इस लीला को देखकर कमाल को समझ आई कि मैं तो इनकी सेवा-बलिदान के सामने सूर्य के समक्ष दीपक हूँ, परंतु अभिमान नहीं गया। नाम खण्ड हो चुका था। कुछ समय पश्चात् काल प्रेरणा से एक दिन परमेश्वर कबीर जी को त्यागकर अपने प्रशंसकों के साथ अन्य ग्राम में जाकर रहने लगा। दीक्षा देने लगा। पहले तो बहुत से अनुयाई हो गए, परंतु बाद में उनको हानि होने लगी। कोई माता पूजने लगा, कोई मसानी। कारण यह हुआ कि जो भक्ति साधकों ने परमेश्वर कबीर जी से दीक्षा लेकर की थी। वह जब तक चली, उनको लाभ होते रहे। वे मानते रहे कि यह लाभ कमाल गुरू जी के मंत्रों से हो रहे हैं। कमाल जी के आशीर्वाद से हमें लाभ हो रहा है। पूर्व की भक्ति समाप्त होते ही वे पुनः दुःखी रहने लगे। कमाल जी के पास कभी-कभी औपचारिकता करने जाने लगे। जैसे इन्वर्टर की बैटरी को चार्जर लगा रखा था, वह कुछ चार्ज हुई थी। चार्जर हट गया। फिर भी इन्वर्टर अपना काम कर रहा होता है। बैटरी की क्षमता समाप्त होते ही सर्व सुविधा जो इन्वर्टर से प्राप्त थी, वे बंद हो गई। इसी प्रकार उन मूर्ख भक्तों का जीवन व्यर्थ हो गया। कमाल जी को नामदान की आज्ञा नहीं थी। वह स्वयंभू गुरू बनकर श्रद्धालुओं का जीवन नष्ट करता हुआ अपना भी जीवन महिमा की भूख में नष्ट कर दिया।
एक दिन कमाल ने सोचा कि भक्तों का आना कम हो गया है। कमाल के लिए एक छोटा-सा आश्रम भी बना दिया था। आसपास के गाँवों में कबीर परमेश्वर जी के बहुत से शिष्य हैं जो कमाल के षड़यंत्र में नहीं फंसे थे। कमाल ने आसपास तथा उसी गाँव में कहलवा दिया कि कबीर गुरू जी का जन्म ज्येष्ठ पूर्णमासी को मनाया जा रहा है। सब आऐं तथा भण्डारे में दान करें। बाहर के गाँव से कोई नहीं आया। गाँव के व्यक्ति सुबह सूर्य उदय से पहले उठकर अपने अपने-अपने घरों से प्रतिवर्ष की तरह भण्डारे में दूध दान करने चले। कमाल ने आश्रम में रहने वाले शिष्यों से कहा कि गाँव वाले दूध डालने आएंगे, एक कड़ाहा रख दो। उसको कपड़े से ढ़क तो ताकि रेत-मिट्टी न गिरे। चेलों ने ऐसा ही कर दिया। गाँव वालों में परमेश्वर कबीर जी ने ऐसी प्रेरणा कर दी कि ज्यादातर विचार किया कि सारा गाँव दूध डालकर आएगा, मेरे घर में दूध कम है, मैं पानी डाल आता हूँ। प्रत्येक के मन में यह प्रेरणा हो गई। दो-चार ही दूध डालकर आए। वैसे अपनी हाजिरी सब घरों से एक-एक सदस्य ने लगवाई। सब अंधेरे का लाभ उठाकर सब कार्य कर गए। सुबह आश्रम के शिष्यों ने खीर बनाने के लिए दूध देखा तो सफेद पानी था। कमाल को तो लगा था कि सारा गाँव दूध लेकर आया है। सब मेरे साथ हैं, परंतु दूध देखा तो सब पानी था।
यह देखकर कमाल को अपनी करतूत का अहसास हुआ कि गुरू से दूर होने के कारण मेरे को यह हानि हुई है। घर का रहा न घाट का। उसी दौरान कमाल ने अहमदाबाद में एक दरीयाखान मुसलमान शिष्य बनाया था। फिर उसको शाॅप दे दिया कि तू भूत योनि में जाएगा। इस प्रकार अपनी शक्ति को कमाल ने नष्ट किया। कबीर परमेश्वर जी ने कमाल से कह दिया था कि तेरा पंथ नहीं चलेगा। तूने मर्यादा का कोई ध्यान नहीं रखा।
कबीर परमेश्वर जी ने भी कहा था कि:- {अनुराग सागर पृष्ठ 138}
कमाल पुत्र जो मृतक जिवाया। ताके घट (शरीर) में काल समाया।।
पुत्रवत ताको पाला पोखा। वाने हम संग कीन्हा धोखा।।
पिता जान तिन अहँग (अहंकार) कीन्हा। तातें ताको दिल से उतार दीन्हा।।
हम हैं प्रेम भक्ति के साथी। चाहुँ नहीं तुरी (घोड़ी) अरू हाथी।।
कुछ दिनों के पश्चात् कमाल भक्त उस आश्रम को त्यागकर रात्रि में अज्ञात स्थान पर चला गया। उसके पश्चात् न जाने कहाँ मरा होगा?
विचार करें:- यह प्राणी कितना कृतघ्नी हो चुका है। जिस मालिक ने जीवन दान दिया। पाला-पोसा, अनुपम अध्यात्म ज्ञान दिया। फिर भी अपनी महिमा की हवस के कारण उस परम पिता को धोखा दिया।
इस प्रसंग से यह भी स्पष्ट हुआ कि हम श्री कृष्ण जी को प्रभु मानते हैं। कारण यह है कि उन्होंने ताम्रध्वज को जीवित किया था। परमेश्वर कबीर जी ने शिव पुत्र सम्मन को जीवित किया था। उसको मोक्ष भी दिया। श्री कृष्ण ने केवल स्वर्ग दिया। स्वर्ग में गए व्यक्ति पुनः जन्म-मरण में आते हैं।
परमेश्वर कबीर जी द्वारा बताए भक्ति मार्ग से पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है जो शिव (सेऊ) तथा नेकी को प्राप्त हुआ तथा सम्मन को भी परमात्मा तीसरे जन्म में इब्राहिम अधम सुल्तान रूप में पूर्ण मोक्ष मंत्र देकर मोक्ष प्राप्त करवाया।
कमाल ने परमेश्वर के साथ धोखा किया। इसलिए अपनी मूर्खता के कारण जीवन व्यर्थ कर गया।
कबीर सागर के अध्याय ‘‘कमाल बोध‘‘ का सारांश सम्पूर्ण हुआ।
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