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Showing posts from November, 2020

दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

कबीर साहेब द्वारा गरूड़ पक्षी को तत्वज्ञान समझाना!!!

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कबीर साहेब द्वारा गरूड़ पक्षी को तत्वज्ञान समझाना!!! परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि मैंने विष्णु जी के वाहन पक्षीराज गरूड़ जी को उपदेश दिया, उसको सृष्टि रचना सुनाई। अमरलोक की कथा सत्यपुरूष की महिमा सुनकर गरूड़ देव अचम्भित हुआ। अपने कानों पर विश्वास नहीं कर रहे थे। मन-मन में विचार कर रहे थे कि मैं आज यह क्या सुन रहा हूँ? मैं कोई स्वपन तो नहीं देख रहा हूँ। मैं किसी अन्य देश में तो नहीं चला गया हूँ। जो देश और परमात्मा मैंने सुना है, वह जैसे मेरे सामने चलचित्र रूप में चल रहा है। जब गरूड़ देव इन ख्यालों में खोए थे, तब मैंने कहा, हे पक्षीराज! क्या मेरी बातों को झूठ माना है। चुप हो गये हो। प्रश्न करो, यदि कोई शंका है तो समाधान कराओ। यदि आपको मेरी वाणी से दुःख हुआ है तो क्षमा करो। मेरे इन वचनों को सुनकर खगेश की आँखें भर आई और बोले कि हे देव! आप कौन हैं? आपका उद्देश्य क्या है? इतनी कड़वी सच्चाई बताई है जो हजम नहीं हो पा रही है। जो आपने अमरलोक में अमर परमेश्वर बताया है, यदि यह सत्य है तो हमें धोखे में रखा गया है। यदि यह बात असत्य है तो आप निंदा के पात्रा हैं, अपराधी हैं। यदि

फाई सूरत मुलूक की वेश, ओ ठगवाणा ठगी देश।**खड़ा सियाना बहुता भार, यह धाणक रूप रहा करतार।।

कबीर प्रभु गुरु नानक जी का अमृत ग्रहण करें नानक जी ने मोदी खाने फैक्ट्री से नौकरी त्यागने के बाद परमात्मा के लिए निकले और पहली उदासी बनारस काशी के लिए किया वहां श्री रामानंद जी से मुलाकात की और भक्ति के विषय में प्रश्न किया, श्री नानक जी ने अपना शिष्य भेजा कबीर परमेश्वर के पास, *नानक जी जांचने के लिए शिष्य से कई प्रश्नों के सवाल किए,* नानक जी ने जब देखा तब बोले यह रहा सतलोक का पूर्ण ब्रह्म धाणक ओ रे लोगों देखो यह रहा धानक  *फाई सूरत मुलूक की वेश, ओ ठगवाणा ठगी देश।* *खड़ा सियाना बहुता भार, यह धाणक रूप रहा करतार।।* *अंधुला जाति नीच परदेशी छिन आवे छिन जावे* "लोगों यह धानक रूप में भगवान काशी में आया हुआ है पहचानो,और अपने को छुपा रहा है" लोगों  जिसे तुम नीच जाति कहते हो यह अल्लाह रब खुदा गॉड भगवान है जो 1 सेकंड के पल में सतलोक से आता है और जाता है। *वही धानक आज संत रामपाल जी महाराज सतगुरु परमात्मा जो अपने को छुपा रहे हैं पहचानो रे लोग   *गुरु नानक जी ने कबीर परमात्मा का 12 वर्ष प्रचार किया जिसके बाद परमात्मा स्वयं आकर मिले* उत्तर प्रदेश से सोशल मीडिया के सभी सेवादार भक्तों से हाथ ज

