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Showing posts from November, 2021

दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

सम्पूर्ण सृष्टि रचना

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सम्पूर्ण सृष्टि रचना (सूक्ष्मवेद से निष्कर्ष रूप सृष्टि रचना का वर्णन) प्रभु प्रेमी आत्माऐं प्रथम बार निम्न सृष्टि की रचना को पढेंगे तो ऐसे लगेगा जैसे दन्त कथा हो, परन्तु सर्व पवित्र सद्ग्रन्थों के प्रमाणों को पढ़कर दाँतों तले उँगली दबाऐंगे कि यह वास्तविक अमृत ज्ञान कहाँ छुपा था? कृप्या धैर्य के साथ पढ़ते रहिए तथा इस अमृत ज्ञान को सुरक्षित रखिए। आप की एक सौ एक पीढ़ी तक काम आएगा। पवित्रत्माऐं कृप्या सत्यनारायण (अविनाशी प्रभु/सतपुरुष) द्वारा रची सृष्टि रचना का वास्तविक ज्ञान पढ़ें। 1. पूर्ण ब्रह्म:- इस सृष्टि रचना में सतपुरुष-सतलोक का स्वामी (प्रभु), अलख पुरुष-अलख लोक का स्वामी (प्रभु), अगम पुरुष-अगम लोक का स्वामी (प्रभु) तथा अनामी पुरुष-अनामी अकह लोक का स्वामी (प्रभु) तो एक ही पूर्ण ब्रह्म है, जो वास्तव में अविनाशी प्रभु है जो भिन्न-2 रूप धारण करके अपने चारों लोकों में रहता है। जिसके अन्तर्गत असंख्य ब्रह्माण्ड आते हैं।  5. 2. परब्रह्म:- यह केवल सात शंख ब्रह्माण्ड का स्वामी (प्रभु) है। यह अक्षर पुरुष भी कहलाता है। परन्तु यह तथा इसके ब्रह्माण्ड भी वास्तव में अविनाशी नहीं है। 6. ब्

तीनों देवता का जन्म

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यथार्थ सृष्टि रचना || 88 तीनों देवताओं का विवाह  आदि भवानी (प्रकृति देवी) ने अपने वचन से तीन कन्या उत्पन्न की। उनको समुद्र में छिपने को कहा। फिर तीनों पुत्रों को सागर मंथन के लिए भेजा। तीन युवती निकली। जो पहले निकली थी, उसका नाम सावित्राी रखा और ब्रह्मा जी से विवाह कर दिया। उसके बाद जो निकली, उसका नाम लक्ष्मी रखा और विष्णु जी से विवाह कर दिया। उसके बाद तीसरे जो लड़की निकली, उसका नाम पार्वती रखा और शिव जी से विवाह कर दिया। तीनों को भिन्न-भिन्न लोक देकर उनमें निवास करने की आज्ञा देकर दुर्गा ने तीनों को भेज दिया। जिससे एक ब्रह्मण्ड में सर्व उत्पन्न हुआ है। इसके पश्चात् जन्म-मरण तथा अन्य कष्टों का चक्र प्राणियों पर प्रारम्भ है। इस काल ब्रह्म के लोक में कोई जीव सुखी नहीं है। हाहाकार मची है। निर्धन कहता है धनवासी सुखी। धनवान कह राजा को सुख भारी। राजा कह इन्द्र सुखी, इन्द्र कहै सुखी है त्रिपुरारि।।  कबीर परमेश्वर जी ने कहा है:- तन धर सुखिया कोए ना देख्या, जो देख्या सो दुखिया हो।उदय अस्त की बात करत है, सबका किया विवेका हो।।टेक।। घाटै बाधै सब जग दुखिया, क्या गृही बैरागी हो। सुखदेव ने दुख के डर स

