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Showing posts from September, 2020

दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

भगवान श्री कृष्ण जी की द्वारिका नगरी समन्दर में समा गई थी

‘‘पीपा-सीता सात दिन दरिया में रहे और फिर बाहर आए’’ भक्त पीपा और सीता सत्संग में सुना करते कि भगवान श्री कृष्ण जी की द्वारिका नगरी समन्दर में समा गई थी। सब महल भी समुद्र में आज भी विद्यमान हैं। बड़ी सुंदर नगरी थी। भगवान श्री कृष्ण जी के स्वर्ग जाने के कुछ समय उपरांत समुद्र ने उस पवित्र नगरी को अपने अंदर समा लिया था। एक दिन पीपा तथा सीता जी गंगा दरिया के किनारे काशी से लगभग चार-पाँच किमी. दूर चले गए। वहाँ एक द्वारिका नाम का आश्रम था। आश्रम से कुछ दूर एक वृक्ष के नीचे एक पाली बैठा था। उसके पास उसी वृक्ष के नीचे बैठकर दोनों चर्चा करने लगे कि भगवान कृष्ण जी की द्वारिका जल में है। पानी के अंदर है। पता नहीं कहाँ पर है? कोई सही स्थान बता दे तो हम भगवान के दर्शन कर लें। पाली ने सब बातें सुनी और बोला कौन-सी नगरी की बातें कर रहे हो? उन्होंने कहा कि द्वारिका की। पाली ने कहा वह सामने द्वारिका आश्रम है। पीपा-सीता ने कहा, यह नहीं, जिसमें भगवान कृष्ण जी तथा उनकी पत्नी व ग्याल-गोपियाँ रहती थी। पाली ने कहा, अरे! वह नगरी तो इसी दरिया के जल में है। यहाँ से 100 फुट आगे जाओ। वहाँ नीचे जल में द्वारिका नगरी ह

अचानक झोंपड़ी में आग लग गई

‘‘रंका-बंका का प्रभु पर अटल विश्वास’’ एक दिन रंका तथा बंका दोनों पति-पत्नी गुरू जी के सत्संग में गए हुए थे जो कुछ दूरी पर किसी भक्त के घर पर चल रहा था। बेटी अवंका झोंपड़ी के बाहर एक चारपाई पर बैठी थी। अचानक झोंपड़ी में आग लग गई। सर्व सामान जलकर राख हो गया। अवंका दौड़ी-दौड़ी सत्संग में गई। गुरू जी प्रवचन कर रहे थे। अवंका ने कहा कि माँ! झोंपड़ी में आग लग गई। सब जलकर राख हो गया। सब श्रोताओं का ध्यान अवंका की बातों पर हो गया। माँ बंका जी ने पूछा कि क्या बचा है? अवंका ने बताया कि केवल एक खटिया बची है जो बाहर थी। माँ बंका ने कहा कि बेटी जा, उस खाट को भी उसी आग में डाल दे और आकर सत्संग सुन ले। कुछ जलने को रहेगा ही नहीं तो सत्संग में भंग ही नहीं पड़ेगा। बेटी सत्संग हमारा धन है। यदि यह जल गया तो अपना सर्वनाश हो जाएगा। लड़की वापिस गई और उस चारपाई को उठाया और उसी झोंपड़ी की आग में डालकर आ गई और सत्संग में बैठ गई। सत्संग के पश्चात् अपने ठिकाने पर गए। वहाँ एक वृक्ष था। उसके नीचे वह सामान जो जलने का नहीं था जैसे बर्तन, घड़ा आदि-आदि पड़े थे। उस वृक्ष के नीचे बैठकर भजन करने लगे। उनको पता नहीं चला कि क

नामदेव जी की भक्ति-श्रद्धा से मंदिर घुमाना’’

‘‘नामदेव जी की भक्ति-श्रद्धा से मंदिर घुमाना’’ गाँव पुण्डरपुर में बीठल भगवान का मंदिर था। उसमें सुबह तथा शाम को आरती होती थी। उस समय छूआछात अधिक थी। एक दिन नामदेव जी मंदिर के पास से बने रास्ते पर जा रहे थे। मंदिर में आरती चल रही थी। पंडितजन हाथों में घंटियाँ तथा खड़ताल लेकर बजा रहे थे। नामदेव जी को भी धुन चढ़ गई। उसने अपनी जूतियाँ हाथों में ली और उनको एक-दूसरी से मारने लगा और मंदिर में पहुँच गया। पंडितों के बीच से भगवान बिठल जी की मूर्ति के सामने खड़ा हो गया। पंडितों ने देखा कि नामदेव ने अपवित्र जूतियाँ हाथ में ले रखी हैं। मंदिर में प्रवेश कर गया है। मंदिर अपवित्र हो गया है। भगवान बिठल रूष्ट हो गए तो अनर्थ हो जाएगा। नामदेव जी को खैंचकर (घसीटकर) मंदिर के पीछे डाल दिया। भक्त नामदेव जी पृथ्वी पर गिरे-गिरे भी जूतियाँ पीट रहे थे, आरती गा रहे थे। उसी क्षण मंदिर का मुख नामदेव जी की ओर घूम गया। पंडितजन मंदिर के पीछे खड़े-खड़े घंटियाँ बजा रहे थे। करिश्मा देखकर घंटियाँ बजाना बंद करके स्तब्ध रह गए। उस मंदिर का मुख सदा उस ओर रहा। गाँव तथा दूर देश के व्यक्ति भी यह चमत्कार देखने आए थे। भक्त नामदेव ज