कबीर साहेब द्वारा विभीषण तथा मंदोदरी को शरण में लेना

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किस किस को मिले कबीर परमेश्वर?  कबीर साहेब द्वारा विभीषण तथा मंदोदरी को शरण में लेना परमेश्वर मुनिन्द्र अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील को शरण में लेने के उपरान्त श्री लंका में गए। वहाँ पर एक परम भक्त चन्द्रविजय जी का सोलह सदस्यों का पुण्य परिवार रहता था। वह भाट जाति में उत्पन्न पुण्यकर्मी प्राणी थे। परमेश्वर मुनिन्द्र (कविर्देव) जी का उपदेश सुन कर पूरे परिवार ने नाम दान प्राप्त किया। परम भक्त चन्द्रविजय जी की पत्नी भक्तमति कर्मवती लंका के राजा रावण की रानी मन्दोदरी के पास नौकरी (सेवा) करती थी। रानी मंदोदरी को हँसी-मजाक अच्छे-मंदे चुटकुले सुना कर उसका मनोरंजन कराया करती थी। भक्त चन्द्रविजय राजा रावण के पास दरबार में नौकरी 1⁄4सेवा1⁄2 करता था। राजा की बड़ाई के गाने सुना कर प्रसन्न करता था। भक्त चन्द्रविजय की पत्नी भक्तमति कर्मवती परमेश्वर से उपदेश प्राप्त करने के उपरान्त रानी मंदोदरी को प्रभु चर्चा जो सृष्टी रचना अपने सतगुरुदेव मुनिन्द्र जी से सुनी थी प्रतिदिन सुनाने लगी। भक्तमति मंदोदरी रानी को अति आनन्द आने लगा। कई-कई घण्टों तक प्रभु की सत कथा को भक्तमति कर्मवती सुनाती

कबीर साहिब का श्री हनुमान जी को शरण में लेना

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कबीर साहिब का श्री हनुमान जी को शरण में लेना त्रेता युग में जब रावण ने सीता जी का हरण कर लिया तो उसकी खोज शुरू हुई। हनुमान जी ने सीता पता लगाया कि वह रावण की कैद में है।  सीता ने हनुमान को एक कंगन दिया था कि यह श्री राम को दिखा देना। जब वे सीता जी की खोज कर के लंका से वापिस आ रहे थे तो समुद्र को आकाश मार्ग से पार करके एक पर्वत के ऊपर उतरे। वहाँ पास ही एक बहुत सुंदर निर्मल जल का सरोवर था। सुबह-सुबह की बात है। जो कंगन सीता जी ने हनुमान को दिया था, हनुमान जी उसको एक पत्थर पर रख कर स्नान करने लगे।  उसी समय एक बंदर आया और कंगन उठा कर भाग लिया। हनुमान जी की नज़र जैसे सर्प की मणि पर होती है ऐसे कंगन पर थी।  हनुमान जी पीछे दौड़ा। बंदर भाग कर एक आश्रम में प्रवेश कर गया और उस कंगन को एक मटके में दाल दिया।  वह बहुत बड़ा घड़ा था। जब उस कुम्भ में हनुमान जी ने देखा तो ऐसे-ऐसे कंगनों से वह घड़ा लगभग भरा हुआ था।  हनुमान जी ने कंगन उठा कर देखा तो सारे ही कंगन एक जैसे थे।  भेद नहीं लग रहा था। असमंजस में पड़ गया। सामने एक महापुरुष (ऋषि) आश्रम में बैठे हुए दिखाई दिए। उनके पास जाकर प्रार्थना की कि हे

