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Showing posts from March, 2022

दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने कहा था कि अमेरिका की सड़कें इसलिए बढ़िया नहीं है क्योंकि अमेरिका एक धनी राष्ट्र है; बल्कि अमेरिका एक धनी राष्ट्र इसलिए है क्योंकि अमेरिका की सड़कें बढ़िया है।

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सड़क एवं परिवहन मंत्री #नितिन_गडकरी ने लोक सभा में बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने कहा था कि अमेरिका की सड़कें इसलिए बढ़िया नहीं है क्योंकि अमेरिका एक धनी राष्ट्र है; बल्कि अमेरिका एक धनी राष्ट्र इसलिए है क्योंकि अमेरिका की सड़कें बढ़िया है।  उन्होंने कहा कि वर्ष 2024 समाप्त होने के पहले भारत की सड़कें अमेरिका के बराबर होंगी। रोड इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण रोजगार में वृद्धि भी होगी, आर्थिक विकास होगा, साथ ही कृषि एवं पर्यटन में भी बढ़ोत्तरी होगी। गडकरी जी ने कहा कि इस वर्ष के समाप्त होने के पहले श्रीनगर से मुंबई 12 घंटे के अंदर पहुंचा जा सकता है; दिल्ली से जयपुर 2 घंटे में, दिल्ली से हरिद्वार 2 घंटे में, दिल्ली से देहरादून 2 घंटे में, चेन्नई से बेंगलुरु 2 घंटे में, दिल्ली से अमृतसर 4 घंटे में और दिल्ली से मुंबई की सड़क यात्रा 12 घंटे में इसी साल दिसंबर के पहले पूरा कर सकेंगे।  मंत्री महोदय ने आगे बताया कि लद्दाख के जोजिला सुरंग की स्वीकृति कांग्रेसियों ने दी थी। लेकिन टेंडर 12,000 करोड़ रुपये का आ रहा था। उन्होंने इस टेंडर को भारतीय कंपनियों के लिए सीमित कर दिया, जिसके कार

‘‘गीता, वेदों व पुराणों में भी पित्तर व भूत पूजा मोक्षदायक नहीं बताई है।’’

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 ‘‘गीता, वेदों व पुराणों में भी पित्तर व भूत पूजा मोक्षदायक नहीं बताई है।’’   प्रमाण:- श्री कृष्ण जी के वकील साहेबान कहते हैं कि हम श्राद्ध करते तथा करवाते हैं जबकि गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में कहा है कि जो पितरों की पूजा करते हैं, वे पितरों को प्राप्त होंगे यानि पितर योनि प्राप्त करके पितर लोक में जाएँगे, मोक्ष नहीं होगा। जो भूत पूजते हैं, वे भूतों को प्राप्त होंगे यानि भूत बनेंगे। श्राद्ध करना पितर पूजा तथा भूत पूजा है। तेरहवीं क्रिया करना, वर्षी क्रिया करना, शमशान घाट से शेष बची हड्डियों के अवशेष उठाकर गंगा में प्रवाह करना व पुरोहितों से प्रवाह करवाना आदि-आदि सब पितर तथा भूत पूजा है जिससे मोक्ष नहीं दुर्गति प्राप्त होती है जिसके जिम्मेदार श्री कृष्ण जी के वकील जी हैं। कृष्ण जी के वकील:- श्राद्ध कर्म तो भगवान रामचन्द्र जी ने वनवास के दौरान भी अपने पिता श्री दशरथ जी का किया था। सीता जी ने अपने हाथों से भोजन बनाया था। जब ब्राह्मण श्राद्ध का भोजन खा रहे थे, उसी पंक्ति में सीता जी ने अपने स्वसूर दशरथ जी को भोजन खाते आँखों देखा। सीता ने घूंघट निकाला और श्री रामचन्द्र को बताया। द

