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Showing posts from September, 2022

दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

शिशु कबीर की सुन्नत करने का असफल प्रयत्न’’शिशु रूपधारी कबीर देव की सुन्नत करने का समय आया तो पूरा जन समूह सम्बन्धियों का इकट्ठा हो गया।

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‘‘शिशु कबीर की सुन्नत करने का असफल प्रयत्न’’ शिशु रूपधारी कबीर देव की सुन्नत करने का समय आया तो पूरा जन समूह सम्बन्धियों का इकट्ठा हो गया। नाई जब शिशु कबीर जी के लिंग को सुन्नत करने के लिए कैंची लेकर गया तो परमेश्वर ने अपने लिंग के साथ एक लिंग और बना लिया। फिर उस सुन्नत करने को तैयार व्यक्ति की आँखों के सामने तीन लिंग और बढ़ते दिखाए कुल पाँच लिंग एक बालक के देखकर वह सुन्नत करने वाला आश्चर्य में पड़ गया। तब कबीर जी शिशु रूप में बोले भईया एक ही लिंग की सुन्नत करने का विधान है ना मुसलमान धर्म में। बोल शेष चार की सुन्नत कहाँ करानी है? जल्दी बोल! शिशु को ऐसे बोलते सुनकर तथा पाँच लिंग बालक के देख कर नाई ने अन्य उपस्थित व्यक्तियों को बुलाकर वह   अद्धभुत दृश्य दिखाया। सर्व उपस्थित जन समूह यह देखकर अचम्भित हो गया। आपस में चर्चा करने लगे यह अल्लाह का कैसा कमाल है एक बच्चे को पाँच पुरूष लिंग। यह देखकर बिना सुन्नत किए ही चला गया। बच्चे के पाँच लिंग होने की बात जब नीरू व नीमा को पता चला तो कहने लगे आप क्या कह रहे हो? यह नहीं हो सकता। दोनों बालक के पास गए तो शिशु को केवल एक ही पुरूष लिंग थ

शिशु कबीर परमेश्वर का नामांकन’’

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‘‘शिशु कबीर परमेश्वर का नामांकन’’ - पारख के अंग की वाणी नं. 392.393:- गरीब, काजी गये कुरआन ले, धरि लरके का नाम। अक्षर अक्षर मैं फुर्या, धन कबीर बलि जांव।।392।। गरीब, सकल कुरआन कबीर हैं, हरफ लिखे जो लेख। काशी के काजी कहैं, गई दीन की टेक।।393।। - सरलार्थ:- नीरू (नूर अली) तथा नीमा पहले हिन्दू ब्राह्मण-ब्राह्मणी थे। इस कारण लालच वश ब्राह्मण लड़के का नाम रखने आए। उसी समय काजी मुसलमान अपनी पुस्तक कुरआन शरीफ को लेकर लड़के का नाम रखने के लिए आ गए। उस समय दिल्ली में मुगल बादशाहों का शासन था जो पूरे भारतवर्ष पर शासन करते थे। जिस कारण हिन्दू समाज मुसलमानों से दबता था। काजियों ने कहा लड़के का नाम करण हम मुसलमान विधि से करेंगे अब ये मुसलमान हो चुके हैं। यह कहकर काजियों में मुख्य काजी ने कुरआन शरीफ पुस्तक को कहीं से खोला। उस पृष्ठ पर प्रथम पंक्ति में प्रथम नाम ‘‘कबीरन्’’ लिखा था। काजियों ने सोचा ‘‘कबीर’’ नाम का अर्थ बड़ा होता है। इस छोटे जाति (जुलाहे अर्थात् धाणक) के बालक का नाम कबीर रखना शोभा नहीं देगा। यह तो उच्च घरानों के बच्चों के नाम रखने योग्य है। शिशु रूपधारी परमेश्वर काजियों के मन के

भक्त सुदर्शन के माता-पिता वाले जीवों के कलयुग के अन्य मानव जन्मों की जानकारी’’