तुम_नज़र_मे_हो

'"#तुम_नज़र_मे_हो" एक दिन सुबह सुबह दरवाजे की घंटी बजी,  मैं उठकर आया दरवाजा खोला  तो देखा एक आकर्षक कद काठी का व्यक्ति चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा है,   मैंने कहा "जी कहिए.." तो बोला " अच्छा जी,  आज.. जी कहिये रोज़ तो  एक ही गुहार लगाते थे ,  प्रभु सुनिए ,प्रभु सुनिये.....आज ,जी कहिये वाह..! मैंने आँख मसलते हुए कहा "माफ कीजीये भाई साहब ! मैंने पहचाना नही आपको" तो कहने लगे " भाई साहब नही , मैं वो हूँ जिसने तुम्हे साहेब बनाया है अरे ईश्वर हूँ.., ईश्वर ! 'तुम हमेशा कहते थे, नज़र मे बसे हो पर नज़र नही आते,  लो आ गया..! अब आज पूरा दिन तुम्हारे साथ ही रहूँगा" मैंने चिढ़ते हुए कहा " ये क्या मजाक है ## ?? अरे मजाक नही है, सच है ,सिर्फ तुम्हे ही नज़र आऊंगा तुम्हारे सिवा कोई देख- सुन नही पायेगा मुझे'कुछ कहता इसके पहले पीछे से माँ आ गयी..'ये अकेला ख़ड़ा खड़ा  क्या कर रहा है यहाँ; चाय तैयार है , चल आजा अंदर.." अब उनकी बातों पे थोड़ा बहुत यकीन होने लगा था ,और मन में थोड़ा सा डर भी था..मैं जाकर सोफे पे बैठा ही था, तो बगल में वो आकर

सहजसमाधी_कैसे_लगती_हैकबीर जैसे नटनी चढ़ै बांस पर, नटवा ढ़ोल बजावै जी। इधर-उधर से निगाह बचाकर, ध्यान बांस में लावै जी।।

#सहजसमाधी_कैसे_लगती_है कबीर जैसे नटनी चढ़ै बांस पर, नटवा ढ़ोल बजावै जी।  इधर-उधर से निगाह बचाकर, ध्यान बांस में लावै जी।।     ◆ पारख के अंग की वाणी नं. 114-116 :- गरीब, जैसे हाली बीज धुनि, पंथी सें बतलाय।  जामैं खंड परै नहीं, मुख सें बात सुनाय।।114।। गरीब, नटवा की लै सुरति सैं, ढोल बोल बौह गाज।  कमंद चढै करुणामई, कबहुं न बिगरै काज।।115।। गरीब, ज्यौं धम घती धात को, देवै तुरंत बताय।  जाकौं हीरा दर्श है, जहां वहां टांकी लाय।। 116।। ◆ सरलार्थ :- परमात्मा कबीर जी जी ने अपनी प्रिय आत्मा संत गरीबदास जी को तत्वज्ञान पूर्ण रूप में बताया था। संत गरीबदास जी ने उसे बताया है।(114) ◆ परमात्मा कबीर जी का भक्त नाम का जाप करे तथा नाम के स्मरण में ध्यान लगाए। सतलोक के सुख को याद करके रह-रहकर उसकी प्राप्ति के बाद के आनंद की कल्पना करे। सतलोक के ऊपर ध्यान रहे। स्मरण करे, तब नाम पर ध्यान रहे। इसे सहज समाधि कहते हैं। उदाहरण बताए हैं।(115) ◆ किसान हल चलाता हुआ बीज बो रहा होता है। कई किसानों के खेत एक गाँव के दूसरे गाँव को जाने वाले रास्ते पर होते हैं। किसान बीज भी बो रहा होता है। रास्ते पर चलते (पंथी) पैदल य

