Posts

Showing posts from May, 2021

दास की परिभाषा‘‘

Image
‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

धर्मदास जी एक वैष्णव महामण्डलेश्वर श्री ज्ञानानंद जी वैष्णव के आश्रम में गया। उस समय श्री ज्ञानानन्द जी का बहुत बोलबाला था। वह स्वामी रामानन्द जी काशी वाले का शिष्य था

Image
प्रश्न :- (धर्मदास जी का) : हे जिन्दा! क्या हिन्दू धर्म के गुरुओं तथा ऋषियों को शास्त्रों का ज्ञान नहीं है? उत्तर :- (जिन्दा महात्मा का) :- क्या यह बताने की भी आवश्यकता शेष है? धर्मदास जी ने मन में विचार किया कि यह कैसे हो सकता है कि हिन्दू धर्म के किसी सन्त, गुरु, महर्षि को सत्य अध्यात्म ज्ञान नहीं? धर्मदास जी के मन में आया कि किसी महामण्डलेश्वर से ज्ञान पता करना चाहिए। एक रमते फकीर के पास क्या मिलेगा? यह बात मन में सोच ही रहा था कि परमेश्वर जिन्दा जी ने धर्मदास जी के मन का दोष जानकर कहा कि आप अपने महामण्डलेश्वरों से ज्ञान प्राप्त करलो। यह कहकर परमेश्वर तीसरी बार अन्तर्ध्यान हो गए। धर्मदास जी ठगे से रह गए और अपने मन के दोष को जिन्दा महात्मा के मुखकमल से सुनकर बहुत शर्मसार हुए। जब प्रभु अन्तर्ध्यान हो गए तो बहुत व्याकुल हो गया। परन्तु धर्मदास जी को आशा थी कि हमारे महामण्डलेश्वरों के पास तत्त्वज्ञान अवश्य मिलेगा। यदि जिन्दा बाबा (मुसलमान) के ज्ञान को तत्त्वज्ञान मानकर साधना स्वीकार करना तो ऐसा लग रहा है जैसे धर्म परिवर्तन करना हो। यह समाज में निन्दा का कारण बनेगा। इसलिए अपने हिन्दू महात

बुखारनाशक, श्वास रोग नाशक, भूख को नियंत्रित करने वाला होता है तथा सुखपूर्वक प्रसव हेतु एवं गर्भधारण में उपयोगी है।चिरचिटा या अपामार्ग (Chaff Tree) के 20 अद्भुत फ़ायदे :1. गठिया रोग :

Image
यह पौधा पेट की लटकती चर्बी, सड़े हुए दाँत, गठिया, आस्थमा, बवासीर, मोटापा, गंजापन, किडनी आदि 20 रोगों के लिए किसी वरदान से कम नही आज हम आपको ऐसे पौधे के बारे में बताएँगे जिसका तना, पत्ती, बीज, फूल, और जड़ पौधे का हर हिस्सा औषधि है, इस पौधे को अपामार्ग या चिरचिटा (Chaff Tree), लटजीरा कहते है। अपामार्ग या चिरचिटा (Chaff Tree) का पौधा भारत के सभी सूखे क्षेत्रों में उत्पन्न होता है यह गांवों में अधिक मिलता है खेतों के आसपास घास के साथ आमतौर पाया जाता है इसे बोलचाल की भाषा में आंधीझाड़ा या चिरचिटा (Chaff Tree) भी कहते हैं-अपामार्ग की ऊंचाई लगभग 60 से 120 सेमी होती है आमतौर पर लाल और सफेद दो प्रकार के अपामार्ग देखने को मिलते हैं-सफेद अपामार्ग के डंठल व पत्ते हरे रंग के, भूरे और सफेद रंग के दाग युक्त होते हैं इसके अलावा फल चपटे होते हैं जबकि लाल अपामार्ग (RedChaff Tree) का डंठल लाल रंग का और पत्तों पर लाल-लाल रंग के दाग होते हैं।   इस पर बीज नुकीले कांटे के समान लगते है इसके फल चपटे और कुछ गोल होते हैं दोनों प्रकार के अपामार्ग के गुणों में समानता होती है फिर भी सफेद अपामार्ग(White

