कलयुग का प्रथम चरण कब था?
प्रथम चरण कलयुग निरयाना। तब मगहर मांडौ मैदाना।।
परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि मैं मगहर में एक लीला करूंगा। ब्राह्मणों के साथ आध्यात्मिक मैदान माँडूँगा यानि ज्ञान गोष्टी करूँगा। (मैदान माँडने का भावार्थ है कि किसी के साथ कुश्ती करना या लड़ाई करना या ज्ञान चर्चा यानि शास्त्रार्थ करने के लिए चैलेंज करना) पंडितजन कहा करते थे कि जो काशी शहर में मरता है वह स्वर्ग में जाता है तथा जो मगहर शहर में मरता है, वह गधा बनता है। इसलिए मगहर में कोई मत मरना। परमेश्वर कबीर जी कहते थे कि सत्य साधना करने वाला मगहर मरे तो भी स्वर्ग तथा स्वर्ग से भी उत्तम लोक में जाता है। {मगहर नगर उत्तर प्रदेश में जिला-संत कबीर नगर में है। गोरखपुर से 25 कि.मी. अयोध्या की ओर है।} कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि मैं मगहर में मरूँगा और उत्तम लोक में जाऊँगा। विक्रमी संवत् 1575 (सन् 1518) माघ के महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को परमेश्वर कबीर जी ने सतलोक जाने की सूचना दे दी। काशी से मगहर सीधे रास्ते से 150 कि.मी. है। उस समय कबीर परमेश्वर जी की लीलामय आयु 120 वर्ष थी। पैदल चलकर तीन दिन में काशी शहर से मगहर स्थान पर पहुँचे। काशी नरेश बीर सिंह बघेल कबीर परमेश्वर जी का शिष्य था तथा मगहर नगर का नवाब बिजली खान पठान भी परमेश्वर कबीर जी का शिष्य था। दोनों अपनी-अपनी सेना लेकर मगहर के बाहर आधा कि.मी. दूर आमी नदी के किनारे जहाँ पर कबीर जी बैठे थे, वहीं पहुँच गए। परमेश्वर कबीर जी ने एक चद्दर अपने नीचे बिछवाई, भक्तों ने श्रद्धा से दो-दो इंच फूल बिछा दिए। कबीर जी उस पर लेट गए तथा कहा कि मैं संसार छोड़कर जाऊँगा, उस समय हजारों की संख्या में लोग तथा सेना के जवान उपस्थित थे। ब्राह्मण भी देखने आए थे। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि मेरा शरीर नहीं मिलेगा क्योंकि बिजली खान पठान मुसलमान था। वह कह रहा था कि हम अपने गुरू का अंतिम संस्कार मुसलमान रीति से करेंगे। बीर देव सिंह हिन्दू था, उसने कहा कि हम अपने गुरू जी का अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से करेंगे। यदि बातों से बात नहीं बनी तो युद्ध करके लेंगे। परमेश्वर जी ने कहा कि आपको मेरी शिक्षा का क्या असर हुआ? आप आज भी हिन्दू तथा मुसलमान को भिन्न-भिन्न मान रहे हो। आप लड़ाई करोगे तो ठीक नहीं होगा, परंतु उनको कोई असर नहीं था, वे अंदर से लड़ाई करने के लिए पूरी तरह तैयार थे। परमेश्वर अंतर्यामी थे। उन्होंने कहा कि यदि मेरा शरीर मिल जाए तो आप मेरे शरीर को आधा-आधा बाँट लेना, एक-एक चद्दर ले लेना, लड़ाई न करना। परमेश्वर कबीर जी ने एक चद्दर ऊपर ओढ़ ली। कुछ देर पश्चात् आकाश से आवाज आई कि चद्दर उठाकर देखो, मुर्दा नहीं है। देखा तो शरीर के स्थान पर सुगंधित ताजे फूलों का ढ़ेर शव के समान मिला। हिन्दू तथा मुसलमान कहाँ तो मारने-काटने पर तुले थे, कहाँ एक-दूसरे को गले लगाकर रो रहे थे। पंडित भी आश्चर्य चकित थे कि मगहर मरने वाला सशरीर स्वर्ग चला गया क्योंकि पंडितों को सतलोक का ज्ञान नहीं है। दोनों धर्मों ने एक-एक चद्दर तथा आधे-आधे फूल ले लिए। दोनों ने मगहर में यादगार बनाई जो पास-पास बनी है। बिजली खान पठान ने दोनों यादगारों के नाम 500.500 बीघा जमीन दे दी जो आज भी प्रमाण है। (एक बीघा पुराना = 2.75 बीघा नया। एक एकड़ पाँच नए बीघों का है।) वह समय कलयुग का प्रथम चरण था जिस समय परमेश्वर कबीर जी मगहर से सशरीर सतलोक गए थे।
कलयुग का बिचली पीढ़ी का समय
परमेश्वर कबीर जी ने बताया था कि जिस समय कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच (5505) वर्ष बीत जाएगा, तब हम तेरहवां पंथ चलाएंगे। सन् 1997 में कलयुग 5505 वर्ष बीत चुका है। वह तेरहवां पंथ प्रारम्भ हो चुका है।
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