इस पुस्तक में श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी, श्री देवी दुर्गा जी, श्री काल ब्रह्म जी (क्षर ब्रह्म यानि क्षर पुरूष), श्री परब्रह्म जी (अक्षर ब्रह्म यानि अक्षर पुरूष) तथा परम अक्षर ब्रह्म जी (परम अक्षर पुरूष यानि संत भाषा में जिसे सत्यपुरूष कहते हैं) की यथा स्थिति बताई है जो संक्षिप्त में इस प्रकार है:- परम अक्षर ब्रह्म {जिसका वर्णन गीता अध्याय 8 श्लोक 3, 8,10 तथा 20,22 में तथा गीता अध्याय 2 श्लोक 17, गीता अध्याय 15 श्लोक 17, गीता अध्याय 18 श्लोक 46, 61, 62, 66 में है जिसकी शरण में जाने के लिए गीता ज्ञान बोलने वाले ने अर्जुन को कहा है तथा कहा है कि उसकी शरण में जाने से परम शान्ति यानि जन्म-मरण से छुटकारा मिलेगा तथा (शाश्वतम् स्थानम्) सनातन परम धाम यानि अविनाशी लोक (सतलोक) प्राप्त होगा।}:- यह कुल का मालिक है।
गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में इसी की शरण में जाने के लिए गीता ज्ञान दाता ने कहा है।
श्लोक 66 में कहा है कि (सर्वधर्मान्) मेरे स्तर की सर्व धार्मिक क्रियाओं को (परित्यज्य माम्) मुझमें त्यागकर तू (एकम्) उस कुल के मालिक एक परमेश्वर की (शरणम्) शरण में (व्रज) जा। (अहम्) मैं (त्वा) तुझे (सर्व) सब (पापेभ्यः) पापों से (मोक्षयिष्यामि) मुक्त कर दूँगा, (मा शुच) शोक न कर।
यह एक परमेश्वर सबका मालिक सबसे बड़ा (समर्थ) कबीर जी है जो काशी (बनारस) शहर (भारत देश) में जुलाहे की लीला किया करता तथा यथार्थ व सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान (सूक्ष्मवेद) को बताया करता था। इसी ने सर्व ब्रह्मंडों की रचना की है। इसी ने क्षर पुरूष, अक्षर पुरूष, ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा देवी दुर्गा (अष्टांगी देवी) समेत सर्व जीवात्माओं की उत्पत्ति की है। यह तथ्य इतना सत्य जानो जैसे आज से लगभग चार सौ वर्ष पूर्व एक वैज्ञानिक ने बताया था कि पृथ्वी अपने अक्ष (धुरी) पर घूमती है जिसके घूमने से दिन तथा रात बनते हैं। उस समय सब मानते थे कि सूर्य, पृथ्वी के चारों ओर घूमता है। जिस कारण से दिन तथा रात बनते हैं। संसार के सब मानव का यही मत था। इस झूठ को इतना सत्य मान रखा था कि उस वैज्ञानिक का विरोध करके फाँसी पर चढ़वा दिया। आज वह चार सौ वर्ष पूर्व वाली बात सत्य साबित हुई। सूर्य घूमता है, यह झूठ सिद्ध हुई।
वर्तमान में काशी के जुलाहे कबीर को कुल का मालिक बताना इतना सत्य है जितना चार सौ वर्ष पूर्व पृथ्वी को अपनी धुरी पर घूमना बताना था। आप पाठकजन इस पुस्तक को पढ़कर मान लोगे कि वास्तव में कबीर जुलाहा पूर्ण परमात्मा है।
सतलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा अकह लोक/अनामी लोक, इन चार लोकों का समूह अमर लोक यानि सनातन परम धाम कहलाता है। इन चारों अमर लोकों में कबीर जी की राजधानी है। उनमें तख्त (सिहांसन) बने हैं। उस सिहांसन के ऊपर बैठकर परमेश्वर कबीर जी राजा की तरह सिर के ऊपर मुकुट तथा छत्र आदि से शोभा पाता है।
सतलोक में ‘सतपुरूष’ कहलाता है। अलख लोक में ’अलख पुरूष‘, अगम लोक में ’अगम पुरूष‘ तथा अनामी लोक में ’अनामी पुरूष‘ की पदवी प्राप्त है। जैसे भारत देश का प्रधानमंत्राी जी देश का एकमात्र शासक है। प्रधानमंत्राी जी अपने पास कई विभाग भी रख लेता है। उनके दस्तावेज पर हस्ताक्षर करता है तो मंत्री लिखा जाता है। प्रधानमंत्री कार्यालय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करता है तो प्रधानमंत्री लिखा जाता है। व्यक्ति वही होता है। कबीर परमेश्वर विशेषकर सतलोक (सत्यलोक) में बैठकर सब नीचे व ऊपर के लोकों को संभालते हैं। इसलिए सतलोक का विशेष महत्व हमारे लिए है। उसमें सतपुरूष पद से जाना जाता है। इसलिए ‘‘सतपुरूष’’ शब्द हमारे लिए अधिक मायने रखता है। जैसे प्रधानमंत्री जी का शरीर का नाम अन्य होता है। ऐसे सतपुरूष यानि परम अक्षर ब्रह्म का नाम ‘‘कबीर'' है।