अध्याय राजा बीर देव सिंह बोध का सारांश Part Bयुद्ध जीत कर पांडव, खुशी हुए अपार। इन्द्रप्रस्थ की गद्दी पर, युधिष्ठिर की सरकार।।

अध्याय राजा बीर देव सिंह बोध का सारांश Part B युद्ध जीत कर पांडव, खुशी हुए अपार। इन्द्रप्रस्थ की गद्दी पर, युधिष्ठिर की सरकार।। एक दिन अर्जुन पूछता, सुन कृष्ण भगवान। एक बार फिर सुना दियो, वो निर्मल गीता ज्ञान।। घमाशान युद्ध के कारण, भूल पड़ी है मोहें। ज्यों का त्यों कहना भगवन्, तनिक न अन्तर होए।। ऋषि मुनि और देवता, सबको रहे तुम खाय। इनको भी नहीं छोड़ा आपने, रहे तुम्हारा ही गुण गाय।। कृष्ण बोले अर्जुन से, यह गलती क्यों किन्ह। ऐसे निर्मल ज्ञान को भूल गया बुद्धिहीन।। अब मुझे भी कुछ याद नहीं, भूल पड़ी नीदान। ज्यों का त्यों उस गीता का मैं, नहीं कर सकता गुणगान।। स्वयं श्री कृष्ण को याद नहीं और अर्जुन को धमकावे। बुद्धि काल के हाथ है, चाहे त्रिलोकी नाथ कहलावे।। ज्ञान हीन प्रचारका, ज्ञान कथें दिन रात। जो सर्व को खाने वाला, कहें उसी की बात।। सब कहें भगवान कृपालु है, कृपा करें दयाल। जिसकी सब पूजा करें, वह स्वयं कहै मैं काल।। मारै खावै सब को, वह कैसा कृपाल। कुत्ते गधे सुअर बनावै है, फिर भी दीन दयाल।। बाईबल वेद कुरान है, जैसे चांद प्रकास। सूरज ज्ञान कबीर का, करै तिमर का नाश।। रामपाल साची कहै, करो विवे

नल तथा नील को शरण में लेनात्रोतायुग में स्वयंभु (स्वयं प्रकट होने वाला) कविर्देव (कबीर परमेश्वर) रूपान्तर करके मुनिन्द्र ऋषि के नाम से आए हुए थे। अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील। दोनों आपस में मौसी के पुत्रा थे। माता-पिता का देहान्त हो चुका था

Image
त्रेतायुग में कविर्देव (कबीर साहेब) का मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य  नल तथा नील को शरण में लेना त्रोतायुग में स्वयंभु (स्वयं प्रकट होने वाला) कविर्देव (कबीर परमेश्वर) रूपान्तर करके मुनिन्द्र ऋषि के नाम से आए हुए थे। अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील। दोनों आपस में मौसी के पुत्रा थे। माता-पिता का देहान्त हो चुका था। नल तथा नील दोनों शारीरिक व मानसिक रोग से अत्यधिक पीड़ीत थे। सर्व ऋषियों व सन्तों से कष्ट निवारण की प्रार्थना कर चुके थे। सर्व सन्तों ने बताया था कि यह आप का प्रारब्ध का पाप कर्म का दण्ड है, यह आपको भोगना ही पड़ेगा। इसका कोई समाधान नहीं है। दोनों दोस्त जीवन से निराश होकर मृत्यु का इंतजार कर रहे थे। एक दिन दोनों को मुनिन्द्र नाम से प्रकट पूर्ण परमात्मा का सतसंग सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। सत्संग के उपरांत ज्यों ही दोनों ने परमेश्वर कविर्देव (कबीर साहेब) उर्फ मुनिन्द्र ऋषि जी के चरण छुए तथा परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने सिर पर हाथ रखा तो दोनों का असाध्य रोग छू मन्त्र हो गया अर्थात् दोनों नल तथा नील स्वस्थ हो गए। इस अद्धभुत चमत्कार को देख कर प्रभु के चरणों में गिर कर घण्टो

