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Showing posts from May, 2022

दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

व्रत करना गीता अनुसार कैसा है

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प्रश्न 29:- (परमेश्वर जी का) फिर आप जी तो उस किसान के पुत्र वाला ही कार्य कर रहे हो जो पिता की आज्ञा की अवहेलना करके मनमानी विधि से गलत बीज गलत समय पर फसल बीजकर मूर्खता का प्रमाण दे रहा है। जिसे आपने मूर्ख कहा है। क्या आप जी उस किसान के मूर्ख पुत्र से कम हैं? धर्मदास जी बोले: हे जिन्दा! आप मुसलमान फकीर हैं। इसलिए हमारे हिन्दू धर्म की भक्ति क्रिया व मन्त्रों को गलत कह रहे हो। उत्तर: (कबीर जी का जिन्दा रुप में) हे स्वामी धर्मदास जी! मैं कुछ नहीं कह रहा, आपके धर्मग्रन्थ कह रहे हैं कि आप के धर्म के धर्मगुरु आप जी को शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण करा रहे हैं जो आपकी गीता के अध्याय 16 श्लोक 23-24 में भी कहा है कि हे अर्जुन! जो साधक शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण करता है अर्थात् मनमाने मन्त्र जाप करता है, मनमाने श्राद्ध कर्म व पिण्डोदक कर्म व व्रत आदि करता है, उसको न तो कोई सिद्धि प्राप्त हो सकती, न सुख ही प्राप्त होगा और न गति अर्थात् मुक्ति मिलेगी, इसलिए व्यर्थ है। गीता अध्याय 16 श्लोक 24 में कहा है कि इससे तेरे लिए कत्र्तव्य अर्थात् जो भक्ति कर्म करने चाहिए तथा अकत्र्तव्य (जो भक्ति

परमात्मा चारों युगों में प्रकट होकर ज्ञान सुनाते हैं।

प्रश्न 24: किन-किन पुण्यात्मा महात्माओं को (परमात्मा) परम अक्षर ब्रह्म मिले हैं? उत्तर: परमात्मा चारों युगों में प्रकट होकर ज्ञान सुनाते हैं। 1. सतयुग में ‘‘सत्यसुकृत’’ नाम से, 2. त्रेता युग में ‘‘मुनीन्द्र’’ नाम से, 3. द्वापर युग में ‘‘करुणामय’’ नाम से, 4. कलयुग में ‘‘कबीर’’ नाम से परमेश्वर प्रकट हुए हैं। सू़क्ष्म वेद में कहा है:- सतयुग में सतसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिन्द्र मेरा।। द्वापर में करुणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया।। ‘‘परम अक्षर ब्रह्म कौन है तथा किस-किसको मिला परमात्मा‘‘ कलयुग में परमेश्वर जिन-जिन महान आत्माओं को मिले, उनको तत्वज्ञान बताया, उनका मैं संक्षिप्त वर्णन करता हूँ:- ‘‘सन्त धर्मदास जी से परमेश्वर कबीर जी का साक्षात्कार’’ श्री धर्मदास जी बनिया जाति से थे जो बाँधवगढ़ (मध्य प्रदेश) के रहने वाले बहुत धनी व्यक्ति थे। उनको भक्ति की प्रेरणा बचपन से ही थी। जिस कारण से एक रुपदास नाम के वैष्णव सन्त को गुरु धारण कर रखा था। हिन्दू धर्म में जन्म होने के कारण सन्त रुपदास जी, श्री धर्मदास जी को राम कृष्ण, विष्णु तथा शंकर जी की भक्ति करने को कहते थे। एकादशी का व्रत, तीर्थों प

:- परमात्मा साकार है या निराकार?