विष्णु जी का पिता की खोज के लिए जाना

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यथार्थ सृष्टि रचना || 7 विष्णु जी का पिता की खोज के लिए जाना इसके पश्चात् भवानी यानि प्रकृति देवी अपने बीच वाले पुत्र विष्णु के पास गई और कहा आप भी अपने पिता की खोज कर लो। विष्णु पिता की खोज हेतु चला और शेषनाग के लोक में पहुँच गया। शेषनाग ने किसी अन्य व्यक्ति को अपनी सीमा में आते देखकर उसको रोकने के लिए विष का फुंकारा मारा जिससे विष्णु जी का शरीर काला हो गया। अपना रंग बदला देखकर विष्णु जी ने उस साँप को मारने का उद्देश्य बनाया। काल ने आकाशवाणी की, हे विष्णु! इसको मत मार। इसका बदला द्वापर युग में लेना। यह कालीदह में नाग होगा। उस समय तुम (कृष्ण रूप में) अवतार धारण करोगे। आकाशवाणी सुनकर विष्णु जी शांत हो गए। आकाशवाणी में यह भी बताया कि परमात्मा के किसी कीमत पर दर्शन नहीं होंगे। आप जाकर अपनी माता से कह दो कि मुझे पिता के दर्शन नहीं हुए। यदि झूठ बोला तो तेरी भी ब्रह्मा वाली दशा होगी। विष्णु जी ने लौटकर माता जी से सत्य-सत्य कह दिया कि मुझे पिता के दर्शन नहीं हुए। विष्णु से सत्य-सत्य सुनकर दुर्गा देवी ने उन्हें गले से लगाया और कहा बेटा! तू सत्यवादी है। मैं तेरे को जिम्मेदारी का कार

विषय_वासना काल भगवान ने जब अपने इक्कीस ब्रह्माण्ड मे रचना करनें के लिये सत्तर युग तक एक पैर पर......

दुर्गा जी ने क्रोधवश तीनों को शाॅप दिया:-

कबीर जी ने कहा है कि पुत्र की मृत्यु का दुख माता को आजीवन बना रहता है:-

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यथार्थ सृष्टि रचना ||    कबीर जी ने कहा है कि पुत्र की मृत्यु का दुख माता को आजीवन बना रहता है:- कबीर, जीवै इतने माता रोवै, बहन रोवै दस मासा(महीने)। तेरह दिन तेरी त्रिया रोवै, फेर करै घरवासा।। माता होने के नाते देवी जी को आजीवन सर्व संतान की मृत्यु का कष्ट बना रहता है। तीनों प्रभुओं की पत्नियाँ भी अपने पतियों के साथ जन्मती-मरती रहती हैं। देवी दुर्गा पुनः नई सावित्राी, लक्ष्मी तथा पार्वती युवा वचन से उत्पन्न कर देती है। उनसे विवाह करवाती रहती है। पहले वाली आत्माऐं चैरासी लाख प्राणियों के जन्म-मरण के चक्र में चली जाती हैं। पुनः सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन शुरू करता हूँ:- काल ब्रह्म के अंतध्र्यान हो जाने के पश्चात् तीनों पुत्रों के युवा होने पर काल ने दुर्गा को आकाशवाणी कर बताया कि इन तीनों को सागरमंथन पर भेज दो। मैंने सर्व व्यवस्था कर दी है। तीनों पुत्रों ने अपनी माता जी से पूछा कि हमारे पिता कौन हैं? सृष्टि किसने रची है? हमारा क्या कार्य है? माता ने कहा कि मैं ही आपकी माता और पिता हूँ। मेरे अतिरिक्त कोई परमात्मा नही हैं। मैंने ही सृष्टि रची है। आपका कार्य बताती हूँ। आप सागरमंथन

प्रथम बार सागर मंथन तथा ब्रह्मा जी का पिता की खोज में जाना तथा माता से श्राप मिलना

