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Showing posts from August, 2021

दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

कलियुग को अंत

कलियुग को अंत ग्रहण परै चैंतीस सो वारा। कलियुग लेखा भयो निर्धारा।। 3400 ग्रहण परै सो लेखा कीन्हा। कलियुग अंतहु पियाना दीन्हा।। पांच हजार पांच सौ पांचा 5505। तब ये शब्द हो गया सांचा।। सहस्त्रा वर्ष ग्रहण निर्धारा। आगम सत्य कबीर पोकारा।। क्रिया सोगंद धर्मदास मोरी लाख दोहाई। मूल शब्द बाहर न जाई।। पवित्र ज्ञान तुम जगमों भाखौ। मूलज्ञान गोइ तुम राखौ।। मूल ज्ञान जो बाहेर परही। बिचले पीढ़ी वंश हंस नहिं तरही।। तेतिस अरब ज्ञान हम भाखा। मूल ज्ञान गोए हम राखा।। मूल ज्ञान तुम तब लगि छपाई। जब लगि द्वादश पंथ मिटाई।। द्वादश पंथ का जीव अस्थान द्वादश पंथ अंशन के भाई। जीव बांधि अपने लोक ले जाई।। द्वादश पंथ में पुरूष न पावै। जीव अंश में जाइ समावै।। भावार्थ:- कबीर परमेश्वर जी ने काल के 12 पंथों का वर्णन करके तेरहवें पंथ का ज्ञान भी दिया है। प्रथम पंथ चूड़ामणी जी जो धर्मदास जी के दूसरे पुत्रा थे जो परमेश्वर कबीर जी के आशीर्वाद से आमिनी देवी की कोख से जन्मे थे। फिर उनको परमेश्वर जी ने गुरू पद प्रदान किया था। अनुराग सागर पृष्ठ 140-141 पर स्पष्ट कर ही रखा है कि चूड़ामणी यानि मुक्तामणी की बिन्द परंपरा अर्थात् संता

कबीर बानी अध्याय में 12 पंथों का ज्ञान है।

कबीर बानी अध्याय में 12 पंथों का ज्ञान है। द्वादश पंथ चलो सो भेद {12 पंथों के विषय में कबीर चरित्र बोध पृष्ठ 1835, 1870 पर तथा स्वस्मबेद बोध पृष्ठ 155 पर भी लिखा है।} कबीर परमेश्वर जी ने स्पष्ट किया है कि काल मेरे नाम से 12 पंथ चलाएगा, उनसे दीक्षा प्राप्त जीव वास्तविक ठिकाने यानि यथार्थ सत्य स्थान अमर लोक को प्राप्त नहीं कर सकेंगे। इसलिए धर्मदास भविष्य का ज्ञान मैंने कह दिया है जो इस प्रकार है। प्रथम वंश जो उत्तम कहा है, वह प्रथम पंथ का प्रवर्तक चूड़ामणी यानि मुक्तामणी होगा और अन्य शाखा जो चूड़ामणी के वंश में शाखाऐं होंगी, वे भी काल के पंथ होंगे। {पाठकों से निवेदन है कि यहाँ पर धर्मदास के वंश वाले महंतों ने चूड़ामणी को 12 काल के पंथों से भिन्न करने की कुचेष्टा की है। यहाँ वाणी में गड़बड़ की है। प्रथम पंथ जागु दास वाला बताया है। कबीर सागर के कबीर चरित्रा बोध अध्याय में पृष्ठ 1870 पर जागु दास का दूसरा पंथ लिखा है और नारायण दास का प्रथम पंथ लिखा है। नारायण दास जी तो कबीर पंथी था ही नहीं, वह तो कृष्ण पुजारी था। वहाँ पृष्ठ 1870 कबीर चरित्रा बोध में भी चालाकी करके चूड़ामणी जी को हटाकर नारायण दास ल

