‘‘गीता, वेदों व पुराणों में भी पित्तर व भूत पूजा मोक्षदायक नहीं बताई है।’’
प्रमाण:- श्री कृष्ण जी के वकील साहेबान कहते हैं कि हम श्राद्ध करते तथा करवाते हैं जबकि गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में कहा है कि जो पितरों की पूजा करते हैं, वे पितरों को प्राप्त होंगे यानि पितर योनि प्राप्त करके पितर लोक में जाएँगे, मोक्ष नहीं होगा। जो भूत पूजते हैं, वे भूतों को प्राप्त होंगे यानि भूत बनेंगे। श्राद्ध करना पितर पूजा तथा भूत पूजा है। तेरहवीं क्रिया करना, वर्षी क्रिया करना, शमशान घाट से शेष बची हड्डियों के अवशेष उठाकर गंगा में प्रवाह करना व पुरोहितों से प्रवाह करवाना आदि-आदि सब पितर तथा भूत पूजा है जिससे मोक्ष नहीं दुर्गति प्राप्त होती है जिसके जिम्मेदार श्री कृष्ण जी के वकील जी हैं।
कृष्ण जी के वकील:- श्राद्ध कर्म तो भगवान रामचन्द्र जी ने वनवास के दौरान भी अपने पिता श्री दशरथ जी का किया था। सीता जी ने अपने हाथों से भोजन बनाया था। जब ब्राह्मण श्राद्ध का भोजन खा रहे थे, उसी पंक्ति में सीता जी ने अपने स्वसूर दशरथ जी को भोजन खाते आँखों देखा। सीता ने घूंघट निकाला और श्री रामचन्द्र को बताया। दशरथ जी स्वर्ग से श्राद्ध खाने आए थे। इसलिए श्राद्ध कर्म करना चाहिए।
कबीर जा का वकील:- अदालत को बताना चाहता हूँ कि इन्होंने यानि शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण करने व करवाने वालों ने ही दशरथ जैसी नेक आत्माओं को गलत साधना करने के लिए प्रेरित करके भूत व पित्तर बनवाया। फिर वह श्राद्ध ही खाएगा। उसे स्वर्ग के पकवान कहाँ से मिलेंगे या मोक्ष कहाँ से मिलेगा?
गीता में चारों वेदों वाला ज्ञान संक्षिप्त में कहा है। गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में श्राद्ध व पिंड हो?
‘‘पित्तरों ने कहा कि यह बात सत्य है कि श्राद्ध आदि कर्म को वेदों में अविद्या अर्थात् मूर्खों का कार्य ही कहा है। पित्तरों ने यह भी कहा है कि बेटा! तुम जिस मार्ग पर चल रहे हो, यह मोक्ष का मार्ग है।’’
विचार करो:- रूची ऋषि के पूर्वज सब ब्राह्मण (ऋषि) थे। वेद पढ़ते थे। कर्मकाण्ड वेद विरूद्ध करते थे। जिस कारण से प्रेत योनि में गिरे। उन्होंने वेद तो पढ़ रखे थे। इसलिए स्वीकारा कि वेद में ऐसा ही कहा है। फिर उन पित्तरों ने वेद विरूद्ध ज्ञान बताकर रूची ऋषि को भ्रमित कर दिया क्योंकि मोह भी अज्ञान की जड़ है। मार्कण्डेय पुराण के प्रकरण से सिद्ध हुआ कि वेदों में तथा वेदों के ही संक्षिप्त रुप गीता में श्राद्ध-पिण्डोदक आदि भूत पूजा के कर्म को निषेध बताया है, नहीं करना चाहिए। उन मूर्ख ऋषियों ने अपने पुत्रा को भी श्राद्ध करने के लिए विवश किया। उसने विवाह कराया, उससे रौच्य ऋषि का जन्म हुआ, बेटा भी पाप का भागी बना लिया। पितर बना दिया।
आश्चर्य की बात तो यह है कि रूची ऋषि के पित्तरों ने कहा है कि बेटा! तुम जिस मार्ग पर चले हो, वह मोक्ष का मार्ग है। फिर भी रूची को भ्रमित किया कि पित्तर पूज और पित्तर बन। करवा दुर्गाति जैसे उन पित्तरों की हो रही थी। रूची सही मार्ग पर था। उसे भी नरक का भागी बना दिया। ऐसे कर्म हैं इन श्री कृष्ण जी के वकीलों यानि धर्मगुरूओं के। धिक्कार है ऐसे लोगों (धर्मगुरूओं) को जो मानव जाति को भ्रमित करके उनका अनमोल मानव जीवन नष्ट करवा रहे हैं, स्वयं भी दुर्गति को प्राप्त हो रहे हैं।
•••
Comments
Post a Comment