दास की परिभाषा‘‘

Image
‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

नरक का वर्णन’’



‘‘नरक का वर्णन’’ 

किसी स्थान पर पापी प्राणियों को कोल्हू में पीड़ा जा रहा था, कहीं उल्टा लटका रखा था, कहीं गर्म खंभों से बाँध रखा था। कई प्रकार से चीस (कष्ट) दी जा रही थी। कहीं पर यमदूत पापी प्राणियों को चबा-चबाकर खा रहे थे। कुछ डर के मारे इधर-उधर भाग रहे थे, परंतु कोई बच नहीं पा रहा था। किसी को नरक कुण्डों में डाल रखा था। कोई सिर में मोगरी (छोटे-मोटे डण्डे) मार रहा था। 84 नरक कुण्ड बने हैं। यह दृश्य आँखों से देखकर राजा व्याकुल हो गया। किसी कुण्ड में रूधिर (ठसववक) भरा था। किसी में पीब (मवाद) तो किसी में मूत्र भरा था जिनकी गहराई एक योजन (12 कि.मी.) तथा चार योजन (48 किमी.) परिधि  यानि गोलाई और चार योजन तक दुर्गन्ध जाती है। इन चार कुण्डों का तो यह वर्णन है। पाँचवें में अग्नि जल रही थी, बहुत जीव उसमें जल रहे थे। यह बहुत लम्बा-चौड़ा है, गहरा है। राजा अमर सिंह उस नरक को देखकर भयभीत था, कुछ बोल नहीं पा रहा था।
जो झूठ बोलकर स्वार्थ पूर्ति करता है, उसकी जीभ काट रखी थी। जो झूठी गवाही देता था, उसको सर्प की जीभ लगा रखी थी। जो निर्दोष को मारता है, उसकी पिटाई हो रही थी। जो स्त्री अपने पति को छोड़कर पर पुरूष के पास जाती है। उसको नरक में अग्नि में जलाया जाता है यानि आग के मनुष्य जैसे पुतले से बाँध दिया जाता है। यदि कोई पुरूष परस्त्री गमन करता है तो उसको नारी जैसे अग्नि खंभ से बाँध दिया जाता है। अन्य अपराधियों को अन्य प्रकार की यातनाऐं दी जा रही थी। गिद्ध पक्षी, कॉग (कौवा) पक्षी उनको नौंच-नौंचकर खा रहे थे। जो नर-नारी शराब पीते हैं, उनको गर्म तेल पिलाया जा रहा था। जो साधु की निंदा करते हैं, उनको कुष्ट रोग (कोढ़ रोग) लगता है। फिर पृथ्वी के ऊपर भी उनको 84 लाख प्रकार के प्राणियों के शरीरों में कष्ट तथा मानव जन्म में भी भिन्न कष्ट कर्मानुसार भोगने पड़ते हैं।
राजा अमर सिंह नरक देखकर चित्र-गुप्त के लोक में दूतों के साथ आया। वहाँ पर परमेश्वर कबीर जी सिंहासन पर विराजमान थे। राजा भयभीत होकर परमेश्वर कबीर जी के चरणों में सिर रखकर बहुत दुखी मन से कहने लगा कि हे प्रभु! मेरी रक्षा करो, मुझे बचा लो। नरक की कथा सुनकर धर्मदास भयभीत हो गया तथा कहा कि आगे और बताओ परमेश्वर। परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि जो पुण्य करता है, उसको स्वर्ग में भेज दिया जाता है और जो पाप करता है, वह नरक में कष्ट भोगता है। दोनों प्रकार के कर्मों को भोगने के पश्चात् अन्य प्राणियों के गर्भ में कष्ट, फिर जीवनभर कष्ट भोगना पड़ता है। इस चक्र में काल ने जीव को फँसा रखा है। परमेश्वर कबीर जी धर्मदास जी को सुना रहे हैं कि रविसुत यानि यमराज का एक सदन ् है।
उसमें यमराज का सिंहासन मध्य में है। सामने खाली जगह है, तीन ओर यम के गण यानि यमदूत अकड़ के साथ अपने-अपने आसनों पर बैठे होते हैं। अन्य सिंहासनों पर वेद-शास्त्र के कर्ता-वक्ता, ऋषि-मुनि जैसे पारासर ऋषि और व्यास आदि-आदि सब ऋषिजन शरीर त्यागकर यमराज के कार्यालय में जाते हैं। वहाँ यमराज की सहायता करते हैं। पाप-पुण्य का हिसाब कराते हैं। जितने जीव (मानव) मृत्यु के पश्चात् वहाँ जाते हैं, सब मिलकर जीवों का पाप-पुण्य का निर्णय करने में सहयोग देते हैं। ये सब काल के नौकर हैं। अपनी आँखों हमने देखा है। धर्म-अधर्म का यथावत निर्णय सब मिलकर करते हैं। यह सब काल की सेना है। हे धर्मदास! चित्र-गुप्त प्रत्येक मानव के जीव के साथ रहते हैं। फिर वे अपना सारा लेखा-जोखा  मुख्य चित्र को चित्र तथा मुख्यगुप्त को जीव के साथ वाला गुप्त सर्व लेखा ् देता है। प्रत्येक चित्रा तथा गुप्त प्रत्येक जीव का पाप-पुण्य बोल-बोलकर सुनाता है। धर्मराय उनको यथार्थ न्याय के साथ प्रत्येक का दण्ड तथा स्वर्ग समय निर्धारित करके देता है। उसी अनुसार दूत जीवों को भुगतान कराते हैं। जो सुकर्म (धर्म करने वाला) है, उसको देवदूतों के साथ स्वर्ग में भेजा जाता है।

••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry

Comments

Popular posts from this blog

राकेश झुनझुनवाला, जानिए कितना बड़ा है बिग बुल का परिवार, कौन था उनके लिए सबसे जरूरी

चमत्कार !!! #चमत्कार !!! #चमत्कार !!!

संत गरीबदास जी द्वारा श्राद्ध भ्रम खण्डन’’