दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

पुनर्जन्म संबंधित प्रकरण‘‘



’’पुनर्जन्म संबंधित प्रकरण‘‘
सूरः अल बकरा-2 की आयत नं. 243:-
तुमने उन लोगों के हाल पर भी कुछ विचार किया जो मौत के डर से अपने घर-बार छोड़कर निकले थे और हजारों की तादाद में थे। अल्लाह ने उनसे कहा मर जाओ। फिर उसने उनको दोबारा जीवन प्रदान किया। हकीकत यह है कि अल्लाह इंसान पर बड़ी दया करने वाला है। मगर अधिकतर लोग शुक्र नहीं करते।
’’कयामत तक कब्रों में रहने वाले सिद्धांत का खंडन‘‘
कुरआन की सूरः अल् मुद्दस्सिर-74 आयत नं. 26.27:-
आयत नं. 26:- शीघ्र ही मैं उसे नरक में झोंक दूँगा।
आयत नं. 27:- और तुम क्या जानों कि क्या है वह नरक। {एक वलीद बिन मुगहरह नामक व्यक्ति ने पहले तो मुसलमानी स्वीकार की। उसको अच्छे लाभ भी हुए। वह पहले विरोधियों का सरदार था। बाद में हजरत मुहम्मद जी की खिलाफत करने लगा। कुरआन को जादू करार देने लगा तथा कहने लगा कि यह तो मानव बोली वाणी है। अल्लाह की नहीं है। मुहम्मद नबी को जादूगर बताने लगा। तब कुरआन ज्ञान देने वाले अल्लाह ने कहा, उपरोक्त सूरः मुद्दस्सिर-74 की आयत नं. 26.27 में कि मैं शीघ्र ही उसे नरक में झोंक दूँगा यानि नरक की आग में डाल दूँगा। नरक में भेज दूँगा। विचार करें पाठकजन! कि कब्र की बजाय शीघ्र नरक में डाला जाने को कहा है जो उस सिद्धांत को गलत सिद्ध करता है जो बताया जाता है कि कयामत तक सब नबी से लेकर सामान्य व्यक्ति तक कब्रों में रहेंगे। हजरत मुहम्मद जी की आसमान वाली यात्रा तो स्पष्ट ही कर रही है कि सब नबी व आदम जी की अच्छी-बुरी संतान ऊपर नरक व स्वर्ग में थे।}
निष्कर्ष:- कुरआन मजीद के ज्ञान के साथ-साथ हजरत मुहम्मद का अनुभव भी कम अहमियत नहीं रखता। हजरत मुहम्मद जैसे नेक नबी का जन्म हुआ तो कुरआन का पवित्र ज्ञान मानव के हाथों आया। जैसे बर्तन शुद्ध है तो घी डाला जाता है। अशुद्ध बर्तन में घी डालना उसे नष्ट करना है। कुरआन का ज्ञान हजरत मुहम्मद जी को किस सूरत में मिला? इसकी जानकारी मुसलमान समाज के बच्चे-बच्चे को है कि जिस अल्लाह ने कुरआन का ज्ञान दिया, उसे मुसलमान समाज अपना खालिक मानते हैं। उसी को कादर (समर्थ) परमात्मा मानते हैं। यह भी मानते हैं कि उस अल्लाह ने जो ज्ञान दिया है। उसे जबरील फरिस्ता ज्यों का त्यों बिना किसी बदलाव के लाया और नबी मुहम्मद जी की आत्मा में डाला। फिर हजरत मुहम्मद जी के मुख से बोला गया। उसको लिखने वालों ने लिखा। हजरत मुहम्मद जी तो अशिक्षित थे। कुरआन के ज्ञान को हजरत मुहम्मद जी प्राप्त होने की प्रक्रिया में यह भी बताया है कि कभी हजरत को जबरील सामने प्रत्यक्ष होकर ज्ञान बताता। कभी अप्रत्यक्ष रूप में ज्ञान बताता है। कभी अल्लाह ताला सीधे ज्ञान नबी मुहम्मद जी की आत्मा में डाल देता। नबी मुहम्मद चद्दर से मुख ढ़ककर लेट जाता। फिर कुरआन का ज्ञान बोलता। इस प्रकार यह कुरआन का पवित्र ज्ञान प्राप्त हुआ। ऊपर कुरआन की कुछ सूरतों की आयतों का उल्लेख किया है जिनमें यह समझना है कि पुनर्जन्म के विषय में क्या संकेत है? ऊपर विवेचन में आप जी ने पढ़ा कि सूरत-कहफ-18 की आयत 47.48 में कहा है कि प्रलय में पृथ्वी नष्ट नहीं होगी। उसके ऊपर की संरचना जैसे पहाड़, मानव, उनके घर, निवास, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी सब नष्ट हो जाएँगे। पृथ्वी एक खुला मैदान पड़ा दिखाई देगा। फिर सूरः मुलकि-67 की आयत नं. 