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Showing posts from June, 2021

दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

मोहम्मद बोध’’ 3

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 ‘‘मोहम्मद बोध’’  {सूक्ष्मवेद में लिखा है कि:- ‘‘मुसलमान बिस्तार बिल्ला का। नौज उदर घर संजम जाका।। जाके भोग मोहम्मद आया। जिसने यह धर्म चलाया।। कुछ महीने बाद अबदुल्ला जी कुछ व्यापारियों के साथ रोजगार के लिए गए तो बीमार होकर मृत्यु को प्राप्त हो गए। उस समय मोहम्मद जी माता के गर्भ में थे। बाद में मोहम्मद जी का जन्म हुआ। छः वर्ष के हुए तो माता जी अपने पति की कब्र देखने के लिए गाँव के कुछ स्त्राी-पुरूषों के साथ गई थी तो उनकी मृत्यु भी रास्ते में हो गई। नबी मोहम्मद अनाथ हो गए। दादा पालन-पोषण करने लगा। जब आठ वर्ष के हुए तो दादा की भी मृत्यु हो गई। पूर्ण रूप से अनाथ हो गए। जैसे-तैसे 25 वर्ष के हुए, तब एक 40 वर्ष की खदिजा नामक विधवा से विवाह हुआ। {खदिजा का दो बार बड़े धनवान घरानों में विवाह हुआ था। दोनों की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी सब संपत्ति खदिजा के पास ही थी। वह बहुत रईस थी।} खदिजा से मोहम्मद जी के तीन पुत्र (कासिम, तयब, ताहिर) तथा चार पुत्राी हुई। जिस समय मोहम्मद जी 40 वर्ष के हुए तो उनको जबरील नामक फरिश्ता मिला और कुरान शरीफ का ज्ञान देना प्रारम्भ किया। वे नबी बने। मुसलमानों

अध्याय 2------------‘‘मोहम्मद बोध

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अध्याय ‘‘मोहम्मद बोध’’ %%%%% 2 जब सत्यपुरूष आप आते हैं या अपना अंश भेजते हैं, तब सब मानव उनके द्वारा बताए गए सत्य ज्ञान को असत्य मानकर उनका घोर विरोध करते हैं। हे धर्मदास! आप यह प्रत्यक्ष देख भी रहे हो। आप भी तो काल के ज्ञान तथा साधना के ऊपर अडिग थे। ऐसे ही अनेकों श्रद्धालु काल प्रभु को दयाल, कृपावान प्रभु मानकर भक्ति कर रहे होते हैं। काल ब्रह्म भी परमात्मा की अच्छी-सच्ची निष्ठावान आत्माओं को अपना पैगम्बर बनाता है। बाबा आदम की संतान में 1 लाख 80 हजार पैगम्बर, हिन्दू धर्म के 88 हजार ऋषि तथा अन्य प्रचारक, ये अच्छी तथा सच्ची निष्ठा वाले थे जिनको काल ब्रह्म ने अपना प्रचारक बनाया। ऋषियों ने पवित्र वेदों, पवित्र श्रीमद्भगवत गीता तथा पुराणों के आधार से स्वयं भी साधना की तथा अपने अनुयाईयों को भी वही साधना करने को कहा। वेदों तथा गीता में ज्ञान तो श्रेष्ठ है, परंतु अधूरा है। पुराण जो सँख्या में 18 हैं, ये ऋषियों का अपना अनुभव तथा कुछ-कुछ वेद ज्ञान है तथा देवी-देवताओं की जीवनी लिखी है। चारों वेदों का ज्ञान काल ब्रह्म ने दिया। चारों वेदों का सारांश अर्थात् संक्षिप्त रूप श्रीमद्भवगत गीत

