श्री नानक जी केवल पाँच नाम (मूल कमल से कण्ठ कमल तक वाले मन्त्र) देते थे। साथ में वाहे गुरू-वाहे गुरू का जाप भी देते थे। उन पाँच नामों का प्रमाण पुस्तक ’’तीइये ताप की कथा’’ में गुरू अमर दास जी ने ये पाँचों नाम मन्त्र लिखे हैं जिनके जाप से रोग भी नष्ट हो जाता है। (वे मन्त्र हैं हरियं, श्रीं, कलिं, ओं, सों) यह मैं (रामपाल दास) प्रथम चरण की दीक्षा में देता हूँ। दूसरे चरण में सतनाम तथा तीसरे चरण में ’’सारशब्द’’ देता हूँ। {इसी प्रकार परमेश्वर कबीर जी ने राजा बीर सिहं बघेल (काशी नरेश) को तीन बार में दीक्षा पूर्ण की थी। प्रमाण :- कबीर सागर के अध्याय ’’बीर सिहं बोध‘‘ में।}
सोई गुरू पूरा कहावे जो दो अखर का भेद बतावै।
ऊपर दो अक्षर के सतनाम (सत्यनाम) के विषय में लिख दिया है, परंतु सारशब्द के विषय में नहीं बताऊँगा। काल के दूत सार शब्द जानकर स्वयंभू गुरू बन कर भोले जीवों को काल के जाल में रख लेंगे क्योंकि यह मन्त्र तथा उपरोक्त प्रथम दीक्षा मन्त्र तथा दूसरी दीक्षा मन्त्र सत्यनाम वाले तथा सार शब्द मुझ दास (रामपाल दास) के अतिरिक्त कलयुग में कोई दीक्षा में ये मन्त्रा देने का अधिकारी नहीं है। अधिकारी के बिना ये मन्त्रा लाभ नहीं देते।
उदाहरण :- जैसे विदेश जाने का पासपोर्ट बनवाया जाता है, यदि बनाने वाला अधिकारी नहीं है तो वह पासपोर्ट किसी काम नहीं आता, उल्टा दोषी भी होता है। पासपोर्ट की जाँच हवाई अड्डे पर होती है। इसी प्रकार अधिकारी संत से लिए दीक्षा मन्त्रों तथा अधिकारी गुरू की जाँच त्रिकुटी पर होती है। तब तक साधक का सब कुछ लुट चुका होगा।
संत घीसा दास साहेब जी ने कहा है :-
सतनाम :- ’’ओम् सोहं जपले भाई, रामनाम की यही कमाई’’
उपरोक्त जाँच से पता चलता है कि जन्म-मरण के रोग को समाप्त करने की साधना (उपचार) कौन से मन्त्र जाप से होती है जिससे जन्म-मरण समाप्त हो।
पवित्र कबीर सागर के ’’कबीर वाणी’’ अध्याय पृष्ठ 137 तथा ’’जीव धर्म बोध’’ पृष्ठ 1937 पर कबीर परमेश्वर जी ने संत श्री धर्मदास जी को तीनों समय की दीक्षा देकर कहा था :-
धर्मदास मेरी लाख दुहाई, सारशब्द कहीं बाहर न जाई।
सारशब्द बाहर जो पड़ही, बिचली पीढ़ी हंस न तिरही।।
यह पृष्ठ 1937 ’’जीव धर्म बोध’’ में लिखा हैः-
धर्मदास मेरी लाख दोहाई, मूल (सार) शब्द बाहर न जाई।
पवित्र ज्ञान तुम जग में भाखो, मूल ज्ञान गोई (गुप्त) तुम राखो।।
मूल ज्ञान तब तक छुपाई, जब तक द्वादश पंथ न मिट जाई।।
यह ’’कबीर वाणी’’ पृष्ठ 137 पर लिखा है।
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