तेरह पंथों के मुखिया कैसे होंगे?वंश प्रकार

कबीर परमेश्वर जी ने पृष्ठ 134 पर अंकित अमृतवाणी में स्पष्ट किया है कि चूड़ामणी से तेरे बिन्द (पीढ़ी) का पंथ चलेगा। यह मेरी उत्तम आत्मा है। परंतु आगे तेरे पंथ में यानि कबीर जी के नाम से चले 12 पंथों में प्रथम पंथ में विरोध चलेगा। छठी पीढ़ी के पश्चात् काल साधना शुरू हो जाएगी। यह पंथ भी काल पंथ ही होगा। तेरह पंथों के मुखिया कैसे होंगे? वंश प्रकार प्रथम वंश उत्तम (यह चुड़ामणि जी के विषय में कहा है।) दूसरा वंश अहंकारी (यह जागु दास जी है।) तीसरा वंश प्रचंड (यह सूरत गोपाल जी है।) चैथा वंश बीरहे (यह मूल निरंजन पंथ है।) पाँचवां वंश निन्द्रा (यह टकसारी पंथ का मुखिया है।) छठा वंश उदास विरोध (यह भगवान दास जी का पंथ है।) सातवां वंश ज्ञान चतुराई (यह सतनामी पंथ है।) आठवां वंश द्वादश पंथ विरोध (यह कमाल जी का कमालीय पंथ है।) नौवां वंश पंथ पूजा (यह राम कबीर पंथ है।) दसवां वंश प्रकाश (यह परम धाम की वाणी पंथ है।) ग्यारहवां वंश प्रकट पसारा (यह जीवा पंथ के विषय में है।) बारहवां वंश प्रकट होय उजियारा (यह संत गरीबदास जी गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर, प्रान्त-हरियाणा वाले के विषय में है।) तेरहवें वंश मिटे सकल अंधियारा (य

सारशब्द (सार नाम) से लाभ‘‘

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‘‘सारशब्द (सार नाम) से लाभ‘‘ सार शब्द विदेह स्वरूपा। निअच्छर वहि रूप अनूपा।। तत्त्व प्रकृति भाव सब देहा। सार शब्द नितत्त्व विदेहा।। कहन सुनन को शब्द चौधारा। सार शब्द सों जीव उबारा।। पुरूष सु नाम सार परबाना। सुमिरण पुरूष सार सहिदाना।। बिन रसना के सिमरा जाई। तासों काल रहे मुग्झाई।। सूच्छम सहज पंथ है पूरा। तापर चढ़ो रहे जन सूरा।। नहिं वहँ शब्द न सुमरा जापा। पूरन वस्तु काल दिख दापा।। हंस भार तुम्हरे शिर दीना। तुमको कहों शब्द को चीन्हा।। पदम अनन्त पंखुरी जाने। अजपा जाप डोर सो ताने।। सुच्छम द्वार तहां तब परसे। अगम अगोचर सत्पथ परसे।। अन्तर शुन्य महि होय प्रकाशा। तहंवां आदि पुरूष को बासा।। ताहिं चीन्ह हंस तहं जाई। आदि सुरत तहं लै पहुंचाई।। आदि सुरत पुरूष को आही। जीव सोहंगम बोलिये ताही।। धर्मदास तुम सन्त सुजाना। परखो सार शब्द निरबाना।। सारनाम पूर्ण सतगुरू से प्राप्त होता है। नाम प्राप्त करने से सतलोक की प्राप्ति होती है। धर्मराय (ज्योति स्वरूपी निरंजन अर्थात् काल ब्रह्म) भी सार शब्द प्राप्त भक्त के सामने नतमस्तक हो जाता है। सार शब्द की शक्ति के सामने काल ब्रह्म टिक नहीं पाता क्योंकि

सार शब्द जपने की विधि''

