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Showing posts from February, 2022

दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

अध्याय स्वांस गुंजार = शब्द गुंजार का सारांश

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अध्याय स्वांस गुंजार = शब्द गुंजार का सारांश शब्द गुंजार कबीर सागर में 35वां अध्याय ‘‘स्वांस गुंजार‘‘ पृष्ठ 1 (1579) पर है। वास्तव में यह शब्द गुंजार है। गलती से श्वांस गुंजार लिखा गया है। इस अध्याय में कुछ भी भिन्न नहीं है। जो प्रकरण पूर्व के अध्यायों में कहा गया है। उसी की आवर्ती की गई है। बार-बार प्रकरण कहा गया है। बचन से यानि शब्द से जो सृष्टि की उत्पत्ति की गई है, उसी का ज्ञान है। ‘‘यह शब्द गुंजार अध्याय है, न कि स्वांस गुंजार‘‘ प्रमाण पृष्ठ 4 पर:- शब्द हिते है पुरूष अस्थूला। शब्दहि में है सबको मूला।। शब्द हिते बहु शब्द उच्चारा। शब्दै शब्द भया उजियारा।। शब्द हिते भव सकल पसारा। सोई शब्द जीव का रखवारा।। प्रथम शब्द भया अनुसारा। नीह तत्त्व एक कमल सुधारा।। इन उपरोक्त वाणियों से स्पष्ट है कि परमात्मा शब्द रूप में सूक्ष्म शरीर युक्त थे। वह सूक्ष्म शरीर काल लोक वाले शरीर जैसा नहीं है। परमात्मा जब चाहे शब्द (वचन) से जैसा चाहे स्थूल शरीर धारण कर लेते हैं। पुरूष यानि परमेश्वर जी ने शब्द से सब रचना की है। अन्य अध्यायों में भी स्पष्ट है कि परमात्मा ने शब्द (वचन) से सब पुत्र उत्पन्न

नास्त्रोदमस ने अपनी भविष्यवाणी में कहा है कि 21 वीं सदी के प्रारम्भ में दुनिया के क्षितिज पर ‘शायरन‘ का उदय होगा। जो भी बदलाव होगा वह मेरी (नास्त्रोदमस की) इच्छा से नहीं बल्कि शायरन की आज्ञा से नियती की इच्छा से सारा बदलाव होगा ही होगा।

#विश्व_का_तारणहार ‘‘विश्व विजेयता सन्त’’(संत रामपाल जी महाराज की अध्यक्षता में हिन्दुस्तान विश्व धर्मगुरु के रूप में प्रतिष्ठित होगा) ”संत रामपाल जी के विषय में ’’नास्त्रोदमस‘‘ की भविष्यवाणी“ फ्रैंच (फ्रांस) देश के नास्त्रोदमस नामक प्रसिद्ध भविष्यवक्ता ने सन् (इ.स.) 1555 में एक हजार श्लोकों में भविष्य की सांकेतिक सत्य भविष्यवाणियां लिखी हैं। सौ-सौ श्लोकों के दस शतक बनाए हैं। जिनमें से अब तक सर्व सिद्ध हो चुकी हैं। हिन्दुस्तान में सत्य हो चुकी भविष्यवाणियों में से:- 1. भारत की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री बहुत प्रभावशाली व कुशल होगी (यह संकेत स्व. श्रीमती इन्दिरा गांधी की ओर है) तथा उनकी मृत्यु निकटतम रक्षक द्वारा होना लिखा था, जो सत्य हुई। 2. उसके पश्चात् उन्हीं का पुत्र उनका उत्तराधिकारी होगा और वह बहुत कम समय तक राज्य करेगा तथा आकस्मिक मृत्यु को प्राप्त होगा, जो सत्य सिद्ध हुई। (पूर्व प्रधानमन्त्री स्व. श्री राजीव गांधी जी के विषय में)। 3. संत रामपाल जी महाराज के विषय में भविष्यवाणी नास्त्रोदमस द्वारा जो विस्तार पूर्वक लिखी हैं। (क) अपनी भविष्यवाणी के शतक पांच के अंत में तथा शतक छः के प