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प्रश्न 22: जो साधना हम पहले कर रहे हैं, क्या वह त्यागनी पड़ेगी? उत्तर: यदि शास्त्राविधि रहित है तो त्यागनी पड़ेगी। यदि अनाधिकारी से दीक्षा ले रखी है, उसका कोई लाभ नहीं होना। पूर्ण गुरु से साधना की दीक्षा लेनी पड़ेगी। प्रश्न 23:- परमात्मा साकार है या निराकार? उत्तर:- परमात्मा साकार है, नर स्वरुप है अर्थात् मनुष्य जैसे आकार का है। अव्यक्त का अर्थ निराकार नहीं होता, साकार होता है। उदाहरण के लिए जैसा सूर्य के सामने बादल छा जाते हैं, उस समय सूर्य अव्यक्त होता है। हमें भले ही दिखाई नहीं देता, परन्तु सूर्य अव्यक्त है, साकार है। जो प्रभु हमें सामान्य साधना से दिखाई नहीं देते, वे अव्यक्त कहे जाते हैं। जैसे गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में गीता ज्ञान दाता ने अपने आपको अव्यक्त कहा है क्योंकि वह श्री कृष्ण में प्रवेश करके बोल रहा था। जब व्यक्त हुआ तो विराट रुप दिखाया था। यह पहला अव्यक्त प्रभु हुआ जो क्षर पुरुष कहलाता है। जिसे काल भी कहते है। गीता अध्याय 8 श्लोक 17 से 19 तक दूसरा अव्यक्त अक्षर पुरुष है। गीता अध्याय 8 श्लोक 20 में कहा है कि इस अव्यक्त अर्थात् अक्षर पुरुष से दूसरा सनातन अव्यक्त परमेश्वर अर

श्री कृष्ण जी की मृत्यु कैसे हुई

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श्री कृष्ण जी का अंत महा दुःखमय रहा श्री कृष्ण जी की आँखों के सामने उनका सारा यादव कुल, उनके बेटे, पोते आदि-आदि आपस में लड़ाई करके कट मरे। श्री कृष्ण उनको बचा नहीं सका। श्री कृष्ण जी की हत्या (murder) एक शिकारी ने की। क्या यही लक्षण हैं समर्थ प्रभु के? पेश है सम्पूर्ण कथा जो इस प्रकार है:- कथा:- दुर्वासा ऋषि ने कृष्ण समेत छप्पन करोड़ यादवों को श्राप देकर मार डाला एक समय दुर्वासा ऋषि द्वारिका नगरी के पास वन में आकर ठहरा। धूना अग्नि लगाकर तपस्या करने लगा। दुर्वासा ऋषि श्री कृष्ण जी के आध्यात्मिक गुरू थे {ऋषि संदीपनी श्री कृष्ण के अक्षर ज्ञान करवाने वाले शिक्षक (गुरू) थे।} दुर्वासा जी की ख्याति चारों ओर द्वारका नगरी में फैल गई कि ऐसे पहुँचे हुए ऋषि हैं। भूत, भविष्य तथा वर्तमान की सब जानते हैं। द्वारिका के निवासी श्री कृष्ण से अधिक शक्तिशाली किसी भी ऋषि व देव को नहीं मानते थे। उनको अभिमान था कि हमारे साथ श्री कृष्ण हैं। कोई भी देव, ऋषि व साधु हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। श्री कृष्ण को सर्वशक्तिमान मान रखा था। द्वारिका के नौजवानों को शरारत सूझी। आपस में विचार किया कि साधु लोग ढोंगी

कबीर साहेब को सरसों के गर्म तेल के कड़ाहे में डालना

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कबीर साहेब को सरसों के गर्म तेल के कड़ाहे में डालना अब शेखतकी ने देखा कि कबीर साहेब जी की तो और अधिक महिमा हो गई। वह फिर साहेब को किसी न किसी प्रकार नीचा दिखाने की योजना बनाने लगा। इतनी लीला देखकर भी शेखतकी नीच की आँखें नहीं खुली। परमात्मा सामने थे, परन्तु मान-बड़ाई वश स्वीकार नहीं कर रहा था। कुछ दिनों पश्चात् फिर शेखतकी ने मुसलमानों को इक्कट्ठे किया और कहा कि यह कबीर कोई जादूगर है। हम इसकी एक और परीक्षा लेंगे। हजारों की संख्या में मुसलमान शेखतकी के साथ राजा सिकंदर के पास गए तथा कहा कि हम इस कबीर को उबलते सरसों के तेल के कड़ाहे में डालेंगे। यदि यह नहीं मरा तो हम इसको भगवान मान लेंगे। सिकंदर लौधी घबरा गया कि कहीं ये मेरे राज को न पलट दें। कबीर साहेब के पास गया और प्रार्थना की कि महाराज जी मैं आपको यहाँ पर लाया तो था सेवा करने के लिए। लेकिन मैंने तो आपको दुःखी कर दिया दाता। कबीर साहेब ने पूछा कि क्या बात है राजन्? सिकंदर लौधी ने कहा कि साहेब आप तो जानीजान हो, शेखतकी ऐसे-ऐसे कह रहा है। कबीर साहेब जी बोले राजन् कोई बात नहीं, इन्होंने तो मुझे खत्म करना ही है। आज नहीं तो कल करेंगे।