सुमिरन ऐसा कीजिये । दूजा लखै न कोय । ओंठ न फरकत देखिये । प्रेम राखिये गोय । माला जपो न कर जपो । जिभ्या कहों न राम । सुमिरन मेरा हरि करै । मैं पाया बिसराम ।

Image
.                           संत मुलक दास          सुमिरन ऐसा कीजिये । दूजा लखै न कोय ।          ओंठ न फरकत देखिये । प्रेम राखिये गोय ।         माला जपो न कर जपो । जिभ्या कहों न राम ।          सुमिरन मेरा हरि करै । मैं पाया बिसराम ।     एक बार कबीर साहिब कही सत्संग करने गये हुये थे। उस गाव मे कबीर साहिब के बहुत शिष्य थे। गाव मे एक जश्न जैसा महोल था। सब शिष्य अपने गुरूजी को अपने घर भण्डारा व सतसंग के लिए अरदास लगा लहे थे।    जाहिर सी बात है जहा भण्डारा और गुरूजी का सत्संग होगा वहा हलवा तो बनेगा ही। मुलकदास को ये अच्छा नही लग रहा था। सोच रहा था कि कोई संत इन गाव के भोले भाले लोगो को भटका रहा है ये सोच कर कबीर साहिब के पास आया। और कहने लगा कि महनत करके क्यो नही खाते।   कबीर साहिब ने कहा कि हमे तो परमात्मा इसी तरह देता है। इसी तरह हम भगतो के घर भण्डारा करते है। मुलक दास ने कहा कि तुम्हारा भगवान मुझे भी यु ही खिलाये तो मै मानुगा।   कबीर साहिब ने कहा कि सबको खिलाते है वो तुमको भी खिलायेगे। मुलकदास कह कर चला गया कि आज तुम्हारे भगवान मुझे खिलायेगे तो मै तुम्हारी शरण गहण करूगा।   मुल

लक्षदीप कुल 60 दीपों का समूह है जिसमें मिनिकॉय सबसे बड़ा है

लक्षदीप कुल 60 दीपों का समूह है जिसमें मिनिकॉय  सबसे बड़ा है  लक्ष्यदीप केरल के तट से 398 किलोमीटर दूर अरब सागर में स्थित है और इसका सबसे बड़ा द्वीप मिनिकॉय द्वीप सबसे व्यस्त जलमार्ग के रूट पर है  लक्ष्यदीप को सारा साजो सामान केरल से सप्लाई होता है केरल पर दशकों से वामपंथियों और कांग्रेस का कब्जा रहा है इस तरह एक साजिश के तहत लक्ष्यदीप जिसकी आजादी के समय आबादी  50% हिंदुओं और 50% मुस्लिमों की थी आज 98% मुस्लिमों की हो गई है  वहां की बहुत सी खबरें भारतीय मीडिया में नहीं आ पाती लेकिन विदेशी मीडिया में आती हैं  क्या आपको किसी भारतीय चैनल ने यह बताया कि श्रीलंका के चर्च में हुए भीषण बम विस्फोट के चार शांतिदूत आरोपी नाव से भागकर लक्ष्यदीप आ गए थे और उन्हें एक मस्जिद में छुपाया गया था आप गूगल पर सर्च करिए श्रीलंका की मीडिया में यह खबर छपी लेकिन भारत में यह खबर दबा दी गई  आई एस आई से लेकर कई कुख्यात आतंकवादी संगठनों का सबसे बड़ा अड्डा इस वक्त मिनिकॉय  बन चुका है  भारतीय कोस्ट गार्ड पिछले कुछ सालों में 3000 करोड़ का स्मगलिंग का सामान यहां से बरामद की है  60 दीपों वाले इस समूह में सिर्फ 347 पुल

