दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

ईसा मसीह में फरिश्ते प्रवेश करके चमत्कार करते थे‘‘



‘‘ईसा मसीह में फरिश्ते प्रवेश करके चमत्कार करते थे‘‘
एक स्थान पर हजरत ईसा जी ने कहा है कि मैं याकुब से भी पहले था। संसार की दृष्टि में ईसा मसीह का दादा जी याकुब था। यदि ईसा जी वाली आत्मा बोल रही होती तो ईसा जी नहीं कहते कि मैं याकुब अर्थात् अपने दादा जी से भी पहले था। यदि इस कथन को सत्य मानें तो बार-बार जन्म-मृत्यु सिद्ध होता है। परंतु हजरत आदम की संतान यह नहीं मानती कि जन्म-मृत्यु बार-बार होता है। ईसा जी में कोई अन्य फरिश्ता बोल रहा था जो प्रेतवत प्रवेश
कर जाता था, भविष्यवाणी कर जाता था तथा वही चमत्कार करता था। बाईबल में लिखा है कि ईसा को परमात्मा ने अपने पास से भेजा था। ईसा जी प्रभु के पुत्रा थे। एक और अनोखा उदाहरण ग्रन्थ बाईबल 2 कुरिन्थियों 2ः12-18 पृष्ठ 259-260 में स्पष्ट  लिखा है कि एक आत्मा किसी में प्रवेश करके पत्र द्वारा लिखकर संदेश दे रही है। कहा है कि 2:14 = परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो मसीह में सदा हम को जय उत्सव में लिए फिरता है और अपने ज्ञान की सुगन्ध हमारे द्वारा हर जगह फैलाता है। 2:17 = हम उन लोगों में से नहीं हैं जो परमेश्वर के वचनों में मिलावट करते हैं। हम तो मन की सच्चाई और परमेश्वर की ओर से परमेश्वर की उपस्थिति जान कर मसीह में बोलते हैं। (उपरोक्त विवरण पवित्र बाईबल के अध्याय कुरिन्थियों 2ः12 से 18 पृष्ठ 259-260 से  ज्यों का त्यों लिखा है।) इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं 1. मसीहा (नबी अर्थात् अवतार) में कोई अन्य फरिश्ता बोलकर किताबें लिखाता है। जो प्रभु का भेजा हुआ होता है वह तो प्रभु का संदेश ज्यों का त्यों बिना परिवर्तन किए सुनाता है। 2. दूसरी बात यह भी सिद्ध हुई कि मसीह (नबी) में अन्य आत्मा भी बोलते हैं जो अपनी तरफ से मिलावट करके भी बोलते हैं। यही कारण है कि कुरआन मजीद तथा बाईबल आदि में माँस खाने का आदेश अन्य आत्माओं का है, प्रभु का नहीं है। उपरोक्त विवरण से यह भी स्पष्ट है कि फरिश्ता कह रहा है कि प्रभु महिमा रूपी सुगंध फैलाने के लिए प्रेत की तरह प्रवेश करके प्रभु हमारा ही प्रयोग मसीह (अवतार/नबी) में करता है। चमत्कार करते हैं फरिश्ते, नाम होता है नबी का तथा भोली आत्माऐं उस नबी को पूर्ण शक्ति युक्त मानकर उसी के अनुयाई बन जाते हैं। उसी के द्वारा बताए भक्ति मार्ग पर दृढ़ हो जाते हैं। जिस समय पूर्ण परमात्मा का संदेशवाहक आता है तो उसकी बातों पर अविश्वास करते हैं। यह सब ब्रह्म काल (ज्योति निरंजन) का जाल है।