यदि किसी व्यक्ति को आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है तो वह शुभ-अशुभ कर्मों को नहीं जान पाता। ( बच्चों को शिक्षा अवश्य दिलानी चाहिए)

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बच्चों को शिक्षा अवश्य दिलानी चाहिए कबीर, मात पिता सो शत्रु हैं, बाल पढ़ावैं नाहिं। हंसन में बगुला यथा, तथा अनपढ़ सो पंडित माहीं।। भावार्थ:- जो माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाते नहीं, वे अपने बच्चों के शत्रु हैं। अशिक्षित व्यक्ति शिक्षित व्यक्तियों में ऐसा होता है जैसे हंस पक्षियों में बगुला। यहाँ पढ़ाने का तात्पर्य धार्मिक ज्ञान कराने से है, सत्संग आदि सुनने से है। यदि किसी व्यक्ति को आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है तो वह शुभ-अशुभ कर्मों को नहीं जान पाता। जिस कारण से वह पाप करता रहता है। जो सत्संग सुनते हैं। उनको सम्पूर्ण कर्मों का तथा अध्यात्म का ज्ञान हो जाता है। वह कभी पाप नहीं करता। वह हंस पक्षी जैसा है जो सरोवर से केवल मोती खाता है, जीव-जंतु, मछली आदि-आदि नहीं खाता। इसके विपरीत अध्यात्म ज्ञानहीन व्यक्ति बुगले पक्षी जैसे स्वभाव का होता है। बुगला पक्षी मछली, कीड़े-मकोड़े आदि-आदि जल के जंतु खाता है। शरीर से दोनों (हंस पक्षी तथा बुगला पक्षी) एक जैसे आकार तथा सफेद रंग के होते हैं। उनको देखकर नहीं पहचाना जा सकता। उनके कर्मों से पता चलता है। इसी प्रकार तत्त्वज्ञान युक्त व्यक्ति शुभ कर्मों

एक भक्त ने सतगुरु देव जी से पूछा की हे परमात्मा आपजी कह रहे हो की कलयुग के इस समय में मैं अरबो खरबो मेरी हंस आत्माओ को सतलोक लेकर जाऊंगा। हे मालिक आप जो कह रहे हो

एक भक्त ने सतगुरु देव जी से पूछा की हे परमात्मा आपजी कह रहे हो की कलयुग के इस समय में मैं अरबो खरबो मेरी हंस आत्माओ को सतलोक लेकर जाऊंगा। हे मालिक आप जो कह रहे हो तो सत्य ही होगा लेकिन मुझ तुच्छ जीव् की बुद्दी घनी छोटी है आप खुल कर बताये मेरे दाता। क्योंकि आप कह रहे हो यदि ये सत्यनाम मिलने के बाद यदि जीव् की एक स्वास् भी नाम के बिना खाली जाती है तो इसका मोक्ष नहीं हो सकता है। हे मालिक इस काल लोक में यम के कर्म दंड से भयभीत जीव् कैसे 24 घंटे इस नाम का सुमरिन कर सकता है।कभी ये रोग ग्रस्त रहता है सैकड़ो तरह की इसको टेंसन लगी रहती है सुख और शांति आज के प्राणी को स्वपन में भी नहीं ह। इस शरीर में काल भगवान् ने टट्टी पेशाब हाड मॉस खून लार थूक आदि घृणित पदार्थ रुपी कचरा भर रखा है।कभी इस मंद बुद्दी प्राणी को घर परिवार की चिंता तो कभी समाज व् रिस्तेदारी की यहाँ कभी सूखा अकाल पड़ जाये कभी अति वृष्टि तो कभी बाढ़ व् भूकंप में मरने की चिंता। हे दाता अब आपही बताये।तब परमात्मा बोले भाई ये मेरा काम है कैसे इस जीव् को भक्ति करवाऊंगा और कैसे काल के कर्म दंड कटवाकर इसे भक्ति से युक्त करवाकर सतलोक लेकर जाऊंगा

