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Showing posts from October, 2020

दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

.               ❤  कबीर साहिब के 101 दोहे  ❤  बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय। अर्थ: जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।  पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। अर्थ: बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।  साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय। अर्थ: इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे। तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय, कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय। अर्थ: कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में

रामानन्द जी अलग आसन पर बैठे थे। सिकंदर लोधी ने जाकर रामानन्द जी की गर्दन तलवार से काट दी। वापिस चल पड़ा और फिर उसको याद आया कि मैं जिस कार्य के लिए आया था? और वह काम अब पूरा नहीं होगा। कहा कि बीर सिंह देख

👑 “सिकंदर लोधी बादशाह का असाध्य जलन का रोग ठीक करना” 👑 एक बार दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोधी को जलन का रोग हो गया। जलन का रोग ऐसा होता है जैसे किसी का आग में हाथ जल जाए उसमें पीड़ा बहुत होती है। जलन के रोग में कहीं से शरीर जला दिखाई नहीं देता है परन्तु पीड़ा अत्यधिक होती है। उसको जलन का रोग कहते हैं। जब प्राणी के पाप बढ़ जाते हैं तो दवाई भी व्यर्थ हो जाती हैं। दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लौधी के साथ भी वही हुआ। सभी प्रकार की औषधि सेवन की। बड़े-बड़े वैद्य बुला लिए और मुँह बोला इनाम रख दिया कि मुझे ठीक कर दो, जो माँगोगे वही दूँगा। दुःख में व्यक्ति पता नहीं क्या संकल्प कर लेता है? सर्व उपाय निष्फल हुए। उसके बाद अपने धार्मिक काजी, मुल्ला, संतों आदि सबसे अपना आध्यात्मिक इलाज करवाया। परन्तु सब असफल रहा। {जब हम दुःखी हो जाते हैं तो हिन्दु और मुसलमान नहीं रहते। फिर तो कहीं पर रोग कट जाए, वही पर चले जाते हैं। वैसे तो हिन्दु कहते हैं कि मुसलमान बुरे और मुसलमान कहते हैं कि हिन्दु बुरे और बीमारी हो जाए तो फिर हिन्दु व मुसलमान नहीं देखते। जब कष्ट आए तब तो कोई बुरा नहीं। बुरा कोई नहीं है। जो मुसलमान ब

गरीब, नौ लख नानक नाद में, दस लख गोरख तीर। लाख दत्त संगी सदा, चरणौं चरचि कबीर।।गरीब, नौलख नानक नाद में, दस लख गोरख पास। अनंत संत पद में मिले, कोटि तिरे रैदास।।

कबीर साहेब लीलाएं Part -32 दामोदर सेठ का जहाज बचाना  कबीर साहिब जी अपना तत्वज्ञान हम लोगो को समझाने के लिये बार बार पृथ्वी पर आते है। सत्संग के माध्यमो से वाणी बोलकर अपना भेद और तत्वज्ञान बताते है। आज से 623 साल पहले काशी नगर मे आये थे। काशी नगर मे स्थान स्थान पर अपने शिष्यों के घर सत्संग किया करते थे।  दामोदर नाम का एक बहुत बडा सेठ काशी शहर मे रहता था। उसके कई समुन्दर मे चलने वाले जहाज थे। काशी और आसपास के क्षेत्र के व्यापारी उसके जहाज से समान दुसरे देशो मे ले जाते और लाते थे। दामोदर सेठ बहार जहाज मे लम्बी यात्रा पर गया हुआ था।  एक दिन कबीर साहिब जी ने दामोदर सेठ के मोहल्ले मे सतंसग रख दिया। जिस भक्त आत्मा के घर सत्संग था उसने अपने मोहल्ले के सभी लोगो को सतसंग मे आने का निमंत्रण दिया। इस कडी मे दामोदर सेठ के घर भी सन्देश गया। घर पर सेठ दामोदर की पत्नि धर्मवती थी। धर्मवती एक धार्मिक स्वभाव की औरत थी। पाठ पूजा व अपने इष्ट का सुमरण मे व्यस्त रहती थी। वो अक्सर बिमार भी रहती थी। धर्मवती सत्संग मे गई। कबीर साहिब जी के चरणों मे अपना मस्तिष्क झुकाया। कबीर साहिब जी ने धर्मवती को खुश रहो का आशी