ईसा मसीह की मृत्यु:- एक पर्वत पर ईसा जी 30 वर्ष की आयु में प्रभु से प्राण रक्षा के लिए घबराए हुए बार-बार प्रार्थना कर रहे थे। उनके साथ कुछ शिष्य भी थे। उसी समय उन्हीं का एक शिष्य 30 रूपये के लालच में अपने गुरु जी के विरोधियों को साथ लेकर उसी पर्वत पर आया वे तलवार तथा लाठियां लिए हुए थे। विरोधियों की भीड़ नेउस गुप्त स्थान से ईसा जी को पकड़ा जहाँ वह छुप कर रात्री  बिताया करता था। क्योंकि हजरत मूसा जी के अनुयाई यहूदी ईसा जी के जानी दुश्मन हो गए थे। उस समय के महंतों तथा संतों व मन्दिरों के पूजारियों को डर हो गया था कि यदि हमारे अनुयाई हजरत ईसा मसीह के पास चले जायेंगे तो हमारी पूजा का धन कम हो जाएगा। ईसा मसही जी को पकड़ कर राज्यपाल के पास ले गए तथा कहा कि यह पाखण्डी है। झूठा नबी बन कर दुनिया को ठगता है। इसने बहुतों के घर उजाड़ दिए हैं। इसे रौंद(क्रस) दिया जाए। पीलातुस नाम के राज्यपाल ने पहले मना किया कि संत, साधु को दुःखी नहीं करते, पाप लगता है। परन्तु भीड़ अधिक थी, नारे लगाने लगी, इसे रौंद (क्रस कर) दो। तब राज्यपाल ने कहा जैसे उचित समझो करो। तीस वर्ष की आयु में ईसा जी को दीवार के साथ लगे अंग्रेजी के अक्षर ज् (टी) के आकार की लकड़ी के साथ खड़ा करके दोनों पैरों के पंजों में तथा हाथों की हथेलियों में लोहे की मोटी कील (मेख) गाड़ दी। ईसा जी की मृत्यु असहनीय पीड़ा से हो गई। मृत्यु से पहले हजरत ईसा जी ने उच्चे स्वर में कहा - हे मेरे प्रभु ! आपने मुझे क्यों त्याग दिया ? कुछ दिनों के बाद हजरत ईसा जी फिर दिखाई दिए। (पवित्रा बाईबल मती 27 तथा 28/20 पृष्ठ 45 से 48) उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि यह ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) अपने अवतार को भी समय पर धोखा दे जाता है। पूर्ण परमात्मा ही भक्ति की आस्था बनाए रखने के लिए स्वयं प्रकट होता है। पूर्ण परमात्मा ने ही ईसा जी की मृत्यु के पश्चात् ईसा जी का रूप धारण करके प्रकट होकर ईसाईयों के विश्वास को प्रभु भक्ति पर दृढ़ रखा, नहीं तो ईसा जी के पूर्व चमत्कारों को देखते हुए ईसा जी का अंत देखकर कोई भी व्यक्ति भक्ति साधना नहीं करता, नास्तिक हो जाते। (प्रमाण पवित्रा बाईबल में यूहन्ना ग्रन्थ अध्याय 16 श्लोक 4 से 15) ब्रह्म(काल) यही चाहता है। काल (ब्रह्म) पुण्यात्माओं को अपना अवतार (रसूल) बना कर भेजता है। फिर चमत्कारों द्वारा उसको भक्ति कमाई रहित करवा देता है। उसी में कुछ फरिश्तों (देवताओं) को भी प्रवेश करके कुछ चमत्कार फरिश्तों द्वारा उनकी पूर्व भक्ति धन से करवाता है। उनको भी शक्ति हीन कर देता है। इस प्रकार ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) के द्वारा भेजे नबियों (अवतारों) की महिमा हो जाती है। अनजान साधक उनसे प्रभावित होकर उसी साधना पर अडिग हो जाते हैं। जब पूर्ण परमात्मा या उसका संदेशवाहक वास्तविक भक्ति ज्ञान व साधना समझाने की कोशिश करता है तो कोई नहीं सुनता तथा अविश्वास व्यक्त करते हैं। यह जाल काल प्रभु का है। जिसे केवल पूर्ण परमात्मा ही बताता है तथा सत्य भक्ति प्रदान करके आजीवन साधक की रक्षा करता है। सत्य भक्ति करके साधक पूर्ण मोक्ष को प्राप्त करता है।

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