सतभक्ति_से_लाभ #गरीबदासजीमहाराज_वाणी

#सतभक्ति_से_लाभ #गरीबदासजीमहाराज_वाणी         गरीब, त्रिलोकी का राज सब, जै जी कूं कोई देय।  लाख बधाई क्या करै, नहीं सतनाम सें नेह।।96।। ◆ सरलार्थ :- यदि कोई सत्य साधना परम पिता परमेश्वर कबीर जी की नहीं करता है। यदि उस जीव को तीन लोक का राज्य में मिल जाए तो उसे चाहे लाख बार बधाई दी जाए, नरक में जाएगा। उसका भविष्य अंधकारमय है।(96) ◆ वाणी नं. 97 :- गरीब, रतन जडाऊ मन्दिर है, लख जोजन अस्थान।  साकट सगा न भेटिये, जै होय इन्द्र समान।।97।। ◆  सरलार्थ :- जो रिश्तेदार साकट हैं यानि नास्तिक हैं। उसका एक लाख योजन में स्थान यानि पृथ्वी का मालिक हो। उसके (मंदिर) महलों में रत्न जड़े हों। चाहे वह स्वर्ग के राजा इन्द्र जैसा ऐश्वर्यवान हो। वह (सगा) रिश्तेदार कभी ना मिले जो परमात्मा से दूर है। उसके प्रभाव में आकर कच्चा भक्त भक्ति त्यागकर नरक का भागी बन जाता है।(97) ◆ वाणी नं. 98.99 :- गरीब, संख कल्प जुग जीवना, तत्त न दरस्या रिंच।  आन उपासा करते हैं, ज्ञान ध्यान परपंच।।98।। गरीब, मारकंड की उम्र है, रब सें जुर्या न तार।  पीव्रत सें खाली गये, साहिब कै दरबार।।99।। ◆ सरलार्थ :- यदि कोई संख कल्प तक जीवित रहे। ज

*📚 साहेब कबीर जी की वाणी से सतगुरु महिमा*

साहेब कबीर जी की वाणी से सतगुरु महिमा* *🍁 वाणी :-*  गेही भक्ति सतगुरु की करहीं। आदि नाम निज हृदय धरहीं।।(3) गुरु चरणन से ध्यान लगावै। अंत कपट गुरु से ना लावै।।(4)  *➡️ सरलार्थ :- ग्रहस्थी व्यक्ति को गुरु धारण करके गुरुजी के बताए अनुसार भक्ति करनी चाहिए तथा आदि नाम जो वास्तविक तथा सनातन साधना के नाम मन्त्र हैं, उनको हृदय से स्मरण करना चाहिए। गुरुजी के चरणों में ध्यान रखें अर्थात् गुरु जी को किसी समय भी दिल से दूर न करें तथा अंत = अर्थात् अन्तः करण में कभी भी गुरु से छल-कपट नहीं रखना चाहिए। (3-4)*

ब्रह्म (काल) की अव्यक्त रहने की प्रतिज्ञा“

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सृष्टि रचना :- Part -5  ”ब्रह्म (काल) की अव्यक्त रहने की प्रतिज्ञा“ सूक्ष्मवेद से शेष सृष्टि रचना------- तीनों पुत्रों की उत्पत्ति के पश्चात् ब्रह्म (काल) ने अपनी पत्नी दुर्गा (प्रकृति) से कहा मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि भविष्य में मैं किसी को अपने वास्तविक रूप में दर्शन नहीं दूँगा। जिस कारण से मैं अव्यक्त माना जाऊँगा। दुर्गा से कहा कि आप मेरा भेद किसी को मत देना। मैं गुप्त रहूँगा। दुर्गा ने पूछा कि क्या आप अपने पुत्रों को भी दर्शन नहीं दोगे? ब्रह्म ने कहा मैं अपने पुत्रों को तथा अन्य को किसी भी साधना से दर्शन नहीं दूँगा, यह मेरा अटल नियम रहेगा। दुर्गा ने कहा यह तो आपका उत्तम नियम नहीं है जो आप अपनी संतान से भी छुपे रहोगे। तब काल ने कहा दुर्गा मेरी विवशता है। मुझे एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों का आहार करने का शाप लगा है। यदि मेरे पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) को पता लग गया तो ये उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार का कार्य नहीं करेंगे। इसलिए यह मेरा अनुत्तम नियम सदा रहेगा। जब ये तीनों कुछ बड़े हो जाएँ तो इन्हें अचेत कर देना। मेरे विषय में नहीं बताना, नहीं तो मैं तुझे भी दण्ड दूँगा