शेखतकी की मृत लड़की कमाली को जीवित करना

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शेखतकी की मृत लड़की कमाली को जीवित करना शेखतकी ने देखा कि यह कबीर तो किसी प्रकार भी काबू नहीं आ रहा है। तब शेखतकी ने जनता से कहा कि यह कबीर तो जादूगर है। ऐसे ही जन्त्र-मन्त्र दिखाकर इसने बादशाह सिकंदर की बुद्धि भ्रष्ट कर रखी है। सारे मुसलमानों से कहा कि तुम मेरा साथ दो, वरना बात बिगड़ जाएगी। भोले मुसलमानों ने कहा पीर जी हम तेरे साथ हैं, जैसे तू कहेगा ऐसे ही करेंगे। शेखतकी ने कहा इस कबीर को तब प्रभु मानेंगे जब मेरी लड़की को जीवित कर देगा जो कब्र में दबी हुई है। पूज्य कबीर साहेब से प्रार्थना हुई। कबीर साहेब ने सोचा यह नादान आत्मा ऐसे ही मान जाए। {क्योंकि ये सभी जीवात्माऐं कबीर साहेब के बच्चे हैं। यह तो काल ने (मजहब) धर्म का हमारे ऊपर कवर चढ़ा रखा है। एक-दूसरे के दुश्मन बना रखे हैं।} शेखतकी की लड़की का शव कब्र में दबा रखा था। शेखतकी ने कहा कि यदि मेरी लड़की को जीवित कर दे तो हम इस कबीर को अल्लाह स्वीकार कर लेंगे और सभी जगह ढिंढ़ोरा पिटवा दूँगा कि यह कबीर जी भगवान है। कबीर साहेब ने कहा कि ठीक है। वह दिन निश्चित हुआ। कबीर साहेब ने कहा कि सभी जगह सूचना दे दो, कहीं फिर किसी को शंका न रह

शेख तकी द्वारा कबीर जी की अन्य परीक्षाएँ

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शेख तकी द्वारा कबीर जी की अन्य परीक्षाएँ  कमाली के पहले के जन्म कमाली के पहले के जन्म” (पूर्ण मुक्ति पूर्ण संत बिना असंभव) सतयुग में कमाली वाला जीव विद्याधार पंण्डित की पत्नी दीपिका थी। फिर त्रेतायुग में ऋषि वेदविज्ञ (जो विद्याधार वाली ही आत्मा थी) की पत्नी सूर्या थी। सत्ययुग तथा त्रेता में परमात्मा कबीर जी बालक रूप में इन्हीं को प्राप्त हुए थे। तत्पश्चात् अन्य जीवन धारण किए तथा कलयुग में मुस्लमान धर्म में राबी लड़की का जन्म हुआ। उसके पश्चात् एक जीवन वैश्या रूप में जीया। फिर बंसुरी नामक लड़की का जन्म हुआ। फिर कमाली नामक शेखतकी की लड़की हुई। राबिया के प्रमाण में साखियाँ संत गरीबदास साहेब द्वारा रचित ग्रन्थ साहेब से पारख के अंग की वाणी नं. 56 से 59:- गरीब, सुलतानी मक्के गये, मक्का नहीं मुकाम। गया रांड के लेन कूं, कहै अधम सुलतान।।56।। गरीब, राबिया परसी रबस्यूं, मक्कै की असवारि। तीन मंजिल मक्का गया, बीबी कै दीदार।।57।। गरीब, फिर राबिया बंसरी बनी, मक्कै चढाया शीश। सुलतान अधम चरणौं लगे, धनि सतगुरु जगदीश।।58।। गरीब, बंसरी से बेश्वा बनी, शब्द सुनाया राग। बहुरि कमाली पु़त्री, जुग जुग त