ब्रह्मा, विष्णु, शिव अन्य देवता हैं, क्षर ब्रह्म भी पूजा (भक्ति) योग्य नहीं है।

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प्रश्न 21: आपने प्रश्न नं. 13 के उत्तर में कहा है कि पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति के लिए ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश तथा देवी और क्षर ब्रह्म व अक्षर ब्रह्म की साधना करनी पड़ती है। दूसरी ओर कह रहे हो कि ब्रह्मा, विष्णु, शिव अन्य देवता हैं, क्षर ब्रह्म भी पूजा (भक्ति) योग्य नहीं है। केवल परम अक्षर ब्रह्म की ही पूजा (भक्ति) करनी चाहिए? उत्तर: पहले तो यह स्पष्ट करता हूँ कि पूजा तथा साधना में क्या अन्तर है? प्राप्य वस्तु की चाह पूजा कही जाती है तथा उसको प्राप्त करने के प्रयत्न को साधना कहते हैं। उदाहरण: जैसे हमें जल प्राप्त करना है। यह हमारा प्राप्य है। हमें जल की चाह है। जल की प्राप्ति के लिए हैण्डपम्प लगाना पड़ेगा। हैण्डपम्प लगाने के लिए जो-जो उपकरण प्रयोग किए जाएंगे, बोकी लगाई जाएगी, यह प्रयत्न है। इसी प्रकार परमेश्वर का वह परमपद प्राप्त करना हमारी चाह है, जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में नहीं आता। हमारा प्राप्य परमेश्वर तथा उनका सनातन परम धाम है। उसको प्राप्त करने के लिए किया गया नाम जाप हवन-यज्ञ आदि-2 साधना है। उस साधना से पूज्य वस्तु परमात्मा प्राप्त होगा। जैसे प्रश्न 13

ज्योति निरंजन ने प्रथम बार 70 युग तक एक पैर पर खड़ा होकर तप किया

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यथार्थ सृष्टि रचना A परमेश्वर कबीर जी द्वारा बताया सृष्टि रचना का ज्ञान तथा उसमें कबीर पंथियों द्वारा की गई मिलावट या काँट-छाँट का प्रमाण देकर शुद्धिकरण किया है। अनुराग सागर के पृष्ठ 13 से सृष्टि रचना प्रारम्भ होती है। पृष्ठ 14 पर ऊपर से 14वी, 15वीं तथा 16वीं पंक्ति यानि नीचे से आठ पंक्तियों से पहले की तीन पंक्तियों में काल निरंजन की उत्पत्ति पूर्व के 16 पुत्रों के साथ लिखी है जो गलत है। ये तीनों वाणियाँ निम्न हैं पाँचवें शब्द जब पुरूष उचाराए काल निरंजन भौ औतारा।1 तेज अंग त्वै काल ह्नै आवाए ताते जीवन कह संतावा।2 जीवरा अंश पुरूष का आहीं। आदि अंत कोउ जानत नाहीं।3 ये तीनों वाणी गलत हैंए ये मिलाई गई हैं। इनसे ऊपर की वाणी में स्पष्ट है कि पाँचवें शब्द से तेज की उत्पत्ति हुई। फिर दोबारा यह लिखना कि पाँचवें शब्द से काल निरंजन उत्पन्न हुआ अपने आप में असत्य हपुराने तथा वास्तविक अनुराग सागर में सत्य लिखा था जो ज्ञानहीनों ने गलत कर दिया।  प्रमाण कबीर सागर के अध्याय कबीर बानी के पृष्ठ 98, 944 तथा 99 पर ज्योति निरंजन की उत्पत्ति अण्डे से बताई है जो अनुराग सागर में यह प्रकरण काटा गया है।

आधीनी तथा जीव की स्थिति

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आधीनी तथा जीव की स्थिति जैसे कथा सुनते हैं कि श्री कृष्ण जी ने दुर्योधन राजा का शाही भोजन (जिसमें षटरस तथा सर्व व्यंजन थे) छोड़कर आधीन तथा निर्धन भक्त विदुर जी के घर सरसों का साग खाया था। कबीर जी कहते हैं कि हम भी इसी प्रकार अभिमानी के साथ नहीं रहते। सर्व पुराण, चारों वेद, कतेब, तौरेत, इंजिल, जबूर, कुरान भी यही बात कहते हैं। भावार्थ:- पृष्ठ 125 (2033) पर परमेश्वर कबीर जी ने भक्त के लिए आधीन होने की बात कही है। पृष्ठ 126 का सारांश:- भावार्थ:- पृष्ठ 126 पर बताया है कि भक्त को आधीनता से रहना चाहिए जिसके साक्षी श्री रामचन्द्र तथा वेद व चारों कतेब भी बताए हैं। जीव धर्म बोध पृष्ठ 127 (2035) का सारांश:- भावार्थ:- जैसे एक भक्तमति भीलनी थी। उसने प्रेम से बेर पहले स्वयं चखे कि कहीं खट्टे बेर श्री राम तथा लक्ष्मण को न खिला दूँ। फिर झूठे बेर श्री रामचन्द्र तथा लक्ष्मण को खाने को दिए। श्री रामचन्द्र जी ने तो खा लिये। लक्ष्मण जी ने आँखें बचाकर खाने के बहाने मुँह के साथ से पीछे फैंक दिये। फैंके गए झूठे बेर संजीवनी जड़ी रूप में द्रोणागिरी पर उगे। रावण के साथ युद्ध में लक्ष्मण को तीर लगने से