सतपुरूष कबीर जी की सत्ता अक्षर पुरूष के सात संख ब्रह्मंडों पर तथा अक्षर पुरूष के ऊपर भी है तथा क्षर पुरूष तथा इसके इक्कीस ब्रह्मंडों के ऊपर भी है। इसलिए परम अक्षर ब्रह्म को वासुदेव (सब जगह पर अपना अधिकार रखने वाला) कहा गया है। गीता अध्याय 7 श्लोक 19 में इसी वासुदेव के विषय में कहा है। अब श्री ब्रह्मा (रजगुण), श्री विष्णु (सतगुण) तथा शिव (तमगुण) की स्थिति बताता हूँ।
क्षर पुरूष (काल रूपी ब्रह्म) के इक्कीस ब्रह्मंड हैं। एक ब्रह्मंड में तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक तथा पाताल लोक) में श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा शिव जी एक-एक कृत के स्वामी/प्रभु हैं। जैसे एक प्रांत में एक मुख्यमंत्राी होता है जो प्रांत का मुखिया होता है। अन्य मंत्राीगण उसके आधीन होते हैं तथा मुख्यमंत्री जी देश के प्रधानमंत्राी जी के आधीन होता है। ऐसे ही क्षर पुरूष (काल ज्योति निरंजन) अपने प्रत्येक ब्रह्मंड में मुख्यमंत्राी रूप में है तथा श्री ब्रह्मा जी रजगुण विभाग के, श्री विष्णु जी सतगुण विभाग के तथा श्री शिव जी तमगुण विभाग के मंत्री हैं। केवल तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक तथा पाताल लोक) के प्रभु (मालिक) हैं।
परम अक्षर ब्रह्म यानि सतपुरूष कबीर जी को प्रधानमंत्री जी तथा देश के राष्ट्रपति जी मानो। अब आप जी समझ लें कि कबीर बड़ा है या कृष्ण। श्री कृष्ण जी व श्री रामचन्द्र जी स्वयं विष्णु हैं जो भिन्न-भिन्न रूपों में जन्में थे। श्री विष्णु जी की स्थिति ऊपर बता दी है।
संत गरीबदास जी को परमेश्वर कबीर जी स्वयं मिले थे। उनको ऊपर के ब्रह्मंडों में लेकर गए थे। सब देवों की स्थिति से अवगत करवाया था। अपने सतलोक में भी लेकर गए थे। अपनी स्थिति से भी अवगत करवाया था। फिर वापिस पृथ्वी के ऊपर छोड़ा था। तब संत गरीबदास जी ने बताया है कि:-
गरीब, तीन लोक का राज है, ब्रह्मा विष्णु महेश।
ऊँचा धाम कबीर का, सतलोक प्रदेश।।
गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मंड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरू पुरूष कबीर है, कुल के सिरजन हार।।
अधिक जानकारी आगे इसी पुस्तक में पढ़ेंगे।
धार्मिक भावनाओं को ठेस:- यदि कोई सज्जन पुरूष (स्त्रि-पुरूष) उस अंध श्रद्धालु को कहे कि आप जिस देवी-देवता को ईष्ट मानकर जो साधना कर रहे हो, यह गलत है। इससे आपको कोई लाभ नहीं मिलेगा। आपका मानव जीवन नष्ट हो जाएगा। आप देवी-देवताओं की पूजा ईष्ट मानकर ना करो। आप मूर्ति की पूजा ना करो। आप धामों तथा तीर्थों पर मोक्ष उद्देश्य से ना जाओ।
आप श्राद्ध न करो, पिण्डदान ना करो। तेरहवीं, सतरहवीं क्रिया या अस्थियाँ उठाकर गति करवाने के लिए मत ले जाओ। आप व्रत न रखो। इसके स्थान पर अन्न-जल करने में संयम करो, न अधिक खाओ, न बिल्कुल भूखे रहो। आप अपने धर्म के शास्त्रों में बताए भक्ति मार्ग के अनुसार साधना करो।
वह अंध श्रद्धावान यदि उस सज्जन पुरूष से कहे कि आप अच्छे व्यक्ति नहीं हो। आप ने हमारी धार्मिक भावनाऐं आहत की हैं। चला जा यहाँ से, वरना तेरी हड्डी-पसली एक कर दूँगा।
जोर-जोर-से शोर मचाने लगता है। उसके शोर को सुनकर उसी क्षेत्र के उसी तरह उन्हीं देवी-देवताओं व तीर्थों-धामों के उपासकों का हुजूम इकठ्ठा हो जाता है। बात धर्मगुरूओं तक पहुँच