(मुसलमान धर्म की जानकारी). ‘‘मोहम्मद बोध‘‘

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‘‘मोहम्मद बोध’’  (मुसलमान धर्म की जानकारी) कबीर सागर में ‘‘मोहम्मद बोध‘‘ 14वां अध्याय पृष्ठ 6 पर है। धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से मुसलमान धर्म के प्रवर्तक हजरत मोहम्मद को ज्ञान समझाने के बारे में प्रश्न किया कि हे बन्दी छोड़! क्या आप नबी मोहम्मद से भी मिले थे? उसने आपकी शरण ली या नहीं? यह जानने की मेरी इच्छा है। आप सबके मालिक हैं, जानीजान हैं। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को मोहम्मद धर्म की जानकारी इस प्रकार दी:- (लेखक रामपाल दास के शब्दों में।) कबीर परमेश्वर जी ने अपनी प्यारी आत्मा धर्मदास जी को मुसलमान धर्म की जानकारी बताई जो इस प्रकार है। {पाठकों से निवेदन है कि कबीर सागर से बहुत सा प्रकरण कबीर पंथियों ने निकाल रखा है। कारण यह रहा है कि वे उस विवरण को समझ नहीं सके। उसको अपनी अल्पबुद्धि के अनुसार गलत मानकर निकाल दिया। मेरे पास एक बहुत पुराना कबीर सागर है। उसके आधार से तथा परमेश्वर कबीर जी ने अपने ज्ञान को संत गरीबदास जी को सन् 1727 (विक्रमी संवत् 1784) में प्रदान किया। संत गरीबदास जी उस समय 10 वर्ष के बालक थे। उनको कबीर परमेश्वर जी सत्यलोक लेकर गए। फिर वापिस छोड़ा। उ

चौरासी लाख प्रकार के जीवों से मानव देह उत्तम है‘‘

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‘‘चौरासी लाख प्रकार के जीवों से मानव देह उत्तम है‘‘ गीता अध्याय 13 श्लोक 22 में भी गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य परमात्मा का प्रत्यक्ष प्रमाण बताया है। गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित गीता में इस श्लोक का अर्थ बिल्कुल गलत किया है। यथार्थ अनुवाद :- जैसे पूर्व के श्लोकों में वर्णन आया है कि परमात्मा प्रत्येक जीव के साथ ऐसे रहता है, जैसे सूर्य प्रत्येक घड़े के जल में स्थित दिखाई देता है। उस जल को अपनी उष्णता दे रहा है। इसी प्रकार परमात्मा प्रत्येक जीव के हृदय कमल में ऐसे विद्यमान है जैसे सौर ऊर्जा सयन्त्र जहाँ भी लगा है तो वह सूर्य से उष्णता प्राप्त करके ऊर्जा संग्रह करता है। इसी प्रकार प्रत्येक है। उसको “परमात्मा” कहा जाता है। प्रश्न :- अक्षर का अर्थ अविनाशी होता है। आपने गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में भी अक्षर पुरूष को भी नाशवान बताया है, कृप्या स्पष्ट करें। उत्तर :- यह सत्य है कि “अक्षर” का अर्थ अविनाशी होता है, परन्तु प्रकरणवश अर्थ अन्य भी होता है। गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में कहा है कि क्षर और अक्षर ये पुरूष (प्रभु) इस लोक में है, ये दोनों तथा इनके अन्तर्गत जितने जीव हैं, वे