सम्पूर्ण सृष्टि रचना‘‘

🔮‘‘सम्पूर्ण सृष्टि रचना‘‘ पूर्ण ब्रह्म :- इस सृष्टि रचना में सतपुरुष-सतलोक का स्वामी (प्रभु), अलख पुरुष-अलख लोक का स्वामी, अगम पुरुष-अगम लोक का स्वामी तथा अनामी पुरुष-अनामी अकह लोक का स्वामी (प्रभु) तो एक ही पूर्ण ब्रह्म है, जो वास्तव में अविनाशी प्रभु है जो भिन्न-2 रूप धारण करके अपने चारों लोकों में रहता है। जिसके अन्तर्गत असंख्य ब्रह्माण्ड आते हैं। - जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज 🔮परब्रह्म :- यह केवल सात शंख ब्रह्माण्ड का स्वामी (प्रभु) है। यह अक्षर पुरुष भी कहलाता है। परन्तु यह तथा इसके ब्रह्माण्ड भी वास्तव में अविनाशी नहीं है। - जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज 🔮ब्रह्म :- यह केवल इक्कीस ब्रह्माण्ड का स्वामी (प्रभु) है। इसे क्षर पुरुष, ज्योति निरंजन, काल आदि उपमा से जाना जाता है। यह तथा इसके सर्व ब्रह्माण्ड नाशवान हैं। - जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज 🔮ब्रह्मा :- ब्रह्मा ब्रह्म का ज्येष्ठ पुत्र है, विष्णु मध्य वाला पुत्र है तथा शिव अंतिम तीसरा पुत्र है। ये तीनों ब्रह्म के पुत्र केवल एक ब्रह्माण्ड में एक विभाग (गुण) के स्वामी (प्रभु) हैं तथा नाशवान हैं। - ज

किस किस को मिले कबीर परमेश्वर?

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किस किस को मिले कबीर परमेश्वर?  साहेब कबीर द्वारा श्री नानक जी को सत्यज्ञान समझाना श्री नानकदेव जी को जो पहले एक औंकार (ओ3म) मन्त्र का जाप करते थे तथा उसी को सत मान कर कहा करते थे एक ओंकार। उन्हें बेई नदी पर कबीर साहेब ने दर्शन दे कर सतलोक (सच्चखण्ड) दिखाया तथा अपने सतपुरुष रूप को दिखाया। जब सतनाम का जाप दिया तब श्री नानक साहेब जी की काल लोक से मुक्ति हुई। श्री नानक साहेब जी ने कहा कि: इसी का प्रमाण पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29 शब्द - एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआल। कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।। मै पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।। तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहा आस एहो आधार। मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच मनाति।। काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।। फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।। खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।। मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर। नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।। इसमें स्पष्ट लिखा है कि एक (मन

भक्त_के_16_गुण (#आभूषण)

धर्मदास जी ने प्रश्न किया कि हे प्रभु! आपने काल-जाल समझाया, अब यह बताने की कृपा करें कि जीव को आपकी प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिए?   #भक्त_के_16_गुण (#आभूषण)  परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे धर्मदास! भवसागर यानि काल लोक से निकलने के लिए भक्ति की शक्ति की आवश्यकता होती है। परमात्मा प्राप्ति के लिए जीव में सोलह (16) लक्षण अनिवार्य हैं। इनको आत्मा के सोलह सिंगार (आभूषण) कहा जाता है। 👇👇 1. ज्ञान 2. विवेक 3. सत्य 4. संतोष 5. प्रेम भाव 6. धीरज 7. निरधोषा (धोखा रहित) 8. दया 9. क्षमा 10. शील 11. निष्कर्मा 12. त्याग 13. बैराग 14. शांति निज धर्मा 15. भक्ति कर निज जीव उबारै 16. मित्र सम सबको चित धारै। भावार्थ:- परमात्मा प्राप्ति के लिए भक्त में कुछ लक्षण विशेष होने चाहिऐं। ये 16 आभूषण अनिवार्य हैं। 👇👇 1. तत्त्वज्ञान  2. विवेक  3. सत्य भाषण  4. परमात्मा के दिए में संतोष करे और उसको परमेश्वर की इच्छा जाने  5. प्रेम भाव से भक्ति करे तथा अन्य से भी मृदु भाषा में बात करे  6. धैर्य रखे, सतगुरू ने जो ज्ञान दिया है, उसकी सफलता के लिए हौंसला रखे फल की जल्दी न करे  7. किसी के साथ दगा (धोखा) नहीं करे  8

