‘‘ तीन ताप को पूर्ण परमात्मा ही समाप्त कर सकता है‘‘
भक्त रामकुमार ढाका Ex.Headmaster M.A.B.ED.½ का प्रमाण मैं रामकुमार ढाका ‘रिटायर हैडमास्टर दिल्ली‘, गाँव सुंडाना, जिला-रोहतक, वर्तमान पता - आजाद नगर, रोहतक (मोब. नं. - 9813844747) में रहता हूँ। सन् 1996 से मेरी पत्नी और दोनों लड़कों को एक बहुत भयंकर बीमारीथी। इस बीमारी से इतने तंग हो गये कि दोनों लड़के कहने लगे कि नौकरी नहीं हो सकती क्योंकि इस बीमारी से गला रूकता था और श्वांस आना बंद हो जाता था, तभी डाक्टर लेकर आते और नशे का टीका लगा देते, परन्तु रात को ड्यूटी पर होते तब कहां ले जायें, बहुत ही परेशानी हो जाती थी, अफसर भी मुझे बुला लेते थे, मैं उनको बताता तब कहते की ईलाज करवाओ, जब घर पर होते तो डाॅको रात को दो-दो बार भी आना पड़ता था, क्योंकि कभी किसी घर के सदस्य को तो कभी किसी को। अगर किसी को शक हो तो डबल फाटक पर डाॅ. सचदेवा की दुकान है, सचदेवा साहब से पूछ लो कि मास्टर जी के घर पर क्या हाल हो रहा था? जिसने भी जहाँ पर बताया मैं वहीं पर गया - उत्तर प्रदेश में कराना शामली के पास, उत्तर प्रदेश में खेखड़ा, राजस्थान में बाला जी कई बार, खाटूश्याम जी व कई जगह जन्त्र-मन्त्र करने वालों के पास, हरियाणा में तो मैंने कोई जगह नहीं छोड़ी, परन्तु कोई फर्क नहीं लगा, करेला के पास खेड़ा कंचनी, बोहतावाला, गोहाना के पास नगर, समचाना, सिकन्दरपुर, खिड़वाली आदि अनेक जगह गया और लगभग तीन लाख रूपये लग गये कोई काम नहीं आये। मैं थक गया और मेरा परिवार बर्बाद हो गया। मेरी पत्नी ने मेरे से कहा कि मेरा जीवन समाप्त होने वाला है तथा भक्त सुभाष पुत्रा महेन्द्र पुलिस वाला जिस संत रामपाल की महिमा सुनाता है मुझे उसी संत से नाम दिला दे। पहले मैं किस बात पर विश्वास नहीं करता था तथा गुरु बनाना तो बहुत ही हेय समझता था।
कहा करता था कि तेरा गुरु तो मैं ही हूँ, मैं एम.ए.बी.एड मेरे से ज्यादा कौन गुरु होगा ? परन्तु परिस्थितियों ने मुझे विवश कर दिया तथा मैंने यह भी स्वीकृति अपनी पत्नी को दे दी कि आप नाम ले लो। आप का जीवन शेष नहीं है। क्योंकि उस समय मेरी पत्नी का वजन 50 कि.ग्रा. रह गया था, पहले 80 कि.ग्रा. वजन था। उठने-बैठने से भी रह गई थी, चलना फिरना तो बहुत दूर की बात थी। मैंने कहा मर तो ली, नाम और लेकर देखले, अपने मन की यह और करके देखले, अब मैं तेरे को नहीं रोकूंगा, नाम ले ले, ठीक है, क्योंकि संत रामपाल जी से नाम लेने के लिए कहने दूसरे तीसरे महीने सुभाष हमारा भतीजा आता था, कहता था ताई नाम ले लो नहीं तो मरोगे। मैं कहता था कि कोई डाॅ. छोड़ा नहीं, हम बाला जी आदि सभी तान्त्रिकों के पास सिर मार लिया तो आपका संत क्या ले रहा है ? परन्तु तंग आकर, कहीं बात नहीं बनी तब नाम लेने भेज दी। क्योंकि मैं भी अपने परिवार के आश्रम में जाने के सख्त विरुद्ध था। 