परमात्मा मार-मारके खीरभी खिलाते है

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परमात्मा मार-मारके खीरभी खिलाते है *कबीर साहेब द्वारा मलूक दास जी को अपनी शरण में लेना।*   *आज से लगभग 600 वर्ष पहले एक गांव में मलूकराम नाम का चौधरी रहता था। उस समय गाँव में डाकूओं का आतंक था। वे लोग धन के लिए किसी की भी हत्या कर दिया करते थे।* *जिस गाँव में मलूकराम नाम का चौधरी रहता था, उस गांव में कबीर साहेब जी हर सप्ताह घर-घर जाकर सत्संग किया करते थे और वहीं भंडारा करते थे। यह सब देख कर गाँव के 5-10 लोगों ने चौधरी मलूकराम को शिकायत किया कि एक कबीर नाम का ठग सत्संग के नाम पर गांव के लोगों को लूटता है और जिनके यहां सत्संग करता है, वहाँ तरह तरह के पकवान खाता है। यह सुनकर मलूकराम, कबीर साहेब को गाँव से निकालने के लिए सत्संग स्थल पर गया और वहाँ जाकर कबीर साहेब को काफी भला-बुरा कहा और कहा कि आप भोले भाले लोगों को लूटते हो, खुद काम करके अपना पेट नहीं भर सकते? कबीर साहेब ने जवाब दिया कि मेरा परमात्मा बैठे-बैठे ही मुझे खाना खिलाता है, हम तो बस भजन करते हैं। मलूकराम चौधरी ने कहा कि परमात्मा बैठे-बैठे हमें क्यों नहीं खिलाता तो कबीर साहेब ने कहा कि आपको परमात्मा पर विश्वास नहीं है।* *यह सुनकर

हज़ारों सदियों पहले पच्छम जब अंधकार में गर्क था तो भारत

मैं इतिहास इतना अच्छे से तो नहीं जनता किन्तु अपने धर्म को समझने का प्रयत्न जरूर करता हूँ क्योंकि हमारे धर्म में उन सभी प्रत्येक प्रश्नो के उत्तर हमें प्रमाण सहित मिलते हैं... जानता  हूँ पोस्ट थोड़ी लम्बी है अगर मन हो तो पढ़ें वरना कोई बात नहीं खुश रहें स्वस्थ रहे मस्त रहें🙏🏻 हज़ारों सदियों पहले पच्छम जब अंधकार में गर्क था तो भारत के ऋषियों ने नाड़ी दोष ढूंढ लिया था और उसे गोत्र के रूप में विभाजित करके संसार को उत्तम ज्ञान दिया था, जिसे आज का आधुनिक चिकित्सा शास्त्र "Chromosome Theory" (क्रोमोसोम थ्योरी) कहता है, आईये जानते हैं इस क्रोमोसोम थ्योरी को जो की हमारे ही वैदिक नाड़ी दोष से लिया गया है......  क्या आपको पता है पुत्री को अपने  पिता  का गोत्र , क्यों नही प्राप्त  होता ?    आइये वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझते हैं हम आप सब जानते हैं कि स्त्री में गुणसूत्र xx और पुरुष में xy गुणसूत्र होते हैं ।  इनकी सन्तति में माना कि पुत्र हुआ (xy गुणसूत्र) अर्थात इस पुत्र में y गुणसूत्र पिता से ही आया यह तो निश्चित ही है क्योंकि माता में तो y गुणसूत्र होता ही नही है ! और यदि पुत्री हुई तो

गीता के अध्याय 13 श्लोक 14 में भी स्पष्ट है कि गीता ज्ञान दाता अपने से अन्य परमात्मा का ज्ञान करा रहा है। कहा है :- सम्पूर्ण इन्द्रियों के विषयों को जानने वाला अर्थात् अन्तर्यामी

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गीता के अध्याय 13 श्लोक 14 में भी स्पष्ट है कि गीता ज्ञान दाता अपने से अन्य परमात्मा का ज्ञान करा रहा है। कहा है :- सम्पूर्ण इन्द्रियों के विषयों को जानने वाला अर्थात् अन्तर्यामी है। सब इन्द्रियों से रहित है अर्थात् परमात्मा की इन्द्रियाँ हम मानव तथा अन्य प्राणियों जैसी विकारग्रस्त नहीं है। वह परमात्मा आसक्ति रहित है अर्थात् वह इस काल लोक (इक्कीस ब्रह्माण्डों) की किसी वस्तु-पदार्थ में आसक्ति नहीं रखता क्योंकि उस परमेश्वर का सत्यलोक इस काल के क्षेत्र से असख्यों गुणा उत्तम है। इसलिए वह परमात्मा आसक्ति रहित कहा है। वही सबका धारण-पोषण करने वाला है। यही प्रमाण गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में भी है। वह परमात्मा निर्गुण है, परंतु सगुण होकर ही अपना महत्त्व दिखाता है। उदाहरण के लिए :- जैसे आम का पेड़ आम के बीज (गुठली) में निर्गुण अवस्था में होता है। उस बीज को जब बीजा जाता है, तब वह पौधा फिर पेड़ रूप में सर्गुण होकर अपना महत्त्व प्रकट करता है। परन्तु परमात्मा सत्यलोक में सर्गुण रूप में बैठा है क्योंकि परमात्मा ने अपने वचन शक्ति से सर्व सृष्टि रचकर विधान बनाकर छोड़ दिया। उस परमात्मा के वि

