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Showing posts from September, 2021

दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि हे धर्मदास! अब मैं तेरे को ऐसे लोक का वर्णन सुनाता हूँ जिसमें 13 युग हैं। वहाँ के

प्रथम तरंग में अघासुर युग की कथा है। Part-A  ‘‘अघासुर युग का ज्ञान (प्रथम तरंग)‘‘  कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि हे धर्मदास! अब मैं तेरे को ऐसे लोक का वर्णन सुनाता हूँ जिसमें 13 युग हैं। वहाँ के प्राणियों को भी मैंने सत्यलोक की जानकारी दी। जिन प्राणियों ने मेरे ऊपर विश्वास किया, उनको भी नाम दीक्षा देकर पार किया। उनको दीक्षा देकर मोक्ष दिलाया। उनको सतलोक पहुँचाया। अघासुर युग में पाँचवें ब्रह्माण्ड में गया। अघासुर युग के प्राणी अच्छे स्वभाव के होते हैं। उन्होंने शीघ्र मेरा ज्ञान स्वीकार किया। एक करोड़ प्राणियों को पार किया।  ‘‘दूसरा बलभद्र युग‘‘  बलभद्र युग में चौदह लाख जीव पार किये। पाठकों से निवेदन है कि अम्बुसागर पृष्ठ 4 पर दोहों के पश्चात् ‘‘हंस वचन-चौपाई‘‘ से लेकर अंतिम पंक्ति, पृष्ठ 5 पूरा तथा पृष्ठ 6 पर बलभद्र युग सम्बंधी प्रकरण बनावटी है।  ‘‘तीसरा द्धन्दर युग का वर्णन‘‘  एक जलरंग नामक शुभकर्मी हंस अपने पूर्व जन्मों की भक्ति कमाई से अछप द्वीप में रहता था। वह स्वयंभू गुरू भी बना था। उसने बहुत से जीव दीक्षा देकर शिष्य बनाए थे जो उसकी सेवा करते थे। जलरंग अपने शिष्यों के सिर पर

विवाह‘ एक ऐसा

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मानव जीवन का सबसे खूबसूरत पल ‘विवाह‘ एक ऐसा संस्कार है जो दो दिलों को एक करने के साथ ही दो परिवारों और कितने ही अन्य लोगों को रिश्तों की कड़ी में पिरोता है।  प्यार, उल्लास और मौज-मस्ती के इस माहौल को ताउम्र यादों में बसाए रखती इस संस्कार से जुड़ी ढेर सारी रोचक रस्में और खूब सारे खेल। सभी रस्में कुछ इस प्रकार की होती हैं जिनमें परिवार के सभी सदस्यों की कुछ न कुछ भूमिका होती है। विवाह के समय खुशियों और उमंगों को दोगुना करने के लिए संगीत, हल्दी, मेंहदी, शादी और रिसेप्शन तक पांच दिनों के आयोजनों में कई खेलों का सहारा लिया जाता है, जिसमें दुल्हा-दुल्हन एक दूसरे को समझ सके और परिवार के अन्य लोगों के बीच घुल-मिल सकें…. बेशक, अगर विवाह एक खूबसूरत कविता है तो इससे जुड़ी रस्में उसकी मिठास भरी धुन हैं। रीति-रिवाजों के इस प्रांगण में रस्मों की परंपराएं, वह चाहे बारात की अगवानी के समय दुल्हन द्वारा दूल्हेराजा के चेहरे पर चावल फेंकने की हो या फिर सासू मां द्वारा अपनी प्यारी बहू की मुंह दिखाई की हो या कभी मेंहदी की रस्म…, कभी हाथ पीले करना…, कभी अंगूठी ढूढ़ना…, कभी सांस द्वारा दुल्हें की नाक