एक समय महाबीर जैन वाला जीव यानि मारीचि वाला जीव राजा था

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 जैन धर्म बोध भोगेगा अपना किया रे एक समय महाबीर जैन वाला जीव यानि मारीचि वाला जीव राजा था। उसका एक विशेष नौकर था। राजा का मनोरंजन करने के लिए एक वाद्य यंत्र बजाने वाली पार्टी होती थी। राजा धुन सुनते-सुनते सो जाता तो वह तान बंद करा दी जाती थी। राजा अपने महल में पलंग पर लेटा-लेटा धुन सुना करता। अपने नौकर को कह रखा था कि जब मुझे नींद आ जाए तो बाजा बंद करा देना। एक दिन नौकर आनन्द मग्न होकर धुन सुनने में लीन हो गया। उसको पता नहीं चला कि राजा कब सो गए? शोर से राजा की निन्द्रा भंग हो गई। राजा जब उठा तो मंडली बाजा बजा रही थी। राजा को क्रोध आया। उस नौकर को दण्डित करने का आदेश सुना दिया कि इसने मेरे आदेश को अनसुना किया है। इसके कानों में काँच (glass) पिघलाकर गर्म-गर्म डालो। नौकर ने बहुत प्रार्थना की, क्षमा कर दो। आगे से कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा, परंतु अहंकारवश राजा ने उसकी एक नहीं सुनी और सिपाहियों ने उस नौकर को पकड़कर जमीन पर लेटाकर दोनों कानों में पिघला हुआ गर्म काँच (शीशा) डाल दिया। नौकर की चीख हृदय विदारक थी। महीनों तक दर्द के मारे रोता रहा। समय आने पर राजा का देहान्त हुआ। फिर वही

कौन कितना प्रभु’’

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‘‘कौन कितना प्रभु’’ इस पुस्तक में श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी, श्री देवी दुर्गा जी, श्री काल ब्रह्म जी (क्षर ब्रह्म यानि क्षर पुरूष), श्री परब्रह्म जी (अक्षर ब्रह्म यानि अक्षर पुरूष) तथा परम अक्षर ब्रह्म जी (परम अक्षर पुरूष यानि संत भाषा में जिसे सत्यपुरूष कहते हैं) की यथा स्थिति बताई है जो संक्षिप्त में इस प्रकार है:- परम अक्षर ब्रह्म {जिसका वर्णन गीता अध्याय 8 श्लोक 3, 8,10 तथा 20,22 में तथा गीता अध्याय 2 श्लोक 17, गीता अध्याय 15 श्लोक 17, गीता अध्याय 18 श्लोक 46, 61, 62, 66 में है जिसकी शरण में जाने के लिए गीता ज्ञान बोलने वाले ने अर्जुन को कहा है तथा कहा है कि उसकी शरण में जाने से परम शान्ति यानि जन्म-मरण से छुटकारा मिलेगा तथा (शाश्वतम् स्थानम्) सनातन परम धाम यानि अविनाशी लोक (सतलोक) प्राप्त होगा।}:- यह कुल का मालिक है।  गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में इसी की शरण में जाने के लिए गीता ज्ञान दाता ने कहा है। श्लोक 66 में कहा है कि (सर्वधर्मान्) मेरे स्तर की सर्व धार्मिक क्रियाओं को (परित्यज्य माम्) मुझमें त्यागकर तू (एकम्) उस कुल के मालिक एक परमेश्वर की (शरणम्

परमेश्वर कबीर जी ने जैन धर्म की जानकारी इस प्रकार बताई है।

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कबीर सागर में 31वां अध्याय ‘‘जैन धर्म बोध‘‘ पृष्ठ 45(1389) पर है। परमेश्वर कबीर जी ने जैन धर्म की जानकारी इस प्रकार बताई है। अयोध्या का राजा नाभिराज था। उनका पुत्र ऋषभ देव था जो अयोध्या का राजा बना। धार्मिक विचारों के राजा थे। जनता के सुख का विशेष ध्यान रखते थे। दो पत्नी थी। कुल 100 पुत्र तथा एक पुत्री थी। बड़ा पुत्र भरत था।  कबीर परमेश्वर जी अपने विधान अनुसार अच्छी आत्मा को मिलते हैं। उसी गुणानुसार ऋषभ देव के पास एक ऋषि रूप में गए। अपना नाम कबि ऋषि बताया। उनको आत्म बोध करवाया। शब्द सुनाया, मन तू चल रे सुख के सागर, जहाँ शब्द सिंधु रत्नागर जो आप जी ने पढ़ा आत्म बोध के सारांश में पृष्ठ 373-374 पर। यह सत्संग सुनकर राजा ऋषभ देव जी की आत्मा को झटका लगा जैसे कोई गहरी नीन्द से जागा हो। ऋषभ देव जी के कुल गुरू जो ऋषिजन थे, उनसे परमात्मा प्राप्ति का मार्ग जानना चाहा। उन्होंने ¬ नाम तथा हठयोग करके तप करने की विधि दृढ़ कर दी। राजा ऋषभ देव को परमात्मा प्राप्ति करने तथा जन्म-मरण के दुःखद चक्र से छूटने के लिए वैराग्य धारण करने की ठानी। अपने बड़े बेटे भरत जी को अयोध्या का राज्य दे दिया तथा अन्

