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दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

महारानी दुर्गावती के बलिदान दिवस (२४-जून) कोटि कोटि नमन

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महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं. उनका जन्म महोबा के राठ गांव में 1524 ई0 की दुर्गाष्टमी के दिन हुआ था. दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया. नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी. दुर्गावती से प्रभावित होकर राजा संग्राम शाह ने अपने पुत्र दलपत शाह से विवाह करके, उसे अपनी पुत्रवधू बनाया था.  दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया. उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था. अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया. उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं. वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था. उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया. जालिम और ऐय्यास शहंशाह "अकबर" को जब महारानी दुर्गावती की बहादुरी और सुन्दरता के बारे में पता चला, तो उसने अपनी ताकत के बल पर महारानी को अपने हरम में डालने का निश्चय कर लिया. उसने विवाद

बेई नदी में प्रवेश

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बेई नदी में प्रवेश ”जीवन दस गुरु साहेब से ज्यों का त्यों सहाभार“ गुरु जी प्रत्येक प्रातः बेई नदी में जो कि शहर सुलतानपुर के पास ही बहती है, स्नान करने के लिए जाते थे। एक दिन जब आपने पानी में डुबकी लगाई तो फिर बाहर न आए। कुछ समय ऊपरान्त आप जी के सेवक ने, जो कपड़े पकड़ कर नदी के किनारे बैठा था, घर जाकर जै राम जी को खबर सुनाई कि नानक जी डूब गए हैं तो जै राम जी तैराकों को साथ लेकर नदी पर गए। आप जी को बहुत ढूंढा किन्तु आप नहीं मिले। बहुत देखने के पश्चात् सब लोग अपने घर चले गए। भाई जैराम जी के घर बहुत चिन्ता और दुःख प्रकट किया जा रहा था कि तीसरे दिन सवेरे ही एक स्नान करने वाले भक्त ने घर आकर बहिन जी को बताया कि आपका भाई नदी के किनारे बैठा है। यह सुनकर भाईआ जैराम जी बेई की तरफ दौड़ पड़े और जब जब पता चलता गया और बहुत से लोग भी वहाँ पहुँच गए। जब इस तरह आपके चारों तरफ लोगों की भीड़ लग गई आप जी चुपचाप अपनी दुकान पहुँच गए। आप जी के साथ स्त्राी और पुरूषों की भीड़ दुकान पर आने लगी। लोगों की भीड़ देख कर गुरु जी ने मोदीखाने का दरवाजा खोल दिया और कहा जिसको जिस चीज की जरूरत है वह उसे ले जाए। मोदीखा

आदरणीय दादू जी को मिले कबीर परमात्मा”

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🔷 अनेक संतों ने कबीर परमेश्वर का साक्षात्कार किया  _______________________________________ कबीर साहिब जी चारों युगों में आते हैं और अच्छी तथा दृढ़ भक्तों को मिलते हैं तथा उन्हें अपना तत्वज्ञान समझाते हैं। यही हमारे वेद भी गवाही देते हैं जिसका प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 86 मंत्र 26-27. ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 82 मंत्र 1-2. ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 96 मंत्र 16 से 20, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 1 मंत्र 8-9 में हैं। इसी प्रकार कबीर साहिब जी अनेक संतों को मिले जिनमें से आदरणीय दादू जी, आदरणीय नानक जी, आदरणीय धर्मदास दास जी, आदरणीय मलूक दास जी, आदरणीय गरीबदास जी, आदरणीय रामानंद जी आदि ऐसे संत हुए हैं जिन्होंने अपनी वाणी में कबीर साहिब जी के परमेश्वर होने का प्रमाण दिया है।  ”आदरणीय दादू जी को मिले कबीर परमात्मा” _______________________________________ आदरणीय दादू साहेब जी जब सात वर्ष के बालक थे तब पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी जिंदा महात्मा के रूप में मिले तथा सत्यलोक लेकर गए। वहाँ सर्व लोकों व अपनी स्थिति से परिचित करवाया एवं पुनः पृथ्वी पर वापस छोड़ा। तीन दिन तक दादू जी बेहोश रहे। होश में आ

कबीर परमेश्वर प्रत्येक युग में लीला करते हैंज्ञानी गरुड़ हैं दास तुम्हारा तुम बिन नहीं जीव निस्तारा

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चारों युगों में संतों को मिले कबीर परमात्मा हमारे हिन्दू धर्म के पवित्र शास्त्र वेदों में प्रमाण हैं कि परमात्मा प्रत्येक युग में अपने निजधाम सतलोक से चलकर हल्का तेज पुंज का शरीर धारण करके पृथ्वी लोक पर आते हैं गति करके आते हैं और अपनी प्यारी आत्माओं को दृढ़ भक्तों को मिलते हैं और अपनी यथार्थ जानकारी अपना ज्ञान अपने द्वारा रची गई सृष्टि की जानकारी बताकर अपने गवाह बनाकर जाते हैं जिसका प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं 9 सूक्त 96 मंत्र 18  कबीर परमात्मा चारों युगों में आते हैैं सतयुग में सत सुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिंन्द्र नाम से, द्वापर में करुणामय नाम से तथा कलियुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं कबीर परमेश्वर प्रत्येक युग में लीला करते हैं ज्ञानी गरुड़ हैं दास तुम्हारा तुम बिन नहीं जीव निस्तारा इतना कह गरुड़ चरण लिपटाया शरण लेवों अविगत राया सतयुग में विष्णु जी के वाहन पक्षी राज गरुड़ जी को कबीर साहेब जी ने उपदेश दिया उनको सृष्टि रचना सुनाई और गरुड़ जी मुक्ति के अधिकारी हुए त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर मुनिंद्र नाम से प्रकट हुए तथा नल व नील को शरण में लिया

