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Showing posts from April, 2022

दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

जो भूत पूजा (अस्थियाँ उठाकर पुरोहित द्वारा पूजा कराकर गंगा में बहाना, तेरहवीं, सतरहवीं, महीना, छःमाही, वर्षी आदि-आदि) करते हैं, वे प्रेत बनकर गया स्थान पर प्रेत शिला पर बैठे होते हैं।

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सूक्ष्मवेद में इस शास्त्र विरूद्ध धार्मिक क्रियाओं यानि साधनाओं पर तर्क इस प्रकार किया है कि घर के सदस्य की मृत्यु के पश्चात् ज्ञानहीन गुरूजी क्या-क्या करते-कराते हैं:- कुल परिवार तेरा कुटम्ब-कबीला, मसलित एक ठहराई बांध पींजरी (अर्थी) ऊपर धर लिया, मरघट में ले जाई। अग्नि लगा दिया जब लम्बा, फूंक दिया उस ठांही। पुराण उठा फिर पंडित आए, पीछे गरूड़ पढ़ाई। प्रेत शिला पर जा विराजे, पितरों पिण्ड भराई। बहुर श्राद्ध खाने कूं आए, काग भए कलि माहीं। जै सतगुरू की संगति करते, सकल कर्म कटि जाई। अमरपुरी पर आसन होता, जहाँ धूप न छांई। शब्दार्थ:- कुछ व्यक्ति मृत्यु के पश्चात् उपरोक्त क्रियाऐं तो करते ही हैं, साथ में गरूड़ पुराण का पाठ भी करते हैं। परमेश्वर कबीर जी ने सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) की वाणी में स्पष्ट किया है कि लोकवेद (दंत कथा) के आधार से ज्ञानहीन गुरूजन मृतक की आत्मा की शांति के लिए गरूड़ पुराण का पाठ करते हैं। गरूड़ पुराण में एक विशेष प्रकरण है कि जो व्यक्ति धर्म-कर्म ठीक से नहीं करता तथा पाप करके धन उपार्जन करता है, मृत्यु के उपरांत उसको यम के दूत घसीटकर ले जाते हैं। ताम्बे की धरती गर्म हो

रिटायरमेंट के बाद का दर्द*****अब ये‌ रिटायर्ड IAS/IPS/PCS/तहसीलदार/ पटवारी/ बाबू/ प्रोफेसर/ प्रिंसिपल/ अध्यापक.. कौन.. कौन-सी पोस्ट

रिटायरमेंट के बाद का दर्द :-शहर भोपाल में बसे एक आईएएस अफसर रहने के लिए आए जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुए थे।‌  ये बड़े वाले रिटायर्ड आईएएस अफसर हैरान-परेशान से रोज शाम को पास के पार्क  में टहलते हुए अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे। *एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिए बैठे और फिर लगातार उनके पास बैठने लगे लेकिन उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था - मैं भोपाल में इतना बड़ा आईएएस अफ़सर था कि पूछो मत, यहां तो मैं मजबूरी में आ गया हूं। मुझे तो दिल्ली में बसना चाहिए था- और वो बुजुर्ग प्रतिदिन शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे। परेशान होकर एक दिन जब बुजुर्ग ने उनको समझाया* - आपने कभी *फ्यूज बल्ब* देखे हैं? बल्ब के *फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है‌ कि‌ बल्ब‌ किस कम्पनी का बना‌ हुआ था या कितने वाट का था या उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी?* बल्ब के‌ फ्यूज़ होने के बाद इनमें‌‌ से कोई भी‌ बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती है। लोग ऐसे‌ *बल्ब को‌ कबाड़‌ में डाल देते‌ हैं है‌ कि नहीं! फिर जब उन रिटायर्ड‌ आईएएस अधिकारी महोदय ने सहमति‌ में सिर‌ ह

वृद्ध अवस्था में शरीर निर्बल हो जाता है। आँखों की रोशनी कम हो जाती है। जिस कारण से वृद्ध पिता-माता अधिक समय चारपाई पर व्यतीत करते हैं। एक स्त्राी अपनी सासू माँ से