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यथार्थ सृष्टि रचना || प्रथम बार सागर मंथन तथा ब्रह्मा जी का पिता की खोज में जाना तथा माता से श्राप मिलना जब काल ब्रह्म (ज्योति स्वरूप निरंजन) ने गुप्त (अव्यक्त) रहने की प्रतिज्ञा की तो भवानी (दुर्गा) जी ने कहा कि आप मेरे साथ रहो। मैं अकेली स्त्री  इतने बड़े साम्राज्य (21 ब्रह्माण्डों) को कैसे सम्भालूँगी? तब काल ब्रह्म ने कहा, हे भवानी! अदृश्य रूप से सर्व कार्य मैं करूँगा। आप मुझसे मिलती रहोगी, परंतु मैं तेरे अतिरिक्त किसी को दर्शन नहीं दूँगा। मेरा यह भेद किसी से न कहना। कारण है कि मैं (काल ब्रह्म) प्रतिदिन एक लाख मानव को खाया करूँगा, प्रतिदिन हाहाकार मचेगी, मेरे पुत्र, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव भी मेरे से घृणा करेंगे। यदि उनको सच्चाई का पता चल गया तो वे मेरा सहयोग नहीं देंगे। मेरे लोक (21 ब्रह्माण्डों का काल लोक है, इसे क्षर पुरूष का लोक भी कहते हैं) में कोई भी अमर नहीं हो सकता। तू और मैं (काल ब्रह्म) भी नष्ट होते रहेंगे, परंतु तेरा और मेरा किसी माता के संयोग से जन्म नहीं होगा। हम दोनों प्रत्येक महाप्रलय {एक ब्रह्माण्ड का विनाश उस समय होता है जब 70 हजार बार काल का पुत्र शिव मृ

ज्योति निरंजन का अध्या(दुर्गा) से भोग-विलास की इच्छा करना और दुर्गा जी का काल के उदर में शरण लेना‘‘

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#कबीरसागर_का_सरलार्थ यथार्थ सृष्टि रचना ||  ‘‘ज्योति निरंजन का अध्या(दुर्गा) से भोग-विलास की इच्छा करना और दुर्गा जी का काल के उदर में शरण लेना‘‘ परमेश्वर ने अपने पुत्र सहज दास जी से कहा कि तुम अपनी बहन को ज्योति निरंजन के पास छोड़कर आओ। उसको बताना कि इस कन्या को वे सब आत्माऐं दे दी हैं जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृति दी थी। यह भी बताना कि वे सर्व आत्माऐं बीज रूप में कन्या के शरीर में प्रवेश कर दी हैं। इस कन्या को शक्ति प्रदान कर दी है। जितने जीव तू चाहेगा, उतने ही प्राणी ये वचन से उत्पन्न कर देगी। सहज दास ने वैसा ही किया जो सत्य पुरूष जी का आदेश था। कन्या को उसके पास छोड़कर सहज दास जी अपने द्वीप में चले गए और परमेश्वर जी को सूचना दे आए कि जैसा आप जी का आदेश था, वैसा ही कर दिया है। नोट:- प्रिय पाठकों से निवेदन है कि मुझ दास द्वारा लिखी तथा बताई (सत्संग में) सृष्टि रचना यथार्थ है। इसके लिए निवेदन है कि आप जी कबीर सागर के ‘‘ज्ञान सागर‘‘ अध्याय में पृष्ठ 8,9 पर पढ़ेंगे कि सहज दास अपनी बहन प्रकृति देवी को ज्योति निरंजन के पास छोड़कर आया था, परंतु यहाँ काँट-छाँट के पश्चात् भी कु

यथार्थ सृष्टि रचना

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यथार्थ सृष्टि रचना Part -A परमेश्वर कबीर जी द्वारा बताया सृष्टि रचना का ज्ञान तथा उसमें कबीर पंथियों द्वारा की गई मिलावट या काँट-छाँट का प्रमाण देकर शुद्धिकरण किया है। अनुराग सागर के पृष्ठ 13 से सृष्टि रचना प्रारम्भ होती है। पृष्ठ 14 पर ऊपर से 14वी, 15वीं तथा 16वीं पंक्ति यानि नीचे से आठ पंक्तियों से पहले की तीन पंक्तियों में काल निरंजन की उत्पत्ति पूर्व के 16 पुत्रों के साथ लिखी है जो गलत है। ये तीनों वाणियाँ निम्न हैं पाँचवें शब्द जब पुरूष उचाराए काल निरंजन भौ औतारा।1 तेज अंग त्वै काल ह्नै आवाए ताते जीवन कह संतावा।2 जीवरा अंश पुरूष का आहीं। आदि अंत कोउ जानत नाहीं।3 ये तीनों वाणी गलत हैंए ये मिलाई गई हैं। इनसे ऊपर की वाणी में स्पष्ट है कि पाँचवें शब्द से तेज की उत्पत्ति हुई। फिर दोबारा यह लिखना कि पाँचवें शब्द से काल निरंजन उत्पन्न हुआ अपने आप में असत्य हपुराने तथा वास्तविक अनुराग सागर में सत्य लिखा था जो ज्ञानहीनों ने गलत कर दिया।  प्रमाण कबीर सागर के अध्याय कबीर बानी के पृष्ठ 98, 944 तथा 99 पर ज्योति निरंजन की उत्पत्ति अण्डे से बताई है जो अनुराग सागर में यह प्रकरण काटा ग