‘‘सार शब्द जपने की विधि'' सार शब्द (नाम) जपने की विधि  गुरूगमभेद छन्द अजपा जाप हो सहज धुना, परखि गुरूगम डारिये।। मन पवन थिरकर शब्द निरखि, कर्म ममन मथ मारिये।। होत धुनि रसना बिना, कर माल विन निर वारिये।। शब्द सार विदेह निरखत, अमर लोक सिधारिये।। सोरठा - शोभा अगम अपार, कोटि भानु शशि रोम इक।। षोडश रवि छिटकार, एक हंस उजियार तनु।। सारनाम का स्मरण बिना रसना (जीभ) के मन तथा पवन यानि श्वांस के द्वारा किया जाता है। यह अजपा (बिना जीभ से) जाप होता है। इस शब्द को निरखे अर्थात् शब्द की जाँच करे। फिर मन को सत्य ज्ञान का मंथन करके मारो यानि विषय विकारों को हटाओ। सार शब्द की साधना बिना जीभ के बिना आवाज किए की जाती है। इस जाप स्मरण के लिए कर यानि हाथ में माल उठाने की आवश्यकता नहीं यानि माला की आवश्यकता नहीं होती अर्थात् सार शब्द बिना हाथ में माला लिए निर वारिये यानि बिना माला के निर्वाह कीजिए। निर्वाह का यहाँ अर्थ है प्रयत्न। ऐसे सार शब्द और उसके स्मरण की विधि निरखकर यानि पहचान (जान) कर सत्यलोक जाईये। सत्यलोक में सत्यपुरूष जी के शरीर के एक रोम (बाल) का प्रकाश करोड़ सूर्यों के समान है। जो साधक मो

सात शुन्य दशलोक प्रमाना। अंश जो लोक लोक को शाना।।नौ स्थान (मुकाम) हैं दशवां घर साच्चा। तेहि चढ़ि जीव सब बाचा।।

पृष्ठ 124, 125 पर सामान्य ज्ञान है। पृष्ठ 124 पर कबीर बानी में लिखा है कि धर्मदास जी ने नाम के प्रताप को जानने की जिज्ञासा की जिसके बल से सत्यलोक में जा सके। परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि पृथ्वी लोक से सतलोक तक जाने के रास्ते में सात शुन्य यानि खाली स्थान है और प्रत्येक शुन्य के पहले और बाद में कुल दस लोक हैं।  सात शुन्य दशलोक प्रमाना। अंश जो लोक लोक को शाना।। नौ स्थान (मुकाम) हैं दशवां घर साच्चा। तेहि चढ़ि जीव सब बाचा।। सोरा (16) शंख पर लागी तारी। तेहि चढ़ि हंस भए लोक दरबारी।। भावार्थ:- पृथ्वी लोक तथा स्वर्ग लोक के बीच में खाली स्थान है। एक ब्रह्माण्ड में ब्रह्म लोक है। शेष सर्व लोकों का एक समूह बनाया है। जैसे पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक तथा सात पाताल लोक, श्री विष्णु लोक, श्री शिव लोक, श्री ब्रह्मा लोक, 88 हजार पुरियाँ (खेड़े), यह एक समूह है। ब्रह्मलोक और समूह के बीच में एक सुन्न है। दूसरी सुन्न ब्रह्मलोक के चारों ओर है। तीसरी सुन्न पाँच ब्रह्माण्डों के चारों ओर है। चैथी सुन्न 20 ब्रह्माण्डों के चारों ओर है। पाँचवीं सुन्न काल ब्रह्म के 21 ब्रह्माण्डों के चारों ओर है। छठी सुन्न अक्षर पुरूष के

सार शब्द क्या है?