2 में स्पष्ट किया है कि अल्लाह ने मरने और जीने का विधान बनाया है। मानव को जाँचने के लिए कि कौन अच्छा काम करता है, कौन गलत काम करता है।
फिर सूरः अर रूम-30 की आयत नं. 11 में कहा है कि अल्लाह पहली बार सृष्टि को उत्पन्न करता है, फिर उसे दोहराएगा (पुनरावर्ती करेगा)।
सूरः अंबिया-21 आयत नं. 104 में कहा है कि उस दिन आसमान को इस तरह लपेट देंगे, जैसे पुलंदे में कागज लपेट देते हैं। जिस तरह हमने (काइनात) सृष्टि को पहले पैदा किया था। उसे हम दोहराएँगे, यह वादा हमारे जिम्मे है, हमने जरूर करना है। सूरः अल बकरा-2 आयत नं. 243 में अल्लाह ने मारा। फिर उनको जीवन दिया। सूरः अल मुद्दस्सिर-74 आयत नं. 26.27 में कहा है कि शीघ्र ही नरक में डाल दूँगा। यह क्या जाने नरक (जहन्नम) क्या है? (इससे भी कब्रों में रहने वाली बात गलत सिद्ध हुई।)
’’अब यह देखें कि पहले सृष्टि कैसे पैदा की थी?‘‘
यह भी याद रखना जरूरी है कि जिस अल्लाह ने ‘‘कुरआन मजीद’’ का ज्ञान नबी मुहम्मद जी को दिया है। उसी ने नबी दाऊद जी को ‘‘जबूर’’ का ज्ञान दिया। उसी ने नबी मूसा जी को ‘‘तौरेत’’का ज्ञान दिया। उसी ने नबी ईशा मसीह को ‘‘इंजिल’’ पुस्तक का ज्ञान दिया। कुरआन को छोड़कर उपरोक्त तीनों पवित्र पुस्तकों (जबूर, तौरेत तथा इंजिल) को इकठ्ठा जिल्द करके ‘‘बाईबल’’ ग्रंथ नाम दिया है। बाईबल में सृष्टि की उत्पत्ति अध्याय में लिखा है कि परमेश्वर ने पहले पृथ्वी बनाई, आसमान बनाया, पृथ्वी पर जल भर दिया जो समुद्र बने। पृथ्वी पर पेड़-पौधे उगाए, जीव-जन्तु भांति-भांति के पैदा किए। पशु-पक्षी उत्पन्न किए। छठे दिन मानव उत्पन्न किए। अल्लाह अपना कार्य छः दिन में पूरा करके सातवें दिन ऊपर सातवें आसमान पर जा बैठा। यह है पहले वाली सृष्टि की उत्पत्ति की कथा। कुरआन की उपरोक्त आयत यही स्पष्ट करती है कि जैसे हमने सृष्टि (कायनात) की रचना की थी। उसी प्रकार फिर सृष्टि की रचना करूँगा जिससे जन्म-मरण का बार-बार होना यानि पुनर्जन्म सिद्ध होता है। जो सिद्धांत मुस्लिम शास्त्री व प्रवक्ता मानते हैं कि प्रलय के बाद जिंदा किए जाएँगे। उसमें यह भी स्पष्ट नहीं है कि वो किस आयु के होंगे यानि कोई दस वर्ष का, कोई कम, कोई 30, 40, 50, 60, 62, 65, 80 वर्ष या अधिक आयु में मरेंगे। कब्रों में दबाए जाएँगे। फिर उसी आयु के उसी शरीर में जीवित किए जाएँगे या शिशु रूप में? जीवित किए जाएँगे, इस बात पर मुसलमान प्रवक्ता मौन हैं। कुरआन स्पष्ट करती है कि अल्लाह ने कहा है कि जैसे पहले सृष्टि की उत्पत्ति की थी (जो बाईबल यानि तौरेत पुस्तक में बताई), वैसे ही पुनरावर्ती करेंगे, यह पक्का वादा है। ऊपर की कुरआन मजीद की सूरतों की आयतों में यही कहा है कि एक बार प्रलय के समय केवल पृथ्वी के ऊपर की संरचना नष्ट की जाएगी। पृथ्वी खुला मैदान पड़ा दिखाई देगा।