हंस (भक्त) लक्षण‘‘

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पृष्ठ 161 अनुराग सागर का सारांश :- कबीर परमात्मा ने कहा कि हे धर्मदास! जिस प्रकार शूरवीर तथा कोयल के सुत (बच्चे) चलने के पश्चात् पीछे नहीं मुड़ते। इस प्रकार यदि कोई मेरी शरण में इस प्रकार धाय (दौड़कर) सब बाधाओं को तोड़कर परिवार मोह छोड़कर मिलता है तो उसकी एक सौ एक पीढि़यों को पार कर दूँगा। कबीर, भक्त बीज होय जो हंसा। तारूं तास के एकोतर बंशा।। कबीर, कोयल सुत जैसे शूरा होई। यही विधि धाय मिलै मोहे कोई।। निज घर की सुरति करै जो हंसा। तारों तास के एकोतर बंशा।। ‘‘हंस (भक्त) लक्षण‘‘ काग जैसी गंदी वृत्ति को त्याग देता है तो वह हंस यानि भक्त बनता है। काग (कौवा) निज स्वार्थ पूर्ति के लिए दूसरों का अहित करता है। किसी पशु के शरीर पर घाव हो जाता है तो कौवा उस घाव से नौंच-नौंचकर माँस खाता है, पशु की आँखों से आँसू ढ़लकते रहते हैं। कौए की बोली भी अप्रिय होती है। हसं को चाहिए कि अपनी कौए वाला स्वभाव त्यागे। निज स्वार्थवश किसी को कष्ट न देवे। कोयल की तरह मृदु भाषा बोले। ये लक्षण भक्त के होते हैं। ‘‘ज्ञानी यानि सत्संगी के लक्षण‘‘ सतगुरू का ज्ञान तथा दीक्षा प्राप्त करके यदि शिष्य जगत भाव में चल

यह है पंच मुद्रा बोध जो मूल यानि यथार्थ ज्ञान है।

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#कबीरसागर_का_सरलार्थ कबीर सागर में 29वां अध्याय ‘‘पंचमुद्रा‘‘  पृष्ठ 181 पर है। यह भी 33 अरब वाणी वाला ज्ञान है। (तेतीस अरब ज्ञान हम भाखा, मूल ज्ञान गोय हम राखा।) मूल ज्ञान निम्न पढ़ें:- परम पूज्य कबीर साहेब (कविर् देव) की अमृतवाणी संतो शब्दई शब्द बखाना।।टेक।। शब्द फांस फँसा सब कोई शब्द नहीं पहचाना।। प्रथमहिं ब्रह्म स्वं इच्छा ते पाँचै शब्द उचारा। सोहँग, ज्योति निरंजन, रंरकार, शक्ति और ओंकारा।। पाँचै तत्त्व प्रकृति तीनों गुण उपजाया। लोक द्वीप चारों खान चैरासी लख बनाया।। शब्दइ काल कलंदर कहिये शब्दइ भर्म भुलाया। पाँच शब्द की आशा में सर्वस मूल गंवाया।। शब्दइ ब्रह्म प्रकाश मेंट के बैठे मूंदे द्वारा। शब्दइ निरगुण शब्दइ सरगुण शब्दइ वेद पुकारा।। शुद्ध ब्रह्म काया के भीतर बैठ करे स्थाना। ज्ञानी योगी पंडित औ सिद्ध शब्द में उरझाना।। पाँचइ शब्द पाँच हैं मुद्रा काया बीच ठिकाना। जो जिहसंक आराधन करता सो तिहि करत बखाना।। शब्द ज्योति निरंजन चांचरी मुद्रा है नैनन के माँही। ताको जाने गोरख योगी महा तेज तप माँही।। शब्द ओंकार भूचरी मुद्रा त्रिकुटी है स्थाना। व्यास देव ताहि पहिचाना चांद सूर्य तिह

मन कैसे पाप-पुण्य करवाता है‘‘मन ही काल-कराल है। यह जीव को नचाता है। सुंदर स्त्री को देखकर उससे भोग-विलास करने की उमंग मन में उठाता है