''ईसा जी''* आए थे *विष्णुजी* के लोक से, *''हजरत मोहम्मद जी''* आए थे *शंकरजी* के लोक से और *''बाबा आदम''* आए थे *ब्रम्हाजी* के लोक से।

*''जाति, मजहब व धर्म''* के नाम पर बँटे हम अज्ञानीयों को समझाते हूए परमात्मा कह रहे हैं कि... *वही मुहम्मद-वही महादेव, वही आदम-वही ब्रम्हा।* *दास गरीब दूसरा कोई नहीं, देख अपने घर मा।।* अर्थात साहेब कह रहे हैं कि आप सभी अपने को अलग-अलग समझकर झगड़ रहे हो और आपको सबका पिछला इतिहास पता ही नही है... *''ईसा जी''* आए थे *विष्णुजी* के लोक से, *''हजरत मोहम्मद जी''* आए थे *शंकरजी* के लोक से और *''बाबा आदम''* आए थे *ब्रम्हाजी* के लोक से। यदि आप साधना करके देख लोगे तो पता चलेगा कि *प्रत्येक मानव शरीर* व उसके *अंदर रीढ़ की हड्डियों* में उपस्थित *कमलों/चक्रों* को परमात्मा ने *एक जैसा ही* बनाया है, चाहे वह व्यक्ति किसी भी *''धर्म या मजहब''* का हो। हमारे इस भौतिक शरीर में *''कमलों/चक्रों''* की व्यवस्था भी *''टी.वी. के चैनलों''* की तरह ही है जिसमें अलग-अलग *''चैनलों/चक्रों''* पर अलग-अलग देवताओं का वास है जो नीचे से ऊपर की ओर क्रमशः... *मूल कमल में गणेश जी,* *स्वाद कमल में ब्रम्

सृष्टि रचना :-

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सृष्टि रचना :- Part -4 ‘‘तीनों गुण क्या हैं? प्रमाण सहित‘‘ ‘‘तीनों गुण रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी हैं। ब्रह्म (काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न हुए हैं तथा तीनों नाशवान हैं‘‘ प्रमाण :- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्री शिव महापुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार पृष्ठ सं. 24 से 26 विद्यवेश्वर संहिता तथा पृष्ठ 110 अध्याय 9 रूद्र संहिता ‘‘इस प्रकार ब्रह्मा-विष्णु तथा शिव तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (ब्रह्म-काल) गुणातीत कहा गया है। दूसरा प्रमाण :- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार चिमन लाल गोस्वामी, तीसरा स्कंद, अध्याय 5 पृष्ठ 123 - भगवान विष्णु ने दुर्गा की स्तूति की : कहा कि मैं (विष्णु), ब्रह्मा तथा शंकर तुम्हारी कृपा से विद्यमान हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) होती है। हम नित्य (अविनाशी) नहीं हैं। तुम ही नित्य हो, जगत् जननी हो, प्रकृति और सनातनी देवी हो। भगवान शंकर ने कहा : यदि भगवान ब्रह्मा तथा भगवान विष्णु तुम्हीं से उत्पन्न हुए हैं तो उनक

ईसाई धर्म में आदम पहला मानव था ईसाईयों और मुसलमानों दोनों धर्मों का मानना है कि आदम इस धरती पर पहला इंसान था। पर सच नहीं है