सतगुरू मिलैं तो इच्छा मेटैं, पद मिल पदे समाना।

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वाणी सँख्या 6:-सतगुरू मिलैं तो इच्छा मेटैं, पद मिल पदे समाना। चल हंसा उस लोक पठाऊँ, जो आदि अमर अस्थाना।। सरलार्थ:- यदि तत्त्वदर्शी संत सतगुरू मिलें तो उपरोक्त ज्ञान बताकर काल ब्रह्म के लोक की सर्व वस्तुओं से तथा पदों से इच्छा समाप्त करके ‘‘पद मिल पदे समाना‘‘ इसमें एक ‘पद‘ का अर्थ है पद्धति अर्थात् शास्त्राविधि अनुसार साधना। दूसरे पद का अर्थ है अमर लोक स्थान। सतगुरू साधना करवाकर परमेश्वर के उस परम पद की प्राप्ति करा देता है जहाँ जाने के पश्चात् फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते। हे भक्त! चल तुझे उस लोक में भेज दूँ जो आदि अमर अस्थान है अर्थात् गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में वर्णित सनातन परम धाम है जहाँ पर परम शांति है। वाणी सँख्या 7:- चार मुक्ति जहाँ चम्पी करती, माया हो रही दासी। दास गरीब अभय पद परसै, मिले राम अविनाशी।। सरलार्थ:- उस सनातन परम धाम में परम शान्ति तथा अत्यधिक सुख है। काल ब्रह्म के लोक में चार मुक्ति मानी जाती है, जिनको प्राप्त करके साधक अपने को धन्य मानता है। परंतु वे स्थाई नहीं हैं। कुछ समय उपरांत पुण्य समाप्त होते ही फिर 84 लाख प्रकार की योनियों में कष्ट उठाता है।

जेती नारी देखियाँ, मन दोष उपाय।ताक दोष भी लगत ये, जैसे भोग कमाय।।

जेती नारी देखियाँ, मन दोष उपाय। ताक दोष भी लगत ये, जैसे भोग कमाय।।

भक्त विचार करते हैं कि परमात्मा न करे, हमारी मृत्यु हो जाए। फिर हमारे कार्य कौन करेगा

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कबीर सागर के अध्याय ‘‘आत्म बोध‘‘  भक्त विचार करते हैं कि परमात्मा न करे, हमारी मृत्यु हो जाए। फिर हमारे कार्य कौन करेगा? हम यह मान लेते हैं कि हमारी मृत्यु हो गई। हम तीन दिन के लिए सत्संग में चलें, अपने को मृत मान लें और सत्संग में चले गए। वैसे तो परमात्मा के भक्तों का कार्य बिगड़ता नहीं, फिर भी हम मान लेते हैं कि हमारी गैर-हाजिरी में कुछ कार्य खराब हो गया तो तीन दिन बाद जाकर ठीक कर लेंगे। वास्तव में टिकट कट गई अर्थात् मृत्यु हो गई तो परमानैंट कार्य बिगड़ गया। फिर कभी ठीक करने नहीं आ सकते। इस स्थिति को जीवित मरना कहते हैं द्वादश मध्य महल मठ बौरे, बहुर न देहि धरै रे। सरलार्थ:- श्रीमद् भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्त्वज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आते अर्थात् उनका पुनर्जन्म नहीं होता। वे फिर देह धारण नहीं करते। सूक्ष्मवेद की यह वाणी यही स्पष्ट कर रही है कि वह परम धाम द्वादश अर्थात् 12वें द्वार को पार करके उस परम धाम में जाया जाता है। आज तक सर्व ऋषि-महर्षि, संत, मंडलेश्वर केवल