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‘‘भक्त सुदर्शन के माता-पिता वाले जीवों के कलयुग के अन्य मानव जन्मों की जानकारी’’ भक्त सुदर्शन के माता-पिता प्रथम बार कुलपति ब्राह्मण (पिता) तथा महेश्वरी (माता) रूप में जन्में। दोनों का विवाह हुआ। संतान नहीं हुई। एक दिन महेश्वरी जी सूर्य की उपासना करते हुए हाथ फैलाकर पुत्र माँग रही थी। उसी समय कबीर परमेश्वर जी उसके हाथों में बालक रूप बनाकर प्रकट हो गए। सूर्य का पारितोष (तोहफा) जानकर बालक को घर ले गई। वे बहुत निर्धन थे। उनको प्रतिदिन एक तोला सोना परमात्मा के बिछौने के नीचे मिलने लगा। यह भी उन्होंने सूर्यदेव की कृपा माना। पाँच वर्ष की आयु का होने पर उनको भक्ति बताई, परंतु बालक जानकर उनको परमात्मा की एक बात पर भी विश्वास नहीं हुआ। उस जन्म में उन्होंने परमात्मा को नहीं पहचाना। जिस कारण से परमेश्वर कबीर जी बालक रूप अंतर्ध्यान हो गए। दोनों पति-पत्नी पुत्र मोह में व्याकुल हुए। परमात्मा की सेवा के फलस्वरूप उनको अगला जन्म भी मानव का मिला। चन्दवारा शहर में पुरूष का नाम चंदन तथा स्त्री का नाम उद्धा था। ब्राह्मण कुल में जन्म हुआ। दोनों निःसंतान थे। एक दिन उद्धा सरोवर पर स्नान करने गई। व

what is PFI #PFI

  Popular Front of India (PFI) is an Indian Islamist political organisation, that was formed to counter Hindutva groups and engages in a radical and exclusivist ... Vice Chairman:  E.M Abdul Rahiman Chairman:  OMA Abdul Salam General Secretary:  Anis Ahmed Headquarters:  G-66, 2nd Floor, Shaheen Bagh Kalindikunj, Noida Road, New Delhi – ...

गरीब, शब्द स्वरूप साहिब धनी, शब्द सिंध सब मांहि।बाहर भीतर रमि रह्या, जहाँ तहां सब ठांहि।।378।।गरीब, जल थल पृथ्वी गगन में, बाहर भीतर एक

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’’कादर खुदा का कलयुग में प्राकाट्य‘‘ - पारख के अंग की वाणी नं. 376.380:- गरीब, चौरासी बंधन कटे, कीनी कलप कबीर। भवन चतुरदश लोक सब, टूटे जम जंजीर।।376।। गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मांड में, बंदी छोड कहाय। सो तौ एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।377।। गरीब, शब्द स्वरूप साहिब धनी, शब्द सिंध सब मांहि। बाहर भीतर रमि रह्या, जहाँ तहां सब ठांहि।।378।। गरीब, जल थल पृथ्वी गगन में, बाहर भीतर एक। पूरणब्रह्म कबीर हैं, अबिगत पुरूष अलेख।।379।। गरीब, सेवक होय करि ऊतरे, इस पृथ्वी के मांहि। जीव उधारन जगतगुरू, बार बार बलि जांहि।।380।। - सरलार्थ:- वाणियों में परमात्मा कबीर जी के कलयुग में प्राकाट्य का प्यारा वर्णन है जो इस प्रकार हैः- - वाणी नं. 376.380 में परमात्मा कबीर जी की महिमा का वर्णन है। कहा है कि कबीर परमेश्वर बंदी छोड़ हैं। अनंत करोड़ ब्रह्माण्डों में बन्दी छोड़ के नाम से प्रसिद्ध हैं। बन्दी छोड़ का अर्थ है कैदी को कारागार से छुड़ाने वाला। हम सब जीव काल ज्योति निरंजन की कारागार में बंदी (कैदी) हैं। इस बंदीगृह से केवल कबीर परमात्मा की छुड़ा सकते हैं। इसलिए सब ब्रह्माण्डों में परमात्मा कबीर जी एकमात्र

