. बोध कथा
जब पिता ने काटी पुत्र की गर्दन
'जो जन मेरी शरण है, ताका हूँ मैं दास।
गेल-गेल लाग्या फिरूँ, जब तक धरती आकाश।।
गोता मारूँ स्वर्ग में, जा पैठूँ पाताल।
गरीबदास खोजत फिरूँ, अपने हीरे मोती लाल।।
*परमात्मा कबीर जी ने बताया है कि यदि कोई जीव किसी युग में मुझसे दीक्षा ले लेता है और यदि वह पार नहीं हो पाता है तो उसको किसी मानुष जन्म में ज्ञान सुनाकर शरण में लूँगा। उसके साथ-साथ रहूँगा। मेरी कोशिश रहती है कि किसी प्रकार यह काल जाल से छूटकर सुखसागर सत्यलोक में जाकर सुखी हो जाए। मेरा प्रयत्न तब तक रहता है जब तक धरती आकाश नष्ट नहीं होते यानि प्रलय नहीं होती। इसी प्रक्रिया के चलते अब्राहिम अधम सुल्तान की आत्मा पूर्व के कई जन्मों से परमेश्वर कबीर जी की शरण में रही थी। फिर काल ने उसका नाम खण्ड करवा दिया।*
*‘‘सम्मन वाली आत्मा ही सुल्तान इब्राहिम था‘‘ जिस समय परमेश्वर कबीर जी काशी में प्रकट थे। उस समय दिल्ली के निवासी सम्मन मनियार, उसकी पत्नी नेकी तथा पुत्र शिव (सेऊ) ने परमेश्वर से दीक्षा ली थी। इनकी आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। फिर भी परमात्मा के उपदेश का दृढ़ता से पालन किया करते थे। परमेश्वर पर पूर्ण विश्वास था। दोनों पति-पत्नी स्त्रियों को चूडि़याँ पहनाने का कार्य घर-घर जाकर करते थे। साथ में अपने गुरूदेव कबीर जी की महिमा भी किया करते थे। बताया करते थे कि हमारे सतगुरू देव जी ने राजा सिकंदर लोधी का असाध्य रोग आशीर्वाद मात्र से ठीक कर दिया। बादशाह सिकंदर ने स्वामी रामानन्द जी की गर्दन काट दी थी। उसको सतगुरू कबीर जी ने धड़ पर गर्दन जोड़कर जीवित कर दिया। एक कमाल नाम का लड़का मर गया था उसे भी जीवनदान दिया । लोग उनके मुंह से कबीर साहेब जी की महिमा सुनकर सामने से तो कुछ नहीं बोलते थे परंतु पीठ पीछे मज़ाक उड़ाया करते थे।*
*एक समय साहेब कबीर अपने भक्त सम्मन के यहाँ अचानक दो सेवकों (कमाल व शेख फरीद) के साथ पहुँचे। भक्त सम्मन इतना गरीब था कि कई बार अन्न भी घर पर नहीं होता था। सारा परिवार भूखा सो जाता था। आज वही दिन था। भक्त सम्मन ने अपने गुरुदेव कबीर साहेब से पूछा कि साहेब खाने का विचार बताएँ, खाना कब खाओगे? कबीर साहेब ने कहा कि भाई भूख तो लगी है। भोजन बनाओ। सम्मन अन्दर घर में जा कर अपनी पत्नी नेकी से बोला कि अपने घर अपने गुरुदेव भगवान आए हैं। जल्दी से भोजन तैयार करो। तब नेकी ने कहा कि घर पर अन्न का एक दाना भी नहीं है। सम्मन ने कहा पड़ोस वालों से उधार मांग लाओ। नेकी ने कहा कि मैं मांगने गई थी लेकिन किसी ने भी उधार आटा नहीं दिया। उन्होंने आटा होते हुए भी जान बूझ कर नहीं दिया और कह रहे हैं कि आज तुम्हारे घर तुम्हारे गुरु जी आए हैं। तुम कहा करते थे कि हमारे गुरु जी भगवान हैं। आपके गुरु जी भगवान हैं तो तुम्हें माँगने की आवश्यकता क्यों पड़ी? ये ही भर देगें तुम्हारे घर