जीवन दाता अवतार’’ interview

‘‘जीवन दाता अवतार’’ मैं भक्त सुरेश दास पुत्र श्री चाँद राम निवासी गांव धनाना, जिला सोनीपत जो कि फिलहाल शास्त्री नगर रोहतक (हरियाणा) का निवासी हूँ। सतगुरु जी से नाम उपदेश लेने से पहले मेरे घर की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी, परिवार का कोई भी ऐसा सदस्य नहीं था जो कि कभी बीमार न रहता हो, मेरी पत्नी को भूत-प्रेत बहुत ही ज्यादा परेशान करते थे। इतना कष्ट रहने के बावजूद हम देवी देवताओं की बहुत पूजा करते थे तथा मेरी हनुमान जी में बहुत ज्यादा आस्था थी। लेकिन घर में संकट पर संकट आते जा रहे थे। किसी भी काम में बरकत नहीं हो रही थी। पूर्ण परमात्मा सतगुरु रामपाल जी महाराज जी मेरे परिवार के होने के कारण हम उनको पूर्ण परमात्मा नहीं मान पाये जिसका खामियाजा हमें कई वर्षों तक झेलना पड़ा। तभी गांव सिंहपुरा निवासी भक्त विकास ने मुझे बताया कि आपके घर में पूर्ण परमात्मा जगत् गुरु रामपाल जी महाराज आये हुए हैं और आप कहां सोये पड़े हो, तो मैंने कहा कि काल ने हमें कष्ट ही इतना दे रखा है कि हमें वहां के बारे में जानने का टाईम ही नहीं मिला। सारा समय डाक्टरों के चक्कर काटने में चला जाता है। ऊपर से आर्थिक तंगी भी बहुत

अन्य को मार्गदर्शन करते हैं, स्वयं भक्ति मार्ग का ज्ञान नहीं। श्रीमद् भगवत गीता अध्याय 4 श्लोक 25 से 29 तक यही बताया है कि जो साधक

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प्रसंग चल रहा है कि वाणी सँख्या 3 का सरलार्थ:- इन्द्र, कुबेर, ईश अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, शिव तक को प्राप्त करके तथा वरूण, धर्मराय की पदवी तथा श्री विष्णुनाथ के लोक को प्राप्त करके भी जन्म-मरण के चक्र में रहते हैं।  मार्कण्डेय ऋषि जी ब्रह्म साधना कर रहे थे। उसी को सर्वोत्तम मान रहे थे। इसीलिए इन्द्र को कह रहे थे कि आ तेरे को ब्रह्म साधना का ज्ञान कराऊँ। ब्रह्म लोक की तुलना में स्वर्ग का राज्य लापसी (बिना देशी घी से बना भोजन जो हलवे जेसा दिखाई देता है) की तुलना में जैसे कौवे की बीट है। पाठकजनो! सत्यलोक को हलवा जानों! आप जी ने ब्रह्म साधना करने वाले श्री चुणक ऋषि, श्री दुर्वासा ऋषि तथा कपिल मुनि की दशा जान ली, उनकी साधना को गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में अनुत्तम अर्थात् घटिया बताया है। उसी श्रेणी की साधना मार्कण्डेय ऋषि जी की थी। जिसको अति उत्तम मानकर कर रहे थे तथा इन्द्र जी को भी राय दे रहे थे कि ब्रह्म साधना कर ले। सूक्ष्मवेद में कहा है कि:- औरों पंथ बतावहीं, आप न जाने राह। भावार्थ:- अन्य को मार्गदर्शन करते हैं, स्वयं भक्ति मार्ग का ज्ञान नहीं। श्रीमद् भगवत ग

सृष्टी रचना ******** next page पवित्र श्रीमद्देवी महापुराण में सृष्टी रचना का प्रमाणब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के माता-पिता

