गुरूदेव ने गुरू पद प्रदान किया। कहा कि बेटा तू दीक्षा दे, मैं तेरे को आदेश देता हूँ। उस दिन वही दिन था जिस दिन परमेश्वर कबीर जी अपनी प्यारी आत्मा संत गरीबदास जी को गाँव छुड़ानी के खेतों में मिले थे और दीक्षा दी थी। सत्यलोक ले गए थे, शाम को वापिस छोड़ा था। उस उपलक्ष्य में तीन दिन का पाठ चल रहा था। मध्य के दिन मेरे को छुड़ानी धाम में दीक्षा देने का आदेश पुज्य गुरूदेव स्वामी रामदेवानंद जी ने दिया था। कहा था कि संसार में तेरे बराबर कोई संत नहीं होगा। मैं तेरे साथ रहूँगा, अप

चमत्कार !!! #चमत्कार !!! #चमत्कार !!!

#चमत्कार !!!  #चमत्कार !!!  #चमत्कार !!! संत रामपाल जी महाराज जी की दया से तहसील विराटनगर के गांव तेवड़ी के सेवरा की ढाणी में हंसराज गुर्जर जी 🔖👁‍🗨↪सच्चाई जानने के लिए आप खुद काल कर सकते हैं उन्हे  Mob. 8290362910, 8441860415🔷)✔जो पिछले 10 साल से अपने दोनों हाथों दोनों पैरों में - कोढ -के कारण बहुत दु:खी थे ,कुछ भी काम नहीं कर पाते थे , उनका सारा काम घरवालों की सहायता से हो पाता था ,  वे सभी देवी देवताओ , मंदिर ,मस्जिद,व सभी ,स्याणा भोपाओ, तांत्रिकओ व सभी हॉस्पिटलओ - डॉक्टरओ  से मिलकर थक चुके थे , 5 -7 लाख रुपये लगा चुके थे,  लेकिन कोई दवा,दुआ, असर ही नही कर रही थी, वे एक दिन संत रामपाल जी महाराज जी के शिष्य के संपर्क में आए ओर उनको अपनी आप बीती बताई, संत रामपाल जी महाराज जी के शिष्य ने पूर्ण विश्वास के साथ उनको बताया कि अगर आप एक बार पूर्ण विश्वास के साथ संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा ले लेंगे,  ओर मर्यादा में रहेगे, तो आपका यह रोग बिल्कुल ठीक हो सकता है,  हमेशा के लिए इस बात को हंसराज भगत जी मान ली और कहा कि जहा, इतना सब कुछ किया है तो इतना और सही देखें तो सही संत रामपाल जी म

श्री नानक जी केवल पाँच नाम

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श्री नानक जी केवल पाँच नाम (मूल कमल से कण्ठ कमल तक वाले मन्त्र) देते थे। साथ में वाहे गुरू-वाहे गुरू का जाप भी देते थे। उन पाँच नामों का प्रमाण पुस्तक ’’तीइये ताप की कथा’’ में गुरू अमर दास जी ने ये पाँचों नाम मन्त्र लिखे हैं जिनके जाप से रोग भी नष्ट हो जाता है। (वे मन्त्र हैं हरियं, श्रीं, कलिं, ओं, सों) यह मैं (रामपाल दास) प्रथम चरण की दीक्षा में देता हूँ। दूसरे चरण में सतनाम तथा तीसरे चरण में ’’सारशब्द’’ देता हूँ। {इसी प्रकार परमेश्वर कबीर जी ने राजा बीर सिहं बघेल (काशी नरेश) को तीन बार में दीक्षा पूर्ण की थी। प्रमाण :- कबीर सागर के अध्याय ’’बीर सिहं बोध‘‘ में।}  सोई गुरू पूरा कहावे जो दो अखर का भेद बतावै। ऊपर दो अक्षर के सतनाम (सत्यनाम) के विषय में लिख दिया है, परंतु सारशब्द के विषय में नहीं बताऊँगा। काल के दूत सार शब्द जानकर स्वयंभू गुरू बन कर भोले जीवों को काल के जाल में रख लेंगे क्योंकि यह मन्त्र तथा उपरोक्त प्रथम दीक्षा मन्त्र तथा दूसरी दीक्षा मन्त्र सत्यनाम वाले तथा सार शब्द मुझ दास (रामपाल दास) के अतिरिक्त कलयुग में कोई दीक्षा में ये मन्त्रा देने का अधिकारी नहीं ह

कौन से मन्त्र हैं जिनसे मोक्ष सम्भव है?

