किस किस को मिले कबीर परमेश्वर?
अर्जुन, सर्जुन को मिलें कबीर परमात्मा।
संत गरीबदास जी के सद्ग्रन्थ के ‘‘सरबंगी साक्षी’’ के अंग में अर्जुन-सर्जुन के विषय में वाणी लिखी हैं जो इस प्रकार हैं :- सरबंगी साक्षी के अंग की वाणी नं. 112-115 :-
गरीब, सुरजन कूं सतगुरू मले, मक्के मदीने मांहि। चौसठ लाख का मेल था, दो बिन सबही जाहिं।।112।।
गरीब, चिंडालीके चौक में, सतगुरू बैठे जाय। चौंसठ लाख गारत गये, दो रहे सतगुरू पाय।।113।।
गरीब, सुरजन अरजन ठाहरे, सतगुरू की प्रतीत। सतगुरू इहां न बैठिये, यौह द्वारा है नीच।।114।।
गरीब, ऊंच नीच में हम रहैं, हाड चाम की देह। सुरजन अरजन समझियो, रखियो शब्द सनेह।।115।।
सरलार्थ :- अर्जुन तथा सर्जुन दो मुसलमान धर्म के मानने वाले थे। अपने धर्म की परंपरा का निर्वाह करने मक्का-मदीना की मस्जिद में गए हुए थे। वहाँ परमात्मा कबीर जी उनको जिंदा बाबा के वेश में मिले थे। ज्ञान चर्चा करके सत्य मार्ग बताया था। वे कबीर परमात्मा के शिष्य बन गए थे। सतगुरू के आदेशानुसार वे फिर भी मक्का-मदीना या अन्य मुसलमान धर्म के धार्मिक कार्यक्रमों में जाकर भूलों को राह बताकर कबीर परमेश्वर से दीक्षा दिलाया करते थे। उस दिन वे बाहर से आए थे। जब सतगुरू कबीर जी को बदनाम वैश्या के घर देखा तथा लड़की की साथलों पर पैर रखे आँखों देखा तथा गलती कर गए। बोले कि हे सतगुरू! आप यहाँ न बैठो, यह तो नीच बदनाम औरत का घर है। कबीर परमात्मा ने कहा कि हे अर्जुन तथा सर्जुन! मैं ऊँच-नीच में सब स्थानों पर रहता हूँ। यह तो हाड-चाम का शरीर इस लड़की का है। मेरे लिए तो मिट्टी है। हे अर्जुन तथा सर्जुन! समझो। आपको जो दीक्षा नाम जाप की दे रखी है, उसका जाप करो। पहले तो तुम परमात्मा कहते थे। आज मुझे शिक्षा दे रहे हो। तुम तो मेरे गुरू बन गए। मोक्ष तो शिष्य बने रहने से होता है।
अब आपके मन में कबीर के प्रति दोष आ गया है। कल्याण असंभव है। दोनों परमात्मा के लिए घर त्यागकर बचपन से लगे थे। उनको अहसास हुआ कि बड़ी गलती बन गई। तुरंत चरणों में गिर गए। इस जन्म में मोक्ष की याचना की। परमात्मा ने कहा कि अब आपका कल्याण मेरे इस रूप से नहीं होगा। आपके मन में दोष आया है। उन्होंने चरण नहीं छोड़े। रो-रोकर याचना करते रहे। तब आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा सतगुरू दिल्ली से 30 मील पश्चिम में एक छोटे-से गाँव में मेरा भक्त जन्मेगा। तब तक तुम इसी शरीर में जीवित रहोगे। मैं तुम्हें स्वपन में सब मार्गदर्शन करता रहूँगा। उस मेरे भक्त को मैं मिलूँगा। उसे दीक्षा अधिकार दूँगा। तुम उससे दीक्षा लेकर भक्ति करना। संत गरीबदास जी जब दस वर्ष के हुए, तब कबीर जी उनको मिले थे। सतलोक दिखाया, वापिस छोड़ा। तब स्वपन में अर्जुन-सर्जुन को बताया। गाँव व नाम, पिता का नाम सब बताया। उस समय अर्जुन-सर्जुन हरियाणा प्रान्त के गाँव-हमायुंपुर में एक किसान के घर रहते थे। आयु लगभग 225 वर्ष की थी। दोनों को एक जैसा स्वपन आया। सुबह एक-दूसरे को बताया। किसान सेवक से पूछा कि यहाँ कोई छुड़ानी गाँव है। किसान ने बताया कि है। उन्होंने कहा कि आपने इतनी सेवा की है, आपका अहसान कभी नहीं भूल पाएँगे। कृपया करके हमें छुड़ानी गाँव तक पहुँचा दो। किसान ने रेहड़ू (छोटी बैलगाड़ी) में बैठाए तथा छुड़ानी ले गया। संत गरीबदास दास जी ने कहा कि आओ अर्जुन-सर्जुन! मेरे को परमात्मा कबीर जी ने सब बता दिया है। दीक्षा लो। यहीं रहो। भक्ति करो। उन दोनों ने दीक्षा ली और भक्ति की। वहाँ शरीर छोड़ दिया। दोनों के शरीर जमीन में दबाकर मंढ़ी बनाई गई जो सन् 1940 में भूरी वाले संत ने फुड़वा दी। कहा कि यहाँ पर केवल एक यादगार सतगुरू गरीबदास की ही रहेगी। यदि ये दोनों भी रहेंगी तो भक्त इनकी भी पूजा प्रारम्भ कर देंगे जो गलत हो जाएगा। शिष्य की पूजा नहीं की जाती।
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