(इसे आदि सनातन तथा सनातन पंथ में प्रलय कहते हैं।) फिर कहा है कि उस दिन (प्रलय के समय) आसमान को इस तरह लपेट देंगे जैसेकागज को पुलंदे में लपेट देते हैं यानि सर्व सृष्टि को नष्ट कर देंगे जिस तरह हमने पहले पैदा किया था। (आदि सनातन तथा सनातन पंथ में इसे महाप्रलय कहते हैं) उसे हम दोहराएँगे, यह वादा हमारे जिम्मे है, हम जरूर करेंगे। {यह महाप्रलय के बाद पुनः सृष्टि रचना करने को कहा है यानि फिर से पृथ्वी, जल, मानव (स्त्री-पुरूष), पशु-पक्षी व अन्य जीव-जंतुओं को उत्पन्न किया जाएगा जैसे पहले उत्पत्ति की थी। उसके विषय में कहा है कि हम उसे दोहराएंगे।} उपरोक्त प्रकरण से स्वसिद्ध हो जाता है कि पुनर्जन्म जीना-मरना होता है। जो सिद्धांत मुसलमान धर्म के उलेमा (विद्वान) बताते हैं कि अल्लाह ने सृष्टि उत्पन्न की है। मानव (स्त्री-पुरूष) जन्मते रहेंगे, मरते रहेंगे। मृत्यु के उपरांत कब्र में दफनाए जाएँगे। वे सब कब्रों में तब तक रहेंगे जब तक महाप्रलय (कयामत) नहीं आती। महाप्रलय खरबों वर्षों के पश्चात् आएगी। तब सृष्टि नष्ट हो जाएगी और कब्रों वालों को जिंदा किया जाएगा। जिसने अच्छे कर्म अल्लाह के आदेशानुसार किए थे, उनको जन्नत (स्वर्ग) में रखा जाएगा तथा जिन्होंने कुरआन के विपरित कर्म किए, उनको जहन्नुम (नरक) की आग में डाला जाएगा। बस इसके पश्चात् सृष्टि न उत्पन्न होगी, न नष्ट होगी।
विवेचन:- विचारणीय विषय यह है कि मुसलमान प्रवक्ताओं के अनुसार जिन्होंने अल्लाह का हुक्म माना, नेक कर्म किए। वे भी कब्रों में दबाए जाएँगे। बाबा आदम तथा उसकी सब संतान तथा एक लाख से ऊपर नबी हुए हैं, वे सब कब्रों में दफन हैं। उन कब्रों में खरबों वर्ष पड़े-पड़े सडे़ंगे, महाकष्ट उठाएँगे। फिर उनको जन्नत में रखा जाएगा। ऐसी जन्नत को सिर में मारेंगे जिससे पहले खरबों वर्षों घोर नरक का कष्ट कब्रों में भूखे-प्यासे, गर्मी-सर्दी से महादुःखी होकर उठाएँगे मुसलमान प्रवक्ता यहाँ यह भी तर्क देने से नहीं चूकेंगे कि मृत्यु के पश्चात् सुख-दुःख का अहसास नहीं होता। मेरा वितर्क यह है कि यदि मृत्यु के पश्चात् न सुख का अहसास होता है, न दुःख का तो फिर जन्नत की क्या आवश्यकता है? आपकी जन्नत में तो आपका प्रथम नबी आदम जी दुःखी भी है और सुखी भी। बेचैन भी होता है। परंतु नबी मुहम्म्द जी ने पूर्वोक्त प्रकरण में इस सिद्धांत को गलत सिद्ध कर रखा है जिसमें आप जी ने पढ़ा कि नबी मुहम्मद जी को जबरील फरिस्ता बुराक नामक (खच्चर जैसे) पशु पर बैठाकर ऊपर ले गया। वहाँ पर (जन्नत तथा जहन्नुम में) नबी जी ने बाबा आदम तथा उनकी अच्छी-बुरी संतान को स्वर्ग-नरक में देखा। नबी ईशा, मूसा, दाऊद, अब्राहिम आदि-आदि नबियों की जमात (मंडली) देखी। उनको नबी