16 जनवरी 2003 में नाम लिया और ‘गहरी नजर गीता में‘ नामक पुस्तक साथ लेकर आई। एक महीने में जैसे दीपक में तेल डाल दिया इस प्रकार रोशनी हो गई, हर महीने तीन किलो वजन बढ़ने लगा। तब बड़े लड़के को भी बगैर नाम लिये ही इस माँ के नाम लेने से अच्छी नींद आने लगी, तभी उसने अपनी पत्नी को नाम दिलवाया, फिर मैंने ‘गहरी नजर गीता में‘ पुस्तक पढ़ी, तब मैं भी गहराई में गया तो पाया कि ऐसा ज्ञान कभी नहीं पढ़ा व सुना था और मैंने भी अप्रैल 2003 में नाम लिया। आज मेरे घर में सभी बड़े से बच्चे तक ने नाम ले लिया है। जब वह बीमारी होती थी तब सारा घर कांप उठता था, लड़ाई-झगड़ा, नौकरी में विवाद, डाॅ. का आना जाना या मैडीकल में इमरजैंसी में लेकर पहुँचते थे। आज हमारा घर स्वर्ग के समान है और सतलोक जाने की इच्छा है।
एक महीना पहले स्वपन में परमेश्वर कबीर साहेब जी गुड़गाँव सैक्टर 57 में प्लाॅट बुक कर गये, जब ड्रा निकला तो वही प्लाॅट नंबर मिला जो स्वपन में कबीर परमेश्वर ने बताया था, सुबह समाचार पत्रा पढ़ा तो वही प्लाॅट नं. अलोट था।
हमारे यहाँ ऐसी बीमारी थी कि कोई भी इतना दुःखी नहीं होगा जो हम थे अब संत रामपाल दास जी महाराज से उपदेश प्राप्त करने के पश्चात् बहुत थोड़े दिनों में हम बहुत सुखी हैं। मेरे घर पर ‘जिन्न‘ (जिन्द) प्रकट हुआ, उसने कहा मैं आपके आश्रम में जाता हूँ, सब कुछ देखकर आता हूँ, परन्तु मैं शीशों में नहीं जाता जहाँ संत जी बैठ कर सत्संग करते हैं, क्योंकि मैंने सब बातों का पता है, अगर वहाँ जाउंगा तो मेरी पिटाई बनेगी इसलिए मैं वापिस बाहर आ जाता हूँ और तुम कहीं तान्त्रिकों के पास क्या, चाहे बाला जी गये, मैं अंदर जाया ही नहीं करता, बाहर रह जाता हूँ, मेरे को कोई बांधने वाला नहीं है। मेरे साथी डरपोक थे वह भाग गये मैं नहीं जाउंगा, मेरे को पढ़ कर छोड़ रखा है, मैंने तेरे घर व तेरी लड़की के घर की ईंट से ईंट बजानी है। मैं इस प्रकार पढ़कर छोड़ रखा हूँ कि एक के बाद एक सभी के विनाश का नम्बर आयेगा, चाहे कहीं भी भाग लो।कुछ दिन के बाद वही प्रेत घर में फिर प्रकट हुआ और जोर-जोर से बोलने लगा कहां है तेरा गुरु रामपाल ? कहां है तेरा मालिक कविर्देव (कबीर परमेश्वर)? जब भी वह प्रकट होता था मनुष्य की तरह बातचीत करता था। तभी मेरी पत्नी हमारे घर पर बने पूजा स्थल पर चली गई और डण्डौतं प्रणाम किया, तभी जिन्द(प्रेत) की पिटाई आरम्भ हो गयी और कहने लगा क्यों पिटाई करते हो, इन दीवारों को अब गिरा दूंगा। उसकी अच्छी पिटाई हुई वो कहने लगा हाय ये तो दीवार नहीं लोहे का जाल है, सरिये हैं। ये मालिक रामपाल जी कहां से आ गये ये तो बरवाला सत्संग करने गये हुए थे (उस दिन संत रामपाल जी महाराज बरवाला जि. हिसार में सत्संग करने गए हुए थे) मैं तो इसलिये आया था कि मालिक यहाँ पर है ही नहीं। जिन्द ने कहा कि मैं आया था तुम्हारी ईंट से ईंट बजाने परन्तु मेरी ईंट से ईंट बज गई। मेरे को नरक में डालेंगे, मैं चला जाउंगा, मुझे छुड़वा दो। करौंथा आश्रम में संत रामपाल जी बैठे हैं इनको आदमी मत समझना पूर्ण परमात्मा आये हुए हैं। इनको मत छोड़ देना, नहीं तो खता खा जाओगे। ऐसे ही खेड़ा कंचनी वाला पण्डित भी इलाज करता था। जब मैं खेड़ा कंचनी में गया तो उस पंडित ने बताया कि आपका परिवार एक के बाद एक करके खत्म हो जायेगा। मैंने नहीं मानी, परन्तु शाहपुर में ही भाई की लड़कियों की शादी कर रखी है तथा