चुणक, "ऋषि" नहीं तोप के गोले थे!

 चुणक, "ऋषि" नहीं तोप के गोले थे! 👇👇👇 एक चुणक नाम का ऋषि ज्ञानी आत्मा था। उसने ओम् (ऊँ) नाम का जाप तथा हठयोग हजारों वर्ष किया। जिससे उसमें सिद्धियाँ आ गई। ब्रह्म की साधना करने से जन्म-मृत्यु, स्वर्ग-नरक का चक्र सदा बना रहेगा क्योंकि गीता अध्याय 2 श्लोक 12 गीता अध्याय 4 श्लोक 5 गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे अनेकों जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। तू, मैं तथा ये सर्व राजा लोग पहले भी जन्में थे, आगे भी जन्मेंगे। यह न सोच कि हम सब अब ही जन्में हैं। मेरी उत्पत्ति को महर्षिजन तथा ये देवता नहीं जानते क्योंकि ये सब मेरे से उत्पन्न हुए हैं। इससे स्वसिद्ध है कि जब गीता ज्ञान दाता ब्र्रह्म भी जन्मता-मरता है तो इसके पुजारी अमर कैसे हो सकते हैं? इससे यह सिद्ध हुआ कि ब्रह्म की उपासना से वह मोक्ष नहीं हो सकता जो गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में तथा अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है। इन श्लोकों में गीता ज्ञान दाता ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि हे भारत! तू सर्वभाव से उस परमेश्वर परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जा। उस परमेश्वर की कृपा से

अद्भुत चमत्कार

‘‘नामदेव जी की छान (झोंपड़ी की घास-फूस से बनी छत) भगवान ने डाली’’  अन्य अद्भुत चमत्कार :- नामदेव जी के पिता जी का देहान्त हो गया था। घर के सभी कार्यों का बोझ नामदेव पर आ गया। माता ने कहा कि बेटा! बारिश होने वाली है। अगले महीने से वर्षा प्रारम्भ हो जाएगी। उससे पहले-पहले अपनी झोंपड़ी की छान (घास-फूस की छत) छा ले यानि डाल ले। जंगल से घास ले आ जो विशेष घास होता है। नामदेव घास लेने गए थे। रास्ते में सत्संग हो रहा था। घास लाना भूल गया। सत्संग सुनने के लिए कुछ देर बैठा, मस्त हो गया। आनन्द आया। फिर भण्डारे में सेवा करने लगा। इस प्रकार शाम हो गई। बिना घास के लौटे तो माँ ने कहा कि बेटा घास नहीं लाया। छान बनानी थी। कहने लगा कि माता जी! सत्संग सुनने लग गया। पता ही नहीं लगा कि कब शाम हो गई। कल अवश्य लाऊँगा। अगले दिन सोचा कि कुछ देर सत्संग सुन लेता हूँ, फिर चलकर घास-फूस लाकर छान (झोंपड़ी की छत) बनाऊँगा। उस दिन भी भूल गया। अगले दिन सत्संग समाप्त होते ही जंगल में गया तो पैर पर गंडासी (लोहे की घास-कांटेदार झाड़ी काटने की कुल्हाड़ी जैसी) लगी। जख्म गहरा हो गया। घास नहीं ला सका। पैर से लंग करता हुआ खाली ह