(जगन्नाथ मंदिर की पुरी (उड़ीसा) में स्थापना‘‘ )@@@###@@#@#@#@# जिस समय दुर्वासा ऋषि के शॉप से 56 करोड़ यादव आपस में लड़कर गए। कुछ शेष बचे थे, वे श्री कृष्ण जी ने मूसलों से

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‘‘जगन्नाथ मंदिर की पुरी (उड़ीसा) में स्थापना‘‘  जिस समय दुर्वासा ऋषि के शॉप से 56 करोड़ यादव आपस में लड़कर गए। कुछ शेष बचे थे, वे श्री कृष्ण जी ने मूसलों से मार डाले। बलभद्र (बलराम) शेष नाग का अवतार था। मृत्यु के पश्चात् सर्प रूप बनाकर यमुना नदी में प्रवेश कर गया। श्री कृष्ण जी वृक्ष के नीचे विश्राम करने के लिए लेट गए। एक बालीया नाम के भील शिकारी ने श्री कृष्ण के पैर में लगे पदम को हिरण की आँख जानकर वृक्ष की झुरमटों के अंदर से विषाक्त तीर मार दिया। जिस कारण श्री कृष्ण जी की मृत्यु हुई। मृत्यु से पहले श्री कृष्ण जी से उस शिकारी ने क्षमा याचना की तथा कहा हे राजन! मेरे से धोखे से तीर लग गया। मैंने जान-बूझकर नहीं मारा। श्री कृष्ण जी ने कहा कि यह तेरा और मेरा पिछले जन्म का बदला था, सो आपने पूरा कर लिया। आप त्रोतायुग में सुग्रीव के भाई बाली थे। उस समय मैं रामचन्द्र रूप में जन्मा था। मैंने आपको वृक्ष की ओट लेकर मारा था। आज आपने मुझे वृक्ष की ओट से ही मारा है। मैं कुछ समय का मेहमान हूँ। एक कार्य कर दे, मेरे रिश्तेदार पाण्डवों को संदेशा भेज दो कि यादव आपस में लड़कर मर रहे हैं, शीघ्र

ज्ञानी की विशेषता"

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"ज्ञानी की विशेषता" ज्ञानी वह होता है जिसने जान लिया है कि मनुष्य जीवन केवल मोक्ष प्राप्ति के लिए ही प्राप्त होता है। उसको यह भी ज्ञान होता है कि पूर्ण मोक्ष के लिए केवल एक परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए। अन्य देवताओं (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिवजी) की भक्ति से पूर्ण मोक्ष नहीं होता। उन ज्ञानी आत्माओं को गीता अध्याय 4 श्लोक 34 तथा यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 10 में वर्णित तत्त्वदर्शी सन्त न मिलने के कारण उन्होंने वेदों से स्वयं निष्कर्ष निकाल लिया कि ‘‘ब्रह्म’’ समर्थ परमात्मा है, ओम् (ऊँ) इसकी भक्ति का मन्त्र है। इस साधना से ब्रह्मलोक प्राप्त हो जाता है। यही मोक्ष है। ज्ञानी आत्माओं ने परमात्मा प्राप्ति के लिए हठयोग किया। एक स्थान पर बैठकर घोर तप किया तथा ओम् (ऊँ) नाम का जाप किया। जबकि वेदों व गीता में हठ करने, घोर तप करने वाले मूर्ख दम्भी तथा राक्षस बताए हैं। (गीता अध्याय 3 श्लोक 4 से 9 तथा गीता अध्याय 17 श्लोक 1 से 6)। इनको हठयोग करने की प्रेरणा कहाँ से हुई? श्री देवीपुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित सचित्र मोटा टाईप) के तीसरे स्कंद में लिखा

