मुसलमान धर्म की जानकारी Part -11
क्या इस्लाम धर्म के अनुसार पुनर्जन्म एक मिथक है या वास्तविकता?
उत्तर : मुस्लिम समाज या इस्लाम धर्म में एक अस्पष्ट धारणा है कि कोई पुनर्जन्म नहीं है, जबकि सच्चाई इसके विपरीत है। सबसे पहले, हम उस मिथक को जांचते हैं जो वर्तमान में प्रचलित है। मुस्लिम संतों के अनुसार, एक व्यक्ति सिर्फ एक बार जन्म लेता है। मृत्यु के बाद, उस व्यक्ति को कब्र में दफना दिया जाता है जहां वह कयामत आने तक रहता है। कयामत के दिन यानी जब महाप्रलय होगी, उस समय सभी को जिनके शरीर को कब्र में दफनाया गया था, उन्हें जीवित कर दिया जाएगा और उनके अच्छे और बुरे कर्मों का लेखा-जोखा होगा। जिन्होंने अच्छे कर्म किए वे स्वर्ग (जन्नत) में जाएंगे और जिन्होंने पाप किए हैं उन्हें नरक (दोजख) में भेजा जाएगा, जहां वे हमेशा के लिए रहेंगे।
यह धारणा हर तरीके से गलत है। सबसे पहले, मृत्यु के बाद, शरीर निश्चित रूप से मृत रूप में कब्र में रहता है लेकिन आत्मा के साथ ऐसा नहीं है। आत्मा को धर्म राज के पास भेजा जाता है, जो भगवान के दरबार में मुख्य न्यायाधीश होता है, जहाँ वह अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब लेता है। अच्छे कर्मों का फल स्वर्ग में भोगा जाता है, जबकि बुरे कर्मों का फल नरक में जहां आत्मा को उन तरीकों से प्रताड़ित किया जाता है, जिन्हें अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता है।
अवश्य पढ़ें : कुरान शरीफ - सूरह अल-अंबिया में जन्म और पुनर्जन्म की अवधारणा।
फिर कर्माधार से आत्मा को इस नश्वर पृथ्वी पर चौरासी लाख जूनियों में पटक दिया जाता है। दूसरा, स्वर्ग और नरक स्वयं नाश्वान हैं और वे भी महाप्रलय के दिन नष्ट हो जाते हैं। तीसरा, जहां तक एक मानव शरीर के सिद्धांत का संबंध है, इस ग्रह पर रहने वाले जानवरों के बारे में क्या? वे कहाँ से उतरे? सच्चाई यह है कि पुनर्जन्म होता है और प्रत्येक आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र में तब तक फंसी रहती है, जब तक की वह "इल्मवाले" संत की शरण में जाकर मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेती।
सूरह अल-मुल्क 67:2
जिसने मौत और ज़िन्दगी को पैदा किया ताकि तुम्हें आज़माए कि तुममें से काम में सबसे अच्छा कौन है और वह ग़ालिब (और) बड़ा बख्शने वाला है।
भावार्थ : अल्लाह/प्रभु ने जीवन के साथ-साथ मृत्यु को भी जन्म दिया ताकि ये पता लग सके कि लोगों में पवित्र आत्मा कौन हैं जो अच्छे कर्म करते हैं। इस पंक्ति में, यह स्पष्ट किया गया है कि कर्म का सिद्धांत प्रबल होता है, जिसके कारण कुछ लोग अमीर होते हैं, जबकि अन्य गरीब होते हैं, कुछ स्वस्थ होते हैं जबकि अन्य अस्वस्थ होते हैं आदि।
कुरान शरीफ - सूरह अल अंबिया 21:104 में पुनर्जन्म के विषय में बताया है।
जिस दिन हम आकाश को लपेट लेंगे जैसे पंजी में पन्ने लपेटे जाते हैं, जिस प्रकार पहले हमने सृष्टि का आरंभ किया था उसी प्रकार हम उसकी पुनरावृति करेंगे। यह हमारे जिम्मे एक वादा है। निश्चय ही हमें ये करना है।
भावार्थ: यह पंक्ति मुसलमानों के विश्वास के विपरीत है, जिसमें यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि पुनर्जन्म होता है और जन्म और मरण का चक्र भी चलता रहता है। इसके अलावा, मुस्लिम समुदाय के संत यह बताने के लिए गीता से संदर्भ लेते हैं कि पुनर्जन्म नहीं होता है।
आइए इस बात की जांच हम श्रीमद्भगवत गीता जी के श्लोकों से करते हैं;
पवित्र श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 4 श्लोक 5 और 9; अध्याय 2 श्लोक 12; अध्याय 10 श्लोक 2
गीता ज्ञान दाता, जो स्वयं काल भी था, कहता है कि उसके पुनर्जन्म और कर्म छिपे हुए हैं। साथ ही, वह अर्जुन को बताता है कि वह इस सच्चाई से अवगत नहीं है कि उसके कई जन्म हो चुके हैं। और ऐसा ही हाल काल का भी है। काल ने यह भी कहा है कि देवी-देवता भी उसके जन्म से परिचित नहीं हैं। क्योंकि वे भी काल से ही जन्मे हैं।
इस प्रकार, काल/क्षरपुरुष (जिसने कुरान के साथ-साथ गीता जी का ज्ञान भी दिया) स्वयं जन्म और मृत्यु के चक्र में है, इस तथ्य पर जोर देता है कि पुनर्जन्म है। यह जानने के बाद, आइए अब हम तीसरा सवाल लेते हैं जो लोगों के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
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