मृत लड़के कमाल को जीवित करना

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मृत लड़के कमाल को जीवित करना शेखतकी महाराजा सिकंदर से मुख चढ़ाए फिर रहा था। सिकंदर ने पूछा कि क्या बात है पीर जी? शेखतकी ने कहा कि क्या तुझे बात नहीं मालूम? सिकंदर ने पूछा कि क्या बात है? शेखतकी ने कहा कि यह तेरे साथ कौन है? सिकंदर ने कहा कि ये तो भगवान (अल्लाह) है। शेखतकी ने कहा कि अच्छा अल्लाह अब आकार में धरती पर आने लग गया। अल्लाह कैसे है? सिकंदर ने कहा कि पहले तो अल्लाह ऐसे कि मेरा रोग ऐसा था कि किसी से भी ठीक नहीं हो पा रहा था। इस कबीर प्रभु ने हाथ ही लगाया था, मैं स्वस्थ हो गया। शेखतकी ने कहा कि ये जादूगर होते हैं। सिकंदर ने फिर कहा दूसरे अल्लाह ऐसे हैं कि मैंने उनके गुरुदेव का सिर काट दिया था और उन्होंने उसे मेरी आँखों के सामने तुरंत जीवित कर दिया। शेखतकी ने कहा कि अगर यह कबीर अल्लाह है तो मैं इसकी परीक्षा लूँगा। यदि कबीर जी मेरे सामने कोई मुर्दा जीवित करे तो इसे अल्लाह मान लूँगा। नहीं तो दिल्ली जाकर मैं पूरे मुसलमान समाज को कह दूँगा कि यह राजा काफिर हो गया है। सिकंदर लोधी डर गया कि कहीं ऐसा न हो कि यह जाते ही राज पलट दे। (राज को देने वाला पास बैठा है और उस मूर्ख से डर

#स्वामी रामानन्द जी को जीवित करना

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स्वामी रामानन्द जी को जीवित करना परमेश्वर कबीर जी ने अन्दर जाकर देखा रामान्नद जी का धड़ कहीं पर और सिर कहीं पर पड़ा था। शरीर पर चादर डाल रखी थी। कबीर साहेब ने अपने गुरुदेव के मृत शरीर को दण्डवत् प्रणाम किया और चरण छुए तथा कहा कि गुरुदेव उठो। दिल्ली के बादशाह आपके दर्शनार्थ आए हैं। एक बार उठना। दूसरी बार ही कहा था, सिर अपने आप उठकर धड़ पर लग गया और रामानन्द जी जीवित हो गए “बोलो सतगुरु देव की जय!” सर्व मनुष्य एक प्रभु के बच्चे हैं, जो दो मानता है वह अज्ञानी है रामान्नद जी के शरीर से आधा खून और आधा दूध निकला हुआ था। जब साहेब कबीर से स्वामी रामानन्द जी ने कारण पूछा, हे कबीर प्रभु! मेरे शरीर से आधा रक्त और आधा दूध कैसे निकला है? कबीर साहेब ने बताया कि स्वामी जी आपके अन्दर यह थोड़ी-सी कसर और रह रही है कि अभी तक आप हिन्दू और मुसलमान को दो समझते हो। इसलिए आधा खून और आधा दूध निकला है। आप अन्य जाति वालों को अपना साथी समझ चुके हो। परंतु हिन्दू तथा मुसलमान एक ही परमेश्वर के बच्चे हैं। जीव सभी एक हैं। आप तो जानीजान हो। आप तो लीला कर रहे हो अर्थात् गोल-मोल बात करके सब समझा गए। कब

कर्म की मार

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.                                 एक गांव था ! वह ऐसी जगह बसा था। जहाँ आने जाने के लिए एक मात्र साधन नाव थी ,क्योंकि बीच में नदी पड़ती थी और कोई रास्ता भी नहीं था। एक बार उस गाँव  में महामारी फैल गई और बहुत सी मौते हो गयी,लगभग सभी लोग वहाँ से जा चुके थे।       अब कुछ ही गिने चुने लोग बचें थे। वो नाविक गाँव में बोल कर आ गया था कि मैं इसके बाद नहीं आऊँगा। जिसको चलना है वो आ जाये। सबसे पहले एक भिखारी आ गया और बोला मेरे पास देने के लिए कुछ भी नहीं है, मुझे अपने साथ ले चलो, ईश्वर आपका भला करेगा ।नाविक सज्जन पुरुष था। उसने कहा कि यही रुको यदि जगह बचेगी तो तुम्हें मैं ले जाऊँगा। धीरे -धीरे करके पूरी नाव भर गई सिर्फ एक ही जगह बची !       नाविक भिखारी को बोलने ही वाला था कि एक आवाज आयी रुको मैं भी आ रहा हूँ। यह आवाज जमीदार की थी,जिसका धन-दौलत से लोभ और मोह देख कर उसका परिवार भी उसे छोड़कर जा चुका था।अब सवाल यह था कि किसे लिया जाए। जमीदार ने नाविक से कहा कि मेरे पास सोना चांदी है, मैं तुम्हें दे दूँगा और भिखारी ने हाथ जोड़कर कहा कि भगवान के लिए मुझे ले चलो।     नाविक समझ नहीं पा रहा था