एक समय की बात है। दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी कबीर साहेब जी से कहा कि यदि कबीर जी 13(तेरह) गाड़ी कागजों को ढ़ाई दिन में यानि 60 घण्टे में लिख कर दिखा दे तो मैं उनको परमात्मा मान जाऊँगा।

तेरह गाड़ी कागजों की लिखना  एक समय की बात है। दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी कबीर साहेब जी से कहा कि यदि कबीर जी 13(तेरह) गाड़ी कागजों को ढ़ाई दिन में यानि 60 घण्टे में लिख कर दिखा दे तो मैं उनको परमात्मा मान जाऊँगा।  तब परमेश्वर कबीर जी ने अपनी डण्डी उन तेरह गाड़ियों में रखे कागजों पर घुमा दी। उसी समय सर्व कागजों में अमृतवाणी सम्पूर्ण अध्यात्मिक ज्ञान लिख दिया। तब सिकंदर लोधी को विश्वास हो गया, परंतु अपने धर्म के व्यक्तियों (मुसलमानों) के दबाव में आकर उसने उन सर्व ग्रन्थों को दिल्ली में ज़मीन में गढ़वा दिया। कबीर सागर के अध्याय कबीर चरित्र बोध ग्रन्थ में पृष्ठ 1834.1835 पर गलत लिखा है कि जब मुक्तामणि साहब का समय आवेगा और उनका झण्डा दिल्ली नगरी में गड़ेगा। तब वे समस्त पुस्तकें पृथ्वी से निकाली जाएंगी। सो मुक्तामणि अवतार (धर्मदास के) वंश की तेरहवीं पीढ़ी वाला होगा। विवेचन:- ऊपर वाले लेख में मिलावट का प्रमाण इस प्रकार है कि वर्तमान में धर्मदास जी की वंश गद्दी दामाखेड़ा जिला-रायगढ़ प्रान्त-छत्तीसगढ़ में है। उस गद्दी पर 14वें (चैदहवें) वंश गुरू श्री प्रकाशमुनि नाम साहेब विराजमान हैं। तेरहवें वंश गुरू

महाभारत में लेख (प्रकरण) आता है कि कृष्ण जी के कहने से अर्जुन ने युद्ध करना स्वीकार कर लिया। घमासान युद्ध हुआ। करोड़ों व्यक्ति व सर्व कौरव युद्ध में मारे गए और पाण्डव विजयी हुए। तब पाण्डव प्रमुख युधिष्ठिर को राज्य सिंहासन पर बैठाने के लिए स्वयं भगवान कृष्ण ने कहा तो यिधष्ठिर ने

उपरोक्त वाणियों का सरलार्थ :- ।। पाण्डवों की यज्ञ में सुपच सुदर्शन द्वारा शंख बजाना।। जैसा कि सर्व विदित है कि महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया था तथा शस्त्र त्याग कर युद्ध के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच में खड़े रथ के पिछले हिस्से में आंखों से आँसू बहाता हुआ बैठ गया था। तब भगवान कृष्ण के अन्दर प्रवेश काल शक्ति (ब्रह्म) अर्जुन को युद्ध करने की राय देने लगा था। तब अर्जुन ने कहा था कि भगवान यह घोर पाप मैं नहीं करूँगा। इससे अच्छा तो भिक्षा का अन्न भी खा कर गुजारा कर लेंगे। तब भगवान काल श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके बोला था कि अर्जुन युद्ध कर। तुझे कोई पाप नहीं लगेगा। देखें गीता जी के अध्याय 11 के श्लोक 33, अध्याय 2 के श्लोक 37, 38 में। महाभारत में लेख (प्रकरण) आता है कि कृष्ण जी के कहने से अर्जुन ने युद्ध करना स्वीकार कर लिया। घमासान युद्ध हुआ। करोड़ों व्यक्ति व सर्व कौरव युद्ध में मारे गए और पाण्डव विजयी हुए। तब पाण्डव प्रमुख युधिष्ठिर को राज्य सिंहासन पर बैठाने के लिए स्वयं भगवान कृष्ण ने कहा तो यिधष्ठिर ने यह कहते हुए गद्दी पर बैठने से मना कर दिया कि म