को आदि-आदि कह कर मजाक करने लगे। सम्मन ने कहा लाओ आपका चीर गिरवी रख कर तीन सेर आटा ले आता हूँ। नेकी ने कहा यह चीर फटा हुआ है। इसे कोई गिरवी नहीं रखता। सम्मन सोच में पड़ जाता है और अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए कहता है कि मैं कितना अभागा हूँ। आज घर भगवान आए हैं और मैं उनको भोजन भी नहीं करवा सकता। हे परमात्मा! ऐसे पापी प्राणी को पृथ्वी पर क्यों भेजा। मैं इतना नीच रहा हूँगा कि पिछले जन्म में कोई पुण्य नहीं किया। अब सतगुरु को क्या मुंह दिखाऊँ? यह कह कर अन्दर कोठे (कमरे) में जा कर फूट-फूट कर रोने लगा। तब उसकी पत्नी नेकी कहने लगी कि हिम्मत करो। रोवो मत। परमात्मा आए हैं। इन्हें ठेस पहुँचेगी। सोचेंगे हमारे आने से तंग आ कर रो रहा है। सम्मन चुप हुआ। फिर नेकी ने कहा आज रात्रि में दोनों पिता पुत्र जा कर तीन सेर (पुराना बाट किलो ग्राम के लगभग) आटा चुरा कर लाना। केवल संतों व भक्तों के लिए। तब लड़का सेऊ बोला माँ - गुरु जी कहते हैं चोरी करना पाप है। फिर आप भी मुझे शिक्षा दिया करती कि बेटा कभी चोरी नहीं करनी चाहिए। जो चोरी करते हैं उनका सर्वनाश होता है। आज आप यह क्या कह रही हो माँ? क्या हम पाप करेंगे माँ? अपना भजन नष्ट हो जाएगा। माँ हम चौरासी लाख योनियों में कष्ट पाएंगे। ऐसा मत कहो माँ। (मां बच्चों को सदा अच्छी सीख दिया करती है) तब नेकी ने कहा पुत्र तुम ठीक कह रहे हो। चोरी करना पाप है, परंतु पुत्र हम अपने लिए नहीं बल्कि संतों के लिए करेंगे। जिस नगर में निर्वाह किया है, इसकी रक्षा के लिए चोरी करेंगे। नेकी ने कहा बेटा - ये नगर के लोग अपने से बहुत चिड़ते हैं। हमने इनको कहा था कि हमारे गुरुदेव कबीर साहेब (पूर्ण परमात्मा) पृथ्वी पर आए हुए हैं। इन्होंने एक मृतक गऊ तथा उसके बच्चे को जीवित कर दिया था जिसके टुकड़े सिंकदर लोधी ने करवाए थे। एक लड़के तथा एक लड़की को जीवित कर दिया। सिंकदर लोधी राजा का जलन का रोग समाप्त कर दिया तथा श्री स्वामी रामानन्द जी (कबीर साहेब के गुरुदेव) को सिंकदर लोधी ने तलवार से कत्ल कर दिया था वे भी कबीर साहेब ने जीवित कर दिए थे। इस बात का ये नगर वाले मजाक कर रहे हैं और कहते हैं कि आपके गुरु कबीर तो भगवान हैं तुम्हारे घर को भी अन्न से भर देंगे। फिर क्यों अन्न (आटे) के लिए घर घर डोलती फिरती हो?*
*बेटा! ये नादान प्राणी हैं। यदि आज साहेब कबीर इस नगरी का अन्न खाए बिना चले गए तो काल भगवान भी इतना नाराज हो जाएगा कि कहीं इस नगरी को समाप्त न कर दे। हे पुत्र! इस अनर्थ को बचाने के लिए अन्न की चोरी करनी है। हम नहीं खाएंगे। केवल अपने सतगुरु तथा आए भक्तों को प्रसाद बना कर खिलाएगें। यह कह कर नेकी की आँखों में आँसू भर आए और कहा पुत्र नाटियो मत अर्थात् मना नहीं करना। तब अपनी माँ की आँखों के आँसू पौंछता हुआ लड़का सेऊ कहने लगा - माँ रो मत, आपका पुत्र आपके आदेश का पालन करेगा।*