गरीब, बे अदबी भावै नहीं साहिब के तांही। अजाजील की बंदगी पल माहीं बहाई।।

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गरीब, बे अदबी भावै नहीं साहिब के तांही। अजाजील की बंदगी पल माहीं बहाई।। अर्थात् परमात्मा को बद्तमीजी अर्थात् बकवाद अच्छी नहीं लगती है। इसी कारण से अजाजील की प्रणाम की साधना एक क्षण में नष्ट कर दी। - शब्द की वाणी नं. 1.10 का सरलार्थ:- (असंभी) पाखंडी आचार-विचार यानि कर्मकांड करते हैं। { जैसे पत्थर या पीतल आदि धातु की भगवान की मूर्ति की पूजा करना, उसको प्रतिदिन स्नान करवाना, वस्त्र बदलना, चंदन का तिलक करना। गले में कंठी तुलसी की लकड़ी का एक मणका धागे में डालकर मूर्ति के गले में बांधना। अपने गले में भी बांधना, अपने भी तिलक लगाना। मूर्ति की आरती उतारना, उसके सामने दीप व धूप जलाना। श्राद्ध करना, पिंडदान करना, तीर्थों पर जाकर अस्थि प्रवाह करवाना आदि-आदि सब आचार-विचार यानि कर्मकांड क्रियाएँ हैं जो व्यर्थ हैं।} (जड़) निर्जीव (पाषाण) पत्थर की पूजा करते हैं। तत्त्वज्ञान नेत्रहीन अंधे तुलसी तथा बेल के पत्ते तोड़कर मूर्ति के ऊपर चढ़ाते हैं। (जीवत जीव) तुलसी व बेल को तोड़ते हैं। पत्थर (जड़) निर्जीव की पूजा करते हैं। पित्तरों के पिंड भरना, तीर्थों पर स्नान व पूजा के लिए जाना। वहाँ पर दान करना,

यह गाड़ियां पूरी तरह से सड़ जाती हैं और एक अनुमान के मुताबिक भारत को हर साल लगभग 20000 करोड रुपए का नुकसान हो जाता है

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आप पूरे भारत के किसी भी पुलिस स्टेशन में जाएंगे वहां हजारों गाड़ियां सड़ती हुई आपको दिखेंगे  यह गाड़ियां पूरी तरह से सड़ जाती हैं और एक अनुमान के मुताबिक भारत को हर साल लगभग 20000 करोड रुपए का नुकसान हो जाता है  ब्रिटिश पार्लियामेंट में 1872 में ब्रिटिश एविडेंस एक्ट 1872 पारित किया था इसके अनुसार अपराधी के पास बरामद सारी चीजें एविडेंस के तौर पर पेश की जाएंगी और उन्हें सुरक्षित रखा जाएगा और उन्हें अदालत में पेश किया जाएगा  मुझे लगता है 1872  में साईकिल का भी अविष्कार नहीं हुआ था फिर जब यही कानून ब्रिटिश सरकार ने भारत पर लागू कर दिया फिर यह भारतीय एविडेंस एक्ट 1872 बन गया  यानी यदि कोई अपराधी अपराध किया है फिर उसे पकड़ा जाता है तो वो जिस गाड़ी में होगा उस गाड़ी को भी एविडेंस बना लिया जाता है या किसी गाड़ी में अपराध हुआ है तो उसे भी एविडेंस एक्ट के तहत जप्त कर लिया जाता है या फिर दो गाड़ियों का एक्सीडेंट हुआ है तब दोनों गाड़ियों को एविडेंस एक्ट में जप्त कर लिया जाता है  मुझे आश्चर्य होता है किस सरकारी वाहनों को इनसे मुक्त क्यों रखा गया है अगर ट्रेन में अ

मन में मिलन करने के दोष से जितनी भी स्त्रियों को देखा, उतनी ही स्त्रियों के साथ सूक्ष्म मिलन का पाप लग जाता है। अध्यात्म में यह भी प्रावधान है कि मन में मलीनता आ ही जाती है