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परशुराम को किसने मारा?

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जीव धर्म बोध पृष्ठ 105 (2013) पर कुछ विशेष ज्ञान है:- परशुराम को किसने मारा? वाणी:- परसुराम तब द्विज कुल होई। परम शत्राु क्षत्राीन का सोई।। क्षत्राी मार निक्षत्राी कीन्हें। सब कर्म करें कमीने।। ताके गुण ब्राह्मण गावैं। विष्णु अवतार बता सराहवैं।। हनिवर द्वीप का राजा जोई। हनुमान का नाना सोई।। क्षत्राी चक्रवर्त नाम पदधारा। परसुराम को ताने मारा।। परशुराम का सब गुण गावैं। ताका नाश नहीं बतावैं।। भावार्थ:- ब्राह्मणों ने बहुत-सा मिथ्या प्रचार किया है। सच्चाई को छुपाया और झूठ को फैलाया है। जैसे परशुराम ब्राह्मण था। एक समय ब्राह्मणों और क्षत्रियों की लड़ाई हुई तो ब्राह्मण क्षत्रियों से हार गए। उसका बदला परशुराम ने लिया। लाखों क्षत्रियों को मार डाला। यहाँ तक प्रचार किया, परंतु यह नहीं बताया कि परशुराम को किसने मारा? परशुराम को हनुमान जी के नाना चक्रवर्त ने मारा था जो हनिवर द्वीप का राजा था। जो भक्ति शक्ति युक्त आत्माऐं होती हैं। वे ही अवतार रूप में जन्म लेती हैं। मृत्यु के उपरांत वे पुनः स्वर्ग स्थान पर चली जाती हैं। स्वर्ग के साथ पितर लोक भी है, उसमें निवास करती हैं। वहाँ से जब चाहें

गरूड़ वचन ब्रह्मा के प्रतिब्रह्मा कहा तुम कैसे आये। कहो गरूड़ मोहे अर्थाय।।

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गरूड़ वचन ब्रह्मा के प्रति ब्रह्मा कहा तुम कैसे आये। कहो गरूड़ मोहे अर्थाय।। तब हम कहा सुनों निरंजन पूता। आया तुम्हें जगावन सूता।। जन्म-मरण एक झंझट भारी। पूर्ण मोक्ष कराओ त्रिपुरारी।। ‘‘ब्रह्मा वचन‘‘ हमरा कोई नहीं जन्म दाता। केवल एक हमारी माता।। पिता हमारा निराकर जानी। हम हैं पूर्ण सारंगपाणी।। हमरा मरण कबहु नहीं होवै। कौन अज्ञान में पक्षि सोवै।। तबही ब्रह्मा विमान मंगावा। विष्णु, ब्रह्मा को तुरंत बुलावा।। गए विमान दोनों पासा। पल में आन विराजे पासा।। इन्द्र कुबेर वरूण बुलाए।  तेतिस करोड़ देवता आए।।आए ऋषि मुनी और नाथा। सिद्ध साधक सब आ जाता।। ब्रह्मा कहा गरूड़ नीन्द मैं बोलै। कोरी झूठ कुफर बहु तोलै।। कह कोई और है सिरजनहारा। जन्म-मरण बतावै हमारा।। ताते मैं यह मजलिस जोड़ी। गरूड़ के मन क्या बातां दौड़ी।। ऋषि मुनि अनुभव बताता। ब्रह्मा, विष्णु, शिव विधाता।। निर्गुण सरगुण येही बन जावै। कबहु नहीं मरण मैं आवै।। ‘‘विष्णु वचन‘‘ पक्षीराज यह क्या मन में आई। पाप लगै बना आलोचक भाई।। हमसे और कौन बडेरा दाता। हमहै कर्ता और चौथी माता।। तुमरी मति अज्ञान हरलीनि। हम हैं पूर्ण करतार तीनी।। ‘‘महादेव