*अर्ध रात्रि के समय दोनों पिता (सम्मन) पुत्र (सेऊ) चोरी करने के लिए चल दिए। एक सेठ की दुकान की दीवार में छिद्र किया। सम्मन ने कहा कि पुत्र में अन्दर जाता हूँ। यदि कोई व्यक्ति आए तो धीरे से कह देना मैं आपको आटा पकड़ा दूंगा और ले कर भाग जाना। तब सेऊ ने कहा नहीं पिता जी, मैं अन्दर जाऊँगा।*
*यदि मैं पकड़ा भी गया तो बच्चा समझ कर माफ कर दिया जाऊँगा। सम्मन ने कहा पुत्र! यदि आपको पकड़ कर मार दिया तो मैं और तेरी माँ कैसे जीवित रहेंगे? सेऊ प्रार्थना करता हुआ छिद्र द्वार से अन्दर दुकान में प्रवेश कर गया। तब सम्मन ने कहा पुत्र केवल तीन सेर आटा लाना, अधिक नहीं। लड़का सेऊ लगभग तीन सेर आटा अपनी फटी पुरानी चद्दर में बाँध कर चलने लगा तो अंधेरे में तराजू के पलड़े पर पैर रखा गया। जोर दार आवाज हुई जिससे दुकानदार जाग गया वो वहीं दुकान में सो रहा था और सेऊ जो बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था उसे चोर-चोर करके पीछे से पैरों से पकड़ लिया और वापिस घसीट कर रस्से से बाँध दिया।*
*इससे पहले सेऊ ने वह चद्दर में बंधा हुआ आटा उस छिद्र से बाहर फेंक दिया और कहा पिता जी मुझे सेठ ने पकड़ लिया है। आप आटा ले जाओ और सतगुरु व भक्तों को भोजन करवाना। मेरी चिंता मत करना। उधर सेठ कहने लगा अच्छा तुम चोर भी हो वैसे तो भगत बने फिरते थे। आज तुम्हारी पोल खुल गई तब सेऊ ने कहा लाला जी हम चोर नहीं है| हमारे घर हमारे गुरु जी आए हैं और हमारे घर भोजन कराने को आटा नहीं था। कोई नगर का व्यक्ति उधार भी नहीं दे रहा था। हमने सिर्फ तीन सेर आटा लिया है वो भी संतो के लिए। हम नही खाएंगे। हम आपका फिर दे देंगे कमा कर के। तब सेठ कहने लगा कि अच्छा अब पता चला कि चोरी तो तुम्हारे गुरु करवाते हैं तुमसे। अब चोर को क्या पीटें, चोर की माँ को सजा देंगे। सुबह होने दो। राजा को शिकायत कर तुम्हारे गुरु जी को सजा कराएंगे।*
*सेऊ और चिंतित हो गया कि यह तो जुल्म हो गया। कल को यह लोग गुरु जी की बेज्जती करेंगे। उनको कितना दुख पहुँचेगा। उधर आटा ले कर सम्मन घर पर गया तो सेऊ को न पा कर नेकी ने पूछा लड़का कहाँ है? सम्मन ने कहा उसे सेठ जी ने पकड़ कर थम्ब से बांध दिया। तब नेकी ने कहा कि आप वापस जाओ और लड़के सेऊ का सिर काट लाओ क्योंकि लड़के को पहचान कर अपने घर पर लाएंगे। फिर सतगुरु को देख कर नगर वाले कहेंगे कि ये हैं जो चोरी करवाते हैं। हो सकता है सतगुरु देव जी को परेशान करें। हम पापी अपने दाता को भोजन के स्थान पर कैद न करवा दें। आप बच्चे की गर्दन काट लाओ ताकि लाला डर के मारे कुछ कर न सके। इस उद्देश्य से अपने गुरुदेव की इज्जत बचाने के लिए, एक माँ अपने बेटे का सिर काटने के लिए अपने पति से कह रही है।*
*पिता सम्मन का पुत्र सेऊ का सिर काटना।*