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(अनुराग सागर के पृष्ठ 10 से वाणी नं. 11 से 20 शुद्ध करके लिखी हैं।) ‘‘नाम महात्मय‘‘ जबलग ध्यान विदेह न आवे। तब लग जिव भव भटका खावे।। ध्यान विदेह औ नाम विदेहा। दोइ लख पावे मिटे संदेहा।। छन इक ध्यान विदेह समाई। ताकी महिमा वरणि न जाई।। काया नाम सबै गोहरावे। नाम विदेह विरले कोई पावै।। जो युग चार रहे कोई कासी। सार शब्द बिन यमपुर वासी।।  नीमषार बद्री परधामा। गया द्वारिका का प्राग अस्नाना।। अड़सठ तीरथ भूपरिकरमा। सार शब्द बिन मिटै न भरमा।। कहँ लग कहों नाम पर भाऊ। जा सुमिरे जमत्रस नसाऊ।। नाम पाने वाले को क्या मिलता है? सार नाम सतगुरू सो पावे। नाम डोर गहि लोक सिधावे।। धर्मराय ताको सिर नावे। जो हंसा निःतत्त्व समावे।। सार शब्द क्या है? (अनुराग सागर के पृष्ठ 11 से वाणी) सार शब्द विदेह स्वरूपा। निअच्छर वहि रूप अनूपा।। तत्त्व प्रकृति भाव सब देहा। सार शब्द नितत्त्व विदेहा।। कहन सुनन को शब्द चौधारा। सार शब्द सों जीव उबारा।। पुरूष सु नाम सार परबाना। सुमिरण पुरूष सार सहिदाना।। बिन रसना के सिमरा जाई। तासों काल रहे मुग्झाई।। सूच्छम सहज पंथ है पूरा। तापर चढ़ो रहे जन सूरा।। नहिं वहँ शब्द न सुमरा

फॉक्स चैनल पर देखा कि वह अंग्रेज फूडी एक्सपर्ट जब एंग्लो इंडियन समुदाय से पूछता था कि आपको अंग्रेजों

थोड़ी देर पहले फॉक्स चैनल देख रहा था .....उसमें एक ब्रिटिश फ़ूड  एक्सपर्ट कोलकाता में घूम रहा था वह कोलकाता की चाइनीस बस्ती में भी गया फिर वह कोलकाता की एंग्लो इंडियन समुदाय के बीच में गया  दरअसल अंग्रेजों की पत्नियों को भारत का आबोहवा सूट नहीं करता था तब अंग्रेज अकेले यहां रहते थे और कई भारतीय महिलाओं को रखैल बनाकर रखते थे।  उस जमाने में गर्भनिरोधक इतने सुलभ नहीं होते थे  और उस जमाने में कोलकाता बहुत बड़ा बंदरगाह था  दुनिया भर के जहाज कोलकाता में रुकते थे और उन जहाजों के नाविक और कप्तान कुछ दिनों के लिए कोलकाता में रुकते थे तब कुछ भारतीय महिलाओं को अपनी रखेल बनाकर रखते थे  अंग्रेजों के वीर्य से भारतीय महिला रखैल से पैदा हुई उन्हीं संतानों को आज एंग्लो इंडियन समुदाय कहा जाता है  तृणमूल कांग्रेस का सांसद डेरेक ओ ब्रायन उसी समुदाय से है उसकी दादी को एक अंग्रेज जहाज का कैप्टन रखेल बनाकर रखता था   इस एंग्लो इंडियन समुदाय को यह लग रहा था कि जब अंग्रेज भारत से जाएंगे तब उन्हें भी अपने साथ ब्रिटेन लेकर जाएंगे क्योंकि यह सीधे-सीधे अंग्रेजों की संताने थी लेकिन जब अंग्रेज यहां से जाने लगे तब कहे

कबीर साहिब ही परमात्मा है

.                कबीर साहिब ही परमात्मा है       कबीर साहेब हीं पूर्ण परमात्मा हैं। लगभग एक दर्जन संतो ने इनकी गवाही ठोककर दी है।आएं देखें परमात्मा प्राप्त संतो की वाणी में क्या प्रमाण है। 1.        सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।             झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।।                                             -गरीबदास जी            अनंत कोटि ब्रम्हांड में, बंदीछोड़ कहाये।            सो तो पुरष कबीर है, जननी जने न माय।।                                              -गरीबदास जी           हम सुल्तानी नानक तारे, दादु को उपदेश दिया।          जाति जुलाहा भेद न पाया,कशी मे कबीर हुआ।                                                    -गरीबदास जी 2.        और संत सब कूप हैं, केते झरिता नीर।             दादू अगम अपार है, दरिया सत्य कबीर।।                                             -दादु दयाल जी            जिन मोको निज नाम दिया,सोई सतगुरु हमार।                दादु दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजनहार।।                                               -दादु दयाल जी 3.     खालक आदम सिरजिआ

