दास की परिभाषा‘‘

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‘‘दास की परिभाषा‘‘ एक समय सुल्तान एक संत के आश्रम में गया। वहाँ कुछ दिन संत जी के विशेष आग्रह से रूका । संत का नाम हुकम दास था। बारह शिष्य उनके साथ आश्रम में रहते थे। सबके नाम के पीछे दास लगा था। फकीर दास, आनन्द दास, कर्म दास, धर्मदास। उनका व्यवहार दास वाला नहीं था। उनके गुरू एक को सेवा के लिए कहते तो वह कहता कि धर्मदास की बारी है, उसको कहो, धर्मदास कहता कि आनन्द दास का नम्बर है। उनका व्यवहार देखकर सुल्तानी ने कहा कि:-  दासा भाव नेड़ै नहीं, नाम धराया दास। पानी के पीए बिन, कैसे मिट है प्यास।। सुल्तानी ने उन शिष्यों को समझाया कि मैं जब राजा था, तब एक दास मोल लाया था। मैंने उससे पूछा कि तू क्या खाना पसंद करता है। दास ने उत्तर दिया कि दास को जो खाना मालिक देता है, वही उसकी पसंद होती है। आपकी क्या इच्छा होती है? आप क्या कार्य करना पसंद करते हो? जिस कार्य की मालिक आज्ञा देता है, वही मेरी पसंद है। आप क्या पहनते हो? मालिक के दिए फटे-पुराने कपड़े ठीक करके पहनता हूँ। उसको मैंने मुक्त कर दिया। धन भी दिया। उसी की बातों को याद करके मैं अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करता हूँ। अपनी मर्जी कभी न

महान वैज्ञानिक गैलीलियो गैलिली की जन्म जयंती (15 फरवरी) पर सादर नमन

महान वैज्ञानिक गैलीलियो गैलिली की जन्म जयंती (15 फरवरी)
गैलीलियो गैलिली का जन्म 15 फ़रवरी 1564 को आधुनिक इटली के पीसा नामक शहर में एक संगीतज्ञ परिवार में हुआ था. इनके पिता विन्सौन्जो गैलिली उस समय के जाने माने संगीत विशेषज्ञ थे। वे "ल्यूट" नामक वाद्य यंत्र बजाते थे, यही ल्यूट नामक यंत्र बाद में गिटार और बैन्जो के रूप में विकसित हुआ.

अपने घर के पास में ही में उन्होंने अपनी स्कूल की पढाई की और जब वे 19 के हुए तब उन्होंने शहर की मुख्य यूनिवर्सिटी में मेडिसिन की पढाई के लिए दाखिला किया. परन्तु जैसे जैसे पढाई शुरू हुई वैसे वैसे मेडिसिन में उनकी रूचि कम होने लगी और जब यक़ीनन उन्हें लगा कि यह पढाई मेरी समझ के परे है तो उन्होंने मेडिसिन की पढाई छोड़ दी.

उसके बाद उन्होंने बिषय बदलकर फिलोसोफी और गणित की पढाई करना शुरू किया. परन्तु समय बाद घर की परिस्थिति ख़राब हो गई जिस वजह से गैलिली को मजबूरन साल 1585 में अपनी पढाई छोड़नी पड़ी. पढ़ाई छोड़ने के बाद वे एक शिक्षक बन गए. शिक्षण से पैसे कमाने के साथ साथ उन्होंने फिर से गणित की जो पढाई शुरू की.

पढ़ाई ख़त्म होते ही गैलिली को शहर की मुख्य यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर की नोकरी मिल गई और तीन साल तक उन्होंने वही पर नोकरी की. साल 1592 में गैलिली पाडुआ यूनिवर्सिटी में चले गए और फिर साल 1610 तक वही पर रहे. जहा पर शायद उनका नया जीवन शुरू हो चूका था क्योकि वहा पर उन्होंने बहुत सारे प्रयोग किये थे.

गैलिलियो न सिर्फ चीजो को देखते थे बल्कि उन चीजो को बारीकी से अध्यन भी करते थे. वे बचपन में भी अपने पिता द्वारा बजाये जाने वाले वाध्ययंत्र को ध्यान से देखते थे. तारों और डोरी को कसने ढीला करने से आवाज बदल जाने पर वे सोंचते कि - हर एक चीज का दुसरी चीज से कोई न कोई रिश्ता जरुर होता है.

प्रक्रति में कहीं कुछ घटता है तो उसके साथ ही कहीं कुछ बढ़ता है. इस बात से प्रेरित होकर उन्होंने लिखा था कि “ईश्वर की भाषा गणित है”. उसके बाद उन्होंने कुछ प्रयोग किये जिसमे उन्होंने पाया कि प्रकृति के नियम एक दूसरे जुड़े हुए है,जैसे किसी एक के बढने और घटने के बीच गणित के समीकरणों जैसे ही संबंध होते है.

इस महान गणितज्ञ और वैज्ञानिक ने ही प्रकाश की गति को नापने का साहस किया. इसके लिये गैलीलियो और उनका एक सहायक अंधेरी रात में कई मील दूर स्थित दो पहाड़ की चोटियों पर जा बैठेजहां से गैलीलियो ने लालटेन जलाकर रखी, अपने सहायक का संकेत पाने के बाद उन्हें लालटेन और उसके खटके के माध्यम से प्रकाश का संकेत देना था.