*सम्मन ने हाथ में कर्द (लंबा छुरा) लिया तथा दुकान पर जाकर धीमी आवाज में कहा सेऊ बेटा, एक बार गर्दन बाहर निकाल। कुछ जरूरी बातें करनी है। कल तो हम नहीं मिल पाएंगे हो सकता है यह आपको मरवा दें! तब सेऊ उस सेठ (बनिए) से कहता है कि सेठ जी बाहर मेरा बाप खड़ा है। कोई जरूरी बात करना चाहता है। तब सेठ ने कहा नहीं तुम भाग जाओगे। तब सेऊ ने कहा कृपया करके आप बस मेरे रस्से को इतना ढीला कर दो कि मेरी गर्दन छिद्र से बाहर निकल जाए। तब सेठ ने उसकी बात को स्वीकार करके रस्सा इतना ढीला कर दिया कि गर्दन आसानी से बाहर निकल गई। जब सेऊ ने गर्दन बाहर निकाली तो पिता का हाथ नहीं उठा अपने बेटे की गर्दन काटने के लिए। कर्द पीछे छुपा ली तब सेऊ ने कहा पिता जी आप मेरी गर्दन काट दो। यदि आप मेरी गर्दन नहीं काटोगे तो आप मेरे पिता नहीं हो। मुझे पहचानकर घर तक सेठ पहुंचेगा। राजा तक इसकी पहुँच है। यह अपने गुरुदेव को मरवा देगा। पिताजी हम क्या मुख दिखाएंगे ?*
*सम्मन ने एकदम करद मारी और सिर काट कर घर ले गया। सेठ ने लड़के को कत्ल हुआ देख कर सोचा अब 302 का मुकदमा मुझपर लगेगा तो उसने सेऊ के शव को घसीट कर साथ ही एक पजावा (ईंटें पकाने का भट्ठा) था उस खण्डहर में डाल गया और अपनी उस दीवार को लीप-लाप कर, रेता मार कर ऐसा कर दिया जैसे मानो कुछ हुआ ही नही। जब सम्मन शीश लेकर घर पहुंच तो नेकी ने कहा कि आप अब फिर वापिस जाओ और लड़के के धड़ को शेठ कहीं जंगल में डालकर आएगा। आप उसे भी उठा लाओ क्योंकि हो सकता है दिन में शव मिलने पर छान बिन हो कि किसका शव है, बात खुलेगी।*
*आप उसे भी घर ले आओ। तब सम्मन दुकान पर पहुँचा और शव की घसीट (चिन्हों) को देखते हुए शव के पास पहुँच कर उसे कंधे पर उठा लाया। ला कर अन्दर कोठे में रख कर ऊपर पुराने कपड़े (गुदड़) डाल दिए और सिर को अलमारी के ताख (एक हिस्से) में रख कर खिड़की बंद कर दी।*
*कुछ समय के बाद सूर्य उदय हुआ। लड़के का कत्ल हुआ पड़ा है। सम्मन ने नेकी से कहा कि रोना मत।अगर आप रो पड़े तो गुरु जी को पता चल जाएगा फिर वो भोजन नहीं खाएंगे। तब फिर नेकी ने स्नान किया। सतगुरु व भक्तों का खाना बनाया। तथा कहा कि गुरुदेव जी से भोजन की प्रार्थना करो। उनको शाम से भूख लगी होगी। इस लिए वक्त से बना दिया है और उन्होंने सुबह जल्दी जाने के लिए भी कहा था तो वक्त से खा कर फिर चले जाएंगे। इनको पता नहीं लगेगा पता चल गया तो यह रोटी नहीं खाएंगे। तब सम्मन ने सतगुरु कबीर साहेब जी से भोजन करने की प्रार्थना की। कहा आओ महाराज ! भोजन तैयार है। नेकी ने साहेब कबीर व दोनों भक्त (कमाल तथा शेख फरीद), तीनों के सामने आदर के साथ भोजन परोस दिया। जितना भी भोजन बना था सारा तीन पात्रों में डाल दिया।*
*तब साहेब कबीर ने कहा ऐसे नही इसे छ: दोन्हों (वर्तन ) में डाल कर आप तीनों भी साथ बैठो तथा यह प्रेम प्रसाद पाओ। आप भी तो मेरे बच्चे हो। अब नेकी और सम्मन ने पाँच दोन्हों में डाल दिया तब कबीर साहेब ने कहा इसे छ: में डालो। तब वो कहने लगे कि बच्चा बाहर खेलने गया है देर से आएगा। तब कबीर साहेब ने कहा कि जब आएगा तो खा लेगा आप उसके लिए भी डालो बहुत प्रार्थना करने पर भी साहेब कबीर नहीं माने तो छः दोन्हों में प्रसाद परोसा गया। पाँचों प्रसाद के लिए बैठ गए।*