तीनि अंश की लगन विचारी। नारी तथा पुरूष उबारी।।नारी-पुरूष होए एक संगा। सतगुरू वचन दीन्ह सोहंगा

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कबीर सागर में 23वां (तेइसवां)  पृष्ठ 105 पर धर्मदास तथा उनकी पत्नी आमिनी देवी को दीक्षा देने का प्रकरण है:- तीनि अंश की लगन विचारी। नारी तथा पुरूष उबारी।। नारी-पुरूष होए एक संगा। सतगुरू वचन दीन्ह सोहंगा (सोहं)।। सोहं शब्द है अगम अपारा। ताका धर्मनि मैं कहूँ विचारा।। सोहं पेड़ का तना और डारा। शाखा अन्य तीन प्रकारा।। अमृत वस्तु बहु प्रकारा। सोहं शब्द है सुमरन सारा।। सोहं शब्द निश्चय हो पावै। सोहं डोर गह लोक सिधावै।। जा घट होई सोहं मत सारा। सोई आवहु लोक हमारा।। सुरति नाम सोहं में राखो। परचे ज्ञान तुम जग में भाषो।। एति सिद्धि (शक्ति) सोहं की भाई। धर्मदास तुम लेओ चितलाई।। धर्मदास लीन्हा परवाना। भए आधीन छुटा अभिमाना।। सोहं करनी ऊँच विचारा। सोहं शब्द है जीव उजियारा।। पृष्ठ 106 का सारांश:- कबीर, धर्मदास उन-मन बसो, करो सत्य शब्द की आश। सोहं सार सुमरन है, मुनिवर मरें पियास।। भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को तीन चरण में दीक्षा क्रम पूर्ण होने की बात कही तो धर्मदास को दीक्षा लेने की लगन लगी। स्त्री तथा पुरूष यानि पति-पत्नी (धर्मदास तथा आमिनी देवी) ने दीक्षा ली। सोहं शब्द की दी

मोबाइल क्रांति के बाद जबसे कैमरे की टेक्नोलॉजी नें तरक्की की है,तबसे हमें सबसे ज़्यादा बेवकूफ अगर मोबाइल कम्पनियों नें बनाया है,तो वो 'मेगापिक्सल' के नाम पर बनाया गया है।

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मोबाइल क्रांति के बाद जबसे कैमरे की टेक्नोलॉजी नें तरक्की की है,तबसे हमें सबसे ज़्यादा बेवकूफ अगर मोबाइल कम्पनियों नें बनाया है,तो वो 'मेगापिक्सल' के नाम पर बनाया गया है। आज मार्केट में 64 मेगापिक्सल वाला फोन और 48 मेगापिक्सल वाला फोन कभी का पुराना पड़ चुका है।  आप रेडमी,ऑप्पो और वीवो में खोजने जाएंगे तो एक सौ आठ-आठ मेगापिक्सल कैमरे वाले फोन मिल जाएंगे।  मेगापिक्सल की इस बढ़ती स्पीड को देखकर तो कई बार ऐसा लगता है कि एक-डेढ़ साल के अन्दर हज़ार-हजार मेगापिक्सल वाले मोबाइल भी मार्केट में मिलने लगेंगे।  और लोग इनके पीछे बेवकूफों की तरह भागते रहेंगे। वहीं सबसे बड़ा ब्रांड आइफोन आज तक 12 मेगापिक्सल से ऊपर नहीं बढ़ पाया है। आईफोन छोड़ दीजिए कैनॉन और निकॉन के DSLR जो साठ से लेकर सत्तर हजार तक में आते हैं,उनमें भी 23 से लेकर 24 मेगापिक्सल के कैमरे आज भी लगे होते हैं। कभी आपने सोचा है,ऐसा क्यों ?  नहीं सोचा होगा..!  आज तमाम रिसर्च के बाद मैनें पाया है कि बढ़िया फोटो सिर्फ ज्यादा मेगापिक्सल के सहारे नहीं आ सकती। जब तक कि आपके मोबाइल में उतना ही बड़ा 'कैमरा सेंसर' न लगा हो। इसको