पाराशर ऋषि का विवाह हुआ विवाह के पश्चात वन में

 ऋषी पाराशर की कथा __________________ पाराशर ऋषि का विवाह हुआ विवाह के पश्चात वन में तपस्या के लिये जाने लगे तो उनकी पत्नी ने कहा आप ने अभी तो विवाह करवाया है और इस तरह जा रहे हो मै किस के भरोसे रहुंगी तब पारासर ने कहा समय आने पर सब हो जायेगा और वो वन मे तपस्या के लिये चला गया ।  वहां से उनकी प्रेरणा हुयी उन्होने बीज शक्ति से एक पक्षी के द्वारा पत्ते पर रखकर भिजवा दिया और उस पक्षी से वो बीज शक्ति यमुना  मे गिर जाती है जिसे एक मछली ग्रहण कर लेती है फलस्वरूप उसमे वो शक्ति काम कर जाती है उसमे एक कन्या का निर्माण होता है और वह मछली एक मछुआरा पकड लेता है तो उसमे वो लडकी निकलती है । जिसका नाम मच्छोदरी (मत्स्यगंधा)रखा जाता है । वह कन्या जब युवा होती है तब वापस पारासर ऋषि तपस्या कर घर लौट रहा होता है वह युवा कन्या अपने पालक पिता मछुआरे को भोजन करा रही होती है तब   पारासर कहता है आप मुझे उस पार छोड आओ मुझे जल्दी है तो मछुआरा कहता है मै भोजन बीच मे छोड दू तो अन्न देव का अपमान होता है । बात बिगडती देख मच्छोदरी ने कहा हे ऋषिवर आप नौका मे विराजे मे आपको उस पार छोड आती हुं कुछ दूर नौका चलते ही पारास

नामदेव ने ‘पत्थर को दूध पिलाया’’

    ‘‘पत्थर को दूध पिलाना’’ नामदेव द्वारा बिठल भगवान की पत्थर की मूर्ति को दूध पिलाने का वर्णनः- नामदेव जी के माता-पिता भगवान बिठल की पत्थर की मूर्ति की पूजा करते थे। घर पर एक अलमारी में मूर्ति रखी थी। प्रतिदिन मूर्ति को दूध का भोग लगाया जाता था। एक कटोरे में दूध गर्म करके मीठा मिलाकर पीने योग्य ठण्डा करके कुछ देर मूर्ति के सामने रख देते थे। आगे पर्दा कर देते थे जो अलमारी पर लगा रखा था। कुछ देर पश्चात् उसे उठाकर अन्य दूध में डालकर प्रसाद बनाकर सब पीते थे। नामदेव जी केवल 12 वर्ष के बच्चे थे। एक दिन माता-पिता को किसी कार्यवश दूर अन्य गाँव जाना पड़ा। अपने पुत्र नामदेव से कहा कि पुत्र! हम एक सप्ताह के लिए अन्य गाँव में जा रहे हैं। आप घर पर रहना। पहले बिठल जी को दूध का भोग लगाना, फिर बाद में भोजन खाना। ऐसा नहीं किया तो भगवान बिठल नाराज हो जाऐंगे और अपने को श्राप  दे देंगे। अपना अहित हो जाएगा। यह बात माता-पिता ने नामदेव से जोर देकर और कई बार दोहराई और यात्रा पर चले गए। नामदेव जी ने सुबह उठकर स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र पहनकर दूध का कटोरा भरकर भगवान की मूर्ति के सामने रख दिया और दूध पीने की प्र

पवित्र ऋग्वेद में सृष्टी रचना का प्रमाण

 सृष्टि रचना :- Part - 15 पवित्र ऋग्वेद में सृष्टी रचना का प्रमाण Part -2 इसी का प्रमाण आदरणीय गरीबदास साहेब जी कहते हैं कि:- गरीब, जाके अर्ध रूम पर सकल पसारा, ऐसा पूर्ण ब्रह्म हमारा।। गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सृजनहार।। इसी का प्रमाण आदरणीय दादू साहेब जी कह रहे हैं कि:- जिन मोकुं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार। दादू दूसरा कोए नहीं, कबीर सृजनहार।। इसी का प्रमाण आदरणीय नानक साहेब जी देते हैं कि:- यक अर्ज गुफतम पेश तो दर कून करतार। हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदिगार।। (श्री गुरु ग्रन्थ साहेब, पृष्ठ नं. 721, महला 1, राग तिलंग) कून करतार का अर्थ होता है सर्व का रचनहार, अर्थात् शब्द शक्ति से रचना करने वाला शब्द स्वरूपी प्रभु, हक्का कबीर का अर्थ है सत् कबीर, करीम का अर्थ दयालु, परवरदिगार का अर्थ परमात्मा है।} मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 4 त्रिपादूध्र्व उदैत्पुरूषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः। ततो विष्व ङ्व्यक्रामत्साशनानशने अभि।। 4 त्रि-पाद-ऊध्र्वः-उदैत्-पुरूषः-पादः-अस्य-इह-अभवत्-पूनः-ततः-विश्वङ्-व्यक्रामत्-सः-अशनानशने-अभि अनुवाद:- (पुरूषः) यह परम अक्षर