तीन लोको के नाम

तीन लोक और भुवन चतुर्दश सब जग सौदे आयी रे संतो यो सौदा फिर नाही संतो या सौदा फिर नाही ।। तीन लोको के नाम 1.पाताल लोक ( अधोलोक ): इस लोक में राजा बलि  है | यह वरदान उन्हें विष्णु ने दिया था | विष्णु पुराण के अनुसार सात प्रकार के पाताल लोक होते हैं। यहा  दैत्य, दानव, यक्ष और बड़े बड़े नागों की जातियां वास करतीं हैं। 2.भूलोक ( मध्यलोक ): यह पृथ्वी है जिसमे मनुष्य जीव जन्तु निवास करते है | 3.स्वर्गलोक(उच्चलोक) : यहा देवताओ के राजा इंद्र , सूर्य देवता , पवनदेव , चन्द्र देवता , अग्नि देव , जल के देवता वरुण , देवताओ के गुरु बृहस्पति, अप्सराये आदि  निवास करती है | हिन्दू देवी-देवताओं का वास है | 14 चौदय भवन के नाम इन लोको को भी 14 लोको में बांटा गया है। इन 14 लोकों को भवन भी पुकारा जाता है- 1. सत्लोक 2. तपोलोक 3. जनलोक 4. महलोक 5. ध्रुवलोक 6. सिद्धलोक 7. पृथ्वीलोक 8. अतललोक 9. वितललोक 10. सुतललोक 11. तलातललोक 12. महातललोक 13. रसातललोक 14. पाताललोक

एक राजा बहुत बड़ा प्रजापालक था। हमेशा प्रजा के हित में प्रयत्नशील रहता था। वह इतना कर्मठ था कि अपना सुख, ऐशो-आराम सब छोड़कर सारा समय जन कल्याण में ही लगा देता था। यहाँ तक कि जो मोक्ष का साधन है अर्थात भगवत भजन, उसके लिए भी वह समय नहीं निकाल पाता था।

.                     सतगुरू सेवा सबसे बडा पुण्य      एक राजा बहुत बड़ा प्रजापालक था। हमेशा प्रजा के हित में प्रयत्नशील रहता था। वह इतना कर्मठ था कि अपना सुख, ऐशो-आराम सब छोड़कर सारा समय जन कल्याण में ही लगा देता था। यहाँ तक कि जो मोक्ष का साधन है अर्थात भगवत भजन, उसके लिए भी वह समय नहीं निकाल पाता था।     दरअसल राजा एक परम संत का शिष्य था। उसने संत जी से नामदिक्षा और सेवा भावना का आशीर्वाद ले रखा था। गुरूजी आदेशानुसार वह जन सेवा और जीव सेवा के कल्याण के लिए कार्य करता था। सेवा मे कमी ना रह जाये इस बात की चिंता रहती थी। सेवा का ज्यादा प्रभाव होने से नाम सुमरण नही कर सकता था।     और बात तेरे काम न आवै, सन्तों शरणै लाग रे।     क्या सोवै गलफत में बन्दे, जाग-जाग नर जाग रे।     तन सराय में जीव मुसाफिर, करता रहे दिमाग रे।     रात बसेरा कर ले डेरा चलै सवेरा त्याग रे।।     उमदा चोला बना अनमोला लगे दाग पर दाग रे।     दो दिन का गुजरान जगत में जलै बिरानी आग रे।।     कुबुद्धि कांचली चढ़ रही चित्त,पर तू हुआ मानुष से नाग रे     सूझै नहीं सजन सुख सागर बिना प्रेम बैराग रे।।     हरि सुमरै सो हंस कहावै का