वह पण्डित भी शाहपुर का ही है। फिर पण्डित जी ने हमारे चैधरी को बताया कि रोहतक वाले चैधरी रामकुमार के यहाँ बहुत खतरनाक बीमारी है और सारा परिवार नष्ट हो जायेगा। उनको बुलाकर लाओ। तब हमारे चैधरी साहब ने बटेऊ को मेरे पास भेजा। हमारे बटेऊ जिले सिंह ने बताया और वह साथ लेकर गया। बुलाना तो आसान था परन्तु फिर ईलाज बहुत मुश्किल हो गया। उसके काबू में नहीं आया। मंगल व शनिवार को रात के समय पाँच-पाँच चैकियां आती थी। उन्हें उतारता और साथ में तालाब में डाल देता। यह कार्यक्रम चार साल तक चलता रहा परन्तु बाद में हाथ खड़े कर दिए। मैं बोहतावाला (जीन्द) में एक स्याने के पास पहुँचा। उसने कहा कि तेरी बीमारी मैं काट दूंगा। आपकी बीमारी का मुझे पता है। वह हमें कई बार बाला जी भी ले गया, न उस स्याने के काबू में आया और न उसके मन्दिर में। क्योंकि मंगल व शनिवार को चैकियों के आने ने उसको इतना तंग कर दिया कि वह भी हाथ खड़े कर गया, क्योंकि चैकियां जब आती थी तो मेरे पास भी संदेश आ जाता था कि रात 9 से 2 बजे तक आग जला कर, पानी का लोटा लेकर और लाठी लेकर जागते रहना है। यह कार्यक्रम सन् 1996 से 2002 तक चलता रहा। बोतावाले के पास जब चैकी आई तो उसमें एक पर्ची मिली थी बोहतावाले स्याने को कहा था कि बीच से हट जा तेरे को पचास हजार रूपये दे देंगे, नहीं तो तेरी भी खैर नहीं है। उसने डर के कारण मुझे इन्कार कर दिया। मैं दिन में दिल्ली नौकरी करने जाता और रात को पहरा देता। कभी रात को डाॅ. को बुला कर लाता। मेरी बहुत ही दुर्दशा थी। मैं ऊपर के काम से तथा सारा परिवार बीमारी से बहुत तंग था। किसी को कहते तो मजाक करते थे, किसी ने भी साथ नहीं दिया। बहुत पैसे (लगभग 3 लाख) खर्च हो गये।मेरी पत्नी चांदकौर को थाईराइड हो गई थी। जनवरी 2003 में डाॅ. ओ.पीगुप्ता ने थाईराईड के लिए तिमारपुर, दिल्ली हस्पताल में दाखिल करवाने के लिए मार्क कर दिया। परन्तु वहाँ न जाकर मैं मैडिकल में डाॅ. चुग इसका स्पेशलिस्ट था उनसे ईलाज करवाया, उसने कहा सारी उम्र दवा खानी पड़ेगी, परन्तु अब 2003 में नाम लेने के बाद दवाई बिल्कुल समाप्त हो गई। मैंने डाॅ. चुग को भी चैक करवाया, तो हैरान होगये, ये कैसे हुआ, सारी बातें बताई। अब मेरे लड़के व मेरी पत्नी की सभी बिमारियाँ बन्दी छोड़ ने ठीक कर दी। बड़े लड़के का नाम सुरेन्द्र कुमार तथा छोटे लड़के का नाम मनोज कुमार है। दोनों हरियाणा पुलिस में नौकरी करते हैं। जब वे दोनों ही उस जिन्द भूत से ग्रस्त थे व घाल ने भी उन पर कई बार अटैक किया, लेकिन नाम उपदेश ले रखा था। इसलिए उनको परमात्मा कबीर साहिब ने बचा लिया।
तत्वदर्शी जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज हमारे लिये ही अवतरित हुऐ हैं क्योंकि जिस परिवार में दो लड़के नौकरी पर दोनों में ही जिन्द हो तो उस घर में क्या होगा। जिस औरत के दोनों लड़कों के साथ ऐसा खिलवाड़ हो और खुद में भी जिन्द हो तो क्या जिन्दगी है ? जो लोग करौंथा आश्रम के बारे में ज्ञान अर्जित नहीं करते वे लोग अंधेरे में हैं। क्योंकि पढ़ने के लिए दिमाग दिया है, पढ़िये और सोचिये कि वास्तविकता क्या है ?