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‘‘श्राद्ध-पिण्डदान करें या न करें’’ वाणी सँख्या 3:- जीवित बाप से लठ्ठम-लठ्ठा, मूवे गंग पहुँचईयाँ। जब आवै आसौज का महीना, कऊवा बाप बणईयाँ।।3।। भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने लोकवेद (दंत कथा) के आधार से चल रही पितर तथा भूत पूजा पर शास्त्रोक्त तर्क दिया है। कहा है कि शास्त्रोक्त अध्यात्म ज्ञान के अभाव से बेटे अपने पिता से किसी न किसी बात पर विरोध करते हैं। पिता जी अपने अनुभव के आधार से बेटे से अपने व्यवसाय में टोका-टाकी कर देते हैं। पिता जी को पता होता है कि इस कार्य में पुत्र को हानि होगी। परंतु पुत्र पिता की शिक्षा कम बाहर के व्यक्तियों की शिक्षा को अधिक महत्व देता है। उसे ज्ञान नहीं होता कि पिता जैसा पुत्रा का हमदर्द कोई नहीं हो सकता। पुत्र को जवानी और अज्ञानता के नशे के कारण शिष्टाचार का टोटा हो जाता है। पिता को पता होता है कि बेटा इस कार्य में हानि उठाएगा। परंतु पुत्र पिता की बात नहीं मानता है। उल्टा पिता को न भला-बुरा कहता है। पिता अपने पुत्र के नुकसान को नहीं देख सकता। वह फिर उसको आग्रह करता है कि पुत्रा! ऐसा ना कर। जिस कारण से जवानी के नशे से हुई सभ्यता की कमी के कारण इत

अन्य शास्त्र विरूद्ध भक्ति पर प्रकाश परमात्मा कबीर जी का

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अन्य शास्त्र विरूद्ध भक्ति पर प्रकाश परमात्मा कबीर जी का शब्द:- रै भोली-सी दुनिया, सतगुरू बिन कैसे सरियाँ।(टेक) अपने लला के बाल उतरवावैं, कह कैंची ना लग जईयाँ। एक बकरी का बच्चा लेकर, उसका गला कटईयाँ।।1।। काचा-पाका भोजन बनाकर, माता धोकने गईयाँ। इस मूर्ति माता पर कुत्ता मूतै, वह क्यों ना मर गईयाँ।।2।। जीवित बाप से लठ्ठम-लठ्ठा, मूवे गंग पहुँचईयाँ। जब आवै आसौज का महीना, कऊवा बाप बणईयाँ।।3।। पीपल पूजै जाँडी पूजे, सिर तुलसाँ के अहोइयाँ। दूध-पूत में खैर राखियो, न्यूं पूजूं सूं तोहियाँ।।4।। आपै लीपै आपै पोतै, आपै बनावै होईयाँ। उससे भौंदू पोते माँगै, अकल मूल से खोईयाँ।।5।। पति शराबी घर पर नित ही, करत बहुत लड़ईयाँ। पत्नी षोडष शुक्र व्रत करत है, देहि नित तुड़ईयाँ।।6।। तज पाखण्ड सत नाम लौ लावै, सोई भवसागर से तरियाँ। कह कबीर मिले गुरू पूरा, स्यों परिवार उधरियाँ।।7।। शब्दार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने अंध श्रद्धा भक्ति करने वाले तत्वज्ञानहीन जनताजनों को उनके द्वारा की जा रही शास्त्र विरूद्ध साधना यानि उपासना को तर्क करके लाभ रहित यानि व्यर्थ सिद्ध किया है। कहा है कि:- हे भोली जनता! गुरू के बिन