#कबीरसागर_का_सरलार्थ अनुराग सागर के पृष्ठ 152 का सारांश :- इस पृष्ठ पर परमेश्वर ने शरीर के अंदर का गुप्त भेद बताया है। इस मानव शरीर में 72 नाडि़यां हैं। उनमें तीन (ईड़ा, पिंगला, सुष्मणा) मुख्य हैं। फिर एक विशेष नाड़ी है ‘‘ब्रह्म रन्द्र‘‘ परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि धर्मदास! मन ही ज्योति निरंजन है। इसने जीव को ऐसे नचा रखा है जैसे बाजीगर मर्कट (बंदर) को नचाता है। इस शरीर में 5 तत्त्व 25 प्रकृति तथा तीन गुण काल के तीन एजेंट हैं। जीव को धोखे में रखते हैं। इस शरीर में काल निरंजन तथा जीव दोनों की मुख्य भूमिका है। काल निरंजन मन रूप में सब पाप करवाता है। पाप जीव के सिर रख देता है। अनुराग सागर के पृष्ठ 153 का सारांश :- काल ने ऐसा धोखा कर रखा है कि जीव परमेश्वर को भूल गया है। ‘‘मन कैसे पाप-पुण्य करवाता है‘‘ मन ही काल-कराल है। यह जीव को नचाता है। सुंदर स्त्री को देखकर उससे भोग-विलास करने की उमंग मन में उठाता है। स्त्री भोगकर आनन्द मन (काल निरंजन) ने लिया, पाप जीव के सिर रख दिया। {वर्तमान में सरकार ने सख्त कानून बना रखा है। यदि कोई पुरूष किसी स्त्री से बलात्कार करता है तो उसको दस वर्ष की सजा ह

एक लेवा एक देवा दूतं। कोई किसी का पिता न पूतं |

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*एक लेवा एक देवा दूतं। कोई किसी का पिता न पूतं |  📜एक किसान के घर एक पुत्र उत्पन्न हुआ। पुत्र आठ वर्ष का हुआ तो पत्नी की मृत्यु हो गई। किसान के पास 16 एकड़ जमीन थी। कुछ वर्ष पश्चात् किसान ने दूसरी शादी की। उस पत्नी से भी एक पुत्रा उत्पन्न हुआ। कुछ वर्ष पश्चात् उस पत्नी की भी मृत्यु हो गई। किसान का प्रथम पत्नी वाला पुत्रा 16 वर्ष का हुआ। उसका विवाह कर दिया। किसान की भी मृत्यु हो गई। छोटा लड़का 10-12 वर्ष की आयु में रोगी हो गया। कुछ दिन उपचार कराया, फिर बड़े भाई (मौसी का बेटा) ने तथा उसकी पत्नी ने विचार किया कि उपचार पर क्यों खर्च किया? यदि मर गया तो इसके हिस्से के आठ एकड़ जमीन अपने पास रह जाएगी। यह विचार करके पड़ोस के गाँव से जो वैद्य उपचार के लिए आता था, उससे कहा कि इस लड़को को औषधि में विष मिलाकर दे दो। हम आपको धन दे देंगे। पाँच सौ रूपये के लालच में वैद्य ने उस लड़के को औषधि में विष खिलाकर मार दिया। गाँव वालों को बताया गया कि रोग के कारण मृत्यु हो गई। किसी को शंका नहीं हुई। बच्चे की मृत्यु रोग के कारण हुई मान ली। उस मौसी के बेटे की मृत्यु के एक वर्ष पश्चात् बड़े भाई को पुत्रा प्र

परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है’’*

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*‘‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है’’* 📜दीक्षा लेने के उपरांत भक्त के ऊपर भक्ति की राह में कितना ही कष्ट आए, मन में यही आए कि परमात्मा जो करता है, भक्त के भले में ही करता है।  कथा:- एक राजा तथा महामंत्राी गुरू के शिष्य थे। महामंत्राी जी को पूर्ण विश्वास था, परंतु राजा को सत्संग सुनने का समय कम मिलता था। जिस कारण से वह परमात्मा के विधान से पूर्ण परिचित नहीं था, परंतु भक्ति श्रद्धा से करता था। महामंत्राी को राजा हमेशा अपने साथ रखता था। उसकी सबसे अधिक इज्जत करता था। एक मंत्राी को महामंत्राी से इसी बात पर ईष्र्या थी। वह महामंत्राी को राजा की नजरों में गिराने के लिए राजा को महामंत्राी के विषय में निंदा करता था। एक मंत्राी चाहता था कि राजा मुझे महामंत्राी बना दे। उसके लिए बार-बार कहता था कि राजन! यह महामंत्राी विश्वास पात्र नहीं है। यह आपको कभी भी धोखा दे सकता है। एक दिन राजा तथा महामंत्राी तथा वह चापलूस मंत्राी व अन्य मंत्राीगण किसी अन्य शहर में जाने की तैयारी में महल के अंदर हाॅल में खड़े थे। राजा अपनी तलवार को निकालकर उसकी धार (तीखापन) चैक करने लगा और अन्य मंत्रियों से बा

गुरुद्रोहियों से सावधान

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गुरुद्रोहियों से सावधान निकम्मे गुरद्रोही परमात्मा द्वारा नियुक्त मैनेजमेंट मे कमी निकालने और निरथर्क बकवास करते करते बिल्कुल बेशर्म और नंगे हो चुके है इन जितनी बेसिरपैर की बाते तो कभी नकली गुरुओ के शिष्यों ने भी नही की थी। 1) मुर्खो के सरदार गुरुद्रोहियों को परमात्मा की दया से चल रहे नामदान पर शंका है नामदान केन्द्र पर शंका करना महापाप है क्योंकि नामदीक्षा उसी C.D recording से दी जाती है जो आश्रम मे दी जाती थी यह सभी नामदान केन्द्रों पर उसी आश्रम मे नामदीक्षा के लिये प्रयोग की जाने वाली पवित्र C.D की प्रतिलिपि है। जिस C.D से कभी इन गुरुद्रोहियों पर परमेश्वर की कृपा हुई थी वह तब तो ठीक थी तो आज इसे गलत कहने का महाअपराध क्यों किया जा रहा है इस बात के बारे मे गुरुद्रोही स्पष्टीकरण दे क्या आश्रम के विधि विधान और नामदान केन्द्र मे नामदीक्षा मे किसी भी प्रकार का कोई अन्तर है। यदि नही तो शर्म करे कि वो जानबूझकर इस पवित्र मार्ग मे अन्धे गधे बने खड़े है।  2) परमात्मा के फौन को मना करनाः-ः गुरुद्रोही परमात्मा के मुखकमल से फरमाये गये वचनो को मना करने की धृष्टता करते है। कोयल के बच्चे कोयल की वाणी

आपको फॉर्चून कंपनी ने बेवकूफ बना रही है

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अगर आप फार्च्यून का राइस ब्रान का तेल लेते हैं और यह सोचते हैं इस पर हेल्थ लिखा है यानी यह बहुत हेल्दी तेल होगा  तब आपको फॉर्चून कंपनी चुटिया बना रही है  पीछे कंपनी ने साफ-साफ लिखा है राइस ब्रोन  हेल्थ उसका लोगो और ब्रांड का नाम है और हेल्थ शब्द का जो  मतलब है उससे इस तेल का कोई लेना देना नहीं है  लेकिन हममें से कोई इतनी ध्यान से पीछे पढ़ता  नहीं है जागो ग्राहक जागो ग्राहक

भारत मे सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट जजो की नियुक्ति जज ही करते है कोई एग्जाम /इंटरव्यू नहीं होता हैं तथा वे जनता के प्रति शून्य जवाबदेय होते हैं।