मुहम्मद जी ने नमाज अदा करवाई। फिर जन्नत (स्वर्ग) के अन्य स्थानों का नजारा देखा। अल्लाह के पास गए। अल्लाह पर्दे के पीछे से बोला। पाँच बार नमाज, रोजे तथा अजान करने का आदेश अल्लाह ने नबी मुहम्मद को दिया जिसको पूरा मुसलमान समाज पालन कर रहा है। मुसलमान प्रवक्ता यह तर्क भी दे सकते हैं कि बाबा आदम ऊपर प्रथम आसमान पर जो दांये देखकर दुःखी व बांयी ओर देखकर खुश हो रहे थे। वे दांयी ओर नेक संतान के कर्म तथा बांयी ओर निकम्मी संतान के कर्म देखकर दुःखी व खुश हो रहे थे। दास का वितर्क यह है कि क्या वे अच्छे और बुरे कर्म दीवार पर लिखे थे? बाबा आदम अशिक्षित थे। सच्चाई ऊपर बता दी है, वही है। इससे सिद्ध हुआ कि मुसलमान समाज भ्रमित है। अपनी पवित्रा कुरआन मजीद तथा प्यारे नबी मुहम्मद जी के विचार भी नहीं समझ सके। कृपया अपने पवित्र ग्रंथों को अब पुनः पढ़ो। दास (रामपाल दास) ने एक पुस्तक लिखी है ‘‘गीता तेरा ज्ञान अमृत’’ श्री मद्भगवत गीता का विश्लेषण किया है जिसे हिन्दू समाज के बुद्धिजीवी व्यक्तियों ने स्वीकार किया तथा हैरान रह गए कि हमारे सद्ग्रंथों का सही ज्ञान आज तक हमें नहीं था। इस पुस्तक ने आँखें खोल दी। यहाँ पर यह बताना अनिवार्य हो जाता है कि जिस अल्लाह ने पवित्रा जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरआन का ज्ञान दिया, उसी ने इनसे पहले चार वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) का तथा श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान दिया था। जो ईसा से चार हजार वर्ष पहले वेद व्यास ऋषि ने लीपिबद्ध किया था। ऋषि का नाम कृष्ण द्वैपायन था। पहले वेद ज्ञान एक था। ऋषि कृष्ण द्वैपायन ने इसको चार भागों में बाँटा। नाम भी चार रखे। जिस कारण से ऋषि कृष्ण द्वैपायन को वेद व्यास कहा जाने लगा। 
प्रसंग चल रहा है जन्म तथा मृत्यु का:- सनातन पंथ सब अन्य प्रचलित पंथों से पहले का है। आदि सनातन पंथ सबसे पहले का है जिसका अनुयाई दास (रामपाल दास) है। इन दोनों पंथों (वर्तमान में धर्म कहे जाते हैं) में यही मान्यता है कि प्रत्येक प्राणी का जन्म तथा मरण होता है। यह सिद्धांत इसलिए भी विश्वसनीय है कि यह कादर खुदा कबीर का बताया हुआ है। अंतर इतना है कि सनातन धर्म में जन्म-मरण का चक्र सदा रहने वाला मानते हैं। जैसे गीता अध्याय 4 श्लोक 5 में कहा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं। गीता अध्याय 2 श्लोक 12 में कहा है कि तू तथा मैं और ये सब सामने खड़े सैनिक पहले भी जन्मे थे, आगे भी जन्मेंगे। यह ना समझ कि हम सब वर्तमान में ही जन्मे हैं। आदि सनातन पंथ:- आदि सनातन पंथ में यह मान्यता है कि जब तक पूर्ण सतगुरू नहीं मिलता जो सतपुरूष यानि (गीता अध्याय 8 श्लोक 3, 8, 9, 10 तथा अध्याय 15 श्लोक 17 वाले) परम अक्षर ब्रह्म की संपूर्ण यथार्थ भक्ति जानता है, उससे दीक्षा लेकर भक्ति नहीं करता। उसका जन्म-मरण का चक्र सदा बना रहेगा। परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति करने से गीता अध्याय 15 श्लोक 4 वाली मुक्ति मिल जाती है। वह परम पद मिल जाता है जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आते। इसलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 46, 61, 62 में कहा है कि (श्लोक 46 में) हे अर्जुन! जिस परमेश्वर से सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति हुई है और जिससे यह समस्त जगत व्याप्त है। उस परमेश्वर की स्वाभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परम सिद्धि को प्राप्त हो जाता है।
(श्लोक 61 में):- हे अर्जुन! शरीर रूपी यंत्र में आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को परमेश्वर अपनी माया (शक्ति) से उनके कर्मों अनुसार भ्रमण करवाता हुआ सब प्राणियों के हृदय में स्थित (विराजमान) है।
(श्लोक 62 में):- हे भारत! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन (महफूज) परम धाम को प्राप्त होगा। आदि सनातन पंथ को उस परमेश्वर यानि परम अक्षर ब्रह्म को सतपुरूष कहा जाता है। सनातन परम धाम को अमर लोक सतलोक कहा जाता है। उस सत्यलोक में जाने के पश्चात्सा धक का जन्म-मृत्यु का चक्र सदा के लिए समाप्त हो जाता है। 
सिक्ख पंथ:- सिख पंथ (वर्तमान में सिख धर्म) में भी जन्म-मृत्यु की मान्यता है। इनका भी यह मानना है कि जब तक पूर्ण सतगुरू की शरण में जाकर सतपुरूष की साधना नहीं करता, जन्म-मृत्यु समाप्त नहीं होता। सतपुरूष की भक्ति से जन्म-मृत्यु सदा के लिए समाप्त हो जाते हैं। वह साधक सत्यलोक (सच्चखंड) में चला जाता है।
जैन धर्म (पंथ):- जैन धर्म की सनातन धर्म वाली मान्यता है कि जन्म-मरण कभी समाप्त नहीं होगा। उनका मानना है कि जैन धर्म के प्रवर्तक तथा प्रथम तीर्थंकर आदि नाथ यानि ऋषभ देव जी की मृत्यु के पश्चात् बाबा आदम रूप में जन्मे थे।
श्री ऋषभ के पोते (भरत के पुत्रा) श्री मारीचि ने ऋषभ देव से दीक्षा ली थी। उसके पश्चात् उस आत्मा के अनेकों मानव जन्म हुए। करोड़ों पशुओं (गधे, घोड़े) के जन्म हुए। अनेकों बार वृक्ष के जन्म हुए। वही आत्मा चौबीसवें तीर्थंकर जैन धर्म के हुए। सूक्ष्मवेद में प्रमाण है कि श्री नानक देव जी (सिख धर्म के प्रवर्तक) वाली आत्मा सत्ययुग में राजा अंबरीष रूप में जन्मी थी तथा त्रेतायुग में राजा जनक रूप में जन्मी थी। कलयुग में श्री नानक जी के रूप में जन्मी थी। जब सतगुरू से दीक्षा लेकर सतपुरूष (सत पुरख) की भक्ति सतनाम का जाप करके की। तब जन्म-मरण का चक्र समाप्त हुआ। पुराणों में पुनर्जन्म के और भी अनेकों प्रमाण मिलते हैं जो जन्म-मृत्यु बार-बार होना कहते हैं। इससे सिद्ध हुआ कि जन्म-मरण का जो विधान मुसलमान बताते हैं, वह निराधार है। उनके पवित्र ग्रंथ भी उनकी बात को गलत सिद्ध करते हैं।
- बार-बार जन्म-मृत्यु का जीवित इतिहास आप जी पढ़ेंगे अध्याय ’’अल खिज्र (अल कबीर) की जानकारी‘‘ में इसी पुस्तक के पृष्ठ 196 से 199 तक।

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