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 सृष्टी रचना पवित्र श्रीमद्देवी महापुराण में सृष्टी रचना का प्रमाण ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के माता-पिता दुर्गा और ब्रह्म के योग से ब्रह्मा, विष्णु और शिव का जन्म पवित्र श्रीमद्देवी महापुराण तीसरा स्कन्द अध्याय 1.3(गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादकर्ता श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार तथा चिमन लाल गोस्वामी जी, पृष्ठ नं. 114 से) पृष्ठ नं. 114 से 118 तक विवरण है कि कितने ही आचार्य भवानी को सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण करने वाली बताते हैं। वह प्रकृति कहलाती है तथा ब्रह्म के साथ अभेद सम्बन्ध है जैसे पत्नी को अर्धांगनी भी कहते हैं अर्थात् दुर्गा ब्रह्म (काल) की पत्नी है। एक ब्रह्मण्ड की सृष्टी रचना के विषय में राजा श्री परीक्षित के पूछने पर श्री व्यास जी ने बताया कि मैंने श्री नारद जी से पूछा था कि हे देवर्षे ! इस ब्रह्मण्ड की रचना कैसे हुई? मेरे इस प्रश्न के उत्तर में श्री नारद जी ने कहा कि मैंने अपने पिता श्री ब्रह्मा जी से पूछा था कि हे पिता श्री इस ब्रह्मण्ड की रचना आपने की या श्री विष्णु जी इसके रचयिता हैं या शिव जी ने रचा है? सच-सच बताने की कृपा करें। तब मेरे पूज्य पिता श्री ब्रह्मा

पंचमुद्रा

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कबीर सागर में 29वां अध्याय ‘‘पंचमुद्रा‘‘ Part -B काल वाले बारह पंथियों की अल्प बुद्धि का एक प्रमाण दिखाता हूँ। पंच मुद्रा के पृष्ठ 190-191 पर कमलों का वर्णन है। यह पहले भी तीन अध्यायों में लिखा है। दो अध्यायों में तो आठवें कमल तक की जानकारी है। एक अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘ में पृष्ठ 111 पर नौ कमलों का ज्ञान है। सर्व कबीर पंथी केवल आठ कमल ही मानते हैं जबकि पंच मुद्रा में पृष्ठ 190 तथा 191 पर नौ कमलों का ज्ञान है। अपनी अल्प बुद्धि से पृष्ठ 191 पर तीसरी वाणी में अष्ट कमल कुल कमल लिख दिए हैं जबकि पृष्ठ 190.191 पर लिखी वाणी में नौ कमल भिन्न-भिन्न लिखे हैं। कृपा पृष्ठ 190-191 की कुछ वाणी पढ़ें:- योगजीत वचन हे सुक्रित मैं तुम्हैं लखाऊं। कमलनको प्रमान बताऊं।। प्रथमहि कमल चतुरदल कहिये। देवगणेश पुन तामों लहिये।। रिद्धसिद्ध जहाँ सक्त उपासा। तहाँ जा पूछै सो प्रकाशा।। षटदल कमल ब्रह्म को बासा। सावित्री तहाँ कीन्ह निवासा।। षटसहस्त्रा तहाँ जाप बखाना। देवन सहित इंद्र अस्थाना।। अष्टदल कमल हरि लक्ष्मी वासा। षटसहस्त्र तहाँ जाप निवासा।। द्वादश कमलमों शिवको जाना। षटहजार जाप बंधाना।। तहाँ शिव योग लगावे

सृष्टी रचना ------- next------पवित्र शास्त्रों में ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी का जन्म, विवाह व मृत्यु