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✝️ *ईसाई धर्म की जानकारी* ✝️ ईसाई धर्म में आदम पहला मानव था  ईसाईयों और मुसलमानों दोनों धर्मों का मानना है कि आदम इस धरती पर पहला इंसान था। पर सच नहीं है। एक बार की बात है, एक मनु नाम के ऋषि थे। उसका बेटा इक्ष्वकु था। उनके कबीले में, नाभिराज नामक एक राजा था।  राजा नाभिराज के पुत्र ऋषभदेव थे जो जैन धर्म के संस्थापक थे। ऋषभदेव की आत्मा आदम के रूप में दोबारा जन्मीं थी। इस उदाहरण जैन धर्म के पवित्र लेख से लिया गया है- "आओ जैन धर्म को जानें" पृष्ठ संख्या 154 से।  यह साबित करता है कि आदम और हउआ से पहले भी मनुष्य थे। जब भगवान यहोवा या काल ब्रह्म ने उन्हें इस धरती पर भेजा, तो अधिकांश जगह अनिवास्य थी। उन्हें एक एकांत स्थान पर भेजा गया था, जिसे हर जगह से अलग कर दिया गया था। सभी ईसाई, मुस्लिम और यहूदी आदम के पोते-पोतियां हैं। यही कारण है कि वे मानते हैं कि आदम पहला मानव था जो वास्तव में सच नहीं है।  बाइबिल में में एक से अधिक भगवान  बाइबिल में जो भगवान है वे एक नहीं हैं। उसके जैसे और भी हैं। तो वह परम ईश्वर नहीं हो सकता है।  पवित्र बाइबिल - उत्पत्ति 3:22 - फिर परमेश्वर ने कहा

एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा एक राम का सकल पसारा,एक राम त्रिभुवन से न्यारा.

कबीर, एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा        एक राम का सकल पसारा,एक राम त्रिभुवन से न्यारा .      तीन राम को सब कोई धयावे, चतुर्थ राम को मर्म न पावे।      चौथा छाड़ि जो पंचम धयावे, कहे कबीर सो हम को पावे।।       अटपटा ज्ञान कबीर का, झटपट समझ न आए।       झटपट समझ आए तो, सब खटपट ही मिट जाए।।       साचा शब्द कबीर का,  सुनकर लागै आग।       अज्ञानी सो जल जल मरे, ज्ञानी जाए जाग।। कबीर, क का केवल नाम है, ब से बरन शरीर।           र से रम रहा संसार,ताका नाम कबीर॥         हम ही अलख अल्लाह है,कुतुब गौस और पीर।         गरीबदास खालिक धणी,हमरा नाम कबीर॥ गरीब,अनंत कोटि ब्रह्मण्ड का,एक रति नहीं भार।          सतगुरू पुरूष कबीर हैं,ये कुल के सृजनहार॥ दादू, जिन मोकू निज नाम दिया, सोई सतगुरू हमार।          दादू दूसरा कोई नहीं, वो कबीर सृजनहार।। कबीर, ना हमरे कोई मात-पिता,ना हमरे घर दासी।          जुलाहा सुत आन कहाया, जगत करै मेरी हाँसी॥ कबीर, पानी से पैदा नहीं, श्वासा नहीं शरीर।           अन्न आहार करता नहीं,ताका नाम कबीर।। कबीर, ना हम जन्मे गर्भ बसेरा,बालक होय दिखलाया।           काशी शहर जलज पर

84 लाख योनियों को 4 वर्गों में बांटा जा सकता है।1. जरायुज : माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु जरायुज कहलाते हैं।2. अंडज : अंडों से उत्पन्न होने वाले प्राणी अंडज कहलाते हैं।3. स्वदेज : मल-मूत्र, पसीने आदि से उत्पन्न क्षुद्र जंतु स्वेदज कहलाते हैं।4. उदि्भज : पृथ्वी से उत्पन्न प्राणी उदि्भज कहलाते हैं। जो स्वम उत्पन्न होते है जैसे सुरसती, बरसात मे छोटे-छोटे मंडक आदि। पदम् पुराण के एक श्लोकानुसार

