Posts

Showing posts with the label _मंसूरअली_की_कथा

दास की परिभाषा‘‘

Image
‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

परमेष्वर_का_आशिक़_मंसूरअली_की_कथा

Image
#परमेष्वर_का_आशिक़_मंसूरअली_की_कथा की भक्ति  अनिवार्य है। अल्लाह साकार है, कबीर है। ऊपर के आसमान में विराजमान है। पृथ्वी के ऊपर भी मानव शरीर में प्रकट होता है। सत्संग के बाद संतसमशतरबेज तथा बहन शिमली ने दोनों हाथ सामने करके परमात्मा से प्रसाद माँगा।आसमान से दो कटोरे आए। दोनों के हाथों में आकर टिक गए। समशतबेज ने उस दिन आधा अमृत पीया। शिमली बहन सब पी गई। समतरबेज ने कहा कि बेटी! यह शेष मेरा अमृत प्रसाद आश्रम से बाहर खड़े कुत्ते को पिला दे। उसका अंतःकरण पाप से भरा है।उसका दिल (सीना) साफ हो जाएगा। शिमली गुरूजी वाले शेष बचे प्रसाद को लेकर दीवार की ओर गई। गुरूजी ने कहा कि इस सुराख से फैंक दे। बाहर जाएगी तो कुत्ता भाग जाएगा। लड़की ने तो गुरूजी के प्रत्येक वचन का पालन करना था। शिमली ने उस सुराख से अमृत फैंक दिया जिसमें से मंशूर जासूसी कर रहा था। मंशूर का मुख कुछ स्वभाविक खुला था। उसमें सारा अमृत चला गया। मंशूर का अंतःकरण साफ हो गया। उसकी लगन सतगुरू से मिलने की प्रबल हो गई। वह आश्रम के द्वार पर आया। शिमली ने पहचान लिया। वह डर गई, बोली नहीं। मंशूर सीधा गुरू समशतरबेज के चरणों में गिर गय