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कौन से मन्त्र हैं जिनसे मोक्ष सम्भव है?  प्रश्न :- कौन से मन्त्र हैं जिनसे मोक्ष सम्भव है? उत्तर :- जैसे रोग से छुटकारा पाने के लिए औषधि विशेष होती है। टी.बी. (क्षयरोग) की एक ही दवाई है। उसका विधिवत् सेवन करने से रोग समाप्त हो जाता है। मनुष्य स्वस्थ हो जाता है। यदि टी.बी. के रोगी को अन्य औषधि सेवन कराई जाऐं तो रोगी स्वस्थ नहीं हो सकता। टी.बी. के रोगी को वही औषधि सेवन करानी पड़ेगी जो उसके लिए वैज्ञानिकों ने बनाई है। कबीर परमेश्वर जी ने हम प्राणियों को बताया है कि आप सबको जन्म-मरण का दीर्घ रोग लगा है। उसकी औषधि बताने तथा इस रोग की जानकारी देने मैं (कबीर परमेश्वर) अपने निज स्थान सत्यलोक से चलकर आया हूँ। शब्द जग सारा रोगिया रे जिन सतगुरू भेद ना जान्या जग सारा रोगियारे।।टेक।। जन्म मरण का रोग लगा है, तृष्णा बढ़ रही खाँसी। आवा गमन की डोर गले में, पड़ी काल की फांसी।।1 देखा देखी गुरू शिष्य बन गए, किया ना तत्त्व विचारा। गुरू शिष्य दोनों के सिर पर, काल ठोकै पंजारा।।2 साच्चा सतगुरू कोए ना पूजै, झूठै जग पतियासी। अन्धे की बांह गही अन्धे ने, मार्ग कौन बतासी।।3 ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर रोग

‘‘स्मरण दीक्षा मंत्र‘‘

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‘‘स्मरण दीक्षा मंत्र‘‘ सत्य सुकृत की रहनी रहै, अजर अमर गहै सत्य नाम। कह कबीर मूल दीक्षा, सत्य शब्द (सार शब्द) परवान।। इस वाणी में कबीर जी ने बताया है कि जो पाताल यानि नीचे के चक्रों के तथा परमेश्वर के कुल 7 नाम हैं। सिंधु का अर्थ सागर जैसे गहरे गूढ़ मंत्र हैं जो आदिनाम (सार शब्द) है, वह अजर है, अमर है, अमृत जैसा लाभदायक है जो आकाश यानि ऊपर को सत्यलोक की ओर चलने का निज नाम है। पांजी (पाँच नाम की दीक्षा वाले शिष्य) मूल यानि सार शब्द की ओर बढ़ता है। उसको अध्यात्मिक लाभ मिलता है। इसीलिए परमेश्वर ने उस समय केवल पाँच नाम प्रारम्भ किए थे। सात नाम तो वर्तमान में कलयुग के पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष पूरे करने के समय देने थे। उस समय बताना अनिवार्य था, नहीं तो आज प्रमाण न मिलने से भ्रम रह जाता। पाँच नाम लेने वाला ही तो सत्यलोक जाने का अधिकारी होगा। फिर स्मरण का विशेष मंत्र जो पाँच (5) और सात (7) से अन्य मंत्र का है। ‘‘स्मरण दीक्षा‘‘ भावार्थ है कि नेक नीति से रहो। अजर-अमर जो सार शब्द है, वह तथा दो अक्षर वाला सत्यनाम प्राप्त करो। यह मूल दीक्षा है। केवल पाँच तथा सात नाम से मोक्ष नहीं है।

धर्मदास जी ने उस महात्मा से पूछा परमात्मा कैसा है?