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.                     लख चौरासी योनियाँ        सनातन धर्म में कुल चौरासी लाख योनियाँ बताई गई हैं । उदाहरण के लिए मनुष्य योनि, कुत्ते की योनि, बिल्ली की योनि आदि । इस प्रकार कुल चौरासी लाख योनियाँ हैं । जिसमें जीव को जन्म लेना पड़ता है । जल, थल और नभ में कुल मिलाकर चार तरह के जीव होते हैं। इन्हें स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज और जरायुज कहा जाता है ।      84 लाख योनियों को 4 वर्गों में बांटा जा सकता है। 1. जरायुज : माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु जरायुज कहलाते हैं। 2. अंडज : अंडों से उत्पन्न होने वाले प्राणी अंडज कहलाते हैं। 3. स्वदेज : मल-मूत्र, पसीने आदि से उत्पन्न क्षुद्र जंतु स्वेदज कहलाते हैं। 4. उदि्भज : पृथ्वी से उत्पन्न प्राणी उदि्भज कहलाते हैं। जो स्वम उत्पन्न होते है जैसे सुरसती, बरसात मे छोटे-छोटे मंडक आदि। पदम् पुराण के एक श्लोकानुसार जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यक:। पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशव:, चतुर लक्षाणी मानव:।। -(78:5 पद्मपुराण)      अर्थात जलचर 9 लाख, स्थावर अर्थात पेड़-पौधे 20 लाख, सरीसृप, कृमि अर्थात कीड़े-मकौड़े

पतिव्रता उस स्त्री को कहते हैं जो अपने पति के अतिरिक्त अन्य किसी पुरूष को पति भाव से न चाहे। यदि कोई सुंदर-सुडोल, धनी भी क्यों न हो, उसके प्रति मलीन विचार न आऐं। भले ही कोई देवता भी आ खड़ा हो।

‘‘अथ पतिव्रता का अंग’’ का सरलार्थ" ◆ सारांश :- पतिव्रता उस स्त्री को कहते हैं जो अपने पति के अतिरिक्त अन्य किसी पुरूष को पति भाव से न चाहे। यदि कोई सुंदर-सुडोल, धनी भी क्यों न हो, उसके प्रति मलीन विचार न आऐं। भले ही कोई देवता भी आ खड़ा हो। उसको देव रूप में देखे न कि पति भाव यानि प्रेमी भाव न बनाए। सत्कार सबका करें, परंतु व्याभिचार न करे, वह पतिव्रता स्त्री कही जाती है। इस पतिव्रता के अंग में आत्मा का पति पारब्रह्म है यानि सब ब्रह्मों (प्रभुओं) से पार जो पूर्ण ब्रह्म है, वह संतों की भाषा में पारब्रह्म है जिसे गीता अध्याय 8 श्लोक 3 में परम अक्षर ब्रह्म कहा है तथा अध्याय 8 के ही श्लोक 8, 9, 10 में जिसकी भक्ति करने को कहा है। गीता अध्याय 18 श्लोक 61-62 तथा 66 में जिसकी शरण में जाने को कहा है। उस परम अक्षर ब्रह्म में पतिव्रता की तरह भाव रखकर भक्ति करे। अन्य किसी भी प्रभु को ईष्ट रूप में न पूजे। सम्मान सबका करे तो वह भक्त आत्मा पतिव्रता कही जाती है। गीता अध्याय 13 श्लोक 10 में कहा है कि मेरी अव्यभिचारिणी भक्ति कर। इसी प्रकार सुक्ष्म वेद जो परमेश्वर कबीर जी द्वारा अपनी प्रिय आत्मा संत गर