कमाल बोध

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कमाल बोध  कबीर सागर में 34वां अध्याय कमाल बोध पृष्ठ 1 पर है। कबीर सागर में कमाल बोध अधिकतर गलत लिखा है। यथार्थ कमाल बोध:- किसी कबीले ने अपने 12 वर्षीय मृत लड़के का अंतिम संस्कार दरिया में जल प्रवाह करके कर दिया था। वह बहता हुआ जा रहा था। दिल्ली के राजा सिकंदर लोधी के गुरू शेखतकी को विश्वास दिलाने के लिए कबीर परमेश्वर जी ने उस मृत बालक को आशीर्वाद से जीवित कर दिया और कबीर जी ने अपने साथ रखा। (विस्तृत कथा पढ़ें इसी पुस्तक में ‘‘कबीर चरित्र बोध’’ के सारांश में पृष्ठ 541 से 542 पर।) मृत कमाल बालक को जीवित करना कबीर जी तथा राजा सिकंदर शेखतकी तथा सर्व सेना को लेकर दिल्ली को चल पड़े। रास्ते में एक दरिया के किनारे पड़ाव किया। सुबह उठकर स्नान आदि कर रहे थे। सिकंदर लोधी उठकर पीर शेखतकी के टैण्ट में गए। शेखतकी को सलाम वालेकम की। शेख ने कोई उत्तर नहीं दिया। कई बार कहने पर कहा कि अब आपको काफिर गुरू मिल गया है। मुसलमान गुरू की क्या आवश्यकता है? उसको अपने हाथी पर चढ़ाकर लाए हैं, अपने टैण्ट में रखा है। मैं दिल्ली जाकर मुसलमानों को बोल दूँगा कि राजा सिकंदर मुसलमान नहीं रहा, इसने हिन्दू धर्म स्वी

भोरहि उठि नित कर्म करीजै। करि तन शुद्ध भजन चित दीजै।।

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जीव धर्म बोध पृष्ठ 46(1954) पर:- मनुष्य को नित्य कर्म वर्णन-चैपाई भोरहि उठि नित कर्म करीजै। करि तन शुद्ध भजन चित दीजै।। प्रभु प्रति बिनय बचनते मांगे। महा दीन ह्नै ताके आगे।। मोर मनोरथ कर प्रभु पूरा। दीनबन्धु कीजै दुख दूरा।। सर्व समय तुहि जग करता। तेरो हुकुम सर्वपर बर्ता।। मोर उधार करो प्रभु सोई। विघ्न बिहाय कृपा तौ होई।। गुरू अचारजको निज टेरे। सदा सहायक अपनो हेरे।। बार बार कर प्रभु प्रति बिनती। यद्यपि सो न करे कछु गिनती।। कबहुके दाया प्रभुकी होई। दुःखदरिद्र सब डारे खोई।। लाभ-अलाभ एक सम गनिये। सदाकाल प्रभु गुनगन भनिये।। भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि भक्त को सुबह उठकर नित्य कर्म करना चाहिए। प्रथम वाणी में यानि पृष्ठ की वाणी नं. 12 में लिखा है कि:- भोर हि उठि नित कर्म करीजै। करि तन शुद्ध भजन चित दीजै।। सुबह उठते ही मंगलाचरण पढ़े। यदि याद है तो मौखिक मन-मन में या बोलकर उच्चारण करे। उसके पश्चात् निम्न शब्द बोले:- समर्थ साहेब रत्न उजागर। सतपुरूष मेरे सुख के सागर।। जूनी संकट मेटो गुसांई। चरण कमल की मैं बलि जांही।। भाव भक्ति दीजो प्रवाना। साधु संगति पूर्ण पद ज्ञाना।। जन्म