अनुराग सागर के पृष्ठ 155 का सारांश :-
धर्मदास जी ने प्रश्न किया कि हे प्रभु! आपने काल-जाल समझाया, अब यह बताने की कृपा करें कि जीव को आपकी प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिए?
‘‘सतगुरू (कबीर जी) वचन‘‘
‘‘भक्त के 16 गुण (आभूषण)‘‘
परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे धर्मदास! भवसागर यानि काल लोक से निकलने के लिए भक्ति की शक्ति की आवश्यकता होती है। परमात्मा प्राप्ति के लिए जीव में सोलह (16) लक्षण अनिवार्य हैं। इनको आत्मा के सोलह सिंगार (आभूषण) कहा जाता है।
1 ज्ञान 2 विवेक 3 सत्य 4 संतोष 5 प्रेम भाव 6 धीरज 7 निरधोषा (धोखा रहित) 8 दया 9 क्षमा 10 शील 11 निष्कर्मा 12 त्याग 13 बैराग 14 शांति निज धर्मा 15 भक्ति कर निज जीव उबारै 16 मित्र सम सबको चित धारै।
भावार्थ :- परमात्मा प्राप्ति के लिए भक्त में कुछ लक्षण विशेष होने चाहिऐं। ये 16 आभूषण अनिवार्य हैं।
1 तत्त्वज्ञान
2 विवेक
3 सत्य भाषण
4 परमात्मा के दिए में संतोष करे और उसको परमेश्वर की इच्छा जाने
5 प्रेम भाव से भक्ति करे तथा अन्य से भी मृदु भाषा में बात करे
6 धैर्य रखे, सतगुरू ने जो ज्ञान दिया है, उसकी सफलता के लिए हौंसला रखे फल की जल्दी न करे
7 किसी के साथ दगा (धोखा) नहीं करे
8 दया भाव रखे
9 भक्त तथा संत का आभूषण क्षमा
भी है। शत्रु को भी क्षमा कर देना चाहिए
10 शील स्वभाव होना चाहिए। भक्ति को निष्काम भाव
से करे, सांसारिक लाभ प्राप्ति के उद्देश्य से नहीं करे 12 त्याग की भावना बहुत अनिवार्य है
13 बैराग्य होना चाहिए। संसार को असार तथा अपने जीवन को अस्थाई जानकर परमात्मा के प्रति विशेष लगाव होना मोक्ष में अति आवश्यक है
14 भक्त का विशेष गुण शांति होती है, यह भी अनिवार्य है 15 भक्ति करना यानि भक्ति करके अपने जीव का कल्याण कराऐं
16 प्रत्येक व्यक्ति के साथ मित्र के समान व्यवहार करना चाहिए।
ये उपरोक्त गुण होने के पश्चात् सत्यलोक जाया जाएगा। इनके अतिरिक्त गुरू की सेवा, गुरू पद्यति में विश्वास रखे। परमात्मा की भक्ति और संत समागम करना अनिवार्य है।
अनुराग सागर के पृष्ठ 156 तथा पृष्ठ 157 का सारांश :-
इन पृष्ठों पर भी यही ज्ञान है और विषय-विकार त्यागना चाहिए, तब भक्ति सफल होगी।
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