झूठे कडि़हार (नकली सतगुरू) की दशा‘‘

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कबीर सागर के अध्याय ‘‘अम्बुसागर‘‘ पृष्ठ 48 पर प्रमाण है कि :- तब देखा दूतन कहं जाई। चौरासी तहां कुण्ड बनाई।। कुण्ड-कुण्ड बैठे यमदूता। देत जीवन कहं कष्ट बहुता।।  तहां जाय हम ठाड (खड़े) रहावा। देखत जीव विनय बहुत लावा।। ‘‘झूठे कडि़हार (नकली सतगुरू) की दशा‘‘ पड़ै मार जीव करें बहु शोरा। बाँध-बाँध कुंडन में बोरा।। लाख अठाइस पड़े कडि़हारा। बहुत कष्ट तहां करत पुकारा।। हम भूले स्वार्थ संगी। अब हमरे नाहीं अर्धंगी।। हम तो जरत हैं अग्नि मंझारा। अंग अंग सब जरत हमारा।। कौन पुरूष अब राखे भाई। करत गुहार चक्षु ढल जाई।। ‘‘ज्ञानी (कबीर जी) वचन‘‘ करूणा देख दया दिल आवा। अरे दूत त्रास भास दिखावा।। यह वाणी बनावटी है, वास्तविक वाणी नीचे है। दुर्दशा देख दया दिल आवा। अरे दूत तुम जीवन भ्रमावा।। जीव तो अचेत अज्ञाना। वाको काल जाल तुम बंधाना।। चौरासी दूतन कहं बांधा। शब्द डोर चौदह यम सांधा।। तब हम सबहन कहं मारा। तुम हो जालिम बटपारा।। हमरे भगतन को तुम भ्रमावा। पल पल सुरति जीवन डिगावा।। गहि चोटि दूत घसियाए। यम रू दूत विनय तब लाए।। ‘‘दूत (जो नकली कडि़हार बने थे) वचन‘‘ चुक हमारी छमा कर दीजै। मन माने तस आज्ञा

कहै कबीर सुन धर्मदास सुजानी। अकह हतो ताही कहो बखानी।।

#कबीरसागर_का_सरलार्थ अध्याय ‘‘मुक्ति बोध‘‘ का सारांश Part -B पृष्ठ 65 पर कोई विशेष ज्ञान नहीं है, पहले वर्णन हो चुका है। पृष्ठ 66 पर भी कोई विशेष ज्ञान नहीं है। कहै कबीर सुन धर्मदास सुजानी। अकह हतो ताही कहो बखानी।। भावार्थ:- जो नाम अकह था यानि जिसका जाप बोलकर नहीं करना, उस मंत्र के स्मरण की विधि को बोलकर बताया है। पृष्ठ 67 पर सामान्य ज्ञान है। पृष्ठ 68 पर कोई भिन्न ज्ञान नहीं है। यहाँ वहाँ हम दोनों ठाऊं। सत्य कबीर कलि में मेरा नाऊं।। गुप्त जाप है अगम अपारा। ताहि जपै नर उतरै पारा।। कबीर, जैसे फनपति मंत्र सुन, राखै फन सुकोड़। ऐसे बीरा सारनाम से, काल रहै मुख मोड़।। सोहं शब्द निरक्षर बासा। ताहि भिन्न कर जपिये दासा।। साखी:- जो जन है जौहरी लेगा शब्द बिलगाय। सोहं सोहं जप मरे, मिथ्या जन्म गंवाय।। भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट किया है कि मैं दोनों स्थानों पर हूँ। यहाँ पृथ्वी पर सतगुरू रूप में तथा सतलोक में सतपुरूष रूप में। कलियुग में मेरा सत्य कबीर नाम चलेगा। गुप्त नाम का जाप किया जाता है जिसकी शक्ति अपार है। मेरे सारनाम के सामने काल ब्रह्म ऐसे मुख मोड़कर भाग जाता है जैसे गारड़ू के मंत्र को