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‘‘रविदास जी ने सात सौ रूप बनाए’’      एक ब्राह्मण सुविचार वाला ब्रह्मचर्य का पालन करता हुआ भक्ति कर रहा था। घर  त्यागकर किसी ऋषि के आश्रम में रहता था। सुबह के समय काशी शहर के पास से बह रही गंगा दरिया में स्नान करके वृक्ष के नीचे बैठा परमात्मा का चिंतन कर रहा था। उसी समय एक 15 -16 वर्ष की लड़की अपनी माता जी के साथ जंगल में पशुओं का चारा लेकर शहर की ओर जा रही थी। उसी वृक्ष के नीचे दूसरी ओर छाया देखकर माँ-बेटी ने चारे की गाँठ (गठड़ी) जमीन पर रखी और सुस्ताने लगी। साधक ब्राह्मण की दृष्टि युवती पर पड़ी तो सूक्ष्म मनोरथ उठा कि कितनी सुंदर लड़की है। पत्नी होती तो कैसा होता। उसी क्षण विद्वान ब्राह्मण को अध्यात्म ज्ञान से अपनी साधना की हानि का ज्ञान हुआ कि:-      जेती नारी देखियाँ मन दोष उपाय। ताक दोष भी लगत है जैसे भोग कमाय।।            अर्थात् मन में मिलन करने के दोष से जितनी भी स्त्रियों को देखा, उतनी ही स्त्रियों  के साथ सूक्ष्म मिलन का पाप लग जाता है। अध्यात्म में यह भी प्रावधान है कि मन में मलीनता आ ही जाती है, परंतु उसे तुरंत सुविचारों से समाप्त किया जा सकता है। एक युवक साईकिल

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सुन काजी राजी नहीं, आपै अलह खुदाय। गरीबदास किस हुकम से, पकरि पछारी गाय।।569।। गऊ हमारी मात है, पीवत जिसका दूध। गरीबदास काजी कुटिल, कतल किया औजूद।।570।। गऊ आपनी अमां है, ता पर छुरी न बाहि। गरीबदास घृत दूध कूं, सबही आत्म खांहि।।571।। ऐसा खाना खाईये, माता कै नहीं पीर। गरीबदास दरगह सरैं, गल में पडै़ जंजीर।।572।। - सरलार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने काजियों व मुल्लाओं से कहा कि गऊ माता के समान है जिसका सब दूध पीते हैं। हे काजी! तूने गाय को काट डाला। - गाय आपकी तथा अन्य सबकी (अमां) माता है क्योंकि जिसका दूध पीया, वह माता के समान आदरणीय है। इसको मत मार। इसके घी तथा दूध को सब धर्मों के व्यक्ति खाते-पीते हैं। - ऐसे खाना खाइए जिससे माता को (गाय को) दर्द न हो। ऐसा पाप करने वाले को परमात्मा के (दरगह) दरबार  में जंजीरों से बाँधकर यातनाएँ दी जाएँगी। - परमात्मा कबीर जी के हितकारी वचन सुनकर काजी तथा मुल्ला कहते हैं कि हाय! हाय! कैसा अपराधी है? माँस खाने वालों को पापी बताता है। सिर पीटकर यानि नाराज होकर चले गए। फिर वाद-विवाद करने के लिए आए तो परमात्मा कबीर जी ने कहा कि हे काजी तथा मुल्ला! सुनो,

दोनों धर्मों को समझाना’’