रावण तथा भस्मासुर की कथा‘‘

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‘‘रावण तथा भस्मासुर की कथा‘‘ तमगुण शिवजी के उपासकों का चरित्र: लंका के राजा रावण ने तमगुण शिव की भक्ति की थी। उसने अपनी शक्ति से 33 करोड़ देवताओं को कैद कर रखा था। फिर देवी सीता का अपहरण कर लिया। उसका क्या हाल हुआ, आप सब जानते हैं। तमगुण शिव का उपासक रावण राक्षस कहलाया, सर्वनाश हुआ। निंदा का पात्रा बना। अन्य उदाहरण:- आप जी को भष्मासुर की कथा का तो ज्ञान है ही। भगवान शिव (तमोगुण) की भक्ति भष्मागिरी करता था। वह बारह वर्षों तक शिव जी के द्वार के सामने ऊपर को पैर नीचे को सिर (शीर्षासन) करके भक्ति तपस्या करता रहा। एक दिन पार्वती जी ने कहा हे महादेव! आप तो समर्थ हैं। आपका भक्त क्या माँगता है? इसे प्रदान करो प्रभु। भगवान शिव ने भष्मागिरी से पूछा बोलो भक्त क्या माँगना चाहते हो। मैं तुझ पर अति प्रसन्न हँू। भष्मागिरी ने कहा कि पहले वचनबद्ध हो जाओ, तब माँगूंगा। भगवान शिव वचनबद्ध हो गए। तब भष्मागिरी ने कहा कि आपके पास जो भष्मकण्डा(भष्मकड़ा) है, वह मुझे प्रदान करो। शिव प्रभु ने वह भष्मकण्डा भष्मागिरी को दे दिया। कड़ा हाथ में आते ही भष्मागिरी ने कहा कि होजा शिवजी होशियार! तेरे को भष्म करुँग

सर्व श्रेष्ठ तीर्थ’ ’प्रश्न:- सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कौन-सा है जिससे सर्व तीर्थों से अधिक लाभ मिलता है?

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‘‘सर्व श्रेष्ठ तीर्थ’’ प्रश्न:- सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कौन-सा है जिससे सर्व तीर्थों से अधिक लाभ मिलता है? उत्तर:- सर्व श्रेष्ठ चित शुद्ध तीर्थ है। चितशुद्ध तीर्थ अर्थात् तत्वदर्शी सन्त का सत्संग सर्व तीर्थों से श्रेष्ठ:- श्री देवी पुराण छठा स्कन्द अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर लिखा है व्यास जी ने राजा जनमेजय से कहा राजन्! यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किन्तु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चितशुद्ध तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र माना जाता है। यदि भाग्यवश चितशुद्ध तीर्थ सुलभ हो जाए तो अर्थात् तत्वदर्शी संतों का सत्संग रूपी तीर्थ प्राप्त हो जाए तो मानसिक मैल के धुल जाने में कोई संदेह नहीं। परन्तु राजन्! इस चितशुद्ध तीर्थ को प्राप्त करने के लिए ज्ञानी पुरूषों अर्थात् तत्वदर्शी सन्तों के सत्संग की विशेष आवश्यकता है। वेद, शास्त्र, व्रत, तप, यज्ञ और दान से‌ चितशुद्ध होना बहुत कठिन है। वशिष्ठ जी ब्रह्मा जी के पुत्र थे। उन्होंने वेद और विद्या का सम्यक प्रकार से अध्ययन किया था। गंगा के तट पर निवास करते थे। तथापि द्वेष के कारण उनका विश्वामित्र के साथ वै

तीर्थ तथा धाम क्या हैं?’’ प्रश्न:- तीर्थों, धामों पर श्रद्धा से दर्शनार्थ तथा पूजा करने से हिन्दू गुरुजन बहुत पुण्य बताते हैं। यह साधना लाभदायक है या नहीं?