चरित्र और ज्ञान

.                         चरित्र और ज्ञान       एक बार की बात है किसी गाँव में एक पंडित जी रहते थे। वैसे तो पंडित जी को वेदों और शास्त्रों का बहुत ज्ञान था, लेकिन वह बहुत ग़रीब थे। ना ही रहने के लिए अच्छा घर था और ना ही अच्छे भोजन के लिए पैसे।एक छोटी सी झोपड़ी थी, उसी में रहते थे और भिक्षा माँगकर जो मिल जाता उसी से अपना जीवन यापन करते थे।       एक बार वह पास के किसी गाँव में भिक्षा माँगने गये, उस समय उनके कपड़े बहुत गंदे थे और काफ़ी जगह से फट भी गये थे। जब उन्होने एक घर का दरवाजा खटखटाया तो सामने से एक व्यक्ति बाहर आया, उसने जब पंडित को फटे चिथड़े कपड़ों में देखा तो उसका मन घ्रृणा से भर गया और उसने पंडित को धक्के मारकर घर से निकाल दिया। और कहा कि पता नहीं कहाँ से गंदा पागल चला आया है।       पंडित जी दुखी मन से वापस चले आये, जब अपने घर वापस लौट रहे थे तो किसी अमीर आदमी की नज़र पंडित के फटे कपड़ों पर पड़ी तो उसने दया दिखाई और पंडित जी को भोजन और पहनने के लिए नये कपड़े दे दिए। अगले दिन पंडित जी फिर से उसी गाँव में उसी व्यक्ति के पास भिक्षा माँगने गये। व्यक्ति ने नये कपड़ों में पंडित जी को

द्रोपदी पूर्व जन्म में परमात्मा की परम भक्त थी। फिर वर्तमान जन्म में एक अंधे साधु को साड़ी फाड़कर लंगोट (कोपीन) के लिए कपड़ा दिया था। (अंधे साधु के वेश में स्वयं कबीर परमेश्वर ही लीला कर रहे थे।) जिस कारण से जिस समय दुःशासन ने द्रोपदी को सभा में नंगा करने की कोशिश की तो द्रोपदी ने देखा कि न तो मेरे पाँचों पति (पाँचों पाण्डव) जो भीम जैसे महाबली थे, सहायता कर रहे हैं।

द्रोपदी का चीर बढ़ाना। द्रोपदी पूर्व जन्म में परमात्मा की परम भक्त थी। फिर वर्तमान जन्म में एक अंधे साधु को साड़ी फाड़कर लंगोट (कोपीन) के लिए कपड़ा दिया था। (अंधे साधु के वेश में स्वयं कबीर परमेश्वर ही लीला कर रहे थे।) जिस कारण से जिस समय दुःशासन ने द्रोपदी को सभा में नंगा करने की कोशिश की तो द्रोपदी ने देखा कि न तो मेरे पाँचों पति (पाँचों पाण्डव) जो भीम जैसे महाबली थे, सहायता कर रहे हैं। न भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य तथा दानी कर्ण ही सहायता कर रहे हैं। सब के सब किसी न किसी बँधन के कारण विवश हैं। तब निर्बन्ध परमात्मा को अपनी रक्षार्थ हृदय से हाथी की तरह तड़फकर पुकार की। उसी समय परमेश्वर जी ने द्रोपदी का चीर अनन्त कर दिया। दुःशासन जैसे योद्धा जिसमें दस हजार हाथियों की शक्ति थी, थककर चूर हो गया। चीर का ढ़ेर लग गया, परंतु द्रोपदी निःवस्त्र नहीं हुई। परमात्मा ने द्रोपदी की लाज रखी। पाण्डवों के गुरू श्री कृष्ण जी थे। जिस कारण से उनका नाम चीर बढ़ाने की लीला में जुड़ा है। इसलिए वाणी में कहा है कि निज नाम की महिमा सुनो जो किसी जन्म में प्राप्त हुआ था, जब परमेश्वर सतगुरू रूप में उस द्रोपदी वाली आ

