‘‘नरक का वर्णन’’ 4
ओ भगवान सुनो मम वानी। सेवा तुम्हरी निष्फल जानी।।
हम एकोत्तर मंदिर बनावा। तामें मूरति लै पधरावा।।
साधु राखि मंदिर के मांही। छाजन भोजन दीना ताही।।
जेता धर्म हम सुने पुराना। विप्रन कहे धरम ठिकाना।।
सुरभी सोने सींग मढाई। पीतांबर पुनि ताहि ओढाई।।
भावार्थ :- राजा अमर सिंह ने भगवान विष्णु से कहा कि हे भगवान! मैंने आपके 101 मंदिर बनवाए। उनमें आपकी मूर्ति स्थापित की। आपका पुजारी रखा। उसके वेतन तथा भोजन का प्रबंध किया। जो भी वेद-पुराणों से पंडितों ने धर्म-कर्म बताया, सो सब किया। गाय की सींगों पर सोना चढ़वाकर उनको पीतांबर ओढ़ाकर सौ गाय ब्राह्मण को दान की। इस प्रकार आपकी पूजा की। फिर भी हमारे सिर पर कर्म-दण्ड लगाए हैं। श्री विष्णु जी ने कहा कि राजा लोग पाप भी बहुत करते हैं। शिकार करते हैं, जंगली जीवों को मारकर खाते हैं। पाप तो लगेगा ही। कबीर परमेश्वर जी ने बताया कि हे धर्मदास! मैंने उसी समय राजा अमर सिंह के सिर पर हाथ रखा। उसी समय उसके मुख से अनेकों कौवे निकले। यही लीला देखकर भगवान विष्णु शर्मिन्दे हो गए। आगे कुछ नहीं बोले। फिर मैं राजा अमरसिंह को मानसरोवर पर ले गया। वहाँ की शोभा देखकर राजा आश्चर्य में पड़ गया। वहाँ की कामनियों के शरीर की शोभा अनोखी है। राजा की पत्नी भी अति सुंदर थी, परंतु मानसरोवर की स्त्रियों के सामने सूर्य के सामने दीपक के समान थी। परमेश्वर कबीर जी ने राजा अमर सिंह को शरीर में प्रवेश करा दिया। पृथ्वी पर आकर राजा तथा रानी को आगे का मोक्ष मंत्र दिया। उसके पश्चात् उनकी सच्ची भक्ति श्रद्धा परखकर सारशब्द दिया।
राजा अमर सिंह अपनी आँखों नरक का कष्ट तथा विष्णु जी की असमर्थता को देख चुका था तथा मानसरोवर पर सुंदर-अच्छे स्वभाव की स्त्रियाँ व मानसरोवर की शोभा देखकर सतलोक की सुंदरता की कल्पना कर रहा था कि वहाँ तो वास्तव में अद्भुत नजारा तथा सुख होगा। राजा ने मेरे (कबीर परमेश्वर) से कहा कि हे सतगुरू! पता नहीं कब मृत्यु होगी। लंबा समय है। हमारे परिवार को तुरंत सतलोक ले चलो। यहाँ अब नहीं रहा जाएगा। यह कहकर पूरा परिवार यानि राजा-रानी तथा पुत्र चरणों में गिरकर रोने लगे। राजा ने पुत्र तथा पत्नी को ऊपर का कष्ट, विष्णु जी से हुई वार्ता, मानसरोवर का नजारा वहाँ की शोभा बताई थी। राजा से ऊपर का वर्णन सुनकर रानी तथा पुत्र व अन्य 21 (इक्कीस) लाख नागरिक उपदेशी हुए और शीघ्र सतलोक चलने का बार-बार सच्चे दिल से आग्रह किया। उनकी भक्ति पूरी करवाकर मैंने (कबीर परमेश्वर जी ने) सबका शरीर छुड़वाकर विमान में बैठाकर सतलोक पहुँचाया। वहाँ जाकर सबके शरीर का सोलह सूर्यों जितना प्रकाश हो गया। परमात्मा ने उनको सीने से लगाया। सबने अमृत भोजन खाया। सतलोक में स्थाई निवास पाया। अमर मोक्ष प्राप्त हुआ।
शंका समाधान :- जैसा कि इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में स्पष्टीकरण किया है कि नकली कबीर पंथियों ने अपनी अल्प बुद्धि से वाणियों में फेरबदल किया है। अमर सिंह बोध के पृष्ठ 91 पर तो लिखा है कि सतलोक जाने के पश्चात् राजा और अन्य जीव जो नीचे से गए थे, उन सबका एक जैसा सोलह (षोडश) सूर्यों जैसे शरीर का प्रकाश हो गया। वहाँ पर राजा तथा रंक का कोई भेद नहीं रहता। फिर पृष्ठ 92 पर लिखा है कि सतपुरूष ने राजा के शरीर का प्रकाश करोड़ सूर्यों के प्रकाश के समान कर दिया और सिर पर राजाओं की तरह छत्र लगाया।
विचार करने की बात है कि एक तरफ तो पूरे ग्रन्थ में लिखा है कि सतलोक में सर्व हंस-हंसनी का सोलह सूर्यों जैसा तेजोमय शरीर है। यहाँ राजा का शरीर करोड़ सूर्यों के प्रकाश के समान लिखकर ग्रन्थ की सत्यता को बिगाड़ा है।
कबीर सागर के अध्याय ‘‘अमर सिंह बोध‘‘ का सारांश सम्पूर्ण हुआ।
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