हनुमान जी ने कहा ऋषि जी! समुद्र पर पुल बनाना क्या आम आदमी का कार्य है? यह परमात्मा बिना नहीं बनाया जा सकता।

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काल ने अपने दूसरे पुत्र विष्णु को कर्मानुसार पालन करने का विभाग दिया है, विष्णु सतगुण है। काल ने तीसरे पुत्र शिव तमगुण को इन एक लाख मानव शरीरधारी जीवों को मारकर उसके पास भेजने का विभाग दे रखा है। वह स्वयं अव्यक्त (गुप्त) रहता है। आप देख रहे हो, यहाँ कोई भी जीव अमर नहीं है, देवता भी मरते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शिव भी जन्मते-मरते हैं। जो पूरी आयु जीते हैं, वृद्धावस्था भी सब में आती है। एक लोक ऐसा है जहाँ पर वृद्धावस्था तथा मरण नहीं है। वहाँ कोई रावण किसी की पत्नी का अपहरण नहीं करता। आपकी आँखों के सामने लंका में हुए राम-रावण युद्ध में कितने व्यक्ति तथा अन्य प्राणी मारे गए। एक सीता को छुड़ाने के लिए। आपने श्री रामचन्द्र जी के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाकर लंका को जलाया। रावण का भाई अहिरावण जो पाताल का राजा था। वह राम तथा लक्ष्मण का अपहरण करके ले गया। उनकी बली देने वाला था। आप वहाँ गए और उन दोनों को जीवित लाए। आप ही बताऐं, वे परमात्मा हैं। जिस समय नाग फांस शस्त्र के छोड़ने से सर्पों ने श्री राम तथा आप तथा सर्व सेना व लक्ष्मण तक बाँध दिया था। सर्प आप सबको जकड़े हुए थे। आप सब विवश थे

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.                              वाणी     जिसके लगजा चोट शब्द की, क्या दुनिया में जीणा।        बेईमान  ठग  चोर  बतावे,  कहै  अकल  का  हिना।     धन माया  का गर्व  न  करिये, ये माया जग ठगणी।     बड़े बड़े सेठ जोड़ मर गए, मत ना समझो अपणी।     तीन  पांच  तै प्यार  तोड़ के, सतगुरु माला जपणी।     स्वांस स्वांस में जपा कर, तुम खैच नाम की जतणी।     सतगुरु जी  के  भजन बिना, तनै के दुनिया में लेणा।     ढलती  फिरती  छाया  हो  सै ,  मुर्ख  क्यों   गर्भाये।     बड़े बड़े बली हुए दुनिया में, सब कालबली ने खाये।     नारद जी  ने तप  किया, कहे  कामदेव  जीत  आये।     मन  पापी  ने डोब  दिया, मुख  बन्दर  का  करवाये।     धर्मराज तेरा लेखा लेगा, तनै पकड़  कैद  कर दैणा।     आवेगा  दिन  नहीं  टलेगा,  तेरा  मरके पिण्डा छूटै।     अग्नि  बीच  जले  तेरी  काया, घड़ा  पाप  का  फूटै।     जिसने भजन किया सतगुरु का,वो रंग आनंद से लूटै।     राम नाम  की टिकट  बिना, तनै  काल  शिकारी  कूटै।     बिन सतगुरु के भजन बिना, तेरा उजड़े बाग़ लखीणा।     सदा किसी की बनी रहे ना, योही जगत का नाता।     इस माटी का कलभूत देखकर, मूर्ख क्यों गर्भाता।  