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सृष्टी रचना   next पवित्र शास्त्रों में ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी का जन्म, विवाह व मृत्यु काल (ब्रह्म) ने प्रकृति (दुर्गा) से कहा कि अब मेरा कौन क्या बिगाडेगा? मन मानी करूंगा प्रकृति ने फिर प्रार्थना की कि आप कुछ शर्म करो। प्रथम तो आप मेरे बड़े भाई हो, क्योंकि उसी पूर्ण परमात्मा (कविर्देव) की वचन शक्ति से आप की (ब्रह्म की) अण्डे से उत्पत्ति हुई तथा बाद में मेरी उत्पत्ति उसी परमेश्वर के वचन से हुई है। दूसरे मैं आपके पेट से बाहर निकली हूँ, मैं आपकी बेटी हुई तथा आप मेरे पिता हुए। इन पवित्र नातों में बिगाड़ करना महापाप होगा। मेरे पास पिता की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है, जितने प्राणी आप कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूंगी। ज्योति निरंजन ने दुर्गा की एक भी विनय नहीं सुनी तथा कहा कि मुझे जो सजा मिलनी थी मिल गई, मुझे सतलोक से निष्कासित कर दिया। अब मनमानी करूंगा। यह कह कर काल पुरूष (क्षर पुरूष) ने प्रकृति के साथ जबरदस्ती शादी की तथा तीन पुत्रों (रजगुण युक्त - ब्रह्मा जी, सतगुण युक्त - विष्णु जी तथा तमगुण युक्त - शिव शंकर जी) की उत्पत्ति की। जवान होने तक तीनों पुत्रों को दुर्गा के द्वा

सृष्टी रचना &&&& आत्माऐं काल के जाल में कैसे फंसी?

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सृष्टी रचना आत्माऐं काल के जाल में कैसे फंसी? विशेष:- जब ब्रह्म (ज्योति निरंजन) तप कर रहा था हम सभी आत्माऐं, जो आज ज्योति निरंजन के इक्कीस ब्रह्मण्डों में रहते हैं इसकी साधना पर आसक्त हो गए तथा अन्तरात्मा से इसे चाहने लगे। अपने सुखदाई प्रभु सत्य पुरूष से विमुख हो गए। जिस कारण से पतिव्रता पद से गिर गए। पूर्ण प्रभु के बार-बार सावधान करने पर भी हमारी आसक्ति क्षर पुरुष से नहीं हटी। {यही प्रभाव आज भी काल सृष्टी में विद्यमान है। जैसे नौजवान बच्चे फिल्म स्टारों (अभिनेताओं तथा अभिनेत्रियों) की बनावटी अदाओं तथा अपने रोजगार उद्देश्य से कर रहे भूमिका पर अति आसक्त हो जाते हैं, रोकने से नहीं रूकते। यदि कोई अभिनेता या अभिनेत्री निकटवर्ती शहर में आ जाए तो देखें उन नादान बच्चों की भीड़ केवल दर्शन करने के लिए बहु संख्या में एकत्रित हो जाती हैं। ‘लेना एक न देने दो‘ रोजी रोटी अभिनेता कमा रहे हैं, नौजवान बच्चे लुट रहे हैं। माता-पिता कितना ही समझाऐं किन्तु बच्चे नहीं मानते। कहीं न कहीं, कभी न कभी, लुक-छिप कर जाते ही रहते हैं।} पूर्ण ब्रह्म कविर्देव (कबीर प्रभु) ने क्षर पुरुष से पूछा कि बोलो क्य

आप सच्चे दिल से भक्ति करके परमात्मा को पुकारोगे तो आपको हृदय कमल में परमात्मा दर्शन देंगे क्योंकि परमात्मा सर्व कमलों में भी विद्यमान है।

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वाणी:- दिल अन्दर दीदार दर्शन, बाहर अन्त न जाइये। काया माया कहां बपुरी, तन मन शीश चढाइये।। 20 सरलार्थ:- परमात्मा के दर्शन आप अपने हृदय में कर सकते हैं। भावार्थ है कि जिस समय आप सच्चे दिल से भक्ति करके परमात्मा को पुकारोगे तो आपको हृदय कमल में परमात्मा दर्शन देंगे क्योंकि परमात्मा सर्व कमलों में भी विद्यमान है। जैसे किसी कमरे के द्वार पर किसी पात्र में जल रखा है और द्वार के ऊपर बल्ब या ट्यूब लगी है और दिन में जग रही है। उधर से सूर्य भी उदय है तो उस पात्र में सूर्य तथा ट्यूब या बल्ब दोनों का प्रतिबिंब दिखाई देता है। ट्यूब का प्रतिबिंब तो केवल कमरे में रखे पात्र के जल में दिखाई देता है परंतु सूर्य का प्रतिबिंब बाहर व अंदर के सर्व पात्रों में दिखाई देता है। इसलिए कहा है कि परमात्मा प्राप्ति के लिए शरीर से साधना करके दर्शन कर लो। हृदय कमल में परमात्मा दिखाई देगा। शिव अलग दिखाई देगा। परमात्मा भी उसी कमल में भिन्न दिखाई देगा। कहीं अन्य स्थानों-तीर्थों आदि पर न जाईये। परमात्मा प्राप्ति के लिए शरीर तो क्या वस्तु है, सर्वस्व अर्पण कर दो। (20) वाणी:- अबिगत आदि जुगादि जोगी, सत पुरुष ल्य