हमारा परिवार बर्बाद हो गया था। मेरे बच्चे और मेरी पत्नी जब ठीक हो गई तभी मैंने अपने आपको सतगुरु रामपाल जी के चरणों में समर्पण कर दिया। मेराश कुछ नहीं है। ये तन-मन-धन सभी गुरु जी के चरणों में समर्पित करता हूँ। मेरी लड़की ने व दामाद ने भी नाम ले लिया। आज मेरी बेटी का घर भी स्वर्ग हो गया है। मेरा दामाद शराब पीता था, उसने शराब भी त्याग दी। मेरी लड़की की प्रमोसन, प्लाॅट, मकान आदि चन्द दिनों में ही प्राप्त हो गए तथा सबकी मौज हो रही है। सन् 2003 में बन्दी छोड़ गुरु रामपाल जी महाराज ने हमारे पाप कर्मों रूपी सूखे घास के ढेर को सतनाम रूपी अग्नि से जलाकर नष्ट कर दिया। न कोई गंडा, न कोई डोरी, न राख, न ताबीज आदि कुछ नहीं, बस केवल बन्दी छोड के मंत्र (नाम उपदेश) मात्र से सर्व रोग नष्ट हो गए। मंत्रा तो मोक्ष प्राप्ति के लिए सभी बन्धनों से छुटकारा पाकर सतलोक ले जाने का है, ये सभी बिमारियां तो रूंगे में कविर्देव की कपा से ही समाप्त हो जाती हैं। यदि ऐसा न हो तो भक्ति से विश्वास उठ जाता है। अब हम बहुत सुखी हैं। अब चाहे कोई कुछ भी करे, हमारे घर पर कुछ नहीं हो सकता, क्योंकि हम बन्दी छोड़ कबीर साहेब के हंस हैं, उनके चरणों में हैं। मैं भी नहीं मानता था, इन बातों को पाखण्ड कहता था, परन्तु जब एक के बाद एक को डाॅ. के पास ले जाता था तथा बीमारी में पैसे भी लगे, तंग भी हुए, तब आँखें खुली वास्तव में ही मुझे जाल में फंसा रखा है। इसलिए अपने इस भ्रम को भुला देना कि भूत-प्रेत कुछ नहीं है। मैं कहता हूँ कि बकवास नहीं ये बातें वास्तव में हैं, क्योंकि मरोड़ में मैंने अपने घर को बरबाद कर दिया होता। इसलिए मैं सभी पाठकों से प्रार्थना करता हूँ कि आप भी अपने समस्त दुःखों से छुटकारा पाने व सत्यभक्ति करने के लिए सतलोक आश्रम करौंथा में परम पूज्य संत रामपाल जी महाराज से मुफ्त उपदेश प्राप्त करके अपने मनुष्य जीवन को सफल बनाए। प्रार्थी: हैडमास्टर रामकुमार (एम.ए.बी.एड.)
उपरोक्त कुछ भक्तात्माओं की आत्म कथाएं आपने पढ़ी। ऐसे-2 भक्त हजारों-लाखों हैं जो अपनी आत्म कथा पुस्तकों में लिखवाना चाहते हैं। लेकिन यहां पर स्थान के अभाव के कारण हम कुछेक भक्तों की आत्म कथा दे पाए। यदि सभी भक्तों की आत्म कथा हम लिखने बैठ जांए तो शायद सैकड़ों पुस्तकें छप जाएंगी। इसलिए समझदार व्यक्ति को इशारा (संकेत) ही काफी होता है।
भक्ति में भेद: भक्ति भक्ति में बहुत भेद होता है। आप चाहें किसी देव/देवी की भक्ति करें। उसका फल अवश्य मिलेगा जो कि नाशवान होगा। लेकिन मुक्ति नहीं हो पाएगी और पाप कर्म भी समाप्त नहीं होंगे जिन्हें भोगने के लिए बार-2 जन्म लेते रहना पड़ेगा। मुक्ति तो केवल पूर्ण संत की शरण में जाकर अर्थात् उनसे नाम उपदेश लेकर पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने से ही हो पाएगी अन्यथा नहीं।
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