दूसरी पहाड़ी पर स्थित उनके सहायक को लालटेन का प्रकाश देखकर अपने पास रखी दूसरी लालटेन का खटका हटाकर पुनः संकेत करना था. इस प्रकार पहली बार किसी ने प्रकाश की गति का आकलन किया. हालांकि इसका कोई अभीष्ट परिणाम नहीं आया लेकिन इससे उनकी प्रयोग शीलता को समझा जा सकता है,

गैलिली ने एक बड़ी मीनार पर चढ़कर वहा से अलग अलग आकर के पत्थरो नीचे फेका. इससे उन्होंने यह जाना कि- पत्थरो के आकर अलग अलग होने के बाबजूद सभी पत्थरो के नीचे पहुँचने का समय एकसमान था. उन्होंने दूसरी जगह पर भी यही प्रयोग किया और परिणाम वही मिला, एक समान समय.

उसके बाद गैलिली ने दुनिया को "जड़त्व का सिद्धांत दिया. जो नियम कई सालो बाद न्यूटन के गति के सिद्धांतों का पहला सिद्धांत बना.कालान्तर में प्रकाश की गति और उर्जा के संबंधों की जटिल गुल्थी को सुलझाने वाले महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन ने इसी कारण उन्हें ‘आधुनिक विज्ञान का पिता ‘ के नाम से संबोधित किया.

गैलीलियो ने एक शक्तिशाली दूरबीन का आविष्कार किया जिसकी सहायता से चंद्रमा की सतह के गड्ढे तक देखे जा सकते थे. अब गैलिलियो का अधिकांस समय खगोलीय पिंडों को देखने और उनकी गति का अध्यन करने में बीतने लगा. उन्होंने दुनिया भर की नई पुरानी खगोलीय जानकारी को भी इकठ्ठा किया जिसमे भारतीय पंचांग प्रमुख था.

उन्होंने तब उपलब्ध सभी खगोलीय जाकारियों और मान्यताओं का तुलनात्मक अध्यन भी किया. उस समय तक सभी की यह मान्यता थी कि प्रथ्वी ब्रह्माण्ड के केंद्र में है और सूरज, चाँद, गृह, उपग्रह, तारे, आदि सभी प्रथ्वी की परिक्रमा करते हैं. केवल एक खगोलशास्त्री "कॉपरनिकस" ने कहा था कि पृथ्वी समेत सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है.

गैलीलियों ने कापरनिक्स के कथन के अनुसार अपनी दूरबीन से पुनः खगोलिए पिंडो का अध्यन किया. तब उनको भी कापरनिक्स का कथन ही सही लगा कि- प्रथ्वे सहित सभी गृह उपग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं. जब गैलीलियो ने यह सिद्वांत सार्वजनिक किया तो चर्च ने इसे अपनी अवज्ञा माना और इसके कारावास की सजा सुनायी गयी.

वर्ष 1633 में 69 वर्षीय वृद्व गैलीलियो को चर्च की ओर से यह आदेश दिया गया कि वे सार्वजनिक तौर पर माफी मांगते हुये यह कहें कि धार्मिक मान्यताओं के विरूद्व दिये गये उनके सिद्वांत उनके जीवन की सबसे बडी भूल थी जिसके लिये वे शर्मिंदा हैं. मजबूरी में उन्होने ऐसा ही किया भी परन्तु इसके बाद भी उन्हें कारावास में डाल दिया गया.

उनका स्वास्थ्य लगातार बिगडता रहा और इसी के चलते कारावास की सजा गृह-कैद अर्थात अपने ही घर में कैद में रहने की सजा में बदल दिया गया. अपने जीवन का आखिरी दिन भी उन्होंने इसी कैद में ही बिताया. गैलीलियो धर्म बिरोधी नहीं थे लेकिन वे पुरानी धार्मिक मान्यताओं को विवेकशीलता और प्रयोग के माध्यम से सिद्व करना चाहते थे.

इसाई धर्म की सर्वाेच्च संस्था "वेटिकन सिटी" ने 1992 में यह स्वीकार किया किया कि- गैलीलियो के मामले में निर्णय लेने में उनसे गलती हुयी थी. इस प्रकार एक महान खगोल विज्ञानी, गणितज्ञ, भौतिकविद एवं दार्शनिक गैलीलियो के संबंध में 1633 में जारी आदेश को रद्द कर अपनी ऐतिहासिक भूल को साढे तीन सौ सालों के बाद स्वीकार किया.

1609 में दूरबीन के निर्माण और खगोलीय पिंडों के प्रेक्षण की घटना के चार सौ सालों के बाद, उस घटना की 400वीं जयंती के रूप में वर्ष 2009 को अंतर्राष्ट्रीय खगोलिकी वर्ष के रूप में मनाया गया. ऐसा करके इस महान वैज्ञानिक को श्रद्वांजलि तथा उनके साथ किये गए अन्याय का प्राश्चित्य माना गया.

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