जाती है। धर्मगुरू भी वही शास्त्राविरूद्ध मनमाना आचरण करने-कराने वाले होते हैं। उन धर्मगुरूओं की पहुँच उच्च पद पर विराजमान राजनेताओं तक होती है। उन धर्मगुरूओं के फोन मंत्रियों-मुख्यमंत्रियों या स्थानीय नेताओं को जाते हैं। उच्च पद पर बैठे राजनेता स्थानीय प्रशासन को फोन करके धार्मिक भावनाऐं भड़काने का मुकदमा दर्ज करने को कहते हैं। उनके दबाव में प्रशासनिक अधिकारी तुरंत उस सज्जन पुरूष को गिरफ्तार करके मुकदमा बनाकर जेल भेज देते हैं।
जीवित उदाहरण:- सन् 2011 में मेरे (रामपाल दास-लेखक के) अनुयाई (जिनमें बेटियाँ भी शामिल थी) मध्यप्रदेश प्रान्त के शहर जबलपुर में पुस्तक ‘‘ज्ञान गंगा’’ (जो मेरे सत्संग प्रवचनों का
संग्रह करके तैयार कर रखी है) का प्रचार कर रहे थे। लागत 30 रूपये, परंतु 10 रूपये में बेच रहे थे। जिस कारण से हिन्दू श्रद्धालु उत्साह से लेकर जा रहे थे। जब उन्होंने घर जाकर पढ़ा तो लगा कि अनर्थ हो गया। देवी-देवताओं की पूजा गलत लिखी है। धामों-तीर्थों पर जाना व्यर्थ लिखा है। माता दुर्गा का पति बताया है। श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव का जन्म-मरण बताया है। इनके माता-पिता भी बताऐ हैं। हमारे देवताओं का अपमान किया है। मारो-मारो! उन अंध श्रद्धा वालों ने पहले तो प्रचार करने वाले स्त्री-पुरूषों को स्वयं पीटा, फिर थाने ले गए। हजारों अंध श्रद्धावान इकठ्ठे हो गए। जिला प्रशासन में बेचैनी हो गई क्योंकि राजनेताओं के फोन स्थानीय D.C., S.P.
I.G तथा कमिश्नर के पास आने लगे। हमारे एक अनुयाई ने बताया कि उपायुक्त महोदय (Deputy
Commissione) तथा पुलिस अधीक्षक महोदय थाने में आए। पुस्तक ‘‘ज्ञान गंगा’’ ली, उसको वहीं बैठकर पढ़ने लगे।
अधिकारी सुशिक्षित तथा दिमागदार होते हैं IPS तथा IAS, उनको समझते देर नहीं लगी कि इस पुस्तक में कुछ भी ऐसा नहीं लिखा है जिससे किसी की धार्मिक भावनाऐं आहत होती हों। सब विवरण शास्त्रों से प्रमाणित करके लिखा है। सुबह दस बजे से शाम के पाँच बजे तक अधिकारी-गण मुकदमा दर्ज करने से बचते रहे, परंतु उन अंध श्रद्धावानों ने मध्य प्रदेश के विधानसभा के अध्यक्ष ने पुनः फोन पर कहा कि अधिकारी केस दर्ज नहीं करना चाहते। तब विधानसभा अध्यक्ष ने अधिकारियों को धमकाया तो प्रशासन ने मजबूरन धार्मिक भावनाओं को भड़काने का मुकदमा
IPS की धारा 295A। के तहत दर्ज करके लगभग 35 स्त्राी-पुरूषों को जेल भेज दिया। मुकदमा नं. 201 दिनाँक-08.05.2011, थाना-मदन महल (जबलपुर)।
विधान सभा अध्यक्ष ने अपने पद का दुरूपयोग करके पाप किया। {उसका फल भी परमात्मा ने उसे तुरंत दिया। वह विधान सभा अध्यक्ष दो महीने बाद ही मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसका नाम
था ईश्वर दास रोहाणी।} इस मुकदमें को माननीय हाई कोर्ट जबलपुर में समाप्त (Quash) करने की अर्जी (डण्ब्तण्ब्ण् छवण् 13577.2013) लगाई जो माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर (मध्य प्रदेश) ने वह मुकदमा दिनाँक 20.07.2017 को खत्म कर दिया क्योंकि पुस्तक में सर्व ज्ञान शास्त्र प्रमाणित
मिला। लेकिन सन् 2011 से सन् 2017 तक निचली अदालतों में तारीख पर तारीखें पड़ी। उन पर सर्व 35 अनुयाई अपना कार्य छोड़कर गए। किराया लगा, ध्याड़ी छोड़ी, वित्तीय नुक्सान तथा
परेशानी उन अंध श्रद्धावानों के हित के लिए झेली कि वे इस पुस्तक में लिखे शास्त्रों के प्रमाणों को आँखों देखकर शास्त्राविधि रहित साधना त्यागकर शास्त्रोक्त साधना करके अपने जीवन को धन्य बनाऐं क्योंकि श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23.24 में प्रमाण है। इन दोनों श्लोकों का वर्णन पुस्तक में आगे किया है, वहाँ पढ़ें।
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