सीता जी ने विनय भी की कि हे स्वामी! आपने मेरी अग्नि परीक्षा भी ली थी। मैं भी आत्मा से कहती हूँ, रावण ने मेरे साथ मिलन नहीं किया।

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अगले दिन रामचन्द्र जी ने सभा बुलाई तथा नगरी में चल रही चर्चा के विषय में बताया और कहा कि यह चर्चा तब बंद हो सकती है, जब मैं सीता को घर से निकाल दूँगा। उसी समय सीता जी को सभा में बुलाया गया तथा घर से निकलने का आदेश दे दिया। कारण भी बता दिया। सीता जी ने विनय भी की कि हे स्वामी! आपने मेरी अग्नि परीक्षा भी ली थी। मैं भी आत्मा से कहती हूँ, रावण ने मेरे साथ मिलन नहीं किया। कारण था कि उसको एक ऋषि का शाॅप था कि यदि तू किसी परस्त्राी से बलात्कार करेगा तो तेरी उसी समय मृत्यु हो जाएगी। यदि परस्त्राी की सहमति से मिलन करेगा तो ऐसा नहीं होगा। जिस कारण से रावण मुझे छू भी नहीं सका मिलन के लिए। हे प्रभु! मैं गर्भवती हूँ। ऐसी स्थिति में कहाँ जाऊँगी? रावण जैसे व्यक्तियों का अभाव नहीं है। रामचन्द्र जी आदेश देकर सभा छोड़कर चले गए। कहते गए कि मैं निंदा का पात्रा नहीं बनना चाहता। मेरे कुल को दाग लगेगा। सीता जी को धरती भी पैरों से खिसकती नजर आई। आसमान में अँधेरा छाया दिखाई दिया। संसार में कुछ दिनों का जीवन शेष लगा।  सीता अयोध्या छोड़कर चल पड़ी। मुड़-मुड़कर अपने राम को तथा उसके महलों को देखने की कोशिश क

कबीर, कह मेरे हंस को, दुःख ना दीजे कोय।संत दुःखाए मैं दुःखी, मेरा आपा भी दुःखी होय।।पहुँचुँगा छन एक मैं, जन अपने के हेत।

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{परमेश्वर कबीर जी की प्राप्ति के पश्चात् संत गरीबदास जी (गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर, हरियाणा प्रान्त) ने परमेश्वर कबीर जी की महिमा बताई है। कबीर जी ने बताया है कि:- कबीर, कह मेरे हंस को, दुःख ना दीजे  संत दुःखाए मैं दुःखी, मेरा आपा भी दुःखी होय।। पहुँचुँगा छन एक मैं, जन अपने के हेत। तेतीस कोटि की बंध छुटाई, रावण मारा खेत।। जो मेरे संत को दुःखी करैं, वाका खोऊँ वंश। हिरणाकुश उदर विदारिया, मैं ही मारा कंस।। राम-कृष्ण कबीर के शहजादे, भक्ति हेत भये प्यादे।।} लंका का राज्य रावण के छोटे भ्राता विभीषण को दिया। सीता की अग्नि परीक्षा श्री राम ने ली। यदि रावण ने सीता मिलन किया है तो अग्नि में जलकर मर जाएगी। यदि सीता पाक साफ है तो अग्नि में नहीं जलेगी। सीता जी अग्नि में नहीं जली। उपस्थित लाखों व्यक्तियों ने सीता माता की जय बुलाई। सीता सती की पदवी पाई। रावण का वध आसौज मास की शुक्ल पक्ष की दसवीं को हुआ था। रावण वध के 20 दिन बाद 14 वर्ष की वनवास अवधि पूरी करके श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या नगरी में आए। उस दिन कार्तिक मास की अमावस्या थी। उस काली अमावस्या को गाय के घी

श्री रामचन्द्र जी को हनुमान जी ने सीता जी की निशानी कंगन दिया तथा जो-जो बातें माता सीता ने कही थी, वे सब बताई। श्री रामचन्द्र जी कंगन देखकर भावुक हो ......