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धर्मदास जी ने उस महात्मा से पूछा परमात्मा कैसा है?  उत्तर मिला-निराकार है।  उस निराकार परमात्मा का कोई नाम है? धर्मदास ने पूछा।  उत्तर विद्वान का :- उसका नाम ब्रह्म है।  क्या परमात्मा को देखा जा सकता है, धर्मदास जी ने प्रश्न किया?  उत्तर मिला परमात्मा निराकार है, उसको कैसे देख सकते हैं। केवल परमात्मा का प्रकाश देखा जा सकता है। प्रश्नः- क्या श्री कृष्ण या विष्णु परमात्मा हैं? उत्तर था कि ये तो सर्गुण देवता हैं, परमात्मा निर्गुण है। गीता और वेद के ज्ञान में क्या अन्तर है? धर्मदास ने प्रश्न किया।  ब्राह्मण का उत्तर था कि गीता चारों वेदों का सारांश है। धर्मदास जी ने पूछा कि भक्ति मन्त्र कौन सा है? उत्तर ब्राह्मण का था कि गायत्रा मन्त्र का जाप करो = ओम् भूर्भवस्वः तत् सवितुः वरेणियम भृगोदेवस्य धीमहि, धीयो यो नः प्रचोदयात्’’ धर्मदास जी को जिन्दा बाबा ने बताया था कि इस मन्त्र से मोक्ष सम्भव नहीं। धर्मदास जी फिर आगे चला तो पता चला कि एक सन्त गुफा में रहता है। कई-कई दिन तक गुफा से नहीं निकलता है। उसके पास जाकर प्रश्न किया कि भगवान कैसे मिलता है? उत्तर मिला कि इन्द्रियों पर संयम रखो,

विष्णु जी और शंकर जी की पूजा करनी चाहिए?

प्रश्न :- धर्मदास जी ने पूछा कि क्या श्री विष्णु जी और शंकर जी की पूजा करनी चाहिए? उत्तर :- (जिन्दा बाबा का) :- नहीं करनी चाहिए। प्रश्न (धर्मदास जी का) :- कृपया गीता से प्रमाणित कीजिए। उत्तर :- श्री मद्भगवत गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15, 20 से 23 तथा गीता अध्याय 9 श्लोक 23-24, गीता अध्याय 17 श्लोक 1 से 6 में प्रमाण है कि जो व्यक्ति रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव की भक्ति करते हैं, वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूर्ख मुझे भी नहीं भजते। (यह प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में है। फिर गीता अध्याय 7 के ही श्लोक 20 से 23 तथा गीता अध्याय 9 श्लोक 23-24 में यही कहा है और क्षर पुरुष, अक्षर पुरुष तथा परम अक्षर पुरुष गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में जिनका वर्णन है), को छोड़कर श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी अन्य देवताओं में गिने जाते हैं। इन दोनों अध्यायों (गीता अध्याय 7 तथा अध्याय 9 में) में ऊपर लिखे श्लोकां में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि जो साधक जिस भी उद्देश्य को लेकर अन्य देवताओं को भजते हैं, वे भगवान समझकर भजते हैं। उन देवताओं

कबीर जी तथा ज्योति निरंजन की वार्ता‘‘

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‘‘कबीर जी तथा ज्योति निरंजन की वार्ता‘‘  स्वसमवेद बोध पृष्ठ 170 :- अथ स्वसम वेद की स्फुटवार्ता-चौपाई एक लाख और असि हजारा। पीर पैगंबर और अवतारा।।62 सो सब आही निरंजन वंशा। तन धरी-धरी करैं निज पिता प्रशंसा।।63 दश अवतार निरंजन के रे। राम कृष्ण सब आहीं बडेरे।।64 इनसे बड़ा ज्योति निरंजन सोई। यामें फेर बदल नहीं कोई।।65 भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि बाबा आदम से लेकर हजरत मुहम्मद तक कुल एक लाख अस्सी हजार (180000) पैगंबर तथा दस अवतार जो हिन्दु मानते हैं, ये सब काल के भेजे आए हैं। इन दस अवतारों में राम तथा कृष्ण प्रमुख हैं। ये सब काल की महिमा बनाकर सर्व जीवों को भ्रमित करके काल साधना दृढ़ कर गए हैं। इस सबका मुखिया ज्योति निरंजन काल (ब्रह्म) है। स्वसमवेद बोध पृष्ठ 171(1515) :- सत्य कबीर वचन दोहे :- पाँच हजार अरू पाँच सौ पाँच जब कलयुग बीत जाय। महापुरूष फरमान तब, जग तारन कूं आय।।66 हिन्दु तुर्क आदि सबै, जेते जीव जहान। सत्य नाम की साख गही, पावैं पद निर्वान।।6यथा सरितगण आप ही, मिलैं सिन्धु मैं धाय। सत्य सुकृत के मध्य तिमि, सब ही पंथ समाय।।68 जब लग पूर्ण होय नहीं, ठीक का तिथि ब