तीर्थ गए एक फल संत मिल फल चार। सतगुरू मिले अनेक फल कहै कबीर विचार।।

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जीव धर्म बोध पृष्ठ 31(1939) से 41(1949) तक सामान्य ज्ञान है। पृष्ठ 35(1943) पर लिखा है कि:- साखी-तीर्थ गए एक फल संत मिल फल चार। सतगुरू मिले अनेक फल कहै कबीर विचार।। भावार्थ:- तीर्थ पर जाने का एक फल यह है कि कोई पूर्ण संत मिल जाता है। जिस कारण से उस भ्रमित आत्मा को सच्चा मार्ग मिल जाता है। संत गरीबदास जी ने भी कहा है कि:-  गरीब, मेलै ठेलै जाईयो, मेले बड़ा मिलाप। पत्थर पानी पूजते, कोई साधु संत मिल जात।। भावार्थ:- संत गरीबदास जी ने कहा है कि तीर्थों पर जो भक्तों के मेले लगते हैं। वहाँ जाते रहना। हो सकता है कभी कोई संत मिल जाए और कल्याण हो जाए। जैसे धर्मदास जी तीर्थ भ्रमण पर मथुरा-वृदांवन गया था। वहाँ स्वयं परमेश्वर कबीर जी ही जिन्दा संत के रूप में मिले और धर्मदास जी का जन्म ही सुधर गया, कल्याण को प्राप्त हुआ। संत मिले फल चार का भावार्थ है कि संत के दर्शन से परमात्मा की याद आती है। यह ध्यान यज्ञ है। संत से ज्ञान चर्चा करने से ज्ञान यज्ञ का फल मिलता है। यह दूसरा फल है। तीसरा फल जब संत घर पर आएगा तो भोजन की सेवा का फल मिलेगा तथा चौथा फल यदि संत नशा नहीं करता है तो उसको रूपया या कपड़ा वस्त्र दा

अक्षर का अर्थ अविनाशी होता है। आपने गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में भी अक्षर पुरूष को भी नाशवान बताया है, स्पष्ट करें।

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प्रश्न 9:- अक्षर का अर्थ अविनाशी होता है। आपने गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में भी अक्षर पुरूष को भी नाशवान बताया है, स्पष्ट करें। उत्तर:- यह सत्य है कि “अक्षर” का अर्थ अविनाशी होता है, परन्तु प्रकरणवश अर्थ अन्य भी होता है। गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में कहा है कि क्षर और अक्षर ये दो पुरूष (प्रभु) इस लोक में है, ये दोनों नाशवान हैं तथा इनके अन्तर्गत जितने जीव हैं, वे भी नाशवान हैं, आत्मा किसी की भी नहीं मरती। फिर गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में स्पष्ट किया है कि पुरूषोत्तम तो उपरोक्त दोनों प्रभुओं से अन्य है। वही सबका धारण-पोषण करने वाला वास्तव में अविनाशी है। गीता अध्याय 8 श्लोक 3 में तत् ब्रह्म को परम अक्षर ब्रह्म कहा है। अक्षर का अर्थ अविनाशी है, परन्तु यहाँ परम अक्षर ब्रह्म कहा है। इससे भी सिद्ध हुआ कि अक्षर से आगे परम अक्षर ब्रह्म है, वह वास्तव में अविनाशी है।  प्रमाण:- जैसे ब्रह्मा जी की आयु 100 वर्ष बताई जाती है, देवताओं का वर्ष कितने समय का है? सुनो! चार युग (सत्ययुग, त्रोतायुग, द्वापरयुग तथा कलयुग) का एक चतुर्युग होता है जिसमें मनुष्यों के 43,20,000 (त्रितालीस लाख बीस हजार) वर्ष होते हैं

जीव में ज्यों-ज्यों नीचता आती है, उसमें अहंकार बढ़ता चला जाता है तथा ज्यों-ज्यों भक्ति करके आत्मा में अध्यात्म शक्ति बढ़ती है, त्यों-त्यों उस भक्त में आधीनी यानि दीनता आती है।