कथनी और करनी में अंतर घातक है

कथनी और करनी में अंतर घातक है’’* 🍃 📄 एक व्यक्ति प्रसिद्ध कथावाचक था तथा प्रतिदिन रामायण का पाठ भी करता था। एक दिन किसी कार्यवश पाठी जी को शहर जाना पड़ा। उसके साथ उसका साथी भी था। गाँव से तीन किलोमीटर दूर रेल का स्टेशन था। सुबह पाँच बजे गाड़ी पर चढ़ना था। इसलिए स्नान करके स्टेशन पर पहुँच गए। विचार किया कि पाठ गाड़ी में कर लूँगा। गाड़ी में चढ़ गए। जिस डिब्बे में वे दोनों चढ़े, वह भरा था। कोई सीट खाली नहीं थी। कुछ व्यक्ति खड़े थे। गाड़ी चल पड़ी। कुछ देर पश्चात् उस पाठी ने सीट पर बैठे दो व्यक्तियों से कहा कि भाई साहब! कृपा मुझे सीट दे दें। मैंने रामायण का पाठ करना है। आज गाड़ी पकड़ने की शीघ्रता के कारण घर पर नहीं कर सका। सज्जन पुरूषों ने पूरी सीट ही खाली कर दी। वे खड़े हो गए और बोले, हे विप्र जी! हमारा अहो भाग्य है कि आज हमको भी पवि ग्रन्थ रामायण जी का अमृतज्ञान सुनने को मिलेगा। पंडित जी ने पाठ ऊँचे स्वर में बोलना शुरू किया। प्रसंग था - भरत ने अपने बड़े भाई के अधिकार वाले राज्य को स्वीकार नहीं किया। जब तक श्री रामचन्द्र जी बनवास पूर्ण करके नहीं आए, तब तक राजगद्दी पर अपने भाई रामचन्द्र की

भक्त नंदा जी एक दिन भगवान की भक्ति में इतना मग्न हो गया कि उसको ध्यान नहीं रहा कि मैंने राजा की हजामत करने जाना था। राजा की सेव (दाढ़ी बनाने) करने जाने का निर्धारित समय था। वह समय जा चुका था। दो घण्टे देर हो चुकी थी।

‘‘भक्त नंदा नाई (सैन) की कथा’’ नाई समुदाय में एक महान भक्त नंदा जी हुए हैं। नाई को सैन भी कहते हैं। वे परमात्मा की धुन (लगन) में लगे रहते थे। राजा के निजी नाई थे। प्रतिदिन राजा की हजामत करने (दाढ़ी काटने) जाया करते थे। राजा के सिर की मालिश करने भी जाते थे। भक्त नंदा जी एक दिन भगवान की भक्ति में इतना मग्न हो गया कि उसको ध्यान नहीं रहा कि मैंने राजा की हजामत करने जाना था। राजा की सेव (दाढ़ी बनाने) करने जाने का निर्धारित समय था। वह समय जा चुका था। दो घण्टे देर हो चुकी थी। राजाओं की जुबान पर दण्ड रहता था। जो भी नौकर जरा-सी गलती करता था तो उसको बेरहमी (निर्दयता) से कोड़ों से पीटा जाता था। अचेत होने पर छोड़ा जाता था। शरीर की खाल उतर जाती थी। रो-रोकर बेहोश हो जाता था। यह दृश्य भक्त नंदा कई नौकरों के साथ देख चुके थे। आज उनको वही भय सता रहा था। काँपते-काँपते राजा के निवास पर पहुँचे। राजा के पैरों में गिरकर देर से आने की क्षमा याचना करने लगा। कहा कि माई-बाप आगे से कभी गलती नहीं करूँगा। भक्त ने देखा कि राजा की दाढ़ी बनाई हुई थी। सिर में मालिश भी कर रखी थी। भक्त सैन को समझते देर नहीं लगी कि किसी अ

वो दहाड़ कर ब्राह्मण को कहता है..""हंस उड़ सरवर गये और अब काग भये प्रधान...थे तो विप्रा थांरे घरे जाओ,,,,मैं किनाइनी जिजमान...,