कुछ लोग कहते हैं कि कबीर जी ने कभी भी स्वयं को परमेश्वर नहीं कहा।

कुछ लोग कहते हैं कि  कबीर जी ने कभी भी स्वयं को परमेश्वर नहीं कहा। लेकिन कबीर जी ने बहुत बार कहा है कि मैं ही परमेश्वर हूं.........             लीजिए पढिए- . कबीर राम कबीरा एक है, दूजा कबहू ना होय। अंतर टाटी कपट की, ताते दीखै दोय।। . कबीर राम कबीरा एक है, कहन सुनन कूं दोय। दो करि सोई जानिए, सतगुरू मिला ना होय। . कबीर हम कर्ता सब सृष्टि के,हम पर दूसर नाहीं। कहें कबीर जो हमको चीन्हें, नहीं चौरासी माहिं।। . अवधू अविगत से चलि आया, मेरा कोई भेद मर्म ना पाया। ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया। काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहां जुलाहे कूं पाया। मात-पिता मेरे कछु नाहीं, ना मेरे घर दासी (पत्नी)। जुलहे को सूत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी। हाड चाम लहू ना मोरे, जाने सतनाम उपासी। तारन तरन अभय पद (मोक्ष) दाता,  मैं हूं कबीर अविनाशी। . जो बूझे सोए बावरा, क्या है उमर हमारी। असंखो युग प्रलय गई, मैं तब का ब्रहमचारी। कोटी निरंजन हो गए परलोक सिधारी। हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रहमचारी। अरबो तो ब्रह्मा गए, 49 कोटी कन्हैया। 7 कोटी शंभू गए, मोर एक नहीं पलैया।

सीजेआई ने क्या कहा ?

प्रिय CJI, जनता से सब्र की अपेक्षा करने के बजाय जनता को निवारण और समाधान चाहिए... ’इंस्टेंट नूडल्स’ जस्टिस मुहैया कराने का उत्तरदायित्व न्यायपालिका की है... कहते हैं, ‘न्याय में विलंब न्याय को नकारने के समान है।‘देश की अदालतों में बड़ी संख्या में मामले लंबित हैं। यह समस्या कई बार सामने आ चुकी है। इस संदर्भ में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने एक महत्वपूर्ण बयान दिया। चेन्नई में शनिवार को मद्रास उच्च न्यायालय के शिलान्यास समारोह में मौजूद सीजेआई एनवी रमन्ना ने कहा कि ‘इंस्टेंट नूडल्स’ के युग में लोग तत्काल न्याय की उम्मीद करते हैं, जो सच्चे न्याय के लिए हानिकारक है। सीजेआई ने क्या कहा ? सीजेआई एनवी रमन्ना ने चेन्नई में मद्रास उच्च न्यायालय के प्रशासनिक ब्लॉक में नमक्कल और विल्लुपुरम जिलों के अदालत भवनों का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने न्याय व्यवस्था पर लोगों की राय को व्यंग्यपूर्ण बताया। सीजेआई का कहना है कि इंस्टेंट नूडल्स की तरह ही लोग इंसाफ की उम्मीद करते हैं। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि त्वरित न्याय के लिए जजों की संख्या पर्याप्त नहीं है

शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई?

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शिव लिंग पूजा:- जो अपने धर्मगुरूओं द्वारा बताई गई धार्मिक साधना कर रहे हैं, वे पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं कि यह साधना सही है। इसलिए वे अंधविश्वास किए हुए हैं। इस शिव लिंग पर प्रकाश डालते हुए मुझे अत्यंत दुःख व शर्म का एहसास हो रहा है। परंतु अंधविश्वास को समाप्त करने के लिए प्रकाश डालना अनिवार्य तथा मजबूरी है। शिव लिंग (शिव जी की पेशाब इन्द्री) के चित्र में देखने से स्पष्ट होता है कि शिव का लिंग स्त्री की लिंगी (पेशाब इन्द्री यानि योनि) में प्रविष्ट है। इसकी पूजा हिन्दू श्रद्धालु कर रहे हैं। शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई? शिव महापुराण {जो वैंकटेश्वर प्रेस मुंबई से छपी है तथा जिसके प्रकाशक हैं ‘‘खेमराज श्री कृष्णदास प्रकाशन मुंबई (बम्बई), हिन्दी टीकाकार (अनुवादक) हैं विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद जी मिश्र} भाग-1 में विद्येश्वर संहिता अध्याय 5 पृष्ठ 11 पर नंदीकेश्वर यानि शिव के वाहन ने बताया कि शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई? विद्येश्वर संहिता अध्याय 5 श्लोक 27,30:- पूर्व काल में जो पहला कल्प जो लोक में विख्यात है। उस समय महात्मा ब्रह्मा और विष्णु का परस्पर युद्ध हुआ

आन-उपासना करना व्यर्थ है!

