‘‘धर्मदास की पीढ़ी वालों को काल ने छला‘‘
सार शब्द की चास यानि अधिकार नाद के पास होगा। यदि तेरा बिंद (पुत्र परंपरा) उससे दीक्षा नहीं लेंगे तो वे नष्ट हो जाएंगे। परमेश्वर कबीर जी ने नाद की परिभाषा स्पष्ट की है। कहा है कि हे धर्मदास! तू मेरा नाद पुत्र (वचन पुत्र यानि शिष्य) है। इसलिए तेरे को मुक्ति मंत्र यानि सार शब्द दे दिया है। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को दीक्षा देने का अधिकार नहीं दिया था और सख्त निर्देश दिया था कि जो सार शब्द मैंने तेरे को दिया है, यह किसी को नहीं बताना है। यदि यह तूने बता दिया तो जिस समय बिचली पीढ़ी कलयुग में चलेगी यानि जिस समय कलयुग 5505 वर्ष बीत जाएगा (सन् 1997 में) तब मैं अपना नाद अंश भेजूंगा। मेरा यथार्थ कबीर पंथ चलेगा। उस समय से पहले यदि यह सार शब्द काल के दूतों के हाथ लग गया तो सत्य-असत्य भक्ति विधि का ज्ञान कैसे होगा? जिस कारण से भक्त पार नहीं हो पावेंगे।
कबीर सागर में ‘‘कबीर बानी’’ अध्याय के पृष्ठ 137 पर तथा अध्याय ‘‘जीव धर्म बोध’’ पृष्ठ 1937 पर प्रमाण है जिसमें कहा है कि :-
धर्मदास मेरी लाख दुहाई, सार शब्द कहीं बाहर नहीं जाई।
सार शब्द बाहर जो परही, बिचली पीढ़ी हंस नहीं तिरही।।
सार शब्द तब तक छिपाई, जब तक द्वादश (12) पंथ न मिट जाई।।
स्वस्मबेद बोध पृष्ठ 121 तथा 171 पर कहा है कि :-
चौथा युग जब कलयुग आई। तब हम अपना अंश पठाई।।
काल फंद छूटे नर लोई। सकल सृष्टि परवानिक होई।।
घर-घर देखो बोध विचारा (ज्ञान चर्चा)। सत्यनाम सब ठौर उचारा।।
पाँच हजार पाँच सौ पाँचा। तब यह वचन होयगा साचा।।
कलयुग बीत जाय जब ऐता। सब जीव परम पुरूष पद चेता।।
प्रिय पाठको! कलयुग सन् 1997 में 5505 वर्ष पूरा कर गया है। यहाँ तक सार शब्द छुपाकर रखना था।
बीच-बीच में धर्मदास जी वंश मोह में आकर सार शब्द अपने पुत्र चूड़ामणी जी को बताना चाहते थे। उसी समय अंतर्यामी परमेश्वर कबीर जी प्रकट होकर कुछ दिन साथ रहकर उसको दृढ़ करते थे। अंत में धर्मदास जी को जगन्नाथ पुरी में जीवित समाधि दे दी यानि जीवित ही पृथ्वी में दबा दिया। धर्मदास जी ने स्वयं कबीर जी से कहा था कि हे परमेश्वर! मैं पुत्र मोह वश होकर सार शब्द बता सकता हूँ। मेरे वश से बाहर की बात हो चुकी है। आप मुझे सत्यलोक भेज दो नहीं तो बात बिगड़ जाएगी। तब धर्मदास जी को जीवित समाधि दी गई थी। (यह प्रमाण दामाखेड़ा वाले महंत द्वारा छपाई पुस्तक ‘‘आशीर्वाद शताब्दी ग्रन्थ’’ में पृष्ठ 95 पर है।)
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