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श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 13 श्लोक 1,2 तथा 33 में उपरोक्त प्रमाण है। गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म यानि ज्योति निरंजन ने बताया है कि:- हे अर्जुन! यह शरीर क्षेत्र इस नाम से कहा जाता है। तत्त्वदर्शी संत कहते हैं कि जो इसको जानता है, वह क्षेत्रज्ञ कहा जाता है।(अध्याय 13 श्लोक 1) हे अर्जुन! सर्व क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ भी मुझे ही जान और क्षेत्र तथा क्षेत्रज्ञ का जो ज्ञान है, वह ज्ञान है, ऐसा मेरा मत है। भावार्थ है कि शरीर=क्षेत्र तथा काल ब्रह्म=क्षेत्रज्ञ का ज्ञान कराने वाला ही वास्तविक ज्ञान है। यह गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि मेरा विचार है।(अध्याय 13 श्लोक 2) हे अर्जुन! जिस प्रकार एक ही सूर्य इस संपूर्ण लोक (पृथ्वी लोक) को प्रकाशित करता है।उसी प्रकार क्षेत्री (जीवात्मा) संपूर्ण क्षेत्र (शरीर) को प्रकाशित करता है।(अध्याय 13 श्लोक 33) विचार करें:- गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित तथा श्री जयदयाल गोयन्दका द्वारा अनुवादित तथा अन्य सर्व अनुवादकों द्वारा गीता अध्याय 13 श्लोक 1 में क्षेत्रज्ञ का अर्थ किया है कि जो क्षेत्र को जानता है, वह क्षेत्रज्ञ कहा जाता है। फिर गीता अध्याय 13 श्लोक 2 में क्षेत्रज

नाम शरीर क्षेत्र सो जाना। तेही अंदर बाहर का ज्ञान।।जो विकल्प कारण गाई। चित (मन) शक्ति क्षेत्रज्ञ कहाई।।नाम तासु क्षेत्रज्ञ कहीजै। सो सब वासना से भीजै।।

कौन धर्म है जीव को, सब धर्मन सरदार। जाते पावै मुक्ति गति, उतरे भव निधि पार।। जबलों नहीं सतगुरू मिले, तबलों ज्ञान नहीं होय। ऋषि सिद्धि तपते लहै, मुक्ति का पावै कोय।। भावार्थ:- जीव क्या धर्म यानि गुण है? मनुष्य का धर्म यानि मानव धर्म सब धर्मों का मुखिया है। जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा। हिन्दु मुस्लिम सिक्ख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।। यह दोहा मुझ दास (रामपाल दास) द्वारा निर्मित किया गया है। मनुष्य जन्म प्राप्त जीव का धर्म मानवता है। यदि मानव में मानवता (इंसानियत) नेक चाल चलन अच्छा व्यवहार नहीं है तो वह अन्य जीवों जैसा तुच्छ प्राणी है। अन्य जीव यानि पशु-पक्षी, जलचर क्या करते हैं? दुर्बल का आहार छीनकर खा जाते हैं। दुर्बल के साथ मारपीट करते हैं, मारकर भी खा जाते हैं। किसी असहाय पशु को जख्म (घाव) हो जाता है तो कौवे नोंच-नोंचकर खाते हैं। वर्तमान में डिस्कवरी फिल्मों में देखने को मिलता है कि जंगल में घास चर रहे भैंसे को 5,6 शेर-शेरनी घेरकर उसके ऊपर चढ़कर तथा आगे-पीछे से फाड़कर खाते हैं। भैंसा गिर जाता है, चिल्ला रहा है। सिंह मस्ती से जीवित को खा रहे थे। अन्य पशुओं जैसे गाय, जंगली मृग, नील