कुछ सूचनाएं 1.भारत मे कुल मिलाकर साढ़े 3 करोड़ कोर्ट केस पेंडिंग हैं (सच्चे झूठे सब ) इन केसेस में देरी की वजह से कम से कम 1 पक्ष के साथ अन्याय हो रहा हैं। लगभग एक केस में 4 से 5 लोग इन्वॉल्व होते है तो कुल 15 करोड़ लोगो की टांगे अदालतों में धँसी है। तो ये इतना तो पक्का है कि ये 15 करोड़ लोग आपकी भाषा ने जागरूक है हमारी भाषा मे अदालतों के भ्रष्टाचार से वाकिफ है या सूचित है। तो कम से कम इन 15 करोड़ को तो बेहतर विकल्प जुरीकोर्ट कानून की सूचना देवो। 2. भारत मे सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट जजो की नियुक्ति जज ही करते है कोई एग्जाम /इंटरव्यू नहीं होता हैं तथा वे जनता के प्रति शून्य जवाबदेय होते हैं। 3. भारत मे हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट जजो के रिस्तेदार वकील उन अदालतों में प्रैक्टिस करते है जिनमे वे पोस्टेड है।भंयकर क्रोस नेपोटिज्म होता है। लेकिन ज्यादातर एक्टिविस्ट ये डेटा पब्लिकली नहीं बताते है। तो मेरे सभी पाठकों से 2 सवाल है। 1.क्या आप मौजूदा न्याय व्यवस्था से संतुष्ट है? यदि  जवाब हाँ है तो दूसरे सवाल आपके लिये नहीं है। यदि जवाब "नहीं" है तो सवाल है  2.आप किस तरह की व्यवस्था चाहते है क

सोनार GST से क्यु डरता है?*

*सोनार GST से क्यु डरता है?* मान लीजिये आप सुनार के पास गए आपने *10 ग्राम प्योर सोना 50000 रुपये का खjरीदा।*  उस सोने को लेकर आप सुनार के पास हार बनवाने गए। सुनार ने आपसे 10 ग्राम सोना लिया और कहा की 2000 रुपये बनवाई लगेगी।  आपने *खुशी* से कहा ठीक है। उसके बाद सुनार ने *1 ग्राम सोना निकाल लिया* और 1 ग्राम का *टांका* लगा दिया। क्योंकि बिना टांके के आपका हार बन ही नहीं सकता।  *यानी की 1 ग्राम सोना 3000 रुपये का निकाल लिया* और 2000 रुपये आपसे *बनवाई अलग से* लेली।  यानी आपको *5000 रुपये का झटका* लग गया। अब आपके *50 हजार* रुपये सोने की कीमत मात्र *45 हजार* रुपये बची और सोना भी *1 ग्राम कम कम हो कर 9 ग्राम शेष बचा ।*   बात यहीं खत्म नही हुई। उसके बाद *अगर* आप पुन: अपने सोने के हार को बेचने या कोई और आभूषण बनवाने पुन: उसी सुनार के पास जाते हैं तो वह पहले टांका काटने की बात करता है और सफाई करने के नाम पर *0.5 ग्राम सोना* और कम हो जाता है।  अब आपके पास मात्र *8.5 ग्राम* सोना ही बचता है। यानी की *50 हजार* का सोना मात्र *43500* रुपये का बचा। आप जानते होंगे कि, *50000 रुपये का सोना + 2000 रुपये बन