सृष्टी रचना’’

‘‘सृष्टी रचना’’ (सुक्ष्म वेद से निष्कर्ष रूप सष्टी रचना का वर्णन) प्रभु प्रेमी आत्माऐं प्रथम बार निम्न सष्टी की रचना को पढेंगे तो ऐसे लगेगा जैसे दन्त कथा हो, परन्तु सर्व पवित्र सद्ग्रन्थों के प्रमाणों को पढ़कर दाँतों तले उँगली दबाऐंगे कि यह वास्तविक अमत ज्ञान कहाँ छुपा था? कृप्या धैर्य के साथ पढ़ते रहिए तथा इस अमत ज्ञान को सुरक्षित रखिए। आप की एक सौ एक पीढ़ी तक काम आएगा। पवित्रत्माऐं कृप्या सत्यनारायण (अविनाशी प्रभु/सतपुरुष) द्वारा रची सृष्टी रचना का वास्तविक ज्ञान पढ़ें। 1. पूर्ण ब्रह्म:- इस सष्टी रचना में सतपुरुष-सतलोक का स्वामी (प्रभु), अलख पुरुष-अलख लोक का स्वामी (प्रभु), अगम पुरुष-अगम लोक का स्वामी (प्रभु) तथा अनामी पुरुष-अनामी अकह लोक का स्वामी (प्रभु) तो एक ही पूर्ण ब्रह्म है, जो वास्तव में अविनाशी प्रभु है जो भिन्न-2 रूप धारण करके अपने चारों लोकों में रहता है। जिसके अन्तर्गत असंख्य ब्रह्मण्ड आते हैं। 2. परब्रह्म:- यह केवल सात संख ब्रह्मण्ड का स्वामी (प्रभु) है। यह अक्षर पुरुष भी कहलाता है। परन्तु यह तथा इसके ब्रह्मण्ड भी वास्तव में अविनाशी नहीं है। 3. ब्रह्म:- यह केवल इक्कीस ब्रह्म

संत रामपाल जी महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय“*

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*”संत रामपाल जी महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय“* 📜संत रामपाल दास जी महाराज का जन्म 8 सितम्बर 1951 को गांव धनाना जिला सोनीपत हरियाणा में एक किसान परिवार में हुआ। पढ़ाई पूरी करके हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजिनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे। सन् 1988 में परम संत रामदेवानंद जी से दीक्षा प्राप्त की तथा तन-मन से सक्रिय होकर स्वामी रामदेवानंद जी द्वारा बताए भक्ति मार्ग से साधना की तथा परमात्मा का साक्षात्कार किया। संत रामपाल दास जी महाराज को नाम दीक्षा 17 फरवरी 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को रात्रि में प्राप्त हुई। उस समय संत रामपाल जी महाराज की आयु 37 वर्ष थी। उपदेश दिवस (दीक्षा दिवस) को संतमत में उपदेशी भक्त का आध्यात्मिक जन्मदिन माना जाता है। उपरोक्त विवरण श्री नास्त्रोदमस जी की उस भविष्यवाणी से पूर्ण मेल खाता है जो पष्ठ संख्या 44,45 पर लिखी है। ”जिस समय उस तत्वदष्टा शायरन का आध्यात्मिक जन्म होगा उस दिन अंधेरी अमावस्या होगी। उस समय उस विश्व नेता की आयु 16, 20, 25 वर्ष नहीं होगी, वह तरुण नहीं होगा, बल्कि वह प्रौढ़ होगा और वह 50 और 60 वर्ष के बीच की उम