*तब साहेब कबीर जी ने कहा:-*
आओ सेऊ जीम लो, यह प्रसाद प्रेम।
शीश कटत हैं चोरों के, साधों के नित्य क्षेम।।
सेऊ धड़ पर शीश चढ़ा, बैठ्या पंगत माही
नहीं निशानी गर्दन के, ये वो सेऊ है क नाही।।
*साहेब कबीर ने कहा कि सेऊ आओ भोजन पाओ। सिर तो चोरों के कटते हैं। संतो (भक्तों) के नहीं। उनकी तो रक्षा होती है साहेब कबीर ने इतना कहा था की उसी समय सेऊ के धड़ पर सिर लग गया। कटे हुए का कोई निशान भी गर्दन पर नहीं था तथा पंगत (पंक्ति) में बैठ कर भोजन करने लगा। बोलो कबीर साहेब (कविरमितौजा) की जय। (कविर = कविर्देव =कबीर परमेश्वर, अमित + औजा = जिसकी शक्ति का कोई वार-पार न हो।) सम्मन तथा नेकी ने देखा कि गर्दन पर कोई चिन्ह भी नहीं है। लड़का जीवित कैसे हुआ ? अन्दर जा कर देखा तो वहाँ शव तथा शीश नहीं था। केवल रक्त के छीटें लगे थे जो इस पापी मन के संशय को समाप्त करने के लिए प्रमाण बकाया था।*
समर्थ का शरणा गहो रंग होरी हो। कबहु ना हो ए-काज राम रंग होरी हो।।
*इस पूरी घटना के बाद सम्मन लगातार चिन्तित रहने लगा कि यदि मेरे पास धन होता तो मुझे अपने बच्चे की गर्दन नहीं काटनी पड़ती सम्मन की इस इच्छा को पूरी करने के लिए कबीर साहिब जी ने उसे बहुत बड़ा खजाना दे दिया, सम्मन नगर का सब से बड़ा सेठ बन गया लेकिन इच्छा रहने से मोक्ष नहीं हो पाया |*
*उधर नेकी ओर सेऊ ने डट कर भक्ति की इससे कबीर साहिब जी ने दोनों को पार किया |*
*भक्ति के लिए भक्त का शरीर का स्वभाव बहुत सहयोगी होता है। अच्छे माता-पिता से मिले जन्म से बच्चे के शरीर में माता-पिता का स्वभाव भी साथ रहता है।*
*परमात्मा कबीर जी के लिए अपने भगत को धन और अन्य सांसारिक सुख देना कठिन नहीं है। जब परमात्मा किसी भगत की परीक्षा लेते हैं तो इसके पीछे कारण अपने प्रिय भगत को परमात्मा की महिमा, परमात्मा पर अडिग विश्वास, प्रेम ,समर्पण आदि का भाव देखते हैं। जो साधक परमात्मा की परीक्षा में पास हो जाता है उसके वारे न्यारे हो जाते हैं यानी वह भक्ति के साथ साथ भौतिक धन का भी धनी हो जाता है। परमात्मा पर विश्वास बनाए रखें। परमात्मा परीक्षा भी उसी की लेते हैं जो उनका बहुत प्रिय होता है। परमात्मा आत्मा का साथी है वह उसे कभी अकेला नहीं छोड़ता।*
*कबीर परमात्मा की महिमा का गुणगान सभी संतों ने अपनी अपनी वाणी में किया है। पृथ्वी पर कबीर साहेब जी के कृपा पात्र संत ,संत रामपाल जी महाराज जी आए हुए हैं जो प्रतिदिन कबीर परमेश्वर की महिमा का गुणगान अपने मुखकमल से करते हैं । आप भी सुनिए साधना चैनल पर शाम 7.30-8.30 बजे।*
Sat saheb ji
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