‘कुछ अमृतवाणी गरूड़ बोध से‘‘
धर्मदास वचन
धर्मदास बीनती करै, सुनहु जगत आधार। गरूड़ बोध भेद सब, अब कहो तत्त्व विचार।।
सतगुरू वचन (कबीर वचन)
प्रथम गरूड़ सों भैंट जब भयऊ। सत साहब मैं बोल सुनाऊ।
धर्मदास सुनो कहु बुझाई। जेही विधि गरूड़ को समझाई।।
गरूड़ वचन
सुना बचन सत साहब जबही। गरूड़ प्रणाम किया तबही।।
शीश नीवाय तिन पूछा चाहये। हो तुम कौन कहाँ से आये।।
ज्ञानी (कबीर) वचन कहा कबीर है नाम हमारा। तत्त्वज्ञान देने आए संसारा।।
सत्यलोक से हम चलि आए। जीव छुड़ावन जग में प्रकटाए।।
गरूड़ वचन
सुनत बचन अचम्भो माना। सत्य पुरूष है कौन भगवाना।।
प्रत्यक्षदेव श्री विष्णु कहावै। दश औतार धरि धरि जावै।।
ज्ञानी (कबीर) बचन
तब हम कहया सुनो गरूड़ सुजाना। परम पुरूष है पुरूष पुराना।।(आदि का)
वह कबहु ना मरता भाई। वह गर्भ से देह धरता नाहीं।। कोटि मरे विष्णु भगवाना। क्या गरूड़ तुम नहीं जाना।।
जाका ज्ञान बेद बतलावैं। वेद ज्ञान कोई समझ न पावैं।। जिसने कीन्हा सकल बिस्तारा। ब्रह्मा, विष्णु, महादेव का सिरजनहारा।। जुनी संकट वह नहीं आवे। वह तो साहेब अक्षय कहावै।।
गरूड़ वचन
राम रूप धरि विष्णु आया। जिन लंका का मारा राया।।
पूर्ण ब्रह्म है विष्णु अविनाशी। है बन्दी छोड़ सब सुख राशी।।
तेतीस कोटि देवतन की बन्द छुड़ाई। पूर्ण प्रभु हैं राम राई।।
ज्ञानी (कबीर) वचन
तुम गरूड़ कैसे कहो अविनाशी। सत्य पुरूष बिन कटै ना काल की फांसी।।
जा दिन लंक में करी चढ़ाई। नाग फांस में बंधे रघुराई।।
सेना सहित राम बंधाई। तब तुम नाग जा मारे भाई।।
तब तेरे विष्णु बन्दन से छूटे। याकु पूजै भाग जाके फूटे।।
कबीर ऐसी माया अटपटी, सब घट आन अड़ी।
किस-किस कूं समझाऊँ, कूअै भांग पड़ी।।
गरूड़ वचन
ज्ञानी गरूड़ है दास तुम्हारा। तुम बिन नहीं जीव निस्तारा।।
इतना कह गरूड़ चरण लिपटाया। शरण लेवों अविगत राया।।
कबहु ना छोडूँ तुम्हारा शरणा। तुम साहब हो तारण तरणा।।
पत्थर बुद्धि पर पड़े है ज्ञानी। हो तुम पूर्ण ब्रह्म लिया हम जानी।।
ज्ञानी (कबीर) वचन
तब हम गरूड़ कुं पाँच नाम सुनाया। तब वाकुं संशय आया।।
यह तो पूजा देवतन की दाता। या से कैसे मोक्ष विधाता।।
तुमतो कहो दूसरा अविनाशी। वा से कटे काल की फांसी।।
नायब से कैसे साहेब डरही। कैसे मैं भवसागर तिरही।।
ज्ञानी (कबीर) वचन
साधना को पूजा मत जानो। साधना कूं मजदूरी मानो।।
जो कोऊ आम्र फल खानो चाहै। पहले बहुते मेहनत करावै।।
धन होवै फल आम्र खावै। आम्र फल इष्ट कहावै।।
पूजा इष्ट पूज्य की कहिए। ऐसे मेहनत साधना लहिए।।
यह सुन गरूड़ भयो आनन्दा। संशय सूल कियो निकन्दा।।
■ भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी से गरूड़ देव ने कहा कि हे परमेश्वर! आपने तो इन्हीं देवताओं के नाम मंत्र दे दिये। यह इनकी पूजा है। आपने बताया कि ये तो केवल 16 कला युक्त प्रभु हैं। काल एक हजार कला युक्त प्रभु है। पूर्ण ब्रह्म असँख्य कला का परमेश्वर है। आपने सृष्टि रचना में यह भी बताया है कि काल ने आपको रोक रखा है। काल ब्रह्म के आधीन तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी हैं। हे परमेश्वर! नायब (उप यानि छोटा) से साहब (स्वामी-मालिक) कैसे डरेगा? यानि ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी तो केवल काल ब्रह्म के नायब हैं। जैसे नायब तहसीलदार यानि छोटा तहसीलदार होता है। तो छोटे से बड़ा कैसे डर मानेगा? भावार्थ है कि ये काल ब्रह्म के नायब हैं। आपने इनकी भक्ति बताई है, इनके मंत्र जाप दिए हैं। ये नायब अपने साहब (काल ब्रह्म) से हमें कैसे छुड़वा सकेंगे? तब परमेश्वर कबीर जी ने पूजा तथा साधना में भेद बताया कि यदि किसी को आम्र फल यानि आम का फल खाने की इच्छा हुई है तो आम फल उसका पूज्य है। उस पूज्य वस्तु को प्राप्त करने के लिए किया गया प्रयत्न साधना कही जाती है। जैसे धन कमाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। उस धन से आम मोल लेकर खाया जाता है। इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा हमारा ईष्ट देव यानि पूज्य देव है।
जो देवताओं के मंत्र का जाप मेहनत (मजदूरी) है। जो नाम जाप की कमाई रूपी भक्ति धन मिलेगा, उसको काल ब्रह्म में छोड़कर कर्जमुक्त होकर अपने ईष्ट यानि पूज्य देव कबीर देव (कविर्देव) को प्राप्त करेंगे। यह बात सुनकर गरूड़ जी अति प्रसन्न हुए तथा गुरू के पूर्ण गुरू होने का भी साक्ष्य मिला कि पूर्ण गुरू ही शंका का समाधान कर सकता है और दीक्षा प्राप्ति की। गरूड़ को त्रोतायुग में शरण में लिया था। श्री विष्णु जी का वाहन होने के कारण तथा बार-बार उनकी महिमा सुनने के कारण तथा कुछ चमत्कार श्री विष्णु जी के देखकर गरूड़ जी की आस्था गुरू जी में कम हो गई, परंतु गुरू द्रोही नहीं हुआ। फिर किसी जन्म में मानव शरीर प्राप्त करेगा, तब परमेश्वर कबीर जी गरूड़ जी की आत्मा को शरण में लेकर मुक्त करेंगे। दीक्षा के पश्चात् गरूड़ जी ने ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी से ज्ञान चर्चा करने का विचार किया। गरूड़ जी चलकर ब्रह्मा जी के पास गए। उनसे ज्ञान चर्चा की।
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