अनेको संतो ने किया परमात्मा का साक्षत्कार

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वेदों में प्रमाण है कि परमेश्वर प्रत्येक युग में हल्के तेजपुंज का शरीर धारण करके अपने निजलोक से गति करके आता है एवं अच्छी आत्माओं को मिलता है। उन्हें तत्वज्ञान सुनाता है एवं यथार्थ भक्ति बताता है।कबीर परमात्मा चारों युगों में इस पृथ्वी पर सशरीर प्रकट होते हैं। अपनी जानकारी स्वयं ही देते हैं। सतयुग में परमात्मा सत सुकृत नाम से आये थे। और उस समय के जो तत्कालीन  राजा मित्र सैन, रानी चित्ररेखा व राजा राय हरचन्द को परमात्मा ने अपना वास्तविक ज्ञान समझा कर सतभक्ति की राह दिखाई। तथा मोक्ष प्रदान किया।सतयुग में कबीर परमात्मा राजा अंबरीष को भी मिले थे और उन्हें सद्भक्ति मंत्र प्रदान किए थे।  त्रेतायुग में कबीर परमात्मा ऋषि मुनिन्द्र के नाम से प्रकट हुये थे। त्रेता युग में कबीर परमात्मा लंका में रहने वाले चंद्रविजय और उनकी पत्नी कर्मवती को भी मिले थे। और उस समय के राजा रावण की पत्नी मंदोदरी और भाई विभीषण को भी ज्ञान समझा कर अपनी शरण में लिया। यही कारण था कि रावण के राज्य में भी रहते हुए उन्होंने धर्म का पालन किया। द्वापर युग में और भी अन्य राजा हुए जिनमें राजा भोज, राजा मु

कबीर परमात्मा 600 वर्ष पहले कलियुग में ही नहीं बल्कि हर युग में अपनी लीला करने अपनी यथार्थ जानकारी सत्य भक्ति

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कबीर परमात्मा 600 वर्ष पहले कलियुग में ही नहीं बल्कि हर युग में अपनी लीला करने अपनी यथार्थ जानकारी सत्य भक्ति विधि बताने आते हैं और दृढ़ भक्तों को मिलते हैं और ज्ञान उपदेश देने की इच्छा से अपने निजधाम सतलोक से चलकर के समान गति करके आते हैं  जिसका प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं 9 सूक्त 82 मंत्र 1, 2, 3 में स्पष्ट हैं कबीर परमात्मा अन्य रुप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अंतर्ध्यान हो जाते हैं उस समय लीला करने आए परमेश्वर को प्रभु चाहने वाले श्रद्धालु नहीं पहचान पाते क्योंकि सर्व महर्षियों व संत कहलाने वालों ने प्रभु को निराकार बताया है वास्तव में परमात्मा आकार में है मनुष्य सदृश शरीर युक्त है। जिसका प्रमाण  ऋग्वेद मण्डल नं 9 सुक्त 20 मंत्र 1  ऋग्वेद मण्डल नं 9 सुक्त 96 मंत्र 18 ऋग्वेद मण्डल नं 9 सुक्त 94 मंत्र 1 इस मंत्र में कहा है कि वह कबीर साहेब कवियों की तरह आचरण करता हुआ इधर-उधर जाता है यानि घूम-फिरकर कविताओं, लोकोक्तियों द्वारा तत्वज्ञान बताता फिरता है जिज्ञासुओं को यथार्थ ज्ञान देता है उनकी ज्ञान से तृप्ति करता है वह ऊपर तीसरे मुक्ति धाम में विराजमान हैं ( सोम:तंत

संतों ने कहा कबीर साहेब ही पूर्ण परमात्मा B2

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पूर्ण परमात्मा चारों युगों में पृथ्वी पर सशरीर आते हैं और सशरीर वापस चलें जाते हैं। अपना वास्तविक तत्वज्ञान दोहों, कविताओं तथा चौपाइयों द्वारा बोलकर सुनाते हैं। जिससे लोग उन्हें संत तथा कवि कहकर संबोधित करने लग जाते हैं। बहुत सी अच्छी आत्माओं को मिलते हैं और सत्य ज्ञान से परिचित करावाकर अपना गवाह बनाते हैं। ऐसे ही कुछ महापुरुषों को कलयुग में कबीर परमेश्वर मिलें थे, जिसके बाद उन्होंने कबीर परमेश्वर की कलमतोड़ महिमा गाई और बताया कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ही हैं। आदरणीय धर्मदास जी को बांधवगढ़ मध्यप्रदेश वाले को पूर्ण परमात्मा कबीर जी मथुरा में जिंदा महात्मा के रूप में मिले, सत्य ज्ञान से परिचित कराया, सतलोक दिखाकर साक्षी बनाया। तब धर्मदास जी ने कहा था कि, आज़ मोहे दर्शन दियो जी कबीर, सतलोक से चलकर आए, काटन जम की जंजीर।।  मलूक दास जी को 42 वर्ष की आयु में कबीर परमेश्वर मिलें। सत्य ज्ञान समझाया, तब मलूक दास जी ने अपनी अमरवाणी में कहा था कि, जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर। चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर । दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।। वह कबीर परमेश्वर चारों द