संत रामपाल जी महाराज अपने सत्संग वचनों में बताते है-जब

Image
संत #रामपाल जी महाराज अपने सत्संग वचनों में बताते है- जब तक मानव को आत्म ज्ञान व परमात्म ज्ञान तथा कर्मफल का ज्ञान नहीं होगा, तब तक वह अपने स्वभाववश ही कार्य करता है। स्वभाव पूर्व जन्म के संस्कारों से बनता है तथा वर्तमान जीवन में परिवार व कुल के लोगों के संग से भी #स्वभाव प्रभावित होता है। यदि अच्छे विचारों वाले कुल में जन्म होता है तो उनका प्रभाव बच्चे के स्वभाव पर गिरता है। परंतु बड़ा होने पर उसके पूर्व जन्म का स्वभाव अधिक सक्रिय रहता है। कुल के लोग तो उसे संसारिक कार्यों व परंपराओं का ज्ञान तथा अच्छे-बुरे का ज्ञान ही करवा सकते हैं। #युवा होने पर व्यक्ति (स्त्री-पुरूष) अपने परिवार वालों की बातों पर कम ध्यान देता है। अपनी नई सोसाइटी को अधिक महत्व देता है। ऐसे समय में उसे #सत्संग की आवश्यकता होती है। सत्संग में परमात्मा का #संविधान जो धार्मिक #शास्त्रों में वर्णित है, वह तथा जो परम संतों के विचार हैं, वे विस्तारपूर्वक समझाए जाते हैं जिससे बुरे से बुरे स्वभाव वाला व्यक्ति भी अपना स्वभाव नेक कर लेता है। वह कभी #पाप नहीं करता। भगवान से डरकर अपने संसारिक कार्य तथा धर्म कार्य कर

परमेश्वर कबीर बचन‘ ‘परमात्मा की प्यारी आत्माओं से निवेदन है कि कबीर जी के ग्रन्थ

अध्याय राजा बीर देव सिंह बोध  (इस अध्याय में तीन बार में दीक्षा क्रम पूरा होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है।) कबीर सागर में अध्याय ‘‘बीर सिंह बोध‘‘ पृष्ठ 97(521) पर है। यह 8वां अध्याय है। परमेश्वर कबीर जी से धर्मदास जी ने जानना चाहा कि हे परमात्मा! आपने बताया कि काशी नगरी का नरेश बीर सिंह बघेल भी आपकी शरण में है। वह तो बहुत अभिमानी राजा था। वह कैसे आपकी शरण में आया? कृपा करके मुझ दास को बताऐं। ‘‘परमेश्वर कबीर बचन‘‘ परमात्मा की प्यारी आत्माओं से निवेदन है कि कबीर जी के ग्रन्थ की दुर्दशा कर रखी है। इस ग्रन्थ के अध्याय ‘‘बीर सिंह बोध‘‘ के प्रारम्भ में जितने संतों का वर्णन किया है कि वे सब इकट्ठे होकर राजा बीर सिंह के महल के पास कीर्तन कर रहे थे। वे समकालीन नहीं थे। नामदेव जी का जन्म सन् 1270 (विक्रमी संवत् 1327) में महाराष्ट्र में हुआ। परमेश्वर कबीर जी सन् 1398 (विक्रमी संवत् 1455) में काशी नगरी में लहर तारा नामक सरोवर में कमल के फूल पर जल के ऊपर शिशु रूप में प्रकट हुए थे। परमेश्वर कबीर जी राजा बीर सिंह बघेल के समकालीन थे। ग्रन्थ का नाश करने वाले ने इन-इन संतों को मिलकर कीर्तन करते लिखा है। श्र