🙏 #इंसान_की_पहचान_एक_बार🙏 पुराने जमाने में एक शहर में दो ब्राह्मण पुत्र रहते थे, एक गरीब था तो दूसरा अमीर..दोनों पड़ोसी थे..,,गरीब ब्राम्हण की पत्नी ,उसे रोज़ ताने देती , झगड़ती ..।। एक दिन ग्यारस के दिन गरीब ब्राह्मण पुत्र झगड़ों से तंग आ जंगल की ओर चल पड़ता है , ये सोच कर , कि जंगल में शेर या कोई मांसाहारी जीव उसे मार कर खा जायेगा , उस जीव का पेट भर जायेगा और मरने से वो रोज की झिक झिक से मुक्त हो जायेगा..।          जंगल में जाते उसे एक गुफ़ा नज़र आती है...वो गुफ़ा की तरफ़ जाता है...। गुफ़ा में एक शेर सोया होता है और शेर की नींद में ख़लल न पड़े इसके लिये हंस का पहरा होता है..        हंस ज़ब दूर से ब्राह्मण पुत्र को आता देखता है तो चिंता में पड़ सोचता है..ये ब्राह्मण आयेगा ,शेर जगेगा और इसे मार कर खा जायेगा... ग्यारस के दिन मुझे पाप लगेगा...इसे बचायें कैसे???         उसे उपाय सुझता  है और वो शेर के भाग्य की तारीफ़ करते कहता है..ओ जंगल के राजा... उठो, जागो..आज आपके भाग खुले हैं, ग्यारस के दिन खुद विप्रदेव आपके घर पधारे हैं, जल्दी उठें और इन्हे दक्षिणा दें रवाना करें...आपका मोक्ष हो जा

ASHISH KUMAR: स्कुल में एक लड़का अपने दोस्तों के साथ खाना खाते स...

ASHISH KUMAR: स्कुल में एक लड़का अपने दोस्तों के साथ खाना खाते स... : .                        भोजन झूठा मत छोडे         स्कुल में एक लड़का अपने दोस्तों के साथ खाना खाते समय अपनी थाली कटोरी अच्छे से साफ करके भो...

स्कुल में एक लड़का अपने दोस्तों के साथ खाना खाते समय अपनी थाली कटोरी अच्छे से साफ करके भोजन करता

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सदन कसाई का उद्धार’’एक सदन नाम का व्यक्ति एक कसाई के बुचड़खाने में नौकरी करता था।गरीब, सो छल छिद्र मैं करूं, अपने जन के काज। हरणाकुश ज्यूं मार हूँ, नरसिंघ धरहूँ साज।।

‘‘सदन कसाई का उद्धार’’ एक सदन नाम का व्यक्ति एक कसाई के बुचड़खाने में नौकरी करता था। गरीब, सो छल छिद्र मैं करूं, अपने जन के काज। हरणाकुश ज्यूं मार हूँ, नरसिंघ धरहूँ साज।। संत गरीबदास जी ने बताया है कि परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि जो मेरी शरण में किसी जन्म में आया है, मुक्त नहीं हो पाया, मैं उसको मुक्त करने के लिए कुछ भी लीला कर देता हूँ। जैसे प्रहलाद भक्त की रक्षा के लिए नरसिंह रूप {मुख और हाथ शेर (स्पवद) के, शेष शरीर नर यानि मनुष्य का} धारण करके हिरण्यकशिपु को मारा था। फिर कहा है कि :- गरीब, जो जन मेरी शरण है, ताका हूँ मैं दास। गैल-गैल लागा रहूँ, जब तक धरणी आकाश।। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है जो जन (व्यक्ति) किसी जन्म में मेरी शरण में आ गया है। उसके मोक्ष के लिए उसके पीछे-पीछे फिरता रहता हूँ। जब तक धरती-आकाश रहेगा (महाप्रलय तक), तब तक उसको काल जाल से निकालने की कोशिश करता रहूँ। फिर कहा है कि :- गरीब, ज्यूं बच्छा गऊ की नजर में, यूं सांई कूं संत। भक्तों के पीछे फिरै, भक्त वच्छल भगवन्त।। जैसे गाय अपने बच्चे (बछड़े-बछड़ी) पर अपनी दृष्टि रखती है। बच्चा भागता है तो उसके पीछे-पीछे भागती है। अन