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‘‘कबीर सागर’’ से अध्याय ‘‘हनुमान बोध’’ क श्री रामचन्द्र जी को हनुमान जी ने सीता जी की निशानी कंगन दिया तथा जो-जो बातें माता सीता ने कही थी, वे सब बताई। श्री रामचन्द्र जी कंगन देखकर भावुक हो गए। हनुमान जी को सीने से लगाया। कहा, हे संतजन! मैं आपका अहसान कैसे चुका पाऊँगा? आपने अपना जीवन जोखिम में डालकर मेरा महा कठिन कार्य किया है। यह कंगन सीता का ही है। अब सभा बुलाता हूँ। आगे का कार्यक्रम तैयार करते हैं। समुद्र पर पुल बनाने का विचार किया गया। नल-नील के हाथों में ऋषि मुनीन्द्र के आशीर्वाद से शक्ति थी कि वे अपने हाथों से जल में कोई वस्तु डाल देते तो वह डूबती नहीं थी। पत्थर, कांसी के बर्तन आदि जो भी वस्तु वे डालते, वह जल पर तैरती थी। उस समय नल-नील ने अभिमान करके अपनी महिमा की इच्छा से अपने गुरू ऋषि मुनीन्द्र का नाम नहीं लिया। जिस कारण से उनकी वह शक्ति समाप्त हो गई। रामचन्द्र जी तथा सर्व उपस्थित योद्धा हनुमान सहित महादुःखी हुए। तीन दिन तक श्री राम घुटनों पानी में खड़ा रहा। रास्ता देने की प्रार्थना करता रहा, परंतु समुद्र टस से मस नहीं हुआ। तब श्री राम ने लक्ष्मण से कहा कि मेरा अग्नि बाण निकाल,

कबीर सागर के पृष्ठ 113 पर 12वां अध्याय ‘‘हनुमान बोध‘‘ है।कबीर सागर के इस अध्याय में पवन सुत हनुमान जी को शरण में लेने का प्रकरण है।

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कबीर सागर के पृष्ठ 113 पर 12वां अध्याय ‘‘हनुमान बोध‘‘ है।कबीर सागर के इस अध्याय में पवन सुत हनुमान जी को शरण में लेने का प्रकरण है। धर्मदास जी ने प्रश्न किया कि हे परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी! क्या आप अच्छी आत्मा पवन पुत्र हनुमान जी को भी मिले हो। उत्तर (परमेश्वर कबीर जी का)= हाँ। प्रश्न (धर्मदास जी का):- हे प्रभु! क्या उन्होंने भी आपके ज्ञान को स्वीकारा? वे तो मेरे की तरह श्री राम उर्फ विष्णु जी में अटूट श्रद्धा रखते थे। उनको आपकी शरण में लेना तो सूर्य पश्चिम से उदय करने के समान है। उत्तर (परमेश्वर कबीर जी का):- परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास को पवन तनय हनुमान जी को शरण में लेने का वृतांत बताया। आप जी पढ़ें सरलार्थकर्ता (रामपाल दास) द्वारा हनुमान जी को कैसे परमेश्वर कबीर जी ने शरण में लिया तथा रामायण का संक्षिप्त वर्णन:- रामायण ग्रन्थ में प्रकरण आता है कि एक बाली नाम का राजा था। उसका भाई सुग्रीव था। किसी कारण से बाली ने अपने भाई सुग्रीव को अपने राज्य से निकाल दिया। उसकी पत्नी को अपने कब्जे में पत्नी बनाकर रखा। सुग्रीव दूर देश में मायूस भ्रमण कर रहा था। हनुमान जी राम-राम करते हु

धर्मदास जी ने उस महात्मा से पूछा परमात्मा कैसा है? उत्तर मिला-निराकार है। उस निराकार परमात्मा का कोई नाम है?