आँखों वाले अंधे‘‘

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’’आँखों वाले अंधे‘‘ संत गरीबदास जी ने इन तत्त्वज्ञान नेत्रहीन (अंधे) धर्म प्रचारकों गुरूओं के विषय में कहा है कि:- गरीब, बेद पढ़ें पर भेद न जानें, पढ़ें पुराण अठारा। पत्थर की पूजा करें, विसरे सृजनहारा।। अर्थात् ये गुरूजन चारों वेदों तथा अठारह पुराणों को पढ़ते हैं, परंतु गूढ़ रहस्यों को नहीं समझ सके। जो अध्यापक अपने पाठ्यक्रम की पुस्तकों के गूढ़ ज्ञान को नहीं जानकर पाठ्यक्रम से बाहर का ज्ञान विद्यार्थियों को पढ़ाता है तो वह नालायक व्यक्ति है। विद्यार्थियों का जीवन नष्ट कर रहा है। यही दशा इन धर्म के नाम पर बने धर्म गुरूजनों की है। धर्म ग्रंथों को न समझकर उनसे बाहर की दंत कथा (लोक वेद) बता रहे हैं। संत गरीबदास जी ने फिर कहा है कि:- गीता और भागौत पढ़ें, नहीं बूझें शब्द ठिकाने नूं। मन मथुरा दिल द्वारका नगरी, क्या करो बरसाने नूं।। मोती मुक्ता दर्शत नांही, ये गुरू सब अंध रे। दीखत के तो नैन चिसम हैं, इनकै फिरा मोतिया बिंद रे।। अर्थात् ये सब के सब गुरूजन श्रीमद्भगवत गीता तथा श्रीमद् भागवत (सुधा सागर) को पढ़ते हैं। इनको आधार बताकर जनता को ज्ञान बताते हैं। संस्कृत बोलते हैं। श्रोता इनको परम व

इन्द्र का शासन काल कितना है? मृत्यु उपरांत इन्द्र के पद को छोड़कर प्राणी किस योनि को प्राप्त करता है?

प्रश्न:- इन्द्र की पदवी कैसे प्राप्त होती है? उत्तर:- अधिक तप करने से या सौ मन (4 हजार कि.ग्रा.) गाय-भैंस के घी का प्रयोग करके धर्मयज्ञ करने से एक धर्मयज्ञ सम्पन्न होती है। ऐसी-ऐसी सौ धर्मयज्ञ निर्विघ्न करने से इन्द्र की पदवी साधक प्राप्त करता है। तप या यज्ञ के दौरान यज्ञ या तप की मर्यादा भंग हो जाती है तो नए सिरे से यज्ञ तथा तप करना पड़ता है। सफल होने पर ही इन्द्र की पदवी प्राप्त होती है। इस प्रकार इन्द्र की पदवी प्राप्त होती है।  प्रश्न:- इन्द्र का शासन काल कितना है? मृत्यु उपरांत इन्द्र के पद को छोड़कर प्राणी किस योनि को प्राप्त करता है? उत्तर:- इन्द्र स्वर्ग के राजा के पद पर 72 चैकड़ी अर्थात् 72 चतुर्युग तक बना रहता है। {एक चतुर्युग में सत्ययुग, त्रोतायुग, द्वापरयुग तथा कलयुग का समय होता है। जो 1728000 + 1296000+ 864000 + 432000 क्रमशः सत्ययुग , त्रोतायुग , द्वापरयुग, कलयुग का समय अर्थात् 43 लाख 20 हजार वर्ष का समय एक चतुर्युग में होता है। ऐसे बने 72 चतुर्युग तक वह साधक इन्द्र के पद पर स्वर्ग के राजा का सुख भोगता है।} एक कल्प अर्थात् ब्रह्मा जी के एक दिन में (जो एक हजार आठ (1008) चतुर

परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति से पूर्ण मोक्ष होता है’’काल ब्रह्म व देवताओं की भक्ति करके भी जीव का जन्म-मरण का चक्र समाप्त नहीं होता

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‘‘परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति से पूर्ण मोक्ष होता है’’ काल ब्रह्म व देवताओं की भक्ति करके भी जीव का जन्म-मरण का चक्र समाप्त नहीं होता क्योंकि ये स्वयं जन्म व मृत्यु के चक्र में पड़े हैं। संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त ज्ञान को इस प्रकार बताया है:- {संत गरीबदास जी, गाँव-छुड़ानी हरियाणा की अमृतवाणी} मन तू चलि रे सुख के सागर, जहाँ शब्द सिंधु रत्नागर। (टेक) कोटि जन्म तोहे मरतां होगे, कुछ नहीं हाथ लगा रे। कुकर-सुकर खर भया बौरे, कौआ हँस बुगा रे।।1।। कोटि जन्म तू राजा किन्हा, मिटि न मन की आशा। भिक्षुक होकर दर-दर हांड्या, मिल्या न निर्गुण रासा।।2।। इन्द्र कुबेर ईश की पद्वी, ब्रह्मा, वरूण धर्मराया। विष्णुनाथ के पुर कूं जाकर, बहुर अपूठा आया।।3।। असँख्य जन्म तोहे मरते होगे, जीवित क्यूं ना मरै रे। द्वादश मध्य महल मठ बौरे, बहुर न देह धरै रे।।4।। दोजख बहिश्त सभी तै देखे, राज-पाट के रसिया। तीन लोक से तृप्त नाहीं, यह मन भोगी खसिया।।5।। सतगुरू मिलै तो इच्छा मेटैं, पद मिल पदै समाना। चल हँसा उस लोक पठाऊँ, जो आदि अमर अस्थाना।।6।। चार मुक्ति जहाँ चम्पी करती, माया हो रही दासी। दास गरी