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आन-उपासना करना व्यर्थ है! श्री कृष्ण जी के वकील मूर्ति पूजा करने की राय देते हैं। यह काल ब्रह्म द्वारा दिया गलत‌ ज्ञान है जो वेदों व गीता के विरूद्ध साधना होने से व्यर्थ है। सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) में कबीर परमेश्वर जी ने आन-उपासना निषेध बताया है। उपासना का अर्थ है अपने ईष्ट देव के निकट जाना यानि ईष्ट को प्राप्त करने के लिए की जाने वाली तड़फ, दूसरे शब्दों में पूजा करना। आन-उपासना वह पूजा है जो शास्त्रों में वर्णित नहीं है। मूर्ति-पूजा आन-उपासना है:- इस विषय पर सूक्ष्मवेद में कबीर साहेब ने इस प्रकार स्पष्ट किया है:- कबीर, पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार। तातें तो चक्की भली, पीस खाए संसार।।  बेद पढ़ैं पर भेद ना जानें, बांचें पुराण अठारा। पत्थर की पूजा करें, भूले सिरजनहारा।। शब्दार्थ:- किसी देव की पत्थर की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते हैं जो शास्त्रविरूद्ध है। जिससे कुछ लाभ नहीं होता। कबीर परमेश्वर ने कहा है कि यदि एक छोटे पत्थर (देव की प्रतिमा) के पूजने से परमात्मा प्राप्ति होती हो तो मैं तो पहाड़ की पूजा कर लूँ ताकि शीघ्र मोक्ष मिले। परंतु यह मूर्ति पूजा व्यर्थ है। इस (मूर

बादशाह सिकंदर की शंकाओं का समाधान --- प्रश्न - बादशाह सिकंदर लोधी ने कबीर अल्लाह से पूछा,

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 बादशाह सिकंदर की शंकाओं का समाधान प्रश्न - बादशाह सिकंदर लोधी ने कबीर अल्लाह से पूछा, हे परवरदिगार! (क). यह ब्रह्म (काल) कौन शक्ति है? (ख). यह सभी के सामने क्यों नहीं आता? उत्तर - परमेश्वर कबीर साहेब जी ने सिकंदर लोधी बादशाह के प्रश्न ‘क-ख‘ के उत्तर में सृष्टि रचना सुनाई। (कृप्या देखें इसी पुस्तक के पृष्ठ 389 से 444 पर) (ग). क्या बाबा आदम जैसे महापुरुष भी इसी के जाल में फंसे थे? ग के उत्तर में बताया कि पवित्र बाईबल में उत्पत्ति विषय में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा मनुष्यों तथा अन्य प्राणियों की रचना छः दिन में करके तख्त अर्थात् सिंहासन पर चला गया। उसके बाद इस लोक की बाग डोर ब्रह्म ने संभाल ली। इसने कसम खाई है कि मैं सब के सामने कभी नहीं आऊँगा। इसलिए सभी कार्य अपने तीनों पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) के द्वारा करवाता रहता है या स्वयं किसी के शरीर में प्रवेश करके प्रेत की तरह बोलता है या आकाशवाणी करके आदेश देता है। प्रेत, पित्तर तथा अन्य देवों (फरिश्तों) की आत्माऐं भी किसी के शरीर में प्रवेश करके अपना आदेश करती हैं। परन्तु श्रद्धालुओं को पता नहंीं चलता कि यह कौन शक्ति बोल

स्वामी रामानन्द जी को जीवित करना

स्वामी रामानन्द जी को जीवित करना परमेश्वर कबीर जी ने अन्दर जाकर देखा रामान्नद जी का धड़ कहीं पर और सिर कहीं पर पड़ा था। शरीर पर चादर डाल रखी थी। कबीर साहेब ने अपने गुरुदेव के मृत शरीर को दण्डवत् प्रणाम किया और चरण छुए तथा कहा कि गुरुदेव उठो। दिल्ली के बादशाह आपके दर्शनार्थ आए हैं। एक बार उठना। दूसरी बार ही कहा था, सिर अपने आप उठकर धड़ पर लग गया और रामानन्द जी जीवित हो गए “बोलो सतगुरु देव की जय!” सर्व मनुष्य एक प्रभु के बच्चे हैं, जो दो मानता है वह अज्ञानी है रामान्नद जी के शरीर से आधा खून और आधा दूध निकला हुआ था। जब साहेब कबीर से स्वामी रामानन्द जी ने कारण पूछा, हे कबीर प्रभु! मेरे शरीर से आधा रक्त और आधा दूध कैसे निकला है? कबीर साहेब ने बताया कि स्वामी जी आपके अन्दर यह थोड़ी-सी कसर और रह रही है कि अभी तक आप हिन्दू और मुसलमान को दो समझते हो। इसलिए आधा खून और आधा दूध निकला है। आप अन्य जाति वालों को अपना साथी समझ चुके हो। परंतु हिन्दू तथा मुसलमान एक ही परमेश्वर के बच्चे हैं। जीव सभी एक हैं। आप तो जानीजान हो। आप तो लीला कर रहे हो अर्थात् गोल-मोल बात करके सब समझा गए। कबीर-अलख इलाही एक है, नाम