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धर्मदास जी ने उस महात्मा से पूछा परमात्मा कैसा है?  उत्तर मिला-निराकार है। उस निराकार परमात्मा का कोई नाम है? धर्मदास ने पूछा। उत्तर विद्वान का :- उसका नाम ब्रह्म है। क्या परमात्मा को देखा जा सकता है, धर्मदास जी ने प्रश्न किया? उत्तर मिला परमात्मा निराकार है, उसको कैसे देख सकते हैं। केवल परमात्मा का प्रकाश देखा जा सकता है। प्रश्नः- क्या श्री कृष्ण या विष्णु परमात्मा हैं? उत्तर था कि ये तो सर्गुण देवता हैं, परमात्मा निर्गुण है। गीता और वेद के ज्ञान में क्या अन्तर है? धर्मदास ने प्रश्न किया। ब्राह्मण का उत्तर था कि गीता चारों वेदों का सारांश है। धर्मदास जी ने पूछा कि भक्ति मन्त्र कौन सा है? उत्तर ब्राह्मण का था कि गायत्री मन्त्र का जाप करो = ओम् भूर्भवस्वः तत् सवितुः वरेणियम भृगोदेवस्य धीमहि, धीयो यो नः प्रचोदयात्’’  धर्मदास जी को जिन्दा बाबा ने बताया था कि इस मन्त्र से मोक्ष सम्भव नहीं। धर्मदास जी फिर आगे चला तो पता चला कि सन्त गुफा में रहता है। कई-कई दिन तक गुफा से नहीं निकलता है। उसके पास जाकर प्रश्न किया कि भगवान कैसे मिलता है? उत्तर मिला कि इन्द्रियों पर संयम रखो, इसी से

गरूड़ वचन ब्रह्मा के प्रतिब्रह्मा कहा तुम कैसे आये। कहो गरूड़ मोहे अर्थाय।।तब हम कहा सुनों निरंजन पूता। आया तुम्हें जगावन सूता।।जन्म-मरण एक झंझट भारी। पूर्ण मोक्ष कराओ त्रिपुरारी

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गरूड़ वचन ब्रह्मा के प्रति ब्रह्मा कहा तुम कैसे आये। कहो गरूड़ मोहे अर्थाय।। तब हम कहा सुनों निरंजन पूता। आया तुम्हें जगावन सूता।। जन्म-मरण एक झंझट भारी। पूर्ण मोक्ष कराओ त्रिपुरारी।। ‘‘ब्रह्मा वचन‘‘ हमरा कोई नहीं जन्म दाता। केवल एक हमारी माता।। पिता हमारा निराकर जानी। हम हैं पूर्ण सारंगपाणी।। हमरा मरण कबहु नहीं होवै। कौन अज्ञान में पक्षि सोवै।। तबही ब्रह्मा विमान मंगावा। विष्णु, ब्रह्मा को तुरंत बुलावा।। गए विमान दोनों पासा। पल में आन विराजे पासा।। इन्द्र कुबेर वरूण बुलाए।  तेतिस करोड़ देवता आए।।आए ऋषि मुनी और नाथा। सिद्ध साधक सब आ जाता।। ब्रह्मा कहा गरूड़ नीन्द मैं बोलै। कोरी झूठ कुफर बहु तोलै।। कह कोई और है सिरजनहारा। जन्म-मरण बतावै हमारा।। ताते मैं यह मजलिस जोड़ी। गरूड़ के मन क्या बातां दौड़ी।। ऋषि मुनि अनुभव बताता। ब्रह्मा, विष्णु, शिव विधाता।। निर्गुण सरगुण येही बन जावै। कबहु नहीं मरण मैं आवै।। ‘‘विष्णु वचन‘‘ पक्षीराज यह क्या मन में आई। पाप लगै बना आलोचक भाई।। हमसे और कौन बडेरा दाता। हमहै कर्ता और चौथी माता।। तुमरी मति अज्ञान हरलीनि। हम हैं पूर्ण करतार तीनी।। ‘‘महादेव