नरक का वर्णन’’ 4

Image
‘‘नरक का वर्णन’’ 4 ‘‘अमरसिंह राजा बचन‘‘ ओ भगवान सुनो मम वानी। सेवा तुम्हरी निष्फल जानी।। हम एकोत्तर मंदिर बनावा। तामें मूरति लै पधरावा।। साधु राखि मंदिर के मांही। छाजन भोजन दीना ताही।। जेता धर्म हम सुने पुराना। विप्रन कहे धरम ठिकाना।। सुरभी सोने सींग मढाई। पीतांबर पुनि ताहि ओढाई।। भावार्थ :- राजा अमर सिंह ने भगवान विष्णु से कहा कि हे भगवान! मैंने आपके 101 मंदिर बनवाए। उनमें आपकी मूर्ति स्थापित की। आपका पुजारी रखा। उसके वेतन तथा भोजन का प्रबंध किया। जो भी वेद-पुराणों से पंडितों ने धर्म-कर्म बताया, सो सब किया। गाय की सींगों पर सोना चढ़वाकर उनको पीतांबर ओढ़ाकर सौ गाय ब्राह्मण को दान की। इस प्रकार आपकी पूजा की। फिर भी हमारे सिर पर कर्म-दण्ड लगाए हैं। श्री विष्णु जी ने कहा कि राजा लोग पाप भी बहुत करते हैं। शिकार करते हैं, जंगली जीवों को मारकर खाते हैं। पाप तो लगेगा ही। कबीर परमेश्वर जी ने बताया कि हे धर्मदास! मैंने उसी समय राजा अमर सिंह के सिर पर हाथ रखा। उसी समय उसके मुख से अनेकों कौवे निकले। यही लीला देखकर भगवान विष्णु शर्मिन्दे हो गए। आगे कुछ नहीं बोले। फिर मैं राजा अमरसिंह क

नरक का वर्णन’’

‘‘नरक का वर्णन’’ Part -C ‘‘धर्मदास बचन‘‘ {पृष्ठ 84(508)} उपरोक्त नरक का वर्णन सुनकर धर्मदास व्याकुल हो गए। कबीर जी ने कहा है कि :- ‘‘सतगुरू बचन‘‘ सुनत वचन प्रभु मन विहँसाये। कही शब्द धर्मनि समुझाये।। धर्मनि तुमही भय कछु नाही। सतगुरू शब्द है तुमरे पाही।। और कथा सुनहु चितधारी। संशय मिटै तो होहु सुखारी।।जब राजा विनती मम कीन्हा। तब हम ताहि दिलासा दीन्हा।। शब्द गहै सो नाहि डराई। तुम किमि डरहु सुनहु हो राई।। सत्य शब्द मम जे जिव पैहैं। काल फांस सो सबै नशैहैं।। सुनत वचन राजा धरू धीरा। बोलै वचन काल बलबीरा।। भावार्थ :- धर्मदास जी की व्याकुलता देखकर कहा कि हे धर्मदास! आपने तो दीक्षा ले रखी है। आपको तो सत्यनाम प्राप्त है, आपको कोई डर नहीं। परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि राजा को भी चिंता बनी और कहा कि हे परमात्मा! अब क्या होगा? मैंने (कबीर जी ने) राजा को दिलासा दिया कि जो सत्य शब्द मेरे से ले लेगा, उसको कोई भय नहीं है। यह वचन सुनकर राजा को धैर्य हुआ। फिर चित्र-गुप्त बोले :- ‘‘चित्र-गुप्त बचन‘‘ है साहब तुम काह विचारो। नगर हमार उजारन धारो।। हो साहब जो तुम अस करहू। न्याय नीति सबही तुम हरहू।। सुनो साहब ए

ashish

sat saheb ji

नरक का वर्णन’’ Bपरमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे धर्मदास! और सुन कि क्या-क्या यातना किन अपराधों में दी जाती है? जो ब्रह्म हत्या (वेद-शास्त्र पढ़ने-पढ़ाने वाले ब्राह्मण) की हत्या करता है। उसको सर्वाधिक दण्ड दिया जाता है। जो विश्वासघात करता है, जो अपने गुरू या स्वामी की हत्या करता है, जो बच्चे या वृद्ध को मारता है, उनको उबलते तेल में डाला जाता है। अन्य अपराध :- जो परदार (परस्त्री) तथा परक्षेत्र को छीन लेता है, जो सीमा में गड़बड़ (हेराफेरी) करता है,

