वाणी:- है निरसिंघ अबंध अबिगत, कोटि बैुकण्ठ नखरूप है।
अपरंपार दीदार दर्शन, ऐसा अजब अनूप है।। 12
सरलार्थ:- परमात्मा सीमा रहित, बंधन रहित है जिसकी गति (स्थिति) को कोई नहीं जानता(परमात्मा अविगत है)। उसके नाखून जितने स्थान पर करोड़ों स्वर्ग स्थापित हैं। भावार्थ है कि परमात्मा की अध्यात्मिक शक्ति जिसे निराकार शक्ति कहते हैं, इतनी विशाल तथा शक्तियुक्त है कि उसके अंश मात्र पर करोड़ों स्वर्ग स्थापित हैं। जैसे सत्य लोक (सतलोक) में जितने भी ब्रह्माण्ड हैं, वे सर्व स्वर्ग हैं अर्थात् सुखदायी स्थान हैं। स्वर्ग नाम सुखमय स्थान का है। काल लोक के स्वर्ग की तुलना में सत्यलोक का स्वर्ग असँख्य गुणा अच्छा है। वह परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् सत्यपुरूष अपरमपार है। उसकी लीला का कोई वार-पार अर्थात् सीमा नहीं है। उसका दीदार करने से (देखने से) पता चलता है कि वह ऐसा अजब (अनोखा) अर्थात् अनूप है। जिसकी तुलना करने को दूसरा नहीं है। नोट:- संत गरीबदास जी का दृष्टिकोण रहा है कि वाणी में सभी भाषाओं का समावेश किया जाए ताकि पृथ्वी के सब मानव तत्त्वज्ञान से परिचित हो सकें। इस वाणी में दीदार शब्द के साथ दर्शन शब्द भी लिखा है। दोनों का अर्थ एक ही है ‘देखना‘, दोहे में लिखा है दीदार दर्शन, यह पद्य भाग है। इसमें कोष्ठ का प्रयोग नहीं होता। यदि गद्य भाग में कहानी की तरह लिखते समय दीदार (दर्शन) लिख सकते हैं। इससे दीदार का अर्थ ‘दर्शन‘ है, स्पष्ट हो जाता है। ‘दीदार‘ शब्द उर्दू भाषा का है और ‘दर्शन‘ शब्द हिन्दी भाषा का। इसी प्रकार ‘अजब‘ शब्द उर्दू भाषा का है जिसका अर्थ है अनोखा और ‘अनूप‘ शब्द हिन्दी भाषा का है जिसका अर्थ भी अनोखा होता है। (12)
वाणी:- घुरैं निसान अखण्ड धुन सुन, सोहं बेदी गाईये।
बाजैं नाद अगाध अग है, जहां ले मन ठहराइये।। 13
सरलार्थ:- सतलोक में निशान (झण्डे=पताका) फहरा रहे हैं तथा वहाँ पर अखण्ड (निरंतर) धुन बज रही है। हे साधक! उसको सुनकर सोहं मन्त्र की स्तुति करना। भावार्थ है कि ‘सोहं‘ मंत्र पृथ्वी के किसी ग्रन्थ में नहीं है। यह शब्द परमात्मा कबीर जी ने पृथ्वी पर प्रकट किया है। कहा भी है कि:-
सोहं शब्द हम जग में लाए। सार शब्द हमने गुप्त छिपाए।।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 95 मन्त्र 2 में भी कहा है कि परमात्मा पृथ्वी पर प्रकट होकर अपनी वाणी बोलकर मानव को भक्ति करने की प्रेरणा करता है। परमेश्वर भक्ति के गुप्त नामों का आविष्कार करता है। इसलिए कहा है कि सोहं मन्त्र के बिना साधना अधूरी थी। यदि साधक को सोहं मंत्र मिल जाता है तो साधक परमेश्वर के सतलोक में पहुँच सकता है। इसलिए सोहं नाम की बेदी (स्तुति) कीजिए कि यह न मिलता तो मोक्ष सम्भव नहीं था। उस सतलोक में और भी अनेकों नाद (शब्द) गूँज रहे हैं जो अगाद अर्थात् दुर्लभ और आगे के (सतलोक के) हैं। वहाँ पर अर्थात् उन शब्दों की आवाज पर अपने मन को रोकना। मार्ग की चकाचैंध में भ्रमित न होना।
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