कबीरसागर_का_सरलार्थ

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#कबीरसागर_का_सरलार्थ परमेश्वर कबीर जी ने कलयुग को तीन चरणों में बाँटा है। प्रथम चरण तो वह जिसमें परमेश्वर लीला करके जा चुके हैं। बिचली पीढ़ी वह है जब कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष बीत जाएगा। अंतिम चरण में सब कृतघ्नी हो जाएंगे, कोई भक्ति नहीं करेगा। मुझ दास (रामपाल दास) का निकास संत गरीबदास वाले बारहवें पंथ से हुआ है। वह तेरहवां पंथ अब चल रहा है। परमेश्वर कबीर जी ने चलवाया है। गुरू महाराज स्वामी रामदेवानंद जी का आशीर्वाद है। यह सफल होगा और पूरा विश्व परमेश्वर कबीर जी की भक्ति करेगा। संत गरीबदास जी को परमेश्वर कबीर जी सतगुरू रूप में मिले थे। परमात्मा तो कबीर हैं ही। वे अपना ज्ञान बताने स्वयं पृथ्वी पर तथा अन्य लोकों में प्रकट होते हैं। संत गरीबदास जी ने ‘‘असुर निकंदन रमैणी‘‘ में कहा है कि ‘‘सतगुरू दिल्ली मंडल आयसी। सूती धरती सूम जगायसी। दिल्ली के तख्त छत्र फेर भी फिराय सी। चौंसठ योगनि मंगल गायसी।‘‘ संत गरीबदास जी के सतगुरू ‘‘परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी‘‘ थे। परमेश्वर कबीर जी ने कबीर सागर अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘ पृष्ठ 136 तथा 137 पर कहा है कि बारहवां (12वां) पंथ संत गरीबदास ज

जीव_के_लक्षण :

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#जीव_के_लक्षण : धर्मदास जी बोले - हे परमात्मा कबीर साहिब ! जब सभी योनियों के जीव एक समान हैं । तो फ़िर सभी जीवों को एक सा ग्यान क्यों नहीं है ? कबीर साहिब बोले - हे धर्मदास ! सुनो । जीवों की इस असमानता की वजह तुम्हें समझाकर कहता हूँ । चार खानि के जीव एक समान हैं । परन्तु उनकी शरीर रचना में तत्व विशेष का अन्तर है । स्थावर खानि में सिर्फ़ एक ही तत्व होता है । ऊष्मज खानि में दो तत्व होते हैं । अण्डज खानि में तीन तत्व और पिण्डज खानि में चार तत्व होते हैं । इनसे अलग मनुष्य शरीर में 5 तत्व होते हैं । हे धर्मदास जी ! अब चार खानि का तत्व निर्णय भी जानों । अण्डज खानि में 3 तत्व - जल अग्नि और वायु हैं । स्थावर खानि में एक तत्व जल विशेष है । ऊष्मज खानि में दो तत्व वायु तथा अग्नि बराबर समझो । पिण्डज खानि में 4 तत्व अग्नि प्रथ्वी जल और वायु विशेष हैं । पिण्डज खानि में ही आने वाला मनुष्य - अग्नि वायु प्रथ्वी जल आकाश से बना है । तब धर्मदास जी बोले - हे बन्दीछोङ ! सदगुरु कबीर साहिब.. मनुष्य योनि में नर नारी तत्वों में एक समान हैं । परन्तु सबको एक समान ग्यान क्यों नहीं है । संतोष । क्षमा ।

कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘

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कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘  द्वादश पंथ चलो सो भेद द्वादश पंथ काल फुरमाना। भूले जीव न जाय ठिकाना।। तातें आगम कह हम राखा। वंश हमारा चुड़ामणि शाखा।। प्रथम जग में जागु भ्रमावै। बिना भेद वह ग्रन्थ चुरावै।। दूसर सुरति गोपाल होई। अक्षर जो जोग दृढ़ावै सोई।। (विवेचन :- यहाँ पर प्रथम जागु दास बताया है जबकि वाणी स्पष्ट कर रही है कि वंश (प्रथम) चुड़ामणि है। दूसरा जागु दास।  यही प्रमाण ‘‘कबीर चरित्र बोध‘‘ पृष्ठ 1870 में है। दूसरा जागु दास है। अध्याय ‘‘स्वसमवेद बोध‘‘ के पृष्ठ 155(1499) पर भी दूसरा जागु लिखा है। यहाँ प्रथम लिख दिया। यहाँ पर प्रथम चुड़ामणि लिखना उचित है।) तीसरा मूल निरंजन बानी। लोक वेद की निर्णय ठानी।। चौथे पंथ टकसार (टकसारी) भेद लौ आवै। नीर पवन को संधि बतावै।। (यह पाँचवां लिखना चाहिए) पाँचवां पंथ बीज को लेखा। लोक प्रलोक कहै हम में देखा।। (यह भगवान दास का पंथ है जो छटा लिखना चाहिए था।) छटा पंथ सत्यनामी प्रकाशा। घट के माहीं मार्ग निवासा।। (यह सातवां पंथ लिखना चाहिए।) सातवां जीव पंथ ले बोलै बानी। भयो प्रतीत मर्म नहीं जानी।। (यह आठवां कमाल जी का पंथ है।) आठवां राम कबीर कहावै। सतगु

तेरह गाड़ी कागजों को लिखना*

*तेरह गाड़ी कागजों को लिखना*  📝एक समय दिल्ली के बादशाह ने कहा कि कबीर जी 13(तेरह) गाड़ी कागजों को ढ़ाई दिन यानि 60 घण्टे में लिख दे तो मैं उनको परमात्मा मान जाऊँगा। परमेश्वर कबीर जी ने अपनी डण्डी उन तेरह गाडि़यों में रखे कागजों पर घुमा दी। उसी समय सर्व कागजों में अमृतवाणी सम्पूर्ण अध्यात्मिक ज्ञान लिख दिया। राजा को विश्वास हो गया, परंतु अपने धर्म के व्यक्तियों (मुसलमानों) के दबाव में उन सर्व ग्रन्थों को दिल्ली में जमीन में गडवा दिया। कबीर सागर के अध्याय कबीर चरित्र बोध ग्रन्थ में पृष्ठ 1834,1835 पर गलत लिखा है कि जब मुक्तामणि साहब का समय आवेगा और उनका झण्डा दिल्ली नगरी में गड़ेगा। तब वे समस्त पुस्तकें पृथ्वी से निकाली जाएंगी। सो मुक्तामणि अवतार (धर्मदास के) वंश की तेरहवीं पीढ़ी वाला होगा। विवेचन :- ऊपर वाले लेख में मिलावट का प्रमाण इस प्रकार है कि वर्तमान में धर्मदास जी की वंश गद्दी दामाखेड़ा जिला-रायगढ़ प्रान्त-छत्तीसगढ़ में है। उस गद्दी पर 14वें (चौदहवें) वंश गुरू श्री प्रकाशमुनि नाम साहेब विराजमान हैं। तेरहवें वंश गुरू श्री उदित नाम साहेब थे जो वर्तमान सन् 2013 से 15 वर्ष पूर्व 199

सब स्वार्थ का नाता है।!!

सब स्वार्थ का नाता है।!! जब लड़का युवा होता है तो उसका विवाह हो जाता है। विवाह के पश्चात्मा माता-पिता से भी अधिक लगाव अपनी पत्नी में हो जाता है। फिर बच्चों से ममता हो जाती है। यदि पति की मृत्यु हो जाती है तो पत्नी साथ नहीं जाती । कुछ समय पश्चात् यानि तेरहवीं क्रिया के पश्चात् छोटे-बड़े पति के भाई के साथ सगाई-विवाह कर लेती है। पति को पूर्ण रूप से भूल जाती है। यदि कोई अपने पति के साथ जल मरती है तो अगले जन्म में पक्षी या पशु योनि में दोनों भटक रहे होंगे। जिस पत्नी के लिए पुरूष अपनी गर्दन तक कटा लेता है। यदि कोई किसी की पत्नी को बुरी नजर से देखता है, मना करने पर भी नहीं मानता है तो पति अपनी पत्नी के लिए लड़-मरता है। फिर वही पत्नी पति की मृत्यु के उपरांत अन्य पुरूष से मिल जाती है। यह भले ही समय की आवश्यकता है, परंतु भक्त के लिए ठोस शिक्षा है। इसी प्रकार किसी व्यक्ति की पत्नी की मृत्यु हो जाती है तो वह कुछ समय उपरांत दूसरी पत्नी ले आता है। पत्नी अपने पति के लिए अपना घर, भाई-बहन, माता-पिता त्यागकर चली आती है, परंतु पत्नी की मृत्यु के उपरांत स्वार्थ के कारण रोता है। परंतु जब अन्य व्यक्ति विवाह