ब्रह्मांड 2100👇

👇ब्रह्मांड 2100👇 ब्रह्मांड एक्किसों/2100 ऊपरि तकिया, जहा सतगुरु की बंकी पौरी।  बिना मूल एक तरुवर फूल्या। लगे अनूपम मौर।।  अगम से सुगम किया मेरे सतगुरु। भया और से और।।  दास गरीब,अमर अनरागी। ढुरैं कबीरा के सिर चौंर।।  ब्रह्मांड एक्किसों/2100और चौबीसौं/2400, ये नाहिं सिद्धि थीरं।  चौदह/14 तबक इक्कीसौं/2100 ब्रह्मांड, आवत जावत माया।  कबीर,सतगुरु सम कोई नहीं,सात दीप नौ खण्ड ।  तीन लोक ना पाइये,और इक्कीस /21 ब्रह्मांड।।  गरीब,अनंत कोटी ब्रह्मांड रचि,सब तजि रहै नियार।  जिंदा कहै धर्मदास सूँ ,जाका करो विचार।।  गरीब,सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान। झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत स्मसान॥ बोलत रामानंदजी,सुन कबीर करतार।  गरीबदास सब रूपमैं,तुमहीं बोलन हार।। दास गरीब,सब सृष्टि में,हम रोवत हैं बेहाल।  मैं रोवत सृष्टि को,सृष्टि रोवती मोहि।।  हम ही अलख अल्लाह हैं,कुतुब गौस और पीर।  गरीबदास,खालिक धनी,हमारा नाम कबीर।।  ए स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टी हमारै तीर।  दास गरीब अधर बसूं,अविगत सत्य कबीर।।  दासगरीब शब्द सज्या,नहीं किसी का साथ।। दास गरीब न दूसरा, हम समतुल नहीं और।। गरीब,आद्या हमारी बहन हैं,ब्र

परमेश्वर कबीर जी ने कर्मों का उल्लेख किया है:-

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कबीर सागर में 24वां अध्याय कर्म बोध पृष्ठ 162 पर है। परमेश्वर कबीर जी ने कर्मों का उल्लेख किया है:- मेरे हंसा भाई शुद्ध स्वरूप था जब तू आया। कर्मों के बंधन में फंस गया तातें जीव कहाया।। परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि सत्यलोक से जीव स्वेच्छा से काल ब्रह्म के षड़यंत्र में फंसकर यहाँ आ गया। इसलिए जीव कहलाया। सत्यलोक में बिना कर्म किए सर्व पदार्थ उपलब्ध थे। यहाँ काल ब्रह्म ने कर्म का विधान बनाया है कि कर्म करेगा तो फल मिलेगा। श्रीमद् भगवत गीता अध्याय 3 श्लोक 14-15 में कहा है कि सर्व प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं। अन्न खाने से बीज (वीर्य) बनता है जिससे सर्व प्राणी उत्पन्न होते हैं। अन्न वर्षा से होता है। वर्षा यज्ञ से यानि शास्त्र अनुकूल कर्म से होती है। कर्म काल ब्रह्म से उत्पन्न हुए यानि कर्म का विधान ब्रह्म (क्षर पुरूष) ने बनाया। जैसे कर्म जीव करेगा, वैसे ही भोगेगा। ब्रह्म (क्षर पुरूष) की उत्पत्ति अक्षर यानि अविनाशी परमेश्वर से हुई। अविनाशी परमेश्वर ही सदा यज्ञों यानि धार्मिक अनुष्ठानों में प्रतिष्ठित है यानि ईष्ट देव रूप में मानकर पूजा करनी होती है। प्रश्न:- कर्म कितने प्रकार