भारतीय फौज इनकी खाल में भूंसा भर कर पाकिस्तान को सौंप देगी, निश्चिंत रहिए

भारतीय फौज इनकी खाल में भूंसा भर कर पाकिस्तान को सौंप देगी, निश्चिंत रहिए...👍 कल रात से तालिबानी राग अलाप कर देश को भ्रमित और भयभीत करने की अंधाधुंध भेड़चाल भारतीय न्यूजचैनलों द्वारा शुरू कर दी गयी है। उनके द्वारा अलापे जा रहे तालिबानी राग से बिल्कुल भ्रमित या भयभीत मत होइए। इसके बजाए तथ्यों पर ध्यान दीजिए और यदि आप को ज्ञात नहीं है तो निकट अतीत/इतिहास की सरसरी जानकारी ही ले लीजिए। इंटरनेट गूगल के वर्तमान दौर में यह बहुत आसान काम है। 2001 में ट्विन टॉवर पर हमले में हुई अपने 3000 नागरिकों की मौत का बदला लेने के लिए 20 साल पहले 16 हजार किमी दूर से आकर अमेरिका इन तालिबानी आतंकियों के गढ़ों में घुसा और 20 साल तक इनकी पीठ और नितंबों पर अपना फौजी हंटर चलाता/बजाता रहा।  अमेरिका से अपनी जान बचाने के लिए तालिबानी आतंकियों के यही झुंड 20 साल तक उसी तरह भागते रहे। जिस तरह बिलौटे के डर से चूहे भागते हैं। उन 20 सालों के दौरान अमेरिका ने इन तालिबानी आतंकियों को बेदर्दी के साथ मौत के घाट उतारा।  ध्यान रहे कि 20 साल पहले जब अमेरिका ने हमला किया था उसके 6 साल पहले से अफगानिस्तान इन्हीं तालिबानी आतंकियों

चार गुरूओं का ज्ञान‘‘

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‘‘चार गुरूओं का ज्ञान‘‘ इस पृष्ठ पर स्पष्ट किया है कि चार गुरू चारों युगों में नियुक्त किए थे। 1) सत्ययुग में ‘सहते जी‘ 2) त्रोता में ‘बंके जी‘ 3) द्वापर में ‘चतुर्भुज जी‘ 4) कलयुग में ‘धर्मदास जी‘, ये जानकारी है।  विवेचन:- इस पृष्ठ पर उपरोक्त विवरण के तुरंत पश्चात् धर्मदास जी के बयालीस (42) पीढ़ी के विषय में वाणी है, ये मिलावटी है। इनमें कहा है कि:- धर्मदास वंश बयालीस तुम्हरे सारा और सकल सब झूठ पसारा। इन्हें सौंप देव तुम भारा। भावार्थ:- इस वाणी का भावार्थ यह है कि परमेश्वर कबीर जी धर्मदास जी से कह रहे हैं कि तेरे बयालीस वंश ही वास्तविक हैं और सब झूठ है। इनको तुम मोक्ष का भार सौंप दो। विचार करें कि कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को गुरू पद नहीं दिया था। फिर उसको यह कहना कि तुम अपने वंश को मोक्ष का भार सौंप देना निरर्थक है। कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी के दूसरे पुत्र चूड़ामणि (मुक्तामणि) जी को स्वयं दीक्षा देकर गुरू पद दिया था। केवल प्रथम मंत्र दिया था। फिर यह भी स्पष्ट कर दिया था कि इस गुरू परंपरा में छठी पीढ़ी वाला वास्तविक भक्ति मंत्र त्यागकर टकसारी वाले नकली कबीर पंथी वाल