ब्रह्मा के छः अवतार लिखे हैं:-

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ब्रह्मा के छः अवतार लिखे हैं:- 1) गौतम 2) कणांद 3) व्यास ऋषि 4) जैमनी 5) मंडनमिश्र 6) मीमासंकहि  शिव जी के ग्यारह रूद्रों के नाम बताए हैं:- 1) सर्प कपाली 2) त्रयंबक 3) कपि 4) मृग 5) व्याधि 6) बहुरूप 7) वृष 8) शम्भु 9) हरि 10) रैवत 11) बीरभद्र। ब्रह्मा जी के दैहिक तथा मानस पुत्रों के नाम:- सर्व प्रथम दो पुत्रों का जन्म श्री ब्रह्मा जी से हुआ:- 1) दक्ष 2) अत्री। इससे आगे शाखा चली हैं। पृष्ठ 14 (1704) से 16 (1706) तक:- चौदह (14) विष्णु के नाम, चौदह (14) इन्द्र के नाम, चौदह मनु के नाम, सप्त स्वर्ग के नाम {भूः, भवः, स्वर्ग, महरलोक, जनलोक, तपलोक, सतलोक (नकली)} सर्व पातालों के नाम:- अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, पाताल व रसातल। नौ धरों के नाम:- 1) भूः लोक (भूमि) 2) भुवर् लोक = भूवः लोक यानि जल तत्त्व से निर्मित स्थान जैसे बर्फ जम जाने के पश्चात् उसके ऊपर खेल का मैदान बनाकर शीतल देशों में बच्चे खेलते हैं। 3) स्वर = स्वः = स्वर्ग लोक जो अग्नि तत्त्व से निर्मित है। जैसे काष्ठ में अग्नि है, उससे जापान देश में भवन बनाए जाते हैं। जैसे प्लाईवुड पर चित्रकारी करके चमकाया जाता है। ऐसा स्वर्

राजा ऋषभ देव जी राज त्यागकर जंगलों में साधना करते थे। उनका भोजन स्वर्ग से आता था।

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#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण_ {पुराणों में भी प्रकरण आता है कि अयोध्या के राजा ऋषभ देव जी राज त्यागकर जंगलों में साधना करते थे। उनका भोजन स्वर्ग से आता था। उनके मल (पाखाने) से सुगंध निकलती थी। आसपास के क्षेत्र के व्यक्ति इसको देखकर आश्चर्यचकित होते थे। इसी तरह सतलोक का आहार करने से केवल सुगंध निकलती है, मल नहीं। स्वर्ग तो सतलोक की नकल है जो नकली है।} श्री कृष्ण जी के वकील:- हमने कभी कहीं न सुना तथा न पढ़ा कि तैमूरलंग को राज कबीर जी ने प्रदान किया तथा काशी में इतना बड़ा भोजन कार्यक्रम किया था। शास्त्रों से प्रमाण बताओ कि कबीर बड़ा है कृष्ण से। कबीर जी का वकील:- आप जी ने तो यह भी नहीं सुना था कि श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु, श्री शिव के माता-पिता हैं। ये जन्मते-मरते हैं अविनाशी नहीं हैं। उपरोक्त प्रकरण तैमूरलंग को राज बख्शना कबीर सागर ग्रंथ में है तथा काशी में भोजन-भण्डारा देना संत गरीबदास जी द्वारा बताया है जो अमर ग्रंथ में लिखा है। आप गीता, वेद, पुराणों से प्रमाण चाहते हैं कि कबीर समर्थ है कृष्ण से, तो देता हूँ शास्त्रों के प्रमाण। आप कहते हो कि श्री विष्णु जी, श्री ब्रह्मा जी तथा श्री शि