‘‘नरक का वर्णन’’ B परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे धर्मदास! और सुन कि क्या-क्या यातना किन अपराधों में दी जाती है? जो ब्रह्म हत्या (वेद-शास्त्र पढ़ने-पढ़ाने वाले ब्राह्मण) की हत्या करता है। उसको सर्वाधिक दण्ड दिया जाता है। जो विश्वासघात करता है, जो अपने गुरू या स्वामी की हत्या करता है, जो बच्चे या वृद्ध को मारता है, उनको उबलते तेल में डाला जाता है। अन्य अपराध :- जो परदार (परस्त्री) तथा परक्षेत्र को छीन लेता है, जो सीमा में गड़बड़ (हेराफेरी) करता है, वे भयंकर नरक में गिरते हैं। उनके सिर काटे जाते हैं। जो चोरी करता है, गुरूद्रोही, मदिरा पीने वाला, झूठ बोलने वाला, दूसरे की निंदा करने वाला है। तिन पापीन को यम विकराला। भयंकर नरक माँझ तेही डाला।। जो दूसरे की साधना में बाधा करता है, जो वेद-शास्त्र को नहीं पढ़ता, जो परमात्मा की चर्चा सुनकर जलता है, औरों का मन भी विचलित करता है, वह साकट व्यक्ति है। उसके तन को नरक में सूअर खाते हैं। जो मित्र को मारता है, वह घोर नरक में जाता है। जो गुरू के धन को हड़पता (चुराता) है, वह क्रीमी नरक (कीड़ों के कुण्ड) में डाला जाता है। जो गुरू पद पर विराजमान होकर व्याभिच

नरेंद्र मोदी कौन है .? “न्यू यार्क टाइम्स” का मुख्य सम्पादक जोसफ होप ने इसपर एक सनसनीखेज टिप्पणी किया है !!

न्यूयार्क टाइम्स का भारत और मोदी विरोधी लेख जिसे विजय डोंगरे जी ने अनुवाद किया है । अमेरिका के वामपंथी इकोसिस्टम का लेख पढ़िए ...और स्वंयम तय करिए। टूलकिट गैंग के विरूद्ध हमें एकजुट होना है । #PMModiji  नरेंद्र मोदी कौन है .?  “न्यू यार्क टाइम्स” का मुख्य सम्पादक जोसफ होप ने इसपर एक सनसनीखेज टिप्पणी किया है !!  इसका पूरा विवरण आप लोगों के सामने रख रहा हूं !!  जरा ध्यान से पढि़एगा.  ✍️ : जोसफ होप मोदीजी पर टिप्पणी करते हुए कहता है कि “इस आदमी” का “उत्थान”, सारे “संसार” के लिए, “खतरा” है !! इसने केवल “भारत” को एक महान् देश बनाने की इच्छा को प्रकट किया है. उसका एकमात्र उद्देश्य है भारत को सबसे शक्तिशाली बनाना है. यदि इस आदमी को न रोक गया तो भविष्य में, एक दिन “भारत” संसार में बहुत शक्तिशाली हो जाएगा और इससे “अमेरिका” को आश्चर्य होगा. वह एक विशेष रणनीति की अनुसार चलता है, और कोई नहीं जानता कि आगे वह क्या करने वाला है !? उसके मुस्कराते हुए चेहरे के पीछे एक खतरनाक देशभक्त छिपा हुआ है !! वह, दुनिया के सभी देशों का उपयोग भारत के हितों के लिए करता है !! पाकिस्तान और अफगानिस्तान के साथ अमेरिका क

हैकिंग, डेटा चोरी न केवल सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के