मानव (स्त्री या पुरूष) का शरीर दो प्रकार से प्राप्त होता हैः-

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मानव (स्त्री या पुरूष) का शरीर दो प्रकार से प्राप्त होता हैः- 1. एक तो 84 लाख प्राणियों के शरीरों में कष्ट भोगने के पश्चात् मानव शरीर प्राप्त होता है, इसे कहते हैं क्रमानुसार। (Turn Wise) 2. दूसरा मानव शरीर प्राप्त होता है शुभ कर्मानुसार। (Worship) क्रमानुसार (turn wise) शरीर प्राप्त प्राणी शीघ्र भक्ति पर नहीं लगता। उसकी सत्संग सुनने की रूचि भी नहीं बनती। यदि किसी मित्रा के बार-बार कहने से सत्संग सुनने चला जाता है तो सत्संग के दौरान उसे या तो नींद आने लगेगी या कोई और प्रसंग मित्रा के साथ शुरू कर देगा, अन्य बातें करने लगेगा। आस-पास बैठे श्रोता उससे बाधित होते हैं क्योंकि उनको सत्संग में आनन्द आ रहा होता है। वे उस नए व्यक्ति से कहते हैं कि हे भक्त! सत्संग सुनो, अन्य चर्चा करने का समय नहीं है, यह तो बाद में कर लेना, इतना सुनकर वह कर्महीन व्यक्ति उठकर चला जाता है।  परमेश्वर कबीर जी ने सूक्ष्मवेद में कहा है कि :- कबीर, पिछले पाप से हरि चर्चा न सुहावै। के उंघै के उठ चलै या औरे बात चलावै।। दूसरा मानव शरीर प्राप्त होता है शुभ कर्मानुसार। (Worship) जिस किसी प्राणी के शुभ कार्य अधिक

विकार मरते नहीं शांत हो जाते है

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विकार मरते नहीं शांत हो जाते है  ‘‘विकार जैसे - काम, मोह, क्रोध, वासना नष्ट नहीं होते, शांत हो जाते हैं‘‘ विकार मरे ना जानियो, ज्यों भूभल में आग। जब करेल्लै धधकही, सतगुरू शरणा लाग।। एक समय इब्राहिम सुल्तान मक्का में गया हुआ था। उनका उद्देश्य था कि भ्रमित मुसलमान श्रद्धालु मक्का में हज के लिए या वैसे भी आते रहते हैं। उनको समझाना था। उनको समझाने के लिए वहाँ कुछ दिन रहे। कुछ शिष्य भी बने। किसी हज यात्रा ने बलख शहर में जाकर बताया कि इब्राहिम मक्का में रहता है। छोटे लड़के ने पिता जी के दर्शन की जिद की तो उसकी माता-लड़का तथा नगर के कुछ स्त्री-पुरूष भी साथ चले और मक्का में जाकर इब्राहिम से मिले। इब्राहिम अपने शिष्यों को शिक्षा देता था कि बिना दाढ़ी-मूछ वाले लड़के तथा परस्त्री की ओर अधिक देर नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने से उनके प्रति मोह बन जाता है। अपने लड़के को देखकर इब्राहिम से रहा नहीं गया, एकटक बच्चे को देखता रहा। लड़के की आयु लगभग 13 वर्ष थी। शिष्यों ने कहा कि गुरूदेव आप हमें तो शिक्षा देते हो कि बिना दाढ़ी-मूछ वाले बच्चे की ओर ज्यादा देर नहीं देखना चाहिए, स्वयं देख रहे हो। इब्