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‘‘दोनों धर्मों को समझाना’’ - अमर ग्रंथ (संत गरीबदास जी) के पारख के अंग अध्याय की वाणी नं. 568 से 619:- काशी जोरा दीन का, काजी षिलस करंत। गरीबदास उस सरे में, झगरे आंनि परंत।।568।। सुन काजी राजी नहीं, ऐसे पाप से खुदाय। गरीबदास किस हुकम सैं, पकरि पछारी गाय।।569।। गऊ हमारी मात है, पीवत जिसका दूध। गरीबदास काजी कुटिल, कतल किया औजूद।।570।। गऊ आपनी अमां है, ता पर छुरी न बाहि। गरीबदास घृत दूध कूं, सबही आत्म खांहि।।571।। ऐसा खाना खाईये, माता कै नहीं पीर। गरीबदास दरगह सरैं, गल में पडै़ जंजीर।।572।। काजी पटकि कुरांन कूं, ऊठि गये शिर पीट। गरीबदास जुलहै कही, बानी अकल अदीठ।।573।। जुलहे दीन बिगारिया, काजी आये फेर। गरीबदास मुल्ला मुरग, अपनी अपनी बेर।।574।। मुरगे से मुल्लां भये, मुल्लां फेरि मुरग। गरीबदास दोजख धसैं, पावै नहीं सुरग।।575।। काजी कलमा पढत है, बांचै फेरि कुरांन। गरीबदास इस जुल्म सैं, बूडैं दहूँ जिहांन।।576।। दोनूं दीन दया करौ, मानौं बचन हमार। गरीबदास गऊ सूर में, एकै बोलन हार।।577।। सूर गऊ जीव रब के, गाय खावौ न सूर। गरीबदास सूर गऊ, दोऊ का एकै नूर।।578।। मुल्लां से पंडित भये, पंडित

धर्मराय ने निवेदन किया:-धर्मराज हाथ जोड़कर परमात्मा कबीर जी से बोले कि मुझे लाख दुहाई है, मैं आपके हंस (भक्त) को नहीं पकडूँगा

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धर्मराय ने निवेदन किया:- धर्मराज हाथ जोड़कर परमात्मा कबीर जी से बोले कि मुझे लाख दुहाई है, मैं आपके हंस (भक्त) को नहीं पकडूँगा।(20) - परंतु जो (मद्यहारी) शराब सेवन करते हैं। (जारी नरा) जो पुरूष व्यभिचार करते हैं। भांग तथा तम्बाकू का सेवन करते हैं। (परदारा) दूसरे की पत्नी को (तकै) बुरी नजर से देखते हैं। उनको पकड़ू या नहीं?(21) - धर्मराज ने निवेदन किया कि हे कबीर (पुरूष) परमात्मा मेरी विनती सुनो! यहाँ का नियम है कि जो उपरोक्त अपराध करते हैं, उनको निश्चय ही जंजीरों से बाँधूंगा।(22) - परमात्मा कबीर जी ने आदेश किया यानि कहा कि:- मेरा सारशब्द (सारनाम) चुंबक के समान है तथा मेरा हंस (भक्त) लोहे के तुल्य है। मैं पर्दे में यानि गुप्त रूप में अपने भक्त से मिलूँगा। वह अपने (पीव) पति परमेश्वर का दर्शन व (परस) चरण छूकर स्पर्श कर लेगा। वह मेरी आत्मा हो जाएगा। हे धर्मराय! उस अपने भक्त/भक्तमति आत्मा को तेरी बंध (कैद) से अचानक उठा ले जाऊँगा।(23.24) - धर्मराय बोला:- जिस भक्त के पास आपकी दीक्षा का नाम मंत्रा है, उसे कौन पकड़ सकता है? जो आपके नाम से खाली है, उसको मैं नहीं छोड़ूँगा।(25) - जो चौदह मु

सर्व प्रथम गुरू से दीक्षा ली जाती है। फिर उस गुरू जी की आज्ञा से उनके दिशा-निर्देशानुसार यज्ञ करना लाभदायक है