*'हैकिंग, डेटा चोरी न केवल सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के अंतर्गत, बल्कि आईपीसी के तहत भी अपराध को आकर्षित करते हैं': सुप्रीम कोर्ट*  *सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि हैकिंग और डेटा चोरी न केवल सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) के दंडात्मक प्रावधानों के अंतर्गत, बल्कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी)* के तहत भी अपराध को आकर्षित करते हैं और आईटी अधिनियम आईपीसी की प्रयोज्यता को बाहर नहीं करता है।   *जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की अवकाश पीठ पंजाब और हरियाणा के उच्च न्यायालय* के मार्च के आदेश (प्राथमिकी के संबंध में अग्रिम जमानत याचिका खारिज) के खिलाफ याचिकाकर्ता (एक जगजीत सिंह) की पुनर्विचार याचिका पर विचार कर रही थी।  याचिकाकर्ता पर आईपीसी की  *धारा 406 (विश्वास का आपराधिक हनन), धारा 408 (क्लर्क या नौकर द्वारा उसे सौंपी गई संपत्ति के संबंध में आपराधिक विश्वासघात), धारा 379 (चोरी), धारा 381 (मालिक के कब्जे की संपत्ति की क्लर्क या नौकर द्वारा चोरी), 120-बी और धारा 34, आईटी अधिनियम 2000 की धारा 43 (कंप्यूटर, कंप्यूटर सिस्टम आदि को नुकसान), धारा 66 (कंप्यूटर से संब

नरक मै कैसी यातनाये दी जाती है ꫰

Image
‘‘नरक " किसी स्थान पर पापी प्राणियों को कोल्हू में पीड़ा जा रहा था, कहीं उल्टा लटका रखा था, कहीं गर्म खंभों से बाँध रखा था। कई प्रकार से चीस (कष्ट) दी जा रही थी। कहीं पर यमदूत पापी प्राणियों को चबा-चबाकर खा रहे थे। कुछ डर के मारे इधर-उधर भाग रहे थे, परंतु कोई बच नहीं पा रहा था। किसी को नरक कुण्डों में डाल रखा था। कोई सिर में मोगरी (छोटे-मोटे डण्डे) मार रहा था। 84 नरक कुण्ड बने हैं। यह दृश्य आँखों से देखकर राजा व्याकुल हो गया। किसी कुण्ड में रूधिर (ठसववक) भरा था। किसी में पीब (मवाद) तो किसी में मूत्र भरा था जिनकी गहराई एक योजन (12 कि.मी.) तथा चार योजन (48 किमी.) परिधि  यानि गोलाई और चार योजन तक दुर्गन्ध जाती है। इन चार कुण्डों का तो यह वर्णन है। पाँचवें में अग्नि जल रही थी, बहुत जीव उसमें जल रहे थे। यह बहुत लम्बा-चौड़ा है, गहरा है। राजा अमर सिंह उस नरक को देखकर भयभीत था, कुछ बोल नहीं पा रहा था। जो झूठ बोलकर स्वार्थ पूर्ति करता है, उसकी जीभ काट रखी थी। जो झूठी गवाही देता था, उसको सर्प की जीभ लगा रखी थी। जो निर्दोष को मारता है, उसकी पिटाई हो रही थी। जो स्त्री अपने पति को

भैंस का सींग भगवान बना

Image
‘‘भैंस का सींग भगवान बना’’ एक पाली (भैंसों को खेतों में चराने वाला) अपनी भैंसों को घास चराता-चराता मंदिर के आसपास चला गया। मंदिर में पंडित कथा कर रहा था। भगवान के मिलने के पश्चात्होने वाले सुख बता रहा था कि जिसको भगवान मिल गया तो सब कार्य सुगम हो जाते हैं। परमात्मा भक्त के सब कार्य कर देता है। भगवान भक्त को दुःखी नहीं होने देता। इसलिए भगवान की खोज करनी चाहिए। पाली भैंसों ने तंग कर रखा था। एक किसी ओर जाकर दूसरे की फसल में घुसकर नुकसान कर देती, दूसरी भैंस किसी ओर। खेत के मालिक आकर पाली को पीटते थे। कहते थे कि हमारी फसल को हानि करा दी। अपनी भैंसों को संभाल कर रखा कर। पाली ने जब पंडित से सुना कि भगवान मिलने के पश्चात् सब कार्य आप करता है, भक्त मौज करता है तो पंडित जी के निकट जाकर चरण पकड़कर कहा कि मुझे भगवान दे दो। मैं भैंसों ने बहुत दुःखी कर रखा हूँ। पंडित जी ने पीछा छुड़ाने के उद्देश्य से कहा कि कल आना। पाली गया तो पंडित ने पहले ही भैंस का टूटा हुआ सींग जो कूड़े में पड़ा था, उठाकर उसके ऊपर लाल कपड़ा लपेटकर लाल धागे (नाले=मौली) से बाँधकर कहा कि ले, यह भगवान है। इसकी पूजा करना,