कबीर जी तथा ज्योति निरंजन की वार्ता

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*‘‘कबीर जी तथा ज्योति निरंजन की वार्ता‘‘  अनुराग सागर के पृष्ठ 62 से :-*  *‘‘धर्मराय (ज्योति निरंजन) वचन‘‘*  धर्मराय अस विनती ठानी। मैं सेवक द्वितीया न जानी।।1 ज्ञानी बिनती एक हमारा। सो न करहू जिह से हो मोर बिगारा।।2 पुरूष दीन्ह जस मोकहं राजु। तुम भी देहहु तो होवे मम काजु।।3 अब मैं वचन तुम्हरो मानी। लीजो हंसा हम सो ज्ञानी।।4पृष्ठ 63 से अनुराग सागर की वाणी :- दयावन्त तुम साहेब दाता। ऐतिक कृपा करो हो ताता।।5 पुरूष शॉप मोकहं दीन्हा। लख जीव नित ग्रासन कीन्हा।।6 पृष्ठ 64 से अनुराग सागर की वाणी :- जो जीव सकल लोक तव आवै। कैसे क्षुधा मोर मिटावै।।7 जैसे पुरूष कृपा मोपे कीन्हा। भौसागर का राज मोहे दीन्हा।।8 तुम भी कृपा मोपर करहु। जो माँगे सो मोहे देहो बरहु।।9 सतयुग, त्रोता, द्वापर मांहीं। तीनों युग जीव थोड़े जाहीं।।10 चौथा युग जब कलयुग आवै। तब तव शण जीव बहु जावै।।11 पृष्ठ 65 से अनुराग सागर की वाणी, ऊपर से वाणी पंक्ति नं. 3 से :- प्रथम दूत मम प्रकटै जाई। पीछे अंश तुम्हारा आई।।12 पृष्ठ 64 से अनुराग सागर की वाणी, ऊपर से वाणी पंक्ति नं. 6 :- ऐसा वचन हरि मोहे दीजै। तब संसार गवन तव कीजै।।13

धर्मदास वचन

◆धर्मदास वचन होप्रभु तुम्ह सतपुरुष कृपाला। अन्तर्यामी दीन दयाला।। मोहि निश्चय तुवपद् विश्वासा। यह माया स्वप्नेकी आशा॥  जिन्ह जिन्ह माया नेह बढाया। तिन्ह २ निज २ जन्म गँवाया।। सवालाख तुम मोहि बतायो। सवा करोड प्रभु आरति लायो।  औ जन सम्पति मोर घरआही।  अरपों सभे संतन जो चाही।। तुम प्रभु निःइच्छा नहिं चाहो। धन्य समरथ मर्याद दिढाहो॥  सो जिव पाँवर नरके जायी। शक्ति अक्षत जो राखु छिपायी।। हो प्रभु कछु विनती अनुसारूं। बक्सहु ढिठाई तो वचन उचारूं।।  सवाशेर भाषहु मिष्टाना। औरौ वस्तु सवासो पाना।।  हो प्रभु कोई जिव भिक्षुक होई। भीख माँगि तन पाले सोई॥  सो जिव शब्द तोहार न जाने। कहहु केहि विधि लोक पयानै॥  ◆ सतगुरू वचन हो धर्मनि जौ अस जिव होई। गुरू निज ओर करै पुनि सोई॥  इतने विनु जिव रोकि न राखा। छोरी बन्ध नाम तिहि भाखा॥  ◆ धर्मदास वचन धन्य धन्य तुम दीन दयाला। दया सिन्धु दुखहरण कृपाला।।  छन्द - तुम धन्य सद्गुरु जीव रक्षक कालमर्दन नाम हो॥  शुभ पन्थ भक्ति दिढायऊ प्रभु अमर सुखके धाम हो॥  मैं सुदिन आपन तबहिं जान्यो प्रथमपद् जब देखेऊं॥  अव भयेऊँ सुखी निशङ्क यमते सुफल जीवन लेखेऊं॥  दोहा - विनती एक करौं प्रभु