दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

भारतीय फौज इनकी खाल में भूंसा भर कर पाकिस्तान को सौंप देगी, निश्चिंत रहिए

भारतीय फौज इनकी खाल में भूंसा भर कर पाकिस्तान को सौंप देगी, निश्चिंत रहिए...👍

कल रात से तालिबानी राग अलाप कर देश को भ्रमित और भयभीत करने की अंधाधुंध भेड़चाल भारतीय न्यूजचैनलों द्वारा शुरू कर दी गयी है। उनके द्वारा अलापे जा रहे तालिबानी राग से बिल्कुल भ्रमित या भयभीत मत होइए। इसके बजाए तथ्यों पर ध्यान दीजिए और यदि आप को ज्ञात नहीं है तो निकट अतीत/इतिहास की सरसरी जानकारी ही ले लीजिए। इंटरनेट गूगल के वर्तमान दौर में यह बहुत आसान काम है।

2001 में ट्विन टॉवर पर हमले में हुई अपने 3000 नागरिकों की मौत का बदला लेने के लिए 20 साल पहले 16 हजार किमी दूर से आकर अमेरिका इन तालिबानी आतंकियों के गढ़ों में घुसा और 20 साल तक इनकी पीठ और नितंबों पर अपना फौजी हंटर चलाता/बजाता रहा। 

अमेरिका से अपनी जान बचाने के लिए तालिबानी आतंकियों के यही झुंड 20 साल तक उसी तरह भागते रहे। जिस तरह बिलौटे के डर से चूहे भागते हैं। उन 20 सालों के दौरान अमेरिका ने इन तालिबानी आतंकियों को बेदर्दी के साथ मौत के घाट उतारा। 

ध्यान रहे कि 20 साल पहले जब अमेरिका ने हमला किया था उसके 6 साल पहले से अफगानिस्तान इन्हीं तालिबानी आतंकियों के कब्जे में था। 

1996 में तत्कालीन राष्ट्रपति नजीबुल्लाह को सरेआम सड़क पर फांसी पर लटका कर ये अफगानिस्तान पर कब्जा कर चुके थे। अफगानिस्तान में इन्हीं की सरकार थी। लेकिन 16 हजार किलोमीटर दूर से आकर किए गए अमेरिकी हमले के सामने ये कुछ दिन भी नहीं टिक पाए थे और सिर पर पैर रख कर पहाड़ी जंगलों में भाग गए थे। यह तो है इन तालिबानी आतंकियों की तथाकथित बहादुरी की सच्चाई।

अफगानिस्तान का एक सच यह है की इसका लगभग 49% भूभाग समुद्रतल से औसतन लगभग साढ़े छह हजार फुट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित है और यह इलाका घने जंगलों वाला है। तालिबानी आतंकी इन इलाकों में छुपकर ही अमेरिकी फौजों से अपनी जान बचाते रहे हैं। आमने सामने की मैदानी जंग या अत्याधुनिक हथियारों के सामने इनकी धज्जियां उड़ती रहीं हैं।

आज बहुत संक्षेप में इतना इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि न्यूजचैनलों पर तालिबानी लफंगों आतंकियों की बहादुरी और पराक्रम का राग इस तरह अलापा जा रहा है मानो काबुल पर कब्जे के बाद दिल्ली पर तालिबानों के कब्जे में केवल कुछ दिन ही शेष रह गए हैं। 

देश को भ्रमित भयभीत करने का यह कुकर्म यही न्यूजचैनल केवल 3-4 महीने पहले कोरोना काल में रातदिन जलती चिताओं और बहती लाशों के वीडियो फुटेज दिखा कर कर चुके हैं। भारत की खाने और पाकिस्तान की गाने वाले सर्टिफाइड गद्दारों की खुशी सोशलमीडिया पर भी छलकती दिख रही है।

लेकिन अंतिम और अनिवार्य शाश्वत सत्य यही है कि भारतीय फौज से टकराने के लिए इन तालिबानी लफंगों आतंकियों को जमीन पर सामने आना होगा। उस स्थिति में भारतीय फौज केवल कुछ घंटों में ही इन तालिबानियों की खाल में भूंसा भर कर पाकिस्तान को सौंप देगी।

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