शब्दों का बहुत बड़ा रोल है मानव के जीवन में

 शब्द सोच कर बोलिए शब्द के हाथ न पांव  एक शब्द औषधि करे एक शब्द करे घाव 18 दिन के युद्ध ने, द्रोपदी की उम्र को  80 वर्ष जैसा कर दिया था...! शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी शहर में चारों तरफ़ विधवाओं का बाहुल्य था..  पुरुष इक्का-दुक्का ही दिखाई पड़ता था  अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे और,  उन सबकी वह महारानी द्रौपदी हस्तिनापुर के महल में निश्चेष्ट बैठी हुई शून्य को ताक रही थी ।  तभी, श्रीकृष्ण कक्ष में दाखिल होते हैं । द्रौपदी कृष्ण को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट जाती है ...  कृष्ण उसके सिर को सहलाते रहते हैं और रोने देते हैं  थोड़ी देर में, उसे खुद से अलग करके समीप के पलंग पर बिठा देते हैं । द्रोपदी : यह क्या हो गया सखा ?? ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था । कृष्ण : नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली..वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती !हमारे कर्मों को परिणामों में बदल देती है.. तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और, तुम सफल हुई, द्रौपदी ! तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ... सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं, सारे कौरव समाप्त हो गए तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए !  द्रोपदी : सखा, तुम मेरे घावों को सहलाने आ

भक्त नंदा नाई (सैन) की कथा’’

  ‘‘भक्त नंदा नाई (सैन) की कथा’’       नाई समुदाय में एक महान भक्त नंदा जी हुए हैं। नाई को सैन भी कहते हैं। वे परमात्मा की धुन (लगन) में लगे रहते थे। राजा के निजी नाई थे। प्रतिदिन राजा की हजामत करने (दाढ़ी काटने) जाया करते थे। राजा के सिर की मालिश करने भी जाते थे। भक्त नंदा जी एक दिन भगवान की भक्ति में इतना मग्न हो गया कि उसको ध्यान नहीं रहा कि मैंने राजा की हजामत करने जाना था। राजा की सेव (दाढ़ी बनाने) करने जाने का निर्धारित समय था। वह समय जा चुका था। दो घण्टे देर हो चुकी थी। राजाओं की जुबान पर दण्ड रहता था। जो भी नौकर जरा-सी गलती करता था तो उसको बेरहमी (निर्दयता) से कोड़ों से पीटा जाता था। अचेत होने पर छोड़ा जाता था। शरीर की खाल उतर जाती थी। रो-रोकर बेहोश हो जाता था। यह दृश्य (seen) भक्त नंदा कई नौकरों के साथ देख चुके थे। आज उनको वही भय सता रहा था। काँपते-काँपते राजा के निवास पर पहुँचे। राजा के पैरों में गिरकर देर से आने की क्षमा याचना करने लगा। कहा कि माई-बाप आगे से कभी गलती नहीं करूँगा। भक्त ने देखा कि राजा की दाढ़ी बनाई हुई थी। सिर में मालिश भी कर रखी थी। भक्त सैन को समझते देर नही

सुदामा जी और कृण्ण की मित्रता

  # सुदामा और कृष्ण की कथा-------- 📖📖📖 सुदामा जी ने कहा कि :- तेरी दया से है भगवन, हमको सुख सारा है। किसी वस्तु की कमी नहीं, मेरा ठीक गुजारा है।। श्री कृष्ण जी तो समझ चुके थे कि यह मर जाएगा, माँगेगा नहीं।  उसी समय सुदामा जी को दूसरे कक्ष में विश्राम के लिए निवेदन किया और राजदरबार में जाकर विश्वकर्मा जी को बुलाया जो मुख्य इन्जीनियर था तथा सुदामा जी का पूरा पता लिखाकर उसका सुंदर महल बनाने का आदेश दिया तथा कहा कि लाखों रूपये का धन ले जा जो भक्त के घर रख आना। यह कार्य एक सप्ताह में होना चाहिए। विश्वकर्मा जी ने छः दिन में कार्य सम्पूर्ण करके रिपोर्ट दे दी। सुदामा जी प्रतिदिन चलने के लिए कहते तो श्री कृष्ण जी विशेष विनय करके रोके रहे। सातवें दिन सुदामा चल पड़ा, नए बहुमूल्य वस्त्र पहने हुए थे। रास्ते में सोचता हुआ आ रहा था कि कृष्ण मेरे से पूछ रहा था कि किसी वस्तु का अभाव तो नहीं है। क्या उसको दिखाई नहीं दे रहा था कि मेरा क्या हाल है? वही बात सही हुई कि मित्रता समान हैसियत वालों की निभती है। इतनी देर में जंगली भीलों ने रास्ता रोक लिया और कहा कि निकाल दे जो कुछ ले रखा है। सुदामा जी ने कहा क