संत रविदास जी की कथा ...........................

Image
संत रविदास जी की कथा           एक पंडित जी गंगा स्नान करने रोज जाते थे, रास्ते मे संत रविदास जी दूकान पड़ती थी। जिसमें वो जूते सिलने का काम करते थे, संत रविदास जी चमार जाती से थे इसलिए पंडित जी उन्हे शुद्र कहते थे। दूर से ही राम राम करके चले जाते, एक दिन पंडित जी की जूती टूट गयी तो सोचा संत रविदास से बनवा लूंगा।        गंगा स्नान करने जाते समय रास्ते मे रविदास जी के दुकान के सामने रुके और बोले रविदास हमरी जूती बना दो। टूट गयी हैं। पंडित जी उनके पास नहीं गए। सङक पर ही खड़े रहे।        रविदास जी ने कहा पंडित जी बैठिए जब तक मै आपकी जुटी बना देता हूँ, पंडित जी बोले नहीं रविदास मै शुद्र के निकट नहीं आता। तुम्हारे पास आने से मै आपवित्र हो जाऊंगा। तुम मेरी जूती बना कर दे दो। जो मजदूरी हो ले लो।      रविदास जी ने कहा ठीक है पंडित जी, संत रविदास जी ने जूती बनाते हुए पंडित जी से पूछा पंडित जी कहा जा रहे हैं आप?        पंडित जी बोले मै गंगा स्नान करने जा रहा हूं। तुम कभी समय निकाल कर जाया करो। मानव जीवन मिला है कुछ धर्म करम भी किया करो संत जी बोले जी पंडित जी और उनकी जुती उन्हे दे दी।

हे धर्मदास! मैं सत्यपुरूष की आज्ञा के अनुसार मृत्युलोक (काल लोक) में आया

#कबीरसागर_का_सरलार्थ परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि एक अमर सिंह नाम का सिंगलदीप का राजा था। अमरपुरी नाम की नगरी उसकी राजधानी थी। हे धर्मदास! मैं सत्यपुरूष की आज्ञा के अनुसार मृत्युलोक (काल लोक) में आया। (धर्मदास जी मन-मन में कह रहे थे कि आप स्वयं सब लीला कर रहे हो। मैं तो आपको दोनों रूपों में देख चुका हूँ।) परमात्मा ने कहा कि एक अमर सिंह नामक राजा अमरपुरी राजधानी में रहता है। वह पुण्यात्मा है, परंतु भगवान भूल गया है। आप जाओ, उसका कल्याण करो। कोई बालक भी नाम ले, उसे भी दीक्षा देना। स्त्राी नाम ले, उसे भी नाम देना। हे धर्मदास! मैं अमरपुरी नगरी में गया। राजा ने अपनी कचहरी (ब्वनतज) लगा रखी थी। मैं राजा के महल के मध्य में बनी ड्योडी में पहुँच गया। उस समय मैंने अपने शरीर का सोलह सूर्यों जितना प्रकाश बनाया। राजा के महल में अनोखा प्रकाश हुआ। राजा को पता चला तो उठकर महल में आया। मेरे चरण पकड़कर पूछा कि क्या आप ब्रह्मा, विष्णु, शिव में से एक हो या परब्रह्म हो? मैंने कहा कि ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा परब्रह्म से भी ऊपर के स्थान सतलोक से आया हूँ। राजा को विश्वास नहीं हुआ तथा मजाक जाना। मै