गीता का ज्ञान श्री कृष्ण में प्रवेश करके काल ब्रह्म ने कहा’’

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‘‘गीता का ज्ञान श्री कृष्ण में प्रवेश करके काल ब्रह्म ने कहा’’ कबीर जी का वकील:- दास श्री कृष्ण जी के वकील साहेबानों से अदालत में पुनः जानना चाहता हूँ कि कृपया बताएँ श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान किसने कहा? कृष्ण जी के वकील:- इस बात को तो बच्चा भी जानता है कि श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को बताया। कबीर जी का वकील:- लगता है कि श्री कृष्ण जी के वकील साहेबानों को अपने ही सद्ग्रंथों का ज्ञान नहीं है। इसलिए सब ऊवा-बाई बोल रहे हैं। स्वयं भी भ्रमित हैं तथा अदालत को भी भ्रमित करना चाहते हैं। दास प्रमाणों सहित पेश करता है, सद्ग्रंथों की सच्चाई जो इस प्रकार है:- श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं कहा। उनके शरीर के अंदर प्रेतवत् प्रवेश करके काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने बोला था। प्रमाण:- महाभारत ग्रंथ में लिखा है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात् युद्धिष्ठिर जी को राजगद्दी पर बैठाकर श्री कृष्ण जी ने द्वारका जाने की तैयारी की तो अर्जुन ने कहा कि ’’आप एक सत्संग करके जाना। मेरे को गीता वाला ज्ञान फिर से बताना जो आप जी ने युद्ध के समय बताया था। मैं भूल गया हूँ।

आप जी ने तो यह भी नहीं सुना था कि श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु, श्री शिव के माता-पिता हैं। ये जन्मते-मरते हैं अविनाशी नहीं हैं। उपरोक्त प्रकरण तैमूरलंग को राज

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{पुराणों में भी प्रकरण आता है कि अयोध्या के राजा ऋषभ देव जी राज त्यागकर जंगलों में साधना करते थे। उनका भोजन स्वर्ग से आता था। उनके मल (पाखाने) से सुगंध निकलती थी। आसपास के क्षेत्र के व्यक्ति इसको देखकर आश्चर्यचकित होते थे। इसी तरह सतलोक का आहार करने से केवल सुगंध निकलती है, मल नहीं। स्वर्ग तो सतलोक की नकल है जो नकली है।} श्री कृष्ण जी के वकील:- हमने कभी कहीं न सुना तथा न पढ़ा कि तैमूरलंग को राज कबीर जी ने प्रदान किया तथा काशी में इतना बड़ा भोजन कार्यक्रम किया था। शास्त्रों से प्रमाण बताओ कि कबीर बड़ा है कृष्ण से। कबीर जी का वकील:- आप जी ने तो यह भी नहीं सुना था कि श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु, श्री शिव के माता-पिता हैं। ये जन्मते-मरते हैं अविनाशी नहीं हैं। उपरोक्त प्रकरण तैमूरलंग को राज बख्शना कबीर सागर ग्रंथ में है तथा काशी में भोजन-भण्डारा देना संत गरीबदास जी द्वारा बताया है जो अमर ग्रंथ में लिखा है। आप गीता, वेद, पुराणों से प्रमाण चाहते हैं कि कबीर समर्थ है कृष्ण से, तो देता हूँ शास्त्रों के प्रमाण। आप कहते हो कि श्री विष्णु जी, श्री ब्रह्मा जी तथा श्री शिव जी का कभी जन्म-मरण