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‘‘तीर्थ तथा धाम क्या हैं?’’ प्रश्न:- तीर्थों, धामों पर श्रद्धा से दर्शनार्थ तथा पूजा करने से हिन्दू गुरुजन बहुत पुण्य बताते हैं। यह साधना लाभदायक है या नहीं? कृप्या शास्त्रों के अनुसार बताऐं। उत्तर:- तीर्थ या धाम वे पवित्र स्थान हैं जहाँ पर या तो किसी महापुरूष का जन्म हुआ था या निर्वाण (परलोक वास) हुआ था या किसी साधक ने साधना की थी या कोई अन्य ऋषि या देवी-देव की कथा से जुड़ी यादगारें हैं। विचार करें:- पवित्र तीर्थ तथा पवित्र धाम तो यादगारें हैं कि यहाँ पर ऐसी घटना घटी थी ताकि उनका प्रमाण बना रहे। उदाहरण:- जैसे अमरनाथ धाम है। उसकी कथा का सर्व हिन्दुओं को ज्ञान है कि उस एकान्त स्थान पर श्री शिव जी ने अपनी पत्नी पार्वती जी को नाम दीक्षा दी थी जिसका देवी जी जाप कर रही हैं। जिस मन्त्र की साधना के प्रभाव से उनको अमरत्व प्राप्त हुआ है। वर्तमान में वह एक यादगार के अतिरिक्त कुछ नहीं है। वह प्रमाण है कि यहाँ पर वास्तव में देवी जी को श्री शिव भगवान ने अमर होने का मन्त्र दिया था। यदि किसी को विश्वास नहीं हो रहा हो तो वहाँ जाकर देखकर भ्रम मिटा सकता है। परन्तु कोई यह कहे कि उस स्थान के दर

वैष्णव देवी, नैना देवी, ज्वाला देवी तथा अन्नपूर्णां देवीके मंदिरों की स्थापना’’

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‘‘वैष्णव देवी, नैना देवी, ज्वाला देवी तथा अन्नपूर्णां देवी के मंदिरों की स्थापना’’ प्रश्न:- वैष्णो देवी, नैना देवी, ज्वाला देवी तथा अन्नपूर्णां देवी आदि पवित्र स्थानों पर अनेकों हिन्दू जाते हैं। क्या वहाँ जाने से भी भक्ति लाभ नहीं है? उत्तर (कबीर जी जिंदा महात्मा का):- हे धर्मदास! अभी बताया था कि तीर्थों-धामों पर जाने से क्या लाभ-हानि होती है। फिर भी सुन। पूरा हिन्दू समाज जानता है कि ये पवित्र धर्म स्थान कैसे बने। आप अनजान मत बनो। जिस समय दक्ष पुत्री सती जी अपने पति श्री शिव जी से रूठकर पिता दक्ष जी के पास अपने घर आई। राजा दक्ष ने सती जी का अनादर किया। राजा दक्ष उस समय यज्ञ कर रहे थे। बहुत बड़े हवन कुण्ड में हवन चल रहा था। सती जी अपने पिता की बातों का दुःख मानकर हवन कुण्ड की अग्नि में गिरकर जल मरी। भगवान शिव को पता चला तो उन्होंने उसके बचे हुए नर कंकाल को उठाया तथा पत्नी के वियोग में उसे उठाए फिरते रहे। पत्नी के मोहवश महादुःखी थे। आपके पुराण में लिखा है कि दस हजार वर्षों तक सती पार्वती जी के कंकाल को लिए घूमते रहे। फिर श्री विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से उस कंकाल (अस्थि पिंजर)

सोलह शुक्रवार के व्रत करना’’

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‘‘सोलह शुक्रवार के व्रत करना’’ वाणी सँख्या 6:- पति शराबी घर पर नित ही, करत बहुत लड़ईयाँ। पत्नी षोडष शुक्र व्रत करत है, देहि नित तुड़ईयाँ।।6।। शब्दार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने तत्वज्ञानहीन उपासकों की अंध श्रद्धा भक्ति पर प्रकाश डाला है। कहा है कि बिना विवेक किए जो साधना करते हैं, वह व्यर्थ है। उदाहरण:- एक लड़की का पति शराब पीता था। अन्य नशा भी करता था। कोई काम-धंधा नहीं करता था। जमीन को वह लड़की ही संभालती थी। शराब पीने से मना करने पर वह शराबी अपनी पत्नी को मारता-पीटता था। घर नरक बना था। उस लड़की के माता-पिता, भाई-भाभी सबने मुझ दास (लेखक) से दीक्षा ले रखी थी। ज्ञान भी ठीक से समझा था। वे अपनी लड़की की दुर्दशा से चिंतित थे। एक दिन वे अपनी लड़की को समझाकर दीक्षा दिलाने आश्रम में मेरे पास लाए। लड़की को बताया गया कि कोई आन-उपासना मूर्ति पूजा, व्रत रखना आदि-आदि नहीं करनी हैं। लड़की ने कहा कि मैंने सोलह शुक्रवार के व्रत करने की प्रतिज्ञा कर रखी है कि घर में शांति हो जाए। अभी तो मैंने आधे ही किए हैं, ये पूरे करके फिर दीक्षा लूँगी। उस बेटी को अच्छी तरह समझाया, तब उस शास्त्र विरूद्ध साधना को त्य