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सर्व प्रथम गुरू से दीक्षा ली जाती है। फिर उस गुरू जी की आज्ञा से उनके दिशा-निर्देशानुसार यज्ञ करना लाभदायक है । 1. धर्म यज्ञ:- धार्मिक अनुष्ठान करके साधु, भक्तों को भोजन करवाना तथा यात्री जो दूर से आए हों और उनको कहीं खाने की व्यवस्था न मिले, उनको तथा जो निर्धन हैं, भूखे हैं, उनको मुफ्त भोजन खिलाना। जरूरतमंदों को मौसम अनुसार वस्त्र मुफ्त देना, प्राकृतिकआपदा में पीड़ितों को भोजन, वस्त्र, औषधि (Medicine) आदि-आदि मुफ्त   बाँटना। जहाँ पर पानी पीने की व्यवस्था नहीं, गुरू जी की आज्ञा से पानी पीने के लिए व्यवस्था करना यानि प्याऊ बनवाना आदि-आदि धर्म यज्ञ हैं। 2. ध्यान यज्ञ:- परमात्मा की याद पूरी कसक के साथ दिन-रात हृदय में बनी रहे जिससे मानव पाप कर्म करने से बचा रहेगा। सनातन धर्म (वर्तमान में हिन्दू धर्म) के ऋषिजन हठ योग करके ध्यान लगाते थे। परंतु वेद तथा गीता में हठ योग करके घोर तप करना गलत कहा है। सूक्ष्मवेद में ध्यान दैनिक कार्य करते हुए करने को कहा है। गीता व वेद भी यही बताते हैं। गीता अध्याय 8 श्लोक 7 में कहा है कि हे अर्जुन! तू युद्ध भी कर तथा मेरा स्मरण भी कर। 3. हवन यज्ञ:- र

नाम का जाप:- मुसलमान अल्लाह अकबर नाम पुकारते हैं जो कबीर जी का नाम है। अल्लाह माने परमेश्वर तथा अकबर नाम कबीर है। केवल बोलने का अंतर है।

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नाम का जाप:- मुसलमान अल्लाह अकबर नाम पुकारते हैं जो कबीर जी का नाम है। अल्लाह माने परमेश्वर तथा अकबर नाम कबीर है। केवल बोलने का अंतर है। जैसे अरबी भाषा में स्कूल को अस्कूल तथा स्थान को अस्थान बोलते हैं। इसी प्रकार कबीर को अकबीर बोलते हैं। फिर स्थान-स्थान की भाषा में अंतर होता है। जिस कारण से अल्लाह कबीर को अल्लाह अकबर बोला जाता है। मुसलमान अल्लाह अकबर पुकारते समय चिंतन करते हैं कि हम बड़े खुदा (अल्लाह अकबर) को पुकार रहे हैं। कबीर का अर्थ अरबी भाषा में बड़ा है। कबीर उसी बड़े (कादर) अल्लाह के शरीर का नाम है। कबीर का अर्थ बड़ा भी है। जैसे ‘‘मंशूर’’ का अर्थ ‘‘प्रकाश’’ (Light) है। ‘‘मंशूर’’ आदमी का नाम भी रखा जाता है। इसीलिए कुरआन मजीद में जहाँ परमेश्वर के विषय में प्रकरण है, वहाँ कबीर का अर्थ बड़ा न करके ‘‘कबीर’’ ही करना उचित है। कबीर परमेश्वर की शरण में गुरू जी से दीक्षा लेकर जाप करने से इस नाम का जाप करने वाले को लाभ मिलता है। परंतु अकेले कबीर (अकबीर) बोलने से मोक्ष लाभ नहीं मिलता। संसार में कुछ कार्य सिद्ध हो जाते हैं। जैसे युद्ध में विजय, मुकदमों में न्याय आदि-आदि। इसके साथ-साथ

परमात्मा के लिए कुछ भी असंभव नहीं है’’एक नगर के बाहर जंगल में दो महात्मा साधना कर रहे थे। एक चालीस वर्ष से घर त्यागकर साधना कर रहा था।