नारायण दास को काल का दूत बताना‘‘ Part B

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‘‘नारायण दास को काल का दूत बताना‘‘ Part B ‘‘धर्मदास वचन‘‘ बांह पकर तब लीन्ह उठाई। पुनि सतगुरू के सन्मुख लाई।। सतगुरू चरण गहो रे बारा। यम के फन्द छुड़ावन हारा।। तज संसार लोक कहँ जाई। नाम पान गुरू होय सहाई।। भावार्थ :- धर्मदास जी ने अपने पुत्र नारायण दास को बाजू से पकड़कर उठाया और सतगुरू कबीर जी के सामने ले आया। हे मेरे बालक! सतगुरू के चरण ग्रहण करो। ये काल की बंद से छुड़ाने वाले हैं। जिस समय संसार छोड़कर सतलोक में जाएंगे तो गुरू दीक्षा सहायता करती है। ‘‘नारायण दास वचन‘‘ तब मुख फेरे नरायन दासा। कीन्ह मलेच्छ भवन परगासा।। कहँवाते जिंदा ठग आया। हमरे पितहिं डारि बौराया।। वेद शास्त्रा कहँ दीन उठाई। आपनि महिमा कहत बनायी।। जिंदा रहे तुम्हारे पासा। तो लग घरकी छोड़ी आसा।। इतना सुनत धर्मदासा अकुलाने। ना जाने सुत का मत ठाने।। पुनि आमिन बहुविधि समझायो। नारायण चित एकु न आयो।। तब धर्मदास गुरू पहँ आये। बहुविधिते पुनि बिनती लाये।। भावार्थ :- सतगुरू कबीर जी के सम्मुख जाते ही नारायण दास ने अपना मुख दूसरी ओर टेढ़ा किया और बोला कि पिता जी! आपने मलेच्छ (मुसलमान) को घर में प्रवेश करवाया है। धर्म भ

यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा अपने भक्त के सर्व अपराध (पाप) नाश (क्षमा) कर देता है।

परिचय part A संत रामपाल जी का जन्म 8 सितम्बर 1951 को गांव धनाना जिला सोनीपत हरियाणा में एक किसान परिवार में हुआ। पढ़ाई पूरी करके हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजिनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे। सन् 1988 में परम संत रामदेवानंद जी से दीक्षा प्राप्त की तथा तन-मन से सक्रिय होकर स्वामी रामदेवानंद जी द्वारा बताए भक्ति मार्ग से साधना की तथा परमात्मा का साक्षात्कार किया। संत रामपाल जी को नाम दीक्षा 17 फरवरी 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को रात्राी में प्राप्त हुई। उस समय संत रामपाल जी महाराज की आयु 37 वर्ष थी। उपदेश दिवस (दीक्षा दिवस) को संतमत में उपदेशी भक्त का आध्यात्मिक जन्मदिन माना जाता है। उपरोक्त विवरण श्री नास्त्रोदमस जी की उस भविष्यवाणी से पूर्ण मेल खाता है जो पृष्ठ संख्या 44.45 पर लिखी है। ”जिस समय उस तत्वदृष्टा शायरन का आध्यात्मिक जन्म होगा उस दिन अंधेरी अमावस्या होगी। उस समय उस विश्व नेता की आयु 16, 20, 25 वर्ष नहीं होगी, वह तरुण नहीं होगा, बल्कि वह प्रौढ़ होगा और वह 50 और 60 वर्ष के बीच की उम्र में संसार में प्रसिद्ध होगा। वह सन् 2006 होगा।“ सन् 1993 में स्व

कलयुग का प्रथम चरण कब था?

कलयुग का प्रथम चरण कब था? प्रथम चरण कलयुग निरयाना। तब मगहर मांडौ मैदाना।। परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि मैं मगहर में एक लीला करूंगा। ब्राह्मणों के साथ आध्यात्मिक मैदान माँडूँगा यानि ज्ञान गोष्टी करूँगा। (मैदान माँडने का भावार्थ है कि किसी के साथ कुश्ती करना या लड़ाई करना या ज्ञान चर्चा यानि शास्त्रार्थ करने के लिए चैलेंज करना) पंडितजन कहा करते थे कि जो काशी शहर में मरता है वह स्वर्ग में जाता है तथा जो मगहर शहर में मरता है, वह गधा बनता है। इसलिए मगहर में कोई मत मरना। परमेश्वर कबीर जी कहते थे कि सत्य साधना करने वाला मगहर मरे तो भी स्वर्ग तथा स्वर्ग से भी उत्तम लोक में जाता है। {मगहर नगर उत्तर प्रदेश में जिला-संत कबीर नगर में है। गोरखपुर से 25 कि.मी. अयोध्या की ओर है।} कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि मैं मगहर में मरूँगा और उत्तम लोक में जाऊँगा। विक्रमी संवत् 1575 (सन् 1518) माघ के महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को परमेश्वर कबीर जी ने सतलोक जाने की सूचना दे दी। काशी से मगहर सीधे रास्ते से 150 कि.मी. है। उस समय कबीर परमेश्वर जी की लीलामय आयु 120 वर्ष थी। पैदल चलकर तीन दिन में काशी शहर से मगहर स्

परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को सत्यज्ञान समझाकर

परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को सत्यज्ञान समझाकर तथा सत्यलोक में ले जाकर अपना परिचय देकर धर्मदास जी के विशेष विनय करने पर उनको दीक्षा मंत्र दे दिये। प्रथम मंत्र में कमलों के देवताओं के जो जाप मंत्र हैं, वे दिए जाते हैं। धर्मदास जी उन देवों को ईष्ट रूप में पहले ही मानता था, पंरतु अब ज्ञान हो गया था कि ये इष्ट रूप में पूज्य तो नहीं हैं, परंतु साधना का एक अंग हैं। धर्मदास की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसने अपने परिवार का कल्याण करना चाहा। धर्मदास जी के साथ उनकी पत्नी आमिनी देवी दीक्षा ले चुकी थी। केवल इकलौता पुत्र नारायण दास ही दीक्षा बिना रहता था। धर्मदास जी ने परमात्मा कबीर जी से अपने पुत्र नारायण दास को शरण में लेने के लिए प्रार्थना की। ‘‘धर्मदास वचन‘‘ हे प्रभु तुम जीवन के मूला। मेटेउ मोर सकल तन सूला।। आहि नरायण पुत्र हमारा। सौंपहु ताहि शब्द टकसारा।। इतना सुनत सदगुरू हँसि दीन्हा। भाव प्रगट बाहर नहिं कीन्हा।। भावार्थ :- धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्रार्थना की कि हे प्रभु जी! आप सर्व प्राणियों के मालिक हैं। मेरे दिल का एक सूल यानि काँटे का दर्द दूर करें। मेरा पुत्रा नारायण दास

इसका कारण मोबाइल में इनबिल्ट "GPS NEVIGATION SYSTEM" और IMEI नम्बर होते हैं.

मोबाइल फोन होता बहुत छोटा है लेकिन ये सही आदमी के लिए जान बचाने वाला और अपराधियों के लिए "साक्षात काल" होता है..! इसका कारण मोबाइल में इनबिल्ट "GPS NEVIGATION SYSTEM"  और IMEI नम्बर होते हैं. चाहे फोन का कितना भी सिम कार्ड बदल लो या इसे फॉर्मेट कर लो लेकिन जैसे ही मोबाइल फोन को ऑन किया जाता है..  ये सिग्नल रिसीव करने के लिए टावर से संपर्क करता है और अपना IMEI नम्बर टावर को भेजता है. जिससे उक्त मोबाइल का सटीक लोकेशन सर्विस प्रदाता कंपनी को मिल जाती है. जिसका उपयोग पुलिस अपने ढंग से करती है और अपराधी पकड़ा जाता है. ये तो हुई मोबाइल की बात...! लेकिन, गाड़ियों और DTH आदि का नेविगेशन सिस्टम.. किसी टावर से नहीं बल्कि सीधे उस देश के सेटेलाइट से जुड़ा होता है. जैसे कि... DISH TV, AIRTEL, VIDEOCON , telsa कार आदि का नेविगेशन सिस्टम अपने अपने देश के सेटेलाइट से जुड़ा होता है. और, भगवान की दया से... किसी भी गाड़ी में इनबिल्ट इंजन नम्बर और चेचिस नंबर होता है. उसे कोई कितना भी खुरच ले या बदल ले... लेकिन, कंपनी को मालूम होता है महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल आदि में फलाने ईसवी के फलाने महीन