कबीर सागर में 28वां अध्याय ‘‘काया पांजी‘‘ है। पृष्ठ 173 पर है। परमेश्वर कबीर जी ने शरीर में बने कमलों का ज्ञान तथा जीव जब सतलोक चलता है तो कौन-कौन से मार्ग से जाता है? यह बताया है। परंतु इस अध्याय में यथार्थ वाणी को अपनी बुद्धि से काल वाले कबीर पंथियों ने निकाल दिया और अपनी अल्प बुद्धि से अड़ंगा करके गलत वाणी लिख दी। प्रमाण के लिए पृष्ठ 175 पर प्रथम पंक्ति में लिखा है:-
दहिने घाट चन्द्र का बासा। बाँवें सूर (सूर्य) करे प्रकाशा।।
भावार्थ:- दायें नाक वाला छिद्र चन्द्र यानि शीतल है और बायां छिद्र सूर्य यानि गर्म है। जबकि वास्तविकता यह है कि दायां स्वर तो गर्म यानि सूरज द्वार कहा जाता है। इसको पिंगल नाड़ी भी कहते हैं। बायां स्वर चन्द्र द्वार यानि शीतल द्वार कहते हैं, इसको इंगला नाड़ी कहते हैं और मध्य वाली को सुषमणा नाड़ी कहते हैं। इस प्रकार ज्ञान का अज्ञान करके लिखा है। मेरे पास पुराना यथार्थ कबीर ग्रन्थ है। उससे तथा संत गरीबदास जी के ग्रन्थ से सारांश तथा वाणी लिखकर सार ज्ञान प्रस्तुत कर रहा हूँ।
यथार्थ ज्ञान
कृपा पढ़ें यह शब्द ‘‘कर नैनों दीदार महल में प्यारा है‘‘, इसी पुस्तक के पृष्ठ 154 पर अध्याय अनुराग सागर के सारांश में पृष्ठ 151 के सारांश में।
अब पढ़ें संत गरीबदास जी की वाणी:-
ब्रह्म बेदी
ब्रह्म बेदी का अर्थ परमात्मा की भक्ति का सुसज्जित आसन जिसके ऊपर छतर या चाँदनी लगी हो, सुन्दर स्वच्छ गलीचा या गद्दा बिछा हो जैसे पाठ प्रकाश के समय श्री सद्ग्रन्थ साहेब का आसन तैयार करते हैं। भावार्थ है कि आत्मा में परमात्मा की बेदी बनाकर परमेश्वर को आसन-सिहांसन पर विराजमान करके उसकी स्तुति करें। संत गरीबदास जी की वाणी:-
वाणी:- ज्ञान सागर अति उजागर, निर्विकार निरंजनं। ब्रह्मज्ञानी महाध्यानी, सत सुकृत दुःख भंजनं।।1
सरलार्थ:- हे परमेश्वर! आप सर्व ज्ञान सम्पन्न हो, ज्ञान के सागर हो। आप अति उजागर अर्थात् पूर्ण रूप मान्य हो। सर्व को आपका ज्ञान है कि परमात्मा परम शक्ति है। इस प्रकार आपका सर्व को ज्ञान है। यह तो उजागर अर्थात् स्पष्ट है कि परमात्मा समर्थ है। आप निर्-विकार निरंजन हो। आप में कोई दोष नहीं, कोई विषय-विकार नहीं है। आप वास्तव में निरंजन हैं। निरंजन का अर्थ है माया रहित अर्थात् निर्लेप परमात्मा। काल भी निरंजन कहलाता है। वास्तव में वह निरंजन नहीं है, वह ज्योति निरंजन है। काल निरंजन है, वह निर्विकार निरंजन नहीं है। हे परमात्मा! आप ब्रह्म ज्ञानी अर्थात् परमात्मा का ज्ञान अर्थात् अपनी जानकारी आप ही प्रकट होकर बताते हैं। इसलिए आप ब्रह्म ज्ञानी हो। अन्य नकली ब्रह्म ज्ञानी हैं। हे परमात्मा! आप महाध्यानी हैं। आप सर्व प्राणियों का ध्यान रखते हो। इस कारण से आप जैसा ध्यानी कोई नहीं। आप सत सुकृत अर्थात् सच्चे कल्याणकर्ता हो। आप अपने भक्त का दुःख नाश करने वाले हैं। (1)
अब ब्रह्म बेदी की वाणी सँख्या 2 से 8 तक मानव शरीर में बने कमलों का वर्णन संत गरीबदास जी ने किया है। साथ में उनके कमलों को विकसित करने के मंत्र भी बताए हैं। परंतु इन मंत्रों के जाप की विधि केवल मेरे को (संत रामपाल दास को) पता है तथा भक्तों को नाम दान करने की आज्ञा भी मुझे ही है। यदि कोई इन मंत्रों को पढ़कर स्वयं जाप करेगा तो उसको कोई लाभ नहीं होगा।
वाणी:- मूल चक्र गणेश बासा, रक्त वर्ण जहां जानिये।
किलियं जाप कुलीन तज सब, शब्द हमारा मानिये।। 2
सरलार्थ:- मानव शरीर में एक रीढ़ की हड्डी (spine) है जिसे back bone भी कहते हैं। गुदा के पास इसका निचला सिरा है। इस रीढ़ की हड्डी के साथ शरीर की ओर गुदा से एक इन्च ऊपर मूल चक्र (कमल) है जिसका रक्त वर्ण अर्थात् खून जैसा लाल रंग है। इस कमल की चार पंखुड़ियाँ हैं। इस कमल में श्री गणेश देव का निवास है। हे साधक! इस कमल को खोलने यानि मार्ग प्राप्त करने के लिए ‘‘किलियम्‘‘ नाम का जाप कर और सब कुलीन अर्थात् नकली व्यर्थ नामों का जाप त्याग दे, हमारे वचन पर विश्वास करके मान लेना।
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