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 "मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरआन" ‘‘परमात्मा के लिए कुछ भी असंभव नहीं है’’ एक नगर के बाहर जंगल में दो महात्मा साधना कर रहे थे। एक चालीस वर्ष से घर त्यागकर साधना कर रहा था। दूसरा अभी दो वर्ष से साधना करने लगा था। परमात्मा के दरबार से एक देवदूत प्रतिदिन कुछ समय उन दोनों साधकों के पास व्यतीत करता था। दोनों साधकों के आश्रम गाँव के पूर्व तथा पश्चिम में जंगल में थे। बड़े का स्थान पश्चिम में तथा छोटे का स्थान गाँव के पूर्व में था। देवदूत प्रतिदिन एक-एक घण्टा दोनों के पास बैठता, परमात्मा की चर्चा करते थे। दोनों साधकों का अच्छा समय व्यतीत होता। एक दिन देवदूत ने भगवान विष्णु जी से कहा कि भगवान! कपिला नगरी के बाहर आपके दो परम भक्त रहते हैं। श्री विष्णु जी ने कहा कि एक परम भक्त हे, दूसरा तो बनावटी भक्त है। देवदूत ने विचार किया कि जो चालीस वर्ष से साधनारत है, वह पक्का भक्त होगा क्योंकि लंबी-लंबी दाढ़ी, सिर पर बड़ी जटा (केश) है और समय भी चालीस वर्ष बहुत होता है। देवदूत बोला कि हे प्रभु! जो चालीस वर्ष से आपकी भक्ति कर रहा है, वह होगा परम भक्त। प्रभु ने कहा, नहीं। दूसरा जो दो वर्ष से

Arshdeep Singh. 23-year bowler Indian bowler Arshdeep Singh viciously trolled on social media after he dropped a catch in match between India and Pakistan

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23-year bowler Indian bowler Arshdeep Singh viciously trolled on social media after he dropped a catch in match between India and Pakistan in Dubai The Union Minister of State for Electronics and Information Technology Rajeev Chandrasekhar on Monday slammed Wikipedia for allowing “deliberate efforts to incitement” after cricketer Arshdeep Singh’s page on the platform was edited to link him to the Khalistani movement No intermediary operating in India can permit this type of misinformation and deliberate efforts to incitement and #userharm - violates our govts expectation of Safe & Trusted Internet,” the Minister said in a tweet. The 23-year bowler was viciously trolled on social media after he dropped a crucial catch in the edited Wikipedia page on Mr. Singh, an unregistered user had replaced ‘India’ with ‘Khalistan’ at several places, while his name was changed to “Major Arshdeep Singh Bajwa”. The changes were corrected and reversed later by Wik

नबी मुहम्मद की (मेराज) आसमान यात्रा पर मतभेद‘‘प्रश्न:- कुछ मुसलमान मानते हैं कि मेराज (सीढ़ी) यानि

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"मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरआन" ’’नबी मुहम्मद की (मेराज) आसमान यात्रा पर मतभेद‘‘ प्रश्न:- कुछ मुसलमान मानते हैं कि मेराज (सीढ़ी) यानि आसमानों की यात्रा कुछ नहीं है। यह मुहम्मद जी ने स्वपन देखा था। अधिकतर इसे सत्य मानते हैं। उस समय के व्यक्तियों ने उसे कोरी झूठ माना। मुहम्मद साहेब ने बताया कि जब मैं अकेला खुदा के पास चला तो मैंने सतरह पर्दे पार किए। एक पर्दे से दूसरे पर्दे तक जाने का मार्ग पाँच सौ वर्ष का था यानि व्यक्ति को एक पर्दे से दूसरे पर्दे तक जाने में पाँच सौ वर्षों का समय लगा। खच्चर जैसे जानवर  (बुराक) पर बैठकर सीढ़ियों पर से चढ़कर ऊपर गए, आदि-आदि बातों को तथा अन्य सब बातें जो मुहम्मद जी ने अपने साथियों को बताई तो हजरत अबु बक्र ने तो तुरंत मान लिया। परंतु बहुत से मुसलमान मुसलमानी छोड़ गए। उनको एक बात अधिक खटकी, जब मुहम्मद ने कहा कि यह सब इतने समय में हुआ कि जब मैं (मुहम्मद) बुराक पर बैठने लगा तो मेरा पैर पानी से भरे कटोरे को लगा। उसका आधा पानी निकल पाया था। सब आसमानों की यात्रा करके वापिस आकर मैंने उसे रोका और शेष जल बचा दिया। क्या यह सत्य है? उत्तर:- जो कुछ हजरत मुहम्मद