परमात्मा के साथ धोखा’’ कबीर जी कहते हैं कि:-अहरण की चोरी करें, करें सूई का दान।स्वर्ग जान की आस में, कह आया नहीं विमान।।

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‘‘परमात्मा के साथ धोखा’’ कबीर जी कहते हैं कि:- अहरण की चोरी करें, करें सूई का दान। स्वर्ग जान की आस में, कह आया नहीं विमान।। शब्दार्थ:- परमात्मा कबीर जी ने कंजूस व्यक्ति की नीयत बताई है कि दो नंबर का कार्य करके यानि चोरी-रिश्वत लेकर, हेराफेरी करके मिलावट करके धन तो करोड़ों का प्राप्त करता है और दान सवा रूपया करता है। जैसे चोरी तो अहरण जितने लोहे की करता है (अहरण लुहार कारीगरों के पास होता है जिसका कुल लोहा 30,40 किलोग्राम भार का होता है) और दान करता है केवल सूई जितना लोहे की कीमत का। उसी धर्म-कर्म को मूर्ख इतना अधिक मानता है कि परमात्मा मेरे को स्वर्ग में ले जाने के लिए विमान भेजेगा। जब मनोकामना पूर्ण नहीं होती है तो वह कंजूस विचार करता है कि परमात्मा ने विमान भेजने में देरी क्यों कर रखी है? परमेश्वर कबीर जी ने ऐसे धर्म के कार्यों पर कहा है कि:- कबीर, जिन हर जैसा सुमरिया, ताको तैसा लाभ। ओसां प्यास ना भागही, जब तक धसै नहीं आब।। शब्दार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट किया है कि जो साधक जैसी भक्ति तथा दान-धर्म करता है, उसी के अनुसार लाभ देता है। पूर्ण लाभ के लिए धर्म-कर्म भी पूर

लेखक (रामपाल दास) द्वारा श्राद्ध भ्रम खण्डन’’“सत्य कथा”

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‘‘ मेरे पूज्य गुरुदेव स्वामी रामदेवानन्द जी गाँव-बड़ा पैंतावास, तहसील-चरखी दादरी, जिला-भिवानी (प्रान्त-हरियाणा) के निवासी थे जो लगभग सोलह वर्ष की आयु में पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति के लिए अचानक घर त्याग कर निकल गए। प्रतिदिन पहनने वाले वस्त्रों को अपने ही खेतों के निकट घने जंगल में किसी मृत पशु की अस्थियों के पास डाल गए। शाम को घर न पहुँचने के कारण घर वालों ने जंगल में तलाश की। रात्रि का समय था। कपड़े पहचान कर दुःखी मन से पशु की अस्थियों को बच्चे की अस्थियाँ जान कर उठा लाए तथा यह सोचा कि बच्चा जंगल में चला गया, किसी हिंसक जानवर ने खा लिया। अन्तिम संस्कार कर दिया। सर्व क्रियाऐं की, तेरहवीं-बरसौदी (वर्षी) आदि की तथा श्राद्ध भी निकालते रहे। लगभग 104 वर्ष की आयु प्राप्त होने के उपरान्त स्वामी जी अचानक अपने गाँव बड़ा पैंतावास जिला भिवानी, तहसील-चरखी दादरी, हरियाणा में पहुँच गए। स्वामी जी का बचपन का नाम श्री हरिद्वारी जी था तथा पवित्रा ब्राह्मण कुल में जन्म था। मुझ दास को पता चला तो मैं भी दर्शनार्थ पहुँच गया। स्वामी जी की भाभी जी जो लगभग 